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| {{One source|date=January 2019}} | | {{One source|date=January 2019}} |
− | '''सृष्टि निर्माण''' की भिन्न भिन्न मान्यताएँ भिन्न भिन्न समाजों में हैं। इन में कोई भी मान्यता या तो अधूरी हैं या फिर बुद्धियुक्त नहीं है। सेमेटिक मजहब मानते हैं कि जेहोवा या गॉड या अल्लाह ने पाँच दिन में अन्धेरा-उजाला, गीला-सूखा, वनास्पाई और मानवेतर प्राणी सृष्टि का निर्माण किया। छठे दिन उसने आदम का निर्माण किया। तत्पश्चात आदम में से हव्वा का निर्माण किया और उनसे कहा कि यह पाँच दिन की बनाई हुई सृष्टि तुम्हारे उपभोग के लिए है। इस निर्माण का न तो कोई काल-मापन दिया है और न ही कारण। वर्तमान साइंटिस्ट मानते हैं कि एक अंडा था जो फटा और सृष्टि बनने लगी। इसमें भी कई प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते। इसलिए हम भारतीय वेदों और उपनिषदों के चिंतन में प्रस्तुत मान्यता का यहाँ विचार करेंगे। | + | '''सृष्टि निर्माण''' की भिन्न भिन्न मान्यताएँ भिन्न भिन्न समाजों में हैं। इन में कोई भी मान्यता या तो अधूरी हैं या फिर बुद्धियुक्त नहीं है। सेमेटिक मजहब मानते हैं कि जेहोवा या गॉड या अल्लाह ने पाँच दिन में अन्धेरा-उजाला, गीला-सूखा, वनास्पाई और मानवेतर प्राणी सृष्टि का निर्माण किया। छठे दिन उसने आदम का निर्माण किया। तत्पश्चात आदम में से हव्वा का निर्माण किया और उनसे कहा कि यह पाँच दिन की बनाई हुई सृष्टि तुम्हारे उपभोग के लिए है। इस निर्माण का न तो कोई काल-मापन दिया है और न ही कारण। वर्तमान साइंटिस्ट मानते हैं कि एक अंडा था जो फटा और सृष्टि बनने लगी। इसमें भी कई प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते। इसलिए हम धार्मिक (भारतीय) वेदों और उपनिषदों के चिंतन में प्रस्तुत मान्यता का यहाँ विचार करेंगे। |
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| == सृष्टि निर्माण का प्रमाण == | | == सृष्टि निर्माण का प्रमाण == |
| प्रमाण ३ प्रकार के होते हैं। '''प्रत्यक्ष, अनुमान और आप्तवचन या शास्त्र वचन'''। सृष्टि निर्माण के समय हममें से कोई भी नहीं था। किसी ने भी प्रत्यक्ष सृष्टि निर्माण होती नहीं देखी है। इसलिए प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिल सकता। ऐसी स्थिति में अनुमान प्रमाण का भी प्रत्यक्ष प्रमाण जैसा ही महत्व होता है। अनुमान का आधार प्रत्यक्ष प्रमाण होना चाहिये। जैसे हम देखते और समझते भी हैं कि अपने आप कुछ नहीं होता। कुछ नहीं से ‘कुछ’ भी बन नहीं सकता। बिना प्रयोजन कोई कुछ नहीं बनाता। तो अनुमान यह बताता है कि सृष्टि यदि बनी है तो इसका बनानेवाला होना ही चाहिए। इसके निर्माण का कोई प्रयोजन भी होना चाहिए। यह यदि बनी है तो इसके बनाने के लिए ‘कुछ’ तो पहले से था। इससे कुछ प्रश्न उभरकर आते हैं। '''जैसे सृष्टि किसने निर्माण की है? इसका निर्माता कौन है? इसे किस ‘कुछ’ में से बनाया है? इसे क्यों बनाया है? इसके निर्माण का प्रयोजन क्या है?''' | | प्रमाण ३ प्रकार के होते हैं। '''प्रत्यक्ष, अनुमान और आप्तवचन या शास्त्र वचन'''। सृष्टि निर्माण के समय हममें से कोई भी नहीं था। किसी ने भी प्रत्यक्ष सृष्टि निर्माण होती नहीं देखी है। इसलिए