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| '''४. प्रतियोगिता की भावना कम करने के क्या उपाय करें ?''' | | '''४. प्रतियोगिता की भावना कम करने के क्या उपाय करें ?''' |
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− | '''५. प्रतियोगितायें लाभ के स्थान पर हानि कैसे करती''' | + | '''५. प्रतियोगितायें लाभ के स्थान पर हानि कैसे करती?''' |
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| + | '''६. प्रतियोगितायें लाभकारी बनें इसलिये क्या क्या करना चाहिये ?''' |
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| + | ==== प्रश्नावली से पाप्त उत्तर ==== |
| + | इस प्रश्नावली के कुल छः प्रश्न है। इस विषय पर अठ्ठाईस शिक्षक, दो प्रधानाचार्य, दो संस्थाचालक एवं इकतालीस अभिभावको ने अपने मत प्रदर्शित किये। |
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| + | १. लगभग ४० प्रतिशत शिक्षक एवं अभिभावक प्रतियोगिता के शैक्षिक एवं व्यावहारिक मूल्य संबंध मे अनभिज्ञ है । ४० प्रतिशत लोग शारीरिक मानसिक विकास ऐसा उत्तर देते है । परंतु उत्तरों से उन्हे कोई अर्थबोध नही हआ ऐसा लगता है। बाकी अन्योने स्पर्धा से उत्साह आत्मविश्वास प्रयत्नशीलता बढती है, आंतरिक गुण प्रकट होते हैं, लक्ष्य तक पहुचने का सातत्य आता है, इस प्रकार से प्रतिपादन किया है। |
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| + | २. स्पर्धा के प्रति योग्य दृष्टीकोन विकसित करने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोन अपनाना चाहिये यह उत्तर दिया। |
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| + | ३. प्रतियोगिता होनी ही चाहिये ऐसा कुछ लोग लिखते है। |
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| + | ४. प्रतियोगिताए खुले दिल से होनी चाहिए यह भी मत प्रदर्शित हुआ। |
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| + | ५. हार जीत समान है यह भावना निर्माण करे तथा स्पर्धा निष्पक्ष भाव से और निकोप वातावरण मे हो ऐसा भी सुझाव आया । |
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| + | ६. स्पर्धा लाभकारी हो इसलिए उनमे से इर्ष्या और हिंसाभाव नष्ट करे, अपयश प्राप्त स्पर्धकों को चिडाना (उपहास करना) बंद करे तथा सभी स्पर्धकों को पुरस्कार देना ऐसा लिखा है। |
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| + | ७. स्पर्धा से होने वाली हानि बताने से बालकों के मन में न्यूनता की भावना निर्माण होती है इसलिए दूसरों का विजय सहर्ष स्वीकृत करे ऐसा भाव उत्पन्न करे । बहुत से लोगोंने प्रतियोगिता का अर्थ परीक्षा ऐसा भी किया । |
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| + | ==== अभिमत : ==== |
| + | आजकल शिशु कक्षाओं से लेकर बड़ी कक्षाओं तक स्पर्धाका आयोजन होता है । यह अत्यंत गलत बात है । साधारणतः कक्षा ६, ७ के बाद स्पर्धा जीतने का भाव निर्माण होता है तबसे कुछ मात्रा मे प्रतियोगिता हो सकती है। विद्यार्थियो में खिलाड़ीवृत्ति निर्माण करे । जीवन की हारजीत पचाना इससे ही आता है क्रोध इर्ष्या न बढे उसकी सावधानी आचार्य और अभिभावकों के मन में हो । |
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| + | भोजन मे जिस मात्रा मे लवण आवश्यक है उसी मात्रा मे जीवन में स्पर्धा आवश्यक है । |
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