| ९. इन तीनों बातों की सहायता से, शिक्षित भारतीयों का ही साधन के रूप में उपयोग कर सभी राजकीय, प्रशासनिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक संस्थाओं को छिन्नविच्छन्न कर उनके स्थान पर युरोपीय संस्थाओं को प्रस्थापित कर दिया । शिक्षा के माध्यम से बुद्धि में, अत्याचार और छल के माध्यम से मन में और व्यवस्थाओं के माध्यम से व्यवहार में वे छा गये । | | ९. इन तीनों बातों की सहायता से, शिक्षित भारतीयों का ही साधन के रूप में उपयोग कर सभी राजकीय, प्रशासनिक, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक संस्थाओं को छिन्नविच्छन्न कर उनके स्थान पर युरोपीय संस्थाओं को प्रस्थापित कर दिया । शिक्षा के माध्यम से बुद्धि में, अत्याचार और छल के माध्यम से मन में और व्यवस्थाओं के माध्यम से व्यवहार में वे छा गये । |
| १०. अब हमारे भारतीय श्याम वर्ण के शरीर में वे वस्त्र, आहार, दिनचर्या, सुखसुविधाओं के रूप में बैठे हैं । हमारे मन पर स्वैराचार, अकर्मण्यता, निष्क्रिय मनोरंजन, चरित्र और शील के प्रति उदासीनता बन कर राज्य कर रहे हैं । हमारी बुद्धि में स्वकेन्द्रितता, अर्थप्रधानता, विकास की भौतिक और एकरेखीय संकल्पना बन कर स्थापित हो गये हैं । बाहर जो दिख रहा है वह हमारे अन्दर के अंग्रेज की ही छाया है, उस भूत की ही माया है । | | १०. अब हमारे भारतीय श्याम वर्ण के शरीर में वे वस्त्र, आहार, दिनचर्या, सुखसुविधाओं के रूप में बैठे हैं । हमारे मन पर स्वैराचार, अकर्मण्यता, निष्क्रिय मनोरंजन, चरित्र और शील के प्रति उदासीनता बन कर राज्य कर रहे हैं । हमारी बुद्धि में स्वकेन्द्रितता, अर्थप्रधानता, विकास की भौतिक और एकरेखीय संकल्पना बन कर स्थापित हो गये हैं । बाहर जो दिख रहा है वह हमारे अन्दर के अंग्रेज की ही छाया है, उस भूत की ही माया है । |
| सवाल भी पूछा जाना चाहिये । इस पर ज्ञानात्मक चर्चा मनोवैज्ञानिक चर्चा के साथ साथ होनी चाहिये । प्रजामानस को आंतकित होने से बचाने का काम तो सीधा सीधा धर्माचार्यों का है । हिन्दू और मुसलमान धर्माचार्यों की चर्चा होनी चाहिये । भीरु प्रजा को नीडर बनाने का काम धर्माचार्यों का है और ज्ञानवान बनाने का विश्वविद्यालय का । इन दो आधारों के साथ शासन की ओर से सुरक्षा रही तो इस प्रश्न का हल निकल सकता है । | | सवाल भी पूछा जाना चाहिये । इस पर ज्ञानात्मक चर्चा मनोवैज्ञानिक चर्चा के साथ साथ होनी चाहिये । प्रजामानस को आंतकित होने से बचाने का काम तो सीधा सीधा धर्माचार्यों का है । हिन्दू और मुसलमान धर्माचार्यों की चर्चा होनी चाहिये । भीरु प्रजा को नीडर बनाने का काम धर्माचार्यों का है और ज्ञानवान बनाने का विश्वविद्यालय का । इन दो आधारों के साथ शासन की ओर से सुरक्षा रही तो इस प्रश्न का हल निकल सकता है । |
| ६२. जनमानस को अत्यन्त प्रभावी ढंग से उद्देलित करने वाला एक कारक है मीडिया । समाचार पत्रों तथा टीवी की समाचार वाहिनियों ने बाजार का हिस्सा बनकर ऐसा कहर ढाना शुरू किया है कि प्रजा की स्वयं विचार करने की, स्वयं आकलन करने की शक्ति ही क्षीण हो गई है । अपने ही समाज का, सरकार का, देश का, शिक्षा का, अर्थव्यवस्था का अत्यन्त नकारात्मक चित्र इन समाचार माध्यमों में प्रस्तुत किया जाता है और मानस को आतंकित करता है । अखबारों के सभी पन्नों पर टीवी समाचारों के सभी अंशों में दुर्घटनायें, गुंडागर्दी, मारकाट, बलात्कार, आगजनी, आतंक, प्रदर्शन कारियों के विरोध प्रदर्शन, पुलीस का अत्याचार दिखाया जाता है । चित्र ऐसा उभरता है जैसे इस देश में दया, करुणा, प्रामाणिकता, उदारता, सुरक्षा, शान्ति जैसा कुछ है ही नहीं । शिक्षा धन, सद्गुणआदि का अभाव ही है। क्रिकेट और फिल्मों के समाचारों की भरमार है, शेरबाजार की प्रतिष्ठा है परन्तु प्रेरणादायक घटनाओं का सर्वथा अभाव है । ऐसे में प्रजा अपने आपको दीनहीन असुरक्षित माने इस में कया आश्चर्य है ? | | ६२. जनमानस को अत्यन्त प्रभावी ढंग से उद्देलित करने वाला एक कारक है मीडिया । समाचार पत्रों तथा टीवी की समाचार वाहिनियों ने बाजार का हिस्सा बनकर ऐसा कहर ढाना शुरू किया है कि प्रजा की स्वयं विचार करने की, स्वयं आकलन करने की शक्ति ही क्षीण हो गई है । अपने ही समाज का, सरकार का, देश का, शिक्षा का, अर्थव्यवस्था का अत्यन्त नकारात्मक चित्र इन समाचार माध्यमों में प्रस्तुत किया जाता है और मानस को आतंकित करता है । अखबारों के सभी पन्नों पर टीवी समाचारों के सभी अंशों में दुर्घटनायें, गुंडागर्दी, मारकाट, बलात्कार, आगजनी, आतंक, प्रदर्शन कारियों के विरोध प्रदर्शन, पुलीस का अत्याचार दिखाया जाता है । चित्र ऐसा उभरता है जैसे इस देश में दया, करुणा, प्रामाणिकता, उदारता, सुरक्षा, शान्ति जैसा कुछ है ही नहीं । शिक्षा धन, सद्गुणआदि का अभाव ही है। क्रिकेट और फिल्मों के समाचारों की भरमार है, शेरबाजार की प्रतिष्ठा है परन्तु प्रेरणादायक घटनाओं का सर्वथा अभाव है । ऐसे में प्रजा अपने आपको दीनहीन असुरक्षित माने इस में कया आश्चर्य है ? |