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==== तप के उदाहरण ====
 
==== तप के उदाहरण ====
 
तप कहते ही हमारे सामने अनेक प्राचीन उदाहरण आते हैं ।  
 
तप कहते ही हमारे सामने अनेक प्राचीन उदाहरण आते हैं ।  
 
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* राजा भगीरथने गंगा नदी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिये तप किया |
राजा भगीरथने गंगा नदी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिये तप किया |
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* बालक ध्रुव ने अपने पिता का स्नेह प्राप्त करने के लिये तप किया |
 
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* अर्जुनने पाशुपतास्त्र  प्राप्त करने के लिये तप किया |
बालक ध्रुव ने अपने पिता का स्नेह प्राप्त करने के
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* पार्वती ने शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने हेतु तप किया ।
लिये तप किया |
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* अनेक ऋ्रषिमुनि अपने संकल्प की सिद्धि हेतु तप करते हैं ।
 
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* भूगु ने अपने पिता से ब्रह्म क्या है ऐसा पूछा तब पिताने कहा कि तप करो और ब्रह्म को जानो ।
अर्जुनने पाशुपतास्त्र  प्राप्त करने के लिये तप किया |
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* विश्वामित्र ने तप किया और राजर्षि से ब्रह्मार्षि है ।
 
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पार्वती ने शंकर को पति के रूप में प्राप्त करने हेतु तप किया ।
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अनेक ऋ्रषिमुनि अपने संकल्प की सिद्धि हेतु तप करते हैं ।
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भूगु ने अपने पिता से ब्रह्म क्या है ऐसा पूछा तब पिताने कहा कि तप करो और ब्रह्म को जानो ।
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विश्वामित्र ने तप किया और राजर्षि से ब्रह्मार्षि है ।
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तात्पर्य यह है कि ऐसा कोई काम नहीं है जो तप से सिद्ध नही होता, और ऐसा कोई श्रेष्ठ काम नहीं है जो बिना तप के सिद्ध हो जाता है ।
 
तात्पर्य यह है कि ऐसा कोई काम नहीं है जो तप से सिद्ध नही होता, और ऐसा कोई श्रेष्ठ काम नहीं है जो बिना तप के सिद्ध हो जाता है ।
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तप कहते ही हमारे सामने बालक श्रुव अरप्य में
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तप कहते ही हमारे सामने बालक श्रुव अरप्य में अकेला एक पैर पर खडा हुआ नारायण का जप करता हुआ दिखाई देता है । पार्वती चारों ओर अग्नि है और बीच
अकेला एक पैर पर खडा हुआ नारायण का जप करता
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में बैठी है और उपर से प्रखर सूर्य तप रहा है ऐसा पंचाग़ि का ताप सहती हुई निराहार, निर्जला रहती हुई दिखाई देती है । अर्जुन, भगीरथ, विश्वामित्र आदि सब इसी प्रकार की घोर तपश्चर्या करते हैं ।
हुआ दिखाई देता है । पार्वती चारों ओर अग्नि है और बीच
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में बैठी है और उपर से प्रखर सूर्य तप रहा है ऐसा पंचाग़ि
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का ताप सहती हुई निराहार, निर्जला रहती हुई दिखाई देती
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है । अर्जुन, भगीरथ, विश्वामित्र आदि सब इसी प्रकार की
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घोर तपश्चर्या करते हैं ।
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यह सब सुनकर और सोचकर ऐसा लगता है कि
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यह सब सुनकर और सोचकर ऐसा लगता है कि आज तो ऐसा तप सम्भव ही नहीं है। सम्भव है भी तो कोई करने के लिये अपने आपको प्रस्तुत करे यह सम्भव नहीं है ।
आज तो ऐसा तप सम्भव ही नहीं है। सम्भव है भी तो
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कोई करने के लिये अपने आपको प्रस्तुत करे यह सम्भव
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नहीं है ।
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परन्तु इस प्रकार तप को आज के समय में असम्भव
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परन्तु इस प्रकार तप को आज के समय में असम्भव है ऐसा मानने से या स्वीकार कर लेने से हमारी समस्या दूर होने वाली नहीं है । समस्या तो दूर करनी ही है । अतः तप नहीं हो सकता ऐसा कहने के स्थान पर तप कैसे हो सकता है इसका विचार करना चाहिये ।
है ऐसा मानने से या स्वीकार कर लेने से हमारी समस्या दूर
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होने वाली नहीं है । समस्या तो दूर करनी ही है । अतः तप
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नहीं हो सकता ऐसा कहने के स्थान पर तप कैसे हो सकता
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है इसका विचार करना चाहिये ।
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खास बात यह है कि यह कलियुग है । कलियुग में
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खास बात यह है कि यह कलियुग है । कलियुग में मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक शक्ति भी क्षीण हो जाती हैं । कठोर तप करने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है । इसलिये हमें लगता है कि सत्ययुग और त्रेतायुग में अनेक लोगों ने जो कठोर तप किये थे वैसे तप आज नहीं हो सकते । यह बात ठीक है परन्तु यह बात भी सत्य है कि उस समय जितना कठोर तप करने पर सिद्धि मिलती थी उतना कठोर तप आज कलियुग में नहीं करना पडता है । उससे बहुत कम तप करने पर भी संकल्प की सिद्धि होती है । यह हमारे लिये बहुत बडा आश्वासन है ।
मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक शक्ति भी क्षीण हो
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जाती हैं । कठोर तप करने की शक्ति भी क्षीण हो जाती
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है । इसलिये हमें लगता है कि सत्ययुग और त्रेतायुग में
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अनेक लोगों ने जो कठोर तप किये थे वैसे तप आज नहीं
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हो सकते । यह बात ठीक है परन्तु यह बात भी सत्य है कि
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उस समय जितना कठोर तप करने पर सिद्धि मिलती थी
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उतना कठोर तप आज कलियुग में नहीं करना पडता है ।
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उससे बहुत कम तप करने पर भी संकल्प की सिद्धि होती
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है । यह हमारे लिये बहुत बडा आश्वासन है ।
      
इन बातों को ध्यान में रखकर हमें धर्माचार्यों और
 
इन बातों को ध्यान में रखकर हमें धर्माचार्यों और
 
समाज को तप कैसे करना चाहिये इसका विचार करना है ।
 
समाज को तप कैसे करना चाहिये इसका विचार करना है ।
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धर्माचार्यों के लिये तप
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धर्माचार्यों का दायित्व शेष समाज से अधिक है क्योंकि उन्हें समाज का मार्गदर्शन करना है । समाज भी उनका सम्मान करता है । समाजव्यवस्था की जो श्रेणियों बनी हैं उनमें धर्माचार्य सबसे ऊपर हैं क्योंकि
धर्माचार्यों का दायित्व शेष समाज से अधिक है
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क्योंकि उन्हें समाज का मार्गदर्शन करना है । समाज
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भी उनका सम्मान करता है । समाजव्यवस्था की जो
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२... खानपान, वेशभूषा, बोलचाल,
 
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सीधी समझ में आने वाली बात
 
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आदानप्रदान कर सकते हैं और
 
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