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| महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अर्थक्षेत्र को भारतीय जीवनव्यवस्था के साथ अनुकूल बनाने हेतु जो परिवर्तन करने पडेंगे इस के मुख्य बिन्दु इस प्रकार होंगे... | | महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अर्थक्षेत्र को भारतीय जीवनव्यवस्था के साथ अनुकूल बनाने हेतु जो परिवर्तन करने पडेंगे इस के मुख्य बिन्दु इस प्रकार होंगे... |
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− | १. मनुष्य की आर्थिक स्वतन्त्रता की रक्षा करनी चाहिये । सर्व प्रकार की स्वतन्त्रता मनुष्य का ही नहीं तो सृष्टि के सभी पदार्थों का जन्मसिद्ध अधिकार है। सृष्टि के अनेक पदार्थ मनुष्य के लिये अनिवार्य हैं । उदाहरण के लिये भूमि, भूमि पर उगने वाले वृक्ष, पंचमहाभूत आदि मनुष्य के जीवन के लिये अनिवार्य हैं । इनका उपयोग तो करना ही पडेगा परन्तु उपयोग करते समय उनके प्रति कृतज्ञ रहना और उनका आवश्यकता से अधिक उपयोग नहीं करना मनुष्य के लिये बाध्यता है । किसी भी पदार्थ का, प्राणी का या मनुष्य का संसाधन के रूप में प्रयोग नहीं करना परन्तु उसकी स्वतन्त्र सत्ता का सम्मान करना आवश्यक है। इस नियम को लागू कर मनुष्य की अर्थव्यवस्था बननी चाहिये। | + | १. मनुष्य की आर्थिक स्वतन्त्रता की रक्षा करनी चाहिये । सर्व प्रकार की स्वतन्त्रता मनुष्य का ही नहीं तो सृष्टि के सभी पदार्थों का जन्मसिद्ध अधिकार है। सृष्टि के अनेक पदार्थ मनुष्य के लिये अनिवार्य हैं । उदाहरण के लिये भूमि, भूमि पर उगने वाले वृक्ष, पंचमहाभूत आदि मनुष्य के जीवन के लिये अनिवार्य हैं । इनका उपयोग तो करना ही पडेगा परन्तु उपयोग करते समय उनके प्रति कृतज्ञ रहना और उनका आवश्यकता से अधिक उपयोग नहीं करना मनुष्य के लिये बाध्यता है । किसी भी पदार्थ का, प्राणी का या मनुष्य का संसाधन के रूप में प्रयोग नहीं करना परन्तु उसकी स्वतन्त्र सत्ता का सम्मान करना आवश्यक है। इस नियम को लागू कर मनुष्य की अर्थव्यवस्था बननी चाहिये। इस दष्टि से हर व्यक्ति को अपने अर्थार्जन हेतु स्वतन्त्र व्यवसाय मिलना चाहिये। |
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| + | २. हर मनुष्य को चाहिये कि अपना स्वामित्व युक्त व्यवसाय समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु होना चाहिये, आवश्यकता नहीं है ऐसी वस्तुयें विज्ञापन के माध्यम से लोगों को खरीदने हेतु बाध्य करने हेतु नहीं। |
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| + | ३. ऐसा करना है तो केन्द्रीकृत उत्पादन की व्यवस्था बदलनी होगी। छोटे छोटे उद्योग बढाने होंगे। |
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| + | ४. यन्त्रों का, परिवहन का, अर्थार्जन हेतु यात्रा का, उस निमित्त से होने वाला वाहनों का प्रयोग कम करना होगा। |
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| + | ५. घर और व्यवसाय के स्थान की दूरी कम करते करते निःशेष करनी होगी। |
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| + | ६. अध्ययन और अर्थार्जन हेतसे स्थानान्तरण करना पडता है और परिवार का विघटन शुरू होता है जिसका आगे का चरण समाज का विघटन है। यह परोक्ष रूप से संस्कृति पर प्रहार है। इसके मनोवैज्ञानिक दुष्परिणाम भी होते हैं । |
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| + | (इस विषय का विस्तारपूर्वक विचार 'गृहअर्थशास्त्र' नामक ग्रन्थ में किया गया है इसलिये यहाँ केवल सूत्र ही दिये हैं।) |
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| + | ज्ञान, अन्न, पानी, हवा, न्याय, चिकित्सा आदि आर्थिक लेनदेन से परे हैं । ये वाणिज्य के विषय नहीं हैं। नौकरी अर्थव्यवस्था का आधार नहीं हो सकती। नौकरी को सेवा भी नहीं कहा जा सकता । सेवा बहुत ऊँची चीज है, उसका अर्थ से कोई सम्बन्ध नहीं। |
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| + | ये तो सारे तत्त्व हैं। इन्हें यदि भारतीय व्यवस्था के मूल तत्त्व माने तो यह ध्यान में आयेगा कि आज हम विपरीत दिशा में बहुत दूर निकल गये हैं। हमारे गृहीत ही सर्वथा बदल गये हैं। |