प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं मिल सकता। ऐसी स्थिति में अनुमान प्रमाण का भी प्रत्यक्ष प्रमाण जैसा ही महत्व होता है। अनुमान का आधार प्रत्यक्ष प्रमाण होना चाहिये। जैसे हम देखते और समझते भी हैं कि अपने आप कुछ नहीं होता। कुछ नहीं से ‘कुछ’ भी बन नहीं सकता। बिना प्रयोजन कोई कुछ नहीं बनाता। तो अनुमान यह बताता है कि सृष्टि यदि बनी है तो इसका बनानेवाला होना ही चाहिए। इसके निर्माण का कोई प्रयोजन भी होना चाहिए। यह यदि बनी है तो इसके बनाने के लिए ‘कुछ’ तो पहले से था। इससे कुछ प्रश्न उभरकर आते हैं। '''जैसे सृष्टि किसने निर्माण की है? इसका निर्माता कौन है? इसे किस ‘कुछ’ में से बनाया है? इसे क्यों बनाया है? इसके निर्माण का प्रयोजन क्या है?''' |
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− | इन सब प्रश्नों का उत्तर भारतीय उपनिषदिक चिंतन में मिलता है। | + | इन सब प्रश्नों का उत्तर धार्मिक (भारतीय) उपनिषदिक चिंतन में मिलता है। |
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| कहा है - प्रारम्भ में केवल परमात्मा ही था। भूमिती में बिन्दु के अस्तित्व का कोई मापन नहीं हो सकता फिर भी उसका अस्तित्व मान लिया जाता है। इस के माने बिना तो भूमिती का आधार ही नष्ट हो जाता है। इसी तरह सृष्टि को जानना हो तो परमात्मा के स्वरूप को समझना और मानना होगा। | | कहा है - प्रारम्भ में केवल परमात्मा ही था। भूमिती में बिन्दु के अस्तित्व का कोई मापन नहीं हो सकता फिर भी उसका अस्तित्व मान लिया जाता है। इस के माने बिना तो भूमिती का आधार ही नष्ट हो जाता है। इसी तरह सृष्टि को जानना हो तो परमात्मा के स्वरूप को समझना और मानना होगा। |
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| == मान्यताओं की बुद्धियुक्तता == | | == मान्यताओं की बुद्धियुक्तता == |
− | किसी भी विषय का प्रारम्भ तो कुछ मान्यताओं से ही होता है। इसलिए मान्यता तो सभी समाजों की होती हैं। मनुष्य एक बुद्धिशील जीव है। इसलिए मनुष्य को जो मान्यताएँ बुद्धियुक्त लगें, उन्हें मानना चाहिए। विश्व निर्माण की भारतीय मान्यता को स्वीकार करने पर प्रश्नों के बुद्धियुक्त उत्तर प्राप्त हो जाते हैं। इसलिए इन मान्यताओं पर विश्वास रखना तथा इन्हें मानकर व्यवहार करना अधिक उचित है। भारतीय विज्ञान यह मानता है कि सृष्टि की रचना की गयी है। यह करने वाला परमात्मा है। जिस प्रकार से मकडी अपने शरीर से ही अपने जाल के तंतु निर्माण कर उसी में निवास करती है, उसी तरह से इस परमात्मा ने सृष्टि को अपने में से ही बनाया है और उसी में वास करा रहा है। इसलिए चराचर सृष्टि के कण कण में परमात्मा है। | + | किसी भी विषय का प्रारम्भ तो कुछ मान्यताओं से ही होता है। इसलिए मान्यता तो सभी समाजों की होती हैं। मनुष्य एक बुद्धिशील जीव है। इसलिए मनुष्य को जो मान्यताएँ बुद्धियुक्त लगें, उन्हें मानना चाहिए। विश्व निर्माण की धार्मिक (भारतीय) मान्यता को स्वीकार करने पर प्रश्नों के बुद्धियुक्त उत्तर प्राप्त हो जाते हैं। इसलिए इन मान्यताओं पर विश्वास रखना तथा इन्हें मानकर व्यवहार करना अधिक उचित है। धार्मिक (भारतीय) विज्ञान यह मानता है कि सृष्टि की रचना की गयी है। यह करने वाला परमात्मा है। जिस प्रकार से मकडी अपने शरीर से ही अपने जाल के तंतु निर्माण कर उसी में निवास करती है, उसी तरह से इस परमात्मा ने सृष्टि को अपने में से ही बनाया है और उसी में वास करा रहा है। इसलिए चराचर सृष्टि के कण कण में परमात्मा है। |
