वर्तमान विश्व में प्रमुख रूप से जीवन के दो प्रतिमान अस्तित्व में हैं। एक है '''भारतीय प्रतिमान'''। यह अभी सुप्त अवस्था में है। जागृत होने के लिये प्रयत्नशील है। दूसरा है '''यूरो-अमरिकी प्रतिमान'''। यहूदी, ईसाई और मुस्लिम समाज इस दूसरे प्रतिमान को मानने वाले हैं। इस प्रतिमान ने भारतीय समाज के साथ ही विश्व के अन्य सभी समाजों को गहराई से प्रभावित किया है। भारतीय समाज छोड कर अन्य सभी समाजों ने इसे सर्वार्थ से या तो अपना लिया है या तेजी से अपना रहे हैं। केवल भारतीय समाज ही अपनी आंतरिक शक्ति के आधार पर पुन: जागृत होने के लिये प्रयत्नशील है। इस यूरो-अमरिकी प्रतिमान को मानने वाले दो तबके हैं। यूरो-अमरिकी मजहबी दृष्टि के अनुसार विश्व के निर्माण की मान्यता एक जैसी ही है। | वर्तमान विश्व में प्रमुख रूप से जीवन के दो प्रतिमान अस्तित्व में हैं। एक है '''भारतीय प्रतिमान'''। यह अभी सुप्त अवस्था में है। जागृत होने के लिये प्रयत्नशील है। दूसरा है '''यूरो-अमरिकी प्रतिमान'''। यहूदी, ईसाई और मुस्लिम समाज इस दूसरे प्रतिमान को मानने वाले हैं। इस प्रतिमान ने भारतीय समाज के साथ ही विश्व के अन्य सभी समाजों को गहराई से प्रभावित किया है। भारतीय समाज छोड कर अन्य सभी समाजों ने इसे सर्वार्थ से या तो अपना लिया है या तेजी से अपना रहे हैं। केवल भारतीय समाज ही अपनी आंतरिक शक्ति के आधार पर पुन: जागृत होने के लिये प्रयत्नशील है। इस यूरो-अमरिकी प्रतिमान को मानने वाले दो तबके हैं। यूरो-अमरिकी मजहबी दृष्टि के अनुसार विश्व के निर्माण की मान्यता एक जैसी ही है। |