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# विद्यालय मे बगीचा अनिवार्य ही है ऐसा दृढ मत सब का प्रथम प्रश्न का रहा। मुंबई जैसे महानगरों के शिक्षक भी विद्यालय मे बगीचा चाहिये यह मान्य तो करते हैं परंतु असंभव है ऐसा भी लिखते हैं । स्थान स्थान की परिस्थिति अनुसार विचार बदलता है यह हम सबका अनुभव है।
 
# विद्यालय मे बगीचा अनिवार्य ही है ऐसा दृढ मत सब का प्रथम प्रश्न का रहा। मुंबई जैसे महानगरों के शिक्षक भी विद्यालय मे बगीचा चाहिये यह मान्य तो करते हैं परंतु असंभव है ऐसा भी लिखते हैं । स्थान स्थान की परिस्थिति अनुसार विचार बदलता है यह हम सबका अनुभव है।
 
# बगीचा क्यों चाहिये ? इस प्रश्न के उत्तर में बालको में सौंदर्यदृष्टि बढे, विद्यालय का सौंदर्य बढे, उनको वृक्षवनस्पती फूल पौधों की जानकारी मिले इस प्रकार के विविध उत्तर प्राप्त हुए .
 
# बगीचा क्यों चाहिये ? इस प्रश्न के उत्तर में बालको में सौंदर्यदृष्टि बढे, विद्यालय का सौंदर्य बढे, उनको वृक्षवनस्पती फूल पौधों की जानकारी मिले इस प्रकार के विविध उत्तर प्राप्त हुए .
# बगीचा कितना बड़ा हो ? इस प्रश्न के लिए उसका क्षेत्र (एरिया)कितना हो इस बाबत स्पष्ट उल्लेख नहीं
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# बगीचा कितना बड़ा हो ? इस प्रश्न के लिए उसका क्षेत्र (एरिया)कितना हो इस बाबत स्पष्ट उल्लेख नहीं था। जितनी जगह उतना बगीचा आवश्यक है ऐसा आग्रह रहा । विद्यालय में खुली जगह न हो तो गमले में ही पौधे लगाकर बगीचा तो बनवाना ही चाहिये । बगीचा कैसा होना चाहिये इस प्रश्न के उत्तर मे सुंदर, सुशोभित, बहुत बडी हरियाली रंगबिरंगी फूलों के पौधे, बडे बडे वृक्ष इन सबका समावेश बगीचा संकल्पना में दिखाई दिया। ६ पर्यावरण, सुंदरता, स्वास्थ्य, संस्कारक्षमता और बगीचा परस्परपूरक बातें हैं यह तो लिखा परंतु किस प्रकार से यह किसी ने भी स्पष्ट नहीं किया। प्र. ७ से १० तक के प्रश्न वैचारिक थे उनके उत्तर वैसे नहीं थे । केवल मुलायम घास, फूलों से भरे वृक्ष इस प्रकार के सीमित शब्दों में जवाब थे ।
यह प्रश्नावली संस्थाचालक, शिक्षक, अभिभावक ऐसे तीनों गटों के सहयोग से भरकर प्राप्त हुई है।
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==== अभिमत : ====
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वास्तव में जैसे आंगन बिना घर अधूरा वैसे ही बगीचा बिना विद्यालय अधूरा यह विचार मन मे दृढ हो । विद्यालय का बगीचा यह जैसा रमणीय स्थान है वैसा हि शैक्षिक स्थान भी है। निसर्ग की गोद में पढना माने शुद्ध प्राकृतिक वातावरण में पढना है। जैसे वातावरण में शुद्ध सात्त्विक भाव जागृत होते हैं जो विद्यार्थी को ज्ञानार्जन में सहायता करते हैं।
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हरीभरी लताएँ फल और पुष्पों से भरे पौधे इनके माध्यम से सृष्टि के विविध रूपों का अनुभव होता है । उनको संरक्षण और संवर्धन के संस्कार मिलते हैं, उनकी सेवा करने से आत्मीयता और आनंद प्राप्त होता हैं; ज्ञान मिलता है, प्रसन्नता मिलती है इस कारण ही ऋषिमुनीयों के आश्रम शहरों से दूरी पर निसर्ग की गोद में रहते थे । बडे वृक्षों पर रहनेवाले प्राणी-पक्षिओं का जीवन परिचय होता है, वृक्ष के आधार से बढती हुई लताएँ देखकर आधार देने का अर्थ समझ में आने लगता । वृक्षों की पहचान और उनके उपकार समझते है।