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| == जीवन का आधार == | | == जीवन का आधार == |
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| श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ३ में कहा है<ref>श्रीमद्भगवद्गीता 3-10</ref> <blockquote>सहयज्ञा: प्रजा: सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापति:। अनेन प्रसविष्यध्वमेंष वो स्त्विष्टकामधुक॥3-10॥</blockquote>अर्थ : प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के प्रारम्भ में यज्ञ के साथ प्रजा को उत्पन्न किया और कहा तुम इस यज्ञ (भूतमात्र के हित के कार्य) के द्वारा उत्कर्ष करो और यह यज्ञ तुम्हारे मनोरथ पूर्ण करनेवाला हो। | | श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय ३ में कहा है<ref>श्रीमद्भगवद्गीता 3-10</ref> <blockquote>सहयज्ञा: प्रजा: सृष्ट्वा पुरोवाच प्रजापति:। अनेन प्रसविष्यध्वमेंष वो स्त्विष्टकामधुक॥3-10॥</blockquote>अर्थ : प्रजापति ब्रह्मा ने कल्प के प्रारम्भ में यज्ञ के साथ प्रजा को उत्पन्न किया और कहा तुम इस यज्ञ (भूतमात्र के हित के कार्य) के द्वारा उत्कर्ष करो और यह यज्ञ तुम्हारे मनोरथ पूर्ण करनेवाला हो। |
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− | यह है समाज निर्माण की भारतीय मान्यता। वर्तमान व्यक्ति- केंद्रितता के कारण निर्माण हुई सभी सामाजिक समस्याओं का निराकरण इस दृष्टि में है। | + | यह है समाज निर्माण की धार्मिक (भारतीय) मान्यता। वर्तमान व्यक्ति- केंद्रितता के कारण निर्माण हुई सभी सामाजिक समस्याओं का निराकरण इस दृष्टि में है। |
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| आगे कहा है<ref>श्रीमद्भगवद्गीता 3-11</ref>:<blockquote>देवान्भावयतानेन ते देवांभावयन्तु व:। परस्परं भावयन्त: श्रेय: परमवाप्स्यथ॥3-11॥</blockquote>अर्थ : तुम इस यज्ञ के द्वारा देवताओं(पृथ्वी, अग्नि, वरुण, वायु, जल आदि) की पुष्टि करो। और ये देवता तुम्हें पुष्ट करें। इसा प्रकार नि:स्वार्थ भाव से एक दूसरे की परस्पर उन्नति करते हुए तुम परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे। | | आगे कहा है<ref>श्रीमद्भगवद्गीता 3-11</ref>:<blockquote>देवान्भावयतानेन ते देवांभावयन्तु व:। परस्परं भावयन्त: श्रेय: परमवाप्स्यथ॥3-11॥</blockquote>अर्थ : तुम इस यज्ञ के द्वारा देवताओं(पृथ्वी, अग्नि, वरुण, वायु, जल आदि) की पुष्टि करो। और ये देवता तुम्हें पुष्ट करें। इसा प्रकार नि:स्वार्थ भाव से एक दूसरे की परस्पर उन्नति करते हुए तुम परम कल्याण को प्राप्त हो जाओगे। |
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− | यह है पर्यावरण या सृष्टि की ओर देखने की भारतीय दृष्टि। वर्तमान पर्यावरण के प्रदूषण की समस्याओं को दूर करने की सामर्थ्य इस दृष्टि में है। परम कल्याण का ही अर्थ मोक्ष की प्राप्ति है। | + | यह है पर्यावरण या सृष्टि की ओर देखने की धार्मिक (भारतीय) दृष्टि। वर्तमान पर्यावरण के प्रदूषण की समस्याओं को दूर करने की सामर्थ्य इस दृष्टि में है। परम कल्याण का ही अर्थ मोक्ष की प्राप्ति है। |
