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इन समस्याओं की सूची और बढाई जा सकती है। जिन्हें विकसित देश माना जाता है उनकी समस्याएँ हमसे भी गंभीर हैं। भारत छोड़कर विश्व के अन्य देशों के सामने अर्थव्यवस्था का वर्तमान अर्थव्यवस्था से श्रेष्ठ अन्य कोई नमूना नहीं हैं। जो बलवान देश हैं वे अन्य गरीब देशों के शोषण से लाभ उठाने के लिए इस अर्थव्यवस्था को बनाए हुए हैं। और अन्य देश इसे नकार नहीं सकते क्यों कि उन के पास इस नाशकारी अर्थव्यवस्था को स्वीकार करने के सिवाय अन्य रास्ता नहीं है, शक्ति भी नहीं है। लेकिन भारत की स्थिति ऐसी नहीं है। भारत को एक श्रेष्ठतम  अर्थव्यवस्था का इतिहास है और साथ ही में दुनिया की लगभग २० % आबादी के कारण भारत अपने आप में एक विश्व है। इसलिए यह तो हमारे नेतृत्व का अज्ञान, दूरदृष्टि और हिम्मत की कमी है कि हम ऐतिहासिक धार्मिक (भारतीय) अर्थव्यवस्था से कुछ सीखने का प्रयास नहीं कर रहे
 
इन समस्याओं की सूची और बढाई जा सकती है। जिन्हें विकसित देश माना जाता है उनकी समस्याएँ हमसे भी गंभीर हैं। भारत छोड़कर विश्व के अन्य देशों के सामने अर्थव्यवस्था का वर्तमान अर्थव्यवस्था से श्रेष्ठ अन्य कोई नमूना नहीं हैं। जो बलवान देश हैं वे अन्य गरीब देशों के शोषण से लाभ उठाने के लिए इस अर्थव्यवस्था को बनाए हुए हैं। और अन्य देश इसे नकार नहीं सकते क्यों कि उन के पास इस नाशकारी अर्थव्यवस्था को स्वीकार करने के सिवाय अन्य रास्ता नहीं है, शक्ति भी नहीं है। लेकिन भारत की स्थिति ऐसी नहीं है। भारत को एक श्रेष्ठतम  अर्थव्यवस्था का इतिहास है और साथ ही में दुनिया की लगभग २० % आबादी के कारण भारत अपने आप में एक विश्व है। इसलिए यह तो हमारे नेतृत्व का अज्ञान, दूरदृष्टि और हिम्मत की कमी है कि हम ऐतिहासिक धार्मिक (भारतीय) अर्थव्यवस्था से कुछ सीखने का प्रयास नहीं कर रहे
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== भारतीय अर्थव्यवस्था में कौटुंबिक उद्योग का स्थान ==
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== धार्मिक (भारतीय) अर्थव्यवस्था में कौटुंबिक उद्योग का स्थान ==
भारतीय कुटुंब व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था और ग्राम व्यवस्था, ये बातें धार्मिक (भारतीय) पोषण व्यवस्था के अत्यंत महत्वपूर्ण घटक हैं। ये सब परस्पर पूरक और पोषक हैं। इनमें से एक को भी नकारने से अन्य घटक भी दुर्बल बन जाते हैं। इसमें धार्मिक (भारतीय) [[Family Structure (कुटुंब व्यवस्था)|कुटुंब व्यवस्था]] के विषय में, [[Varna System (वर्ण व्यवस्था)|वर्ण व्यवस्था]] के विषय में, [[Jaati System (जाति व्यवस्था)|जाति व्यवस्था]] के विषय में और [[Grama Kul (ग्रामकुल)|ग्राम व्यवस्था]] की अर्थव्यवस्था के विषय में अलग अलग लेख देखें। यहाँ हम केवल कुटुंब उद्योगों के विषय में ही विचार करेंगे।
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धार्मिक (भारतीय) कुटुंब व्यवस्था, वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था और ग्राम व्यवस्था, ये बातें धार्मिक (भारतीय) पोषण व्यवस्था के अत्यंत महत्वपूर्ण घटक हैं। ये सब परस्पर पूरक और पोषक हैं। इनमें से एक को भी नकारने से अन्य घटक भी दुर्बल बन जाते हैं। इसमें धार्मिक (भारतीय) [[Family Structure (कुटुंब व्यवस्था)|कुटुंब व्यवस्था]] के विषय में, [[Varna System (वर्ण व्यवस्था)|वर्ण व्यवस्था]] के विषय में, [[Jaati System (जाति व्यवस्था)|जाति व्यवस्था]] के विषय में और [[Grama Kul (ग्रामकुल)|ग्राम व्यवस्था]] की अर्थव्यवस्था के विषय में अलग अलग लेख देखें। यहाँ हम केवल कुटुंब उद्योगों के विषय में ही विचार करेंगे।
    
=== कौटुम्बिक उद्योगों के लाभ ===
 
=== कौटुम्बिक उद्योगों के लाभ ===
भारतीय संयुक्त परिवारों में ही पारिवारिक उद्योग फलते फूलते हैं। पारिवारिक उद्योगों के मोटे मोटे लाभ निम्न हैं।
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धार्मिक (भारतीय) संयुक्त परिवारों में ही पारिवारिक उद्योग फलते फूलते हैं। पारिवारिक उद्योगों के मोटे मोटे लाभ निम्न हैं।
 
# प्रत्येक व्यक्ति के लिए रोजगार की आश्वस्ति
 
# प्रत्येक व्यक्ति के लिए रोजगार की आश्वस्ति
 
# स्थानिक प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता के लाभ: सस्ते, अनिश्चितता नहीं, जब चाहो तब उपलब्ध जैसे लाभ।
 
# स्थानिक प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भरता के लाभ: सस्ते, अनिश्चितता नहीं, जब चाहो तब उपलब्ध जैसे लाभ।

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