Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 387: Line 387:     
==== स्वच्छता के सम्बन्ध में इस प्रकार विचार करना चाहिये... ====
 
==== स्वच्छता के सम्बन्ध में इस प्रकार विचार करना चाहिये... ====
सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ नहीं रखना यह आज के समय का सामान्य प्रचलन हो गया है। इसका कारण जरा व्यापक और दूरवर्ती है । अंग्रेजों के भारत की सत्ता के अधिग्रहण से पूर्व भारतीय समाज स्वायत्त था। स्वायत्तता का एक लक्षण स्वयंप्रेरणा से सामाजिक दायित्वों का निर्वाहण करने का भी था । परन्तु अंग्रेजों ने सत्ता ग्रहण कर लेने के बाद समाज धीरे धीरे शासन के अधीन होता गया। इस नई व्यवस्था में ज़िम्मेदारी सरकार की और काम समाज का ऐसा विभाजन हो गया। सरकार जिम्मेदार थी परन्तु स्वयं काम करने के स्थान पर काम करवाती थी । जो काम करता था उसका अधिकार नहीं था, जिसका अधिकार था वह काम नहीं करता था । धीरे धीरे काम करना हेय और करवाना श्रेष्ठ माना जाने लगा । आज ऐसी व्यवस्था में हम जी रहे हैं । यह व्यवस्था हमारी सभी रचनाओं में दिखाई देती है।  
+
* सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ नहीं रखना यह आज के समय का सामान्य प्रचलन हो गया है। इसका कारण जरा व्यापक और दूरवर्ती है । अंग्रेजों के भारत की सत्ता के अधिग्रहण से पूर्व भारतीय समाज स्वायत्त था। स्वायत्तता का एक लक्षण स्वयंप्रेरणा से सामाजिक दायित्वों का निर्वाहण करने का भी था । परन्तु अंग्रेजों ने सत्ता ग्रहण कर लेने के बाद समाज धीरे धीरे शासन के अधीन होता गया। इस नई व्यवस्था में ज़िम्मेदारी सरकार की और काम समाज का ऐसा विभाजन हो गया। सरकार जिम्मेदार थी परन्तु स्वयं काम करने के स्थान पर काम करवाती थी । जो काम करता था उसका अधिकार नहीं था, जिसका अधिकार था वह काम नहीं करता था । धीरे धीरे काम करना हेय और करवाना श्रेष्ठ माना जाने लगा । आज ऐसी व्यवस्था में हम जी रहे हैं । यह व्यवस्था हमारी सभी रचनाओं में दिखाई देती है।
 +
* विद्यालय की स्वच्छता विद्यालय के आचार्यों और छात्रों के नित्यकार्य का अंग बनाना चाहिए क्योंकि यह शिक्षा का ही क्रियात्मक अंग है। आज ऐसा माना नहीं जाता है । आज यह सफाई कर्मचारियों का काम माना जाता है और पैसे देकर करवाया जाता है। छात्र या आचार्य इसे अपने लायक नहीं मानते हैं। इससे ऐसी मानसिकता पनपती है कि अच्छे पढेलिखे और अच्छी कमाई करने वाले स्वच्छताकार्य करेंगे नहीं। समय न हो और अन्य लोग करने वाले हो और किसीको स्वच्छताकार्य न करना पड़े यह अलग विषय है परन्तु पढेलिखे हैं और प्रतिष्ठित लोग ऐसा काम नहीं करते यह मानसिकता अलग विषय है। प्रायोगिक शिक्षा का यह अंग बनने की आवश्यकता है।
 +
* स्वच्छता स्वभाव बने यह भी शिक्षा का आवश्यक अंग है। आजकल इस विषय में भी विपरीत अवस्था है। सार्वजनिक स्थानों पर, मार्गों पर, कार्यालयों में कचरा जमा होना और दिनों तक उसे उठाया नहीं जाना सहज बन गया है। आने जाने वाले लोगों को, वहीं पर काम करने वाले लोगों को इससे परेशानी भी नहीं होती है। इस स्वभाव को बदलना शिक्षा का विषय बनाना चाहिये । इसे बदले बिना यदि स्वच्छता का काम किया भी तो वह केवल विवशता से अथवा अंकों के लिए होगा, करना चाहिये इसलिए नहीं होगा।
 +
* विद्यालय की स्वच्छता में केवल भवन की स्वच्छता ही नहीं होती। पुस्तकें, शैक्षिक सामग्री,बगीचा, मैदान, उपस्कर आदि सभी बातों की स्वच्छता भी होनी चाहिये । छात्रों का वेश, पदवेश, बस्ता आदि भी स्वच्छ होना अपेक्षित है।
 +
