Changes

Jump to navigation Jump to search
no edit summary
Line 1: Line 1:  +
{{One source}}
 +
 
== आदर्श विद्यार्थी ==
 
== आदर्श विद्यार्थी ==
 
जो ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखता है, जो जिज्ञासु है उसे ही विद्यार्थी कहते हैं । ज्ञान श्रेष्ठ है । ऐसे श्रेष्ठ ज्ञान को प्रतिष्ठा, धन या सत्ता प्राप्ति के लिए प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला विद्यार्थी नहीं कहा जा सकता, क्यों कि पैसा, प्रतिष्ठा या सत्ता की अपेक्षा ज्ञान अधिक श्रेष्ठ है । श्रेष्ठ वस्तु का उपयोग कनिष्ठ वस्तु की प्राप्ति के लिए नहीं किया जा सकता यह सामान्य समझदारी की बात है । अतः जो अपने और जगत के कल्याण के लिए ज्ञान प्राप्त करना चाहता है उसे ही विद्यार्थी कहते हैं ।
 
जो ज्ञान प्राप्ति की इच्छा रखता है, जो जिज्ञासु है उसे ही विद्यार्थी कहते हैं । ज्ञान श्रेष्ठ है । ऐसे श्रेष्ठ ज्ञान को प्रतिष्ठा, धन या सत्ता प्राप्ति के लिए प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला विद्यार्थी नहीं कहा जा सकता, क्यों कि पैसा, प्रतिष्ठा या सत्ता की अपेक्षा ज्ञान अधिक श्रेष्ठ है । श्रेष्ठ वस्तु का उपयोग कनिष्ठ वस्तु की प्राप्ति के लिए नहीं किया जा सकता यह सामान्य समझदारी की बात है । अतः जो अपने और जगत के कल्याण के लिए ज्ञान प्राप्त करना चाहता है उसे ही विद्यार्थी कहते हैं ।
Line 586: Line 588:     
विद्यार्थियों को यह सब सिखाना विद्यालयों का ही काम है । इस दृष्टि से हमारे विद्यालयों की व्यवस्थाओं , व्यवहारों और शिक्षाक्रम में आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है ।
 
विद्यार्थियों को यह सब सिखाना विद्यालयों का ही काम है । इस दृष्टि से हमारे विद्यालयों की व्यवस्थाओं , व्यवहारों और शिक्षाक्रम में आमूल परिवर्तन की आवश्यकता है ।
 +
 +
==References==
 +
<references />भारतीय शिक्षा : वैश्विक संकटों का निवारण भारतीय शिक्षा (भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला ५), प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखन एवं संपादन: श्रीमती इंदुमती काटदरे
 +
[[Category:Bhartiya Shiksha Granthmala(भारतीय शिक्षा ग्रन्थमाला)]]
 +
[[Category:Education Series]]
 +
[[Category:भारतीय शिक्षा : भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम]]
1,815

edits

Navigation menu