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− | अध्याय १५ | + | === अध्याय १५ === |
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| + | ==== शिक्षा धर्म सिखाती है ==== |
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| + | यह निरन्तर प्रतिपादन हो रहा है कि शिक्षा धर्म सिखाती है । तो प्रश्न यह होगा कि धर्माचार्य ही धर्म क्यों नहीं सिखाते ? धर्म सिखाने के लिये शिक्षक क्यों चाहिये ? |
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− | 2८ ५
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− | 2 ५.
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− | सम्पूर्ण शिक्षा क्षेत्र का विचार
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− | धर्माचार्यों की भूमिका
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− | शिक्षा धर्म सिखाती है | |
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− | यह निरन्तर प्रतिपादन हो रहा है कि शिक्षा धर्म | |
− | सिखाती है । तो प्रश्न यह होगा कि धर्माचार्य ही धर्म क्यों | |
− | नहीं सिखाते ? धर्म सिखाने के लिये शिक्षक क्यों चाहिये ? | |
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− | धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध साध्य और साधन जैसा | + | धर्म और शिक्षा का सम्बन्ध साध्य और साधन जैसा है। धर्म के बारे में हमने अनेक बार चर्चा की ही है वह |
− | है। धर्म के बारे में हमने अनेक बार चर्चा की ही है वह | + | एक विश्वनियम है जिससे व्यक्ति से लेकर सृष्टि तक सबकी धारणा होती है । इन नियमों के अनुसार जब सम्टिजीवन |
− | एक विश्वनियम है जिससे व्यक्ति से लेकर सृष्टि तक सबकी | |
− | धारणा होती है । इन नियमों के अनुसार जब सम्टिजीवन | |
| का व्यवहार चलता है तब धर्म संस्कृति का रूप धारण | | का व्यवहार चलता है तब धर्म संस्कृति का रूप धारण |
| करता है । इस व्यवहार और संस्कृति को एक पीढ़ी से | | करता है । इस व्यवहार और संस्कृति को एक पीढ़ी से |
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| के लिये लडाई करता है उसके भाग्य में समर्थ | | के लिये लडाई करता है उसके भाग्य में समर्थ |
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| भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम | | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम |
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| भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम | | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम |
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| सीधी समझ में आने वाली बात | | सीधी समझ में आने वाली बात |
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| आदानप्रदान कर सकते हैं और | | आदानप्रदान कर सकते हैं और |
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| भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम | | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम |
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