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| + | इन गृहीतों को बदलने के कारण जिन्हें घाटा हुआ है वे तो इन्हें बदलने के लिये तैयार हो जायेंगे परन्तु जिन्हें लाभ ही हआ है वे कैसे तैयार होंगे? |
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| + | देह और बुद्धि बेचना अच्छा नहीं है यह तो सही है ऐसा सब स्वीकार करेंगे परन्तु जिन्हें इन बातों को बेचकर लाखों रूपये मिलते हैं वे उस राशि को छोड़ने के लिये या उस व्यवस्था को बदलने के लिये कैसे तैयार होंगे? |
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| + | अर्थ अनिष्टकारी है यह बात ठीक है लेकिन अर्थ की आवश्यकता कम करने के लिये कौन तैयार होगा ? |
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| + | ==== अर्थक्षेत्र को भारतीय बनाना ==== |
| + | इसलिये शिक्षा में परिवर्तन करना और उसे भारतीय बनाना तो सहमत होने की बात है परन्तु अर्थक्षेत्र को भारतीय बनाने की बात जल्दी समझ में नहीं आती। |
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| + | इस दृष्टि से तीन क्षेत्रों के साथ संवाद करना होगा। |
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| + | १. अर्थक्षेत्र, शिक्षा और संस्कृति के विद्वज्जनों का संवाद। |
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| + | २. उद्योजकों, उत्पादकों, प्रबन्धन क्षेत्र के तत्त्वों के साथ संवाद। |
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| + | ३. नौकरी करने वाले उच्च विद्याविभूषितों के साथ संवाद । |
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| + | इन लोगों का संवाद अधिक समय ले सकता है। इनके मध्य राजकीय क्षेत्र के लोग भी जुड़ेंगे। |
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| + | आज उत्पादन और बाजार क्षेत्र में वैश्विक प्रवाहों का असर भी बहुत बड़ा है। अमेरिका, विश्व व्यापार संगठन, विश्वबैंक आदि अनेक संस्थाओं का प्रभाव भारत के अर्थक्षेत्र पर है। इससे मुक्त होने के रास्ते भी ढूँढने होंगे। |
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| + | शिक्षाक्षेत्र एक दीर्घकालीन योजना बनाये यह आवश्यक है। आज जो विद्यार्थी छोटी आयु के हैं उन्हें भारतीय अर्थव्यवस्था के मूलसूत्रों के आधार पर शिक्षा देने की योजना करनी चाहिये । वे जब गृहस्थ बनें और अपना अर्थार्जन शुरू करें तब अध्ययन के दौरान प्राप्त शिक्षा के अनुसार करें ऐसी इस योजना की परिणति होनी चाहिये । |
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| + | ==== शिक्षा क्षेत्र को अर्थनिरपेक्ष बनाना ==== |
| + | इसके बाद अब शिक्षाक्षेत्र को अर्थनिरपेक्ष बनाने का विचार करना चाहिये। |
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| + | १. पहला चरण पढने हेतु शुल्क नहीं देने की व्यवस्था का विचार करना चाहिये । बडे बडे संस्थान भी इस व्यवस्था में आज भी चल रहे हैं। धर्माचार्यों के पीठों में ऐसी व्यवस्था होती है । उदाहरण के लिये सरकार प्राथमिक विद्यालय निःशुल्क चलाती है। अनेक मठों और धार्मिक संस्थाओं में निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था होती है। यदि उत्पादन केन्द्र अपने उत्पादन के लिये आवश्यक व्यक्तियों की निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करते हैं तो बहुत बड़ी मात्रा में निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था हो जायेगी। सरकार को जैसे व्यक्ति चाहिये उनका प्रथम चयन हो और बाद में उनकी शिक्षा की व्यवस्था सरकार स्वयं करे । जो इस व्यवस्था में अपने व्यवसाय निश्चित करना चाहें वे स्वयं अपने बलबूते पर अपने लिये शिक्षा की व्यवस्था कर सकते हैं । उन्हें आजीविका देने की जिम्मेदारी किसी की नहीं रहेगी। इस व्यवस्था में शिक्षा भी ठीक रहेगी और रोजगारी का क्षेत्र भी ठीक हो जायेगा। |
