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कई विद्वान ऐसा कहते हैं कि धर्म अफीम की गोली है। धर्म के कारण विश्वभर में खून की नदियाँ बहीं हैं। भीषण कत्लेआम हुए हैं।  
 
कई विद्वान ऐसा कहते हैं कि धर्म अफीम की गोली है। धर्म के कारण विश्वभर में खून की नदियाँ बहीं हैं। भीषण कत्लेआम हुए हैं।  
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वास्तव में ऐसा जिन विद्वानों ने कहा है उन्हे धर्म का अर्थ ही समझ मे नहीं आया था और नहीं आया है । रिलिजन, मजहब के स्थान पर धर्म शब्द का और धर्म के स्थान पर रिलिजन, मजहब इन शब्दों का प्रयोग अज्ञानवश लोग करते रहते हैं। इसलिये '''धर्म''' और रिलिजन, मजहब और संप्रदाय इन तीनो शब्दों के अर्थ समझना भी आवश्यक है। इस दृष्टि से हमने [[Dharma: Bhartiya Jeevan Drishti (धर्म:भारतीय जीवन दृष्टि)|"धर्म:भारतीय जीवन दृष्टि"]], इस लेख में धर्म शब्द के अर्थों को समझा है।  
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वास्तव में ऐसा जिन विद्वानों ने कहा है उन्हे धर्म का अर्थ ही समझ मे नहीं आया था और नहीं आया है । रिलिजन, मजहब के स्थान पर धर्म शब्द का और धर्म के स्थान पर रिलिजन, मजहब इन शब्दों का प्रयोग अज्ञानवश लोग करते रहते हैं। इसलिये '''धर्म''' और रिलिजन, मजहब और संप्रदाय इन तीनो शब्दों के अर्थ समझना भी आवश्यक है। इस दृष्टि से हमने [[Dharma: Bhartiya Jeevan Drishti (धर्म:भारतीय जीवन दृष्टि)|"धर्म:धार्मिक (भारतीय) जीवन दृष्टि"]], इस लेख में धर्म शब्द के अर्थों को समझा है।  
    
अब हम धर्म और रिलिजन या मजहब इन शब्दों के वास्तविक अर्थ जानने का प्रयास करेंगे।
 
अब हम धर्म और रिलिजन या मजहब इन शब्दों के वास्तविक अर्थ जानने का प्रयास करेंगे।
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“[[Hindu and Bharatiya (हिन्दू एवं भारतीय)|हिन्दू एवं भारतीय]]” तथा ‘[[Dharma: Bhartiya Jeevan Drishti (धर्म:भारतीय जीवन दृष्टि)|धर्म]]’ के अध्याय में हमने हिन्दू और धर्म के विषय में जाना है। अब हम हिन्दू धर्म और संप्रदाय के विषय में विचार करेंगे।   
 
“[[Hindu and Bharatiya (हिन्दू एवं भारतीय)|हिन्दू एवं भारतीय]]” तथा ‘[[Dharma: Bhartiya Jeevan Drishti (धर्म:भारतीय जीवन दृष्टि)|धर्म]]’ के अध्याय में हमने हिन्दू और धर्म के विषय में जाना है। अब हम हिन्दू धर्म और संप्रदाय के विषय में विचार करेंगे।   
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भारतीय सम्प्रदाय सामान्यत: वेद को माननेवाले ही हैं। भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में कई ऐसे राजा थे जो किसी सम्प्रदाय को मानते थे। किन्तु एक बौद्ध मत को माननेवाले सम्राट अशोक को छोड़ दें तो उन्होंने कभी भी अपनी प्रजा में सम्प्रदाय के आधार पर किसी को प्रताड़ित नहीं किया। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया। हिन्दूओं की मान्यता है – एकं सत् विप्र: बहुधा वदन्ति ।   
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धार्मिक (भारतीय) सम्प्रदाय सामान्यत: वेद को माननेवाले ही हैं। भारत के हजारों वर्षों के इतिहास में कई ऐसे राजा थे जो किसी सम्प्रदाय को मानते थे। किन्तु एक बौद्ध मत को माननेवाले सम्राट अशोक को छोड़ दें तो उन्होंने कभी भी अपनी प्रजा में सम्प्रदाय के आधार पर किसी को प्रताड़ित नहीं किया। उनके साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया। हिन्दूओं की मान्यता है – एकं सत् विप्र: बहुधा वदन्ति ।   
    
सम्प्रदायों के विस्तार का प्रारम्भ बौद्ध मत से शुरू हुआ। बौध सम्प्रदाय यह भारत का पहला प्रचारक सम्प्रदाय था। भिन्न विचार तो लोगों के हुआ करते थे। कम अधिक संख्या में उनके अनुयायी भी हुआ करते थे। लेकिन प्रचार के माध्यम से अपने सम्प्रदाय को माननेवालों की संख्या बढाने के प्रयास नहीं होते थे।   
 
सम्प्रदायों के विस्तार का प्रारम्भ बौद्ध मत से शुरू हुआ। बौध सम्प्रदाय यह भारत का पहला प्रचारक सम्प्रदाय था। भिन्न विचार तो लोगों के हुआ करते थे। कम अधिक संख्या में उनके अनुयायी भी हुआ करते थे। लेकिन प्रचार के माध्यम से अपने सम्प्रदाय को माननेवालों की संख्या बढाने के प्रयास नहीं होते थे।   

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