* स्वच्छता के लिए प्रयोग में ली जाने वाली सामग्री चिन्ता का विषय है। साबुन, डीटेर्जेंट, एसिड, फिनाइल आदि सफाई की जो सामग्री होती है वह कृत्रिम और पर्यावरण का प्रदूषण करने वाली ही होती है। इससे होने वाली सफाई सुन्दर दिखाई देने वाली ही होती है परन्तु इसके पीछे व्यापक अस्वच्छता जन्म लेती है जो प्रदूषण पैदा करती है। ऐसी सुन्दर अस्वच्छता की संकल्पना छात्रों को समझ में आए ऐसा करने की आवश्यकता है। विद्यालय की स्वच्छता छात्रों का सरोकार बने यही शिक्षा है। स्वच्छता अपने आपमें साध्य भी है और छात्रों के विकास का माध्यम भी है । यह व्यावहारिक शिक्षा है, कारीगरी की शिक्षा है, विज्ञान की शिक्षा है, सामाजिक शिक्षा भी है।
   −
विद्यालय की स्वच्छता विद्यालय के आचार्यों और छात्रों के नित्यकार्य का अंग बनाना चाहिए क्योंकि यह शिक्षा का ही क्रियात्मक अंग है। आज ऐसा माना नहीं जाता है । आज यह सफाई कर्मचारियों का काम माना जाता है और पैसे देकर करवाया जाता है। छात्र या आचार्य इसे अपने लायक नहीं मानते हैं। इससे ऐसी मानसिकता पनपती है कि अच्छे पढेलिखे और अच्छी कमाई करने वाले स्वच्छताकार्य करेंगे नहीं। समय न हो और अन्य लोग करने वाले हो और किसीको स्वच्छताकार्य न करना पड़े यह अलग विषय है परन्तु पढेलिखे हैं और प्रतिष्ठित लोग ऐसा काम नहीं करते यह मानसिकता अलग विषय है। प्रायोगिक शिक्षा का यह अंग बनने की आवश्यकता है।
+
=== विद्यालय का बगीचा ===
 +
१. विद्यालय में बगीचा अनिवार्य है क्या ?
   −
स्वच्छता स्वभाव बने यह भी शिक्षा का आवश्यक अंग है। आजकल इस विषय में भी विपरीत अवस्था है। सार्वजनिक स्थानों पर, मार्गों पर, कार्यालयों में कचरा जमा होना और दिनों तक उसे उठाया नहीं जाना सहज बन गया है। आने जाने वाले लोगों को, वहीं पर काम करने वाले लोगों को इससे परेशानी भी नहीं होती है। इस स्वभाव को बदलना शिक्षा का विषय बनाना चाहिये । इसे बदले बिना यदि स्वच्छता का काम किया भी तो वह केवल विवशता से अथवा अंकों के लिए होगा, करना चाहिये इसलिए नहीं होगा।
+
२. विद्यालय में बगीचा क्यों होना चाहिये ?
   −
विद्यालय की स्वच्छता में केवल भवन की स्वच्छता ही नहीं होती। पुस्तकें, शैक्षिक सामग्री,बगीचा, मैदान, उपस्कर आदि सभी बातों की स्वच्छता भी होनी चाहिये । छात्रों का वेश, पदवेश, बस्ता आदि भी स्वच्छ होना अपेक्षित है।
+
३. विद्यालय में कितना बड़ा बगीचा होना चाहिये ?
   −
स्वच्छता के लिए प्रयोग में ली जाने वाली सामग्री चिन्ता का विषय है। साबुन, डीटेर्जेंट, एसिड, फिनाइल आदि सफाई की जो सामग्री होती है वह कृत्रिम और पर्यावरण का प्रदूषण करने वाली ही होती है। इससे होने वाली सफाई सुन्दर दिखाई देने वाली ही होती है परन्तु इसके पीछे व्यापक अस्वच्छता जन्म लेती है जो प्रदूषण पैदा करती है। ऐसी सुन्दर अस्वच्छता की संकल्पना छात्रों को समझ में आए ऐसा करने की आवश्यकता है। विद्यालय की स्वच्छता छात्रों का सरोकार बने यही शिक्षा है। स्वच्छता अपने आपमें साध्य भी है और छात्रों के विकास का माध्यम भी है । यह व्यावहारिक शिक्षा है, कारीगरी की शिक्षा है, विज्ञान की शिक्षा है, सामाजिक शिक्षा भी है।
+
४. विद्यालय में खुला अथवा सुरक्षित स्थान ही न हो तो बगीचा कैसे बनायें ?
 +
 
 +
५. विद्यालय में बगीचा कैसा होना चाहिये ?
 +
 
 +
६. बगीचा और पर्यावरण, बगीचा और सुन्दरता, बगीचा एवं स्वास्थ्य, बगीचा एवं संस्कारक्षमता का क्या सम्बन्ध है ?
 +
 
 +
७. विद्यालय में घास, पौधे, वृक्ष एवं लता के विषय में किन किन बातों का विचार करना चाहिये ? 
 +
 
 +
विद्यालय में फूल, फल आदि के विषय में क्या क्या विचार करना चाहिये ?
 +
 
 +
९. छात्रों एवं आचार्यों की वनस्पति सेवा में सहभागिता कैसे बने ?
 +
 
 +
१०. बगीचा तैयार करते समय खर्च, सुविधा, उपयोगिता, सुन्दरता, प्रसन्नता, प्राकृतिकता एवं व्यावहारिकता का ध्यान कैसे रखें ?
    
ध्यान रखकर होनी चाहिये । मानवीय अर्थात्‌ जीवमानता के अनुकूल रचनायें करनी
 
ध्यान रखकर होनी चाहिये । मानवीय अर्थात्‌ जीवमानता के अनुकूल रचनायें करनी
1,815

edits

Navigation menu