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विद्यालय के बगीचे में देसी फूल, सुगंधित फूल योजना से लगाएँ। क्रोटन जैसे, जिनकी विशेष देखभाल नहीं करनी पड़ती इसलिए उनको ही लगाना यह विचार बहुत ही गलत संस्कार करता है। उल्टा किसी की देखभाल करने से हमारा भी मन कोमल और प्रसन्न बनता है । फलों के वृक्ष से उनकी सुरक्षा करना, उन्हें स्वयं क्षति नहीं पहुँचाना इस वृत्ति का पोषण होता है । आज बडे बडे शहरो में विद्यालय की भव्य इमारत तो दिखती है परंतु वहाँ हरियाली नहीं, पौधे नहीं, फलों से भरे । वृक्ष नहीं दिखते हैं तो केवल चारों और सिमेंट की निर्जीवता । ऐसे रुक्ष एवं यांत्रिक निर्जीव वातावरण में शिक्षा भी निरस होती है। संवेदना, भावना जागृत नहीं होती। विद्यालय का भवन बनाते समय यह बात ध्यान में रखना आवश्यक है। ज्ञान जड नही चेतन है इसकी अनुभूति बगीचे के माध्यम से निश्चित होगी।
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==== विमर्श ====
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विद्यालय के प्रांगण में आँवला, जामुन, बेर, इमली, इस प्रकार से वृक्ष लगाने से छाँव और फल दोनों मिलेंगे।
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* विद्यालय में बगीचा होना ही चाहिये ।
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* विद्यालय छोटा हो और स्थान न हो तो छोटा सा ही सही लेकिन बगीचा अवश्य होना चाहिये ।
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* बगीचा दर्शनेन्द्रीय और घ्राणेंद्रिय के संतर्पण के लिये आवश्यक होता है। संतर्पण का अर्थ है ज्ञानेन्द्रियों को उनका आहार देकर तुष्ट और पुष्ट करना । रंग दर्शनेन्द्रिय का और सुगंध घ्राणेंद्रिय का आहार है। अत: बगीचा रंगो और सुगन्ध की दृष्टि से सुन्दर होना चाहिये। विभिन्न प्रकार के रंगों के फल और पत्तों से रंगों की संदरता निर्माण होती है। परन्तु फूलों के रंगों से भी सुगन्ध की सुंदरता का अधिक महत्त्व है। रंग सुन्दर है परन्तु सुगन्ध नहीं है तो ऐसे फूलों का कोई महत्त्व नहीं । ये फूल नकली फूलों के बराबर होते हैं। इसलिए सुगन्ध वाले फूल ही बगीचे में होने चाहिये ।
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* आजकल बगीचे में रंगों की शोभा को अधिक महत्त्व देकर नकली फूलों के पौधे ही लगाये जाते हैं। क्रोटन और अन्य विदेशी फूल जो दिखने में तो बहुत सुन्दर होते हैं परन्तु उनमें सुगन्ध नहीं होती ऐसे लगाये जाते हैं। ऐसे फल लगाना व्यर्थ है। वे इंद्रियों का संतर्पण नहीं करते।
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* आजकल घास भी विदेशी लगाई जाती है। वास्तव में घास के रूप में दूर्वा ही उत्तम है। इसका सम्बन्ध आरोग्य के साथ है। दर्वा में शरीर और मन का ताप हरण करने की अद्भुत शक्ति होती है। इसलिए दूर्वा के ऊपर खुले पैर चलने का परामर्श दिया जाता है । उसी प्रकार से देशी मेंहदी भी आरोग्य की दृष्टि से ताप हरण करने वाली होती है।
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* बगीचे में नीम, तुलसी, चंपा, औदुम्बर, अशोक, अमलतास, हरसिंगार जैसे वृक्ष, गुलाब, बेला, जासूद जैसे पौधे, जूही, चमेली जैसी लतायें होनी चाहिये । ये सब सात्त्विक सुगंधी वाले और आरोग्य प्रदान करने वाले होते हैं।