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− | वर्तमान में जल, हवा और जमीन के प्रदूषण के निवारण की बात होती है। वास्तव में यह टुकड़ों में विचार करने की यूरो अमेरिकी दृष्टि है। इसे भारतीय याने समग्रता की दृष्टि से देखने से समस्या का निराकरण हो जाता है। अष्टधा प्रकृति में से वर्तमान में केवल ३ महाभूतों के प्रदूषण का विचार किया जा रहा है। यह विचार अधूरा है। इसमें अग्नि और आकाश इन दो शेष पंचमहाभूत और मन, बुद्धि और अहंकार इन के प्रदूषण का विचार नहीं हो रहा। वास्तव में समस्या तो मन, बुद्धि और अहंकार के प्रदूषण की है। मन, बुद्धि और अहंकार के प्रदूषण का निवारण तो भारतीय शिक्षा से ही संभव है। इनका प्रदूषण दूर होते ही सभी प्रकारके प्रदूषणों से मुक्ति मिल जाएगी। | + | वर्तमान में जल, हवा और जमीन के प्रदूषण के निवारण की बात होती है। वास्तव में यह टुकड़ों में विचार करने की यूरो अमेरिकी दृष्टि है। इसे धार्मिक (भारतीय) याने समग्रता की दृष्टि से देखने से समस्या का निराकरण हो जाता है। अष्टधा प्रकृति में से वर्तमान में केवल ३ महाभूतों के प्रदूषण का विचार किया जा रहा है। यह विचार अधूरा है। इसमें अग्नि और आकाश इन दो शेष पंचमहाभूत और मन, बुद्धि और अहंकार इन के प्रदूषण का विचार नहीं हो रहा। वास्तव में समस्या तो मन, बुद्धि और अहंकार के प्रदूषण की है। मन, बुद्धि और अहंकार के प्रदूषण का निवारण तो धार्मिक (भारतीय) शिक्षा से ही संभव है। इनका प्रदूषण दूर होते ही सभी प्रकारके प्रदूषणों से मुक्ति मिल जाएगी। |
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− | == सृष्टि निर्माण की अभारतीय मान्यताएँ == | + | == सृष्टि निर्माण की अधार्मिक (अभारतीय) मान्यताएँ == |
| यहाँ वर्तमान यूरो अमरीकी साईन्टिस्टों द्वारा प्रस्तुत विकासवाद की बुद्धि-युक्तता समझना भी प्रासंगिक होगा। सेमेटिक मजहबों की याने यहूदी, ईसाई और मुस्लिम समाजों की सृष्टि निर्माण की अयुक्तिसंगत मान्यताओं की वर्तमान साईंटिस्ट समुदाय ने धज्जियां उडा दीं हैं। इसलिए अभी हम केवल वर्तमान साईंटिस्ट समुदाय की मान्यता का विचार करेंगे। | | यहाँ वर्तमान यूरो अमरीकी साईन्टिस्टों द्वारा प्रस्तुत विकासवाद की बुद्धि-युक्तता समझना भी प्रासंगिक होगा। सेमेटिक मजहबों की याने यहूदी, ईसाई और मुस्लिम समाजों की सृष्टि निर्माण की अयुक्तिसंगत मान्यताओं की वर्तमान साईंटिस्ट समुदाय ने धज्जियां उडा दीं हैं। इसलिए अभी हम केवल वर्तमान साईंटिस्ट समुदाय की मान्यता का विचार करेंगे। |
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| ६. ऋग्वेद | | ६. ऋग्वेद |
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− | ७. Modern Physics and Vedant लेखक स्वामी जितात्मानंद, प्रकाशक भारतीय विद्या भवन | + | ७. Modern Physics and Vedant लेखक स्वामी जितात्मानंद, प्रकाशक धार्मिक (भारतीय) विद्या भवन |
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| ८. जोपासना घटकत्वाची, लेखक दिलीप कुलकर्णी, संतुलन प्रकाशन, कुडावले, दापोली | | ८. जोपासना घटकत्वाची, लेखक दिलीप कुलकर्णी, संतुलन प्रकाशन, कुडावले, दापोली |