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| + | २. मातापिता यदि शिक्षित हैं तो साक्षरता अभियान के अन्तर्गत जिस शिक्षा को हम अनिवार्य मानते हैं वह शिक्षा अपने बालकों को देने की जिम्मेदारी स्वयं लें ऐसा उन्हें आग्रह करना । जो लोग ऐसा नहीं कर सकते हैं ऐसे बच्चों को साक्षर करने का काम सामाजिक संगठनों को करना चाहिये । परन्तु इसमें अपने बच्चों को साक्षर होने के लिये भेजना शिक्षित मातापिता के लिये ऐसा माना जाना चाहिये जैसे अच्छा अर्थार्जन करने वाले सदाव्रत में भोजन करने के लिये जायें। |
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| + | ३. हर सोसायटी हर कोलोनी अपने बच्चों के लिये विद्यालय का प्रावधान करे । एक सोसायटी के बच्चे वहीं पढ़ें । सोसायटी के लोग ही उन्हें पढायें । अच्छे, कम अच्छे, बहुत अच्छे शिक्षक उनमें हो सकते हैं । आपसी समझौते से श्रेष्ठ शिक्षक अधिक सेवा करें ऐसी व्यवस्था हो सकती है। दो सोसायटी आपसी समायोजन भी कर सकती हैं । |
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| + | ४. परिवार का अपना व्यवसाय होता है तब शिक्षा के लिये बाहर जाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। |
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| + | ५. संस्कारों की शिक्षा का काम मठ-मन्दिरों को करना चाहिये। वह अनिवार्य रूप से निःशुल्क रहेगी। इनका नौकरी से कोई सम्बन्ध नहीं रहेगा। इन विद्याकेन्द्रों में जाने हेतु नैतिक अनिवार्यता बनाना मातापिता और धर्माचार्यों का काम होगा। |
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| + | ६. शास्त्रीय अध्ययन के लिये, अनुसन्धान के लिये, गुरुकुल होंगे ही। ये गुरुकुल व्यावसायिकों के लिये नहीं अपितु जिज्ञासुओं, ज्ञान की सेवा करनेवालों और समाज की सेवा करने वालों के लिये होंगे। इन्हें गुरुकुल के आचार्य और समाज दोनों मिलकर चलायेंगे। |
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| + | ७. राज्य को स्वयं को यदि गुरुकुलों की सहायता करने की इच्छा हो तो वह अवश्य करे। |
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| + | ८. धीरे धीरे दूसरी पीढी तैयार होगी तो गुरुदक्षिणा के रूप में गुरुकुलों का पोषण करेंगी। |
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| + | यह सारा काम आज के आज नहीं हो सकता यह तो स्पष्ट है । यह लोकमानस को परिवर्तित करने की बात है। वह धीरे धीरे ही होता है। अतः हमें दो पीढियों तक निरन्तर रूप से इसे करने की आवश्यकता रहेगी। |
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| + | भारतीय शिक्षा की पुनर्रचना करने में अर्थक्षेत्र की पुनर्रचना भी करनी पडेगी। इसके लिये प्रथम पर्यायी अर्थतन्त्र की संकल्पना, बाद में उसकी रचना और उसके साथ ही अर्थतन्त्र के वर्तमान मांधाताओं के साथ संवाद करने की आवश्यकता रहेगी। |
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| + | === सर्कार की भूमिका === |
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| + | ==== शिक्षा की स्थिरता एवं स्वायत्तता ==== |
| + | आये दिन शिक्षाशास्त्री कहते हैं कि शिक्षा सरकार के नियन्त्रण से मुक्त होनी चाहिये । देशभर के शैक्षिक संगठन माँग कर रहे हैं कि शिक्षा सरकारी नियन्त्रण से मुक्त होनी चाहिये और स्वायत्त होनी चाहिये । ये सब कहते हैं कि आज शिक्षा बिल्कुल मुक्त नहीं है, सबकुछ सरकार के |
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| आहति देने योग्य पदार्थ ही अहम माना जाता था। किन्तु इसका लाक्षणिक अर्थ है, गुरु के लिये उपयोगी हो ऐसा कुछ न कछ लेकर जाना। क्या आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त उत्तर इस प्रकार रहे - | | आहति देने योग्य पदार्थ ही अहम माना जाता था। किन्तु इसका लाक्षणिक अर्थ है, गुरु के लिये उपयोगी हो ऐसा कुछ न कछ लेकर जाना। क्या आज हर विद्यालय सशुल्क ही चलता है । इसमें किसी को आपत्ति भी नहीं होती । विद्यालय की शुल्कव्यवस्था इस प्रश्नावली के प्रश्न पुछकर कुछ लोगों से बातचीत हुई उनसे प्राप्त उत्तर इस प्रकार रहे - |