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* बगीचा केवल मनोरंजन के लिए नहीं है, केवल शोभा के लिए नहीं है। वह बहुत बड़ा शिक्षा का केंद्र है। उसी प्रकार से उसका उपयोग होना चाहिये । वह शिशुकक्षाओं से लेकर बड़ी कक्षाओं तक वनस्पतिविज्ञान का केंद्र हो सकता है। उसी प्रकार से उसकी योजना करनी चाहिये । इस अर्थ में वह विज्ञान की प्रयोगशाला ही है।
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* बगीचा जिस प्रकार विज्ञान की प्रयोगशाला है उसी प्रकार कृषिशास्त्र की भी प्रयोगशाला है। इसलिए विद्यालय का बगीचा आचार्यों और छात्रों ने मिलकर बनाया हुआ होना चाहिये । बगीचा बनाने के इस कार्य में बड़ी से छोटी कक्षाओं तक के सभी छात्रों के लिये काम होना आवश्यक है। शिक्षकों को इस कार्य में रुचि और कौशल दोनों होने चाहिये ।
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* मिट्टी कुरेदना, मिट्टी को कूटना, छानना, उसे पानी में भिगोना, गूंधना, गमले तैयार करना, बुवाई करना, पौधे लगाना, क्यारियाँ साफ करना, पानी देना, पौधों की कटाई करना,फूल चुनना, फल तोड़ना आदि सभी काम विद्यालय की शिक्षा के महत्त्वपूर्ण अंग है। इन  कामों के लिये बगीचे की आवश्यकता होती है।
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* बगीचे के कारण ही पौधा कैसे बड़ा होता है, जीवन का विकास कैसे होता है इसका अनुभूत ज्ञान प्राप्त होता है।
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* वनस्पति हमारे लिये कितनी उपकारक है, भूमि कैसे हमारा पोषण करती है, पेड़पौधों के स्वभाव कैसे होते है, उन्हें क्या अच्छा लगता है और किससे उन्हें दुःख होता है आदि का मनोवैज्ञानिक पक्ष भी इसके साथ जुड़ा हुआ है।
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* बगीचा है तो उसके साथ आयुर्वेद का ज्ञान, औषधिविज्ञान का ज्ञान, औषधि वनस्पति को पहचानना आदि भी सिखाया जा सकता है।
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* बगीचे में ही सागसब्जी उगाकर उसका नाश्ते में उपयोग करना, उसके साथ आरोग्यशास्त्र और आहारशास्त्र को जोड़ना भी महत्त्वपूर्ण आयाम है।
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* विद्यालयों में बगीचे के लिये स्थान ही नहीं होना, समयसारिणी में बगीचे के लिये प्रावधान ही नहीं होना, उसे सिखाने वाले शिक्षक ही नहीं मिलना, इसे अभिभावकों ने स्वीकार ही नहीं करना आदि अनेक अवरोध निर्माण हो जाते हैं। ये अवरोध शिक्षा के सम्यक दृष्टिकोण के अभाव के कारण होते हैं । इन अवरोधों को दूर करने के लिये शिक्षक शिक्षा का और अभिभावक प्रबोधन का प्रबन्ध विद्यालय में ही होना चाहिये।
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* जहां विद्यालय के साथ थोड़ी अधिक भूमि है वहाँ विद्यालय के निभाव के लिये बागवानी विकसित करना भी विद्यालय का कार्य है ।
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* यह प्रश्नावली संस्थाचालक, शिक्षक, अभिभावक ऐसे तीनों गटों के सहयोग से भरकर प्राप्त हुई है।
 
प्रश्न १ : स्वच्छता का अर्थ लिखते समय तन की स्वच्छता, मन की स्वच्छता, पर्यावरण की स्वच्छता का
 
प्रश्न १ : स्वच्छता का अर्थ लिखते समय तन की स्वच्छता, मन की स्वच्छता, पर्यावरण की स्वच्छता का
  
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