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| १. अध्ययन हेतु सुविधा का विचार गौण रूप से ही करना चाहिये। | | १. अध्ययन हेतु सुविधा का विचार गौण रूप से ही करना चाहिये। |
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− | एक दो सुभाषित इस सन्दर्भ में | + | एक दो सुभाषित इस सन्दर्भ में ध्यान में लेने लायक हैं ...<blockquote>सुखार्थी चेतू त्यजेत् विद्याम्</blockquote><blockquote>विद्यार्थी चेतू त्यजेतू सुखम् ।</blockquote><blockquote>सुखार्थिन: कुत्तो विद्या विद्यार्थिन: कुत्तों सुखम् ।।</blockquote>अर्थात सुख की इच्छा करने वाले को विद्या की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये क्योंकि सुख चाहने वाले को विद्या कैसे मिल सकती है और विद्या चाहने वाले को सुख कैसे मिल सकता है ? <blockquote>कामातुराणामू न भयम् न लज्जा</blockquote><blockquote>अर्थातुराणांमू न गुरुर्न बंधु:</blockquote><blockquote>विद्यातुराणां न सुखं न निद्रा</blockquote><blockquote>क्षुधातुराणां न रुचीर्न पक्वम् ॥।</blockquote>अर्थात् जो काम से आहत हो गया है उसे भय की लज्जा नहीं होती, जो अर्थ के पीछे पड़ गया है उसे कोई गुरु नहीं होता न कोई स्वजन, जिसे विद्या की चाह है उसे सुख या निद्रा की चाह नहीं होती और जो भूख से पीड़ित है उसे स्वाद की या पदार्थ पका है कि नहीं उसकी परवाह नहीं होती । |
− | ध्यान में लेने लायक हैं ...<blockquote>सुखार्थी चेतू त्यजेत् विद्याम्</blockquote><blockquote>विद्यार्थी चेतू त्यजेतू सुखम् ।</blockquote><blockquote>सुखार्थिन: कुत्तो विद्या विद्यार्थिन: कुत्तों सुखम् ।।</blockquote>अर्थात सुख की इच्छा करने वाले को विद्या की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये और विद्या की इच्छा रखने वाले को सुख की अपेक्षा नहीं करनी चाहिये क्योंकि सुख चाहने वाले को विद्या कैसे मिल सकती है और विद्या चाहने वाले को सुख कैसे मिल सकता है ? <blockquote>कामातुराणामू न भयम् न लज्जा</blockquote><blockquote>अर्थातुराणांमू न गुरुर्न बंधु:</blockquote><blockquote>विद्यातुराणां न सुखं न निद्रा</blockquote><blockquote>क्षुधातुराणां न रुचीर्न पक्वम् ॥।</blockquote>अर्थात् जो काम से आहत हो गया है उसे भय की लज्जा नहीं होती, जो अर्थ के पीछे पड़ गया है उसे कोई गुरु नहीं होता न कोई स्वजन, जिसे विद्या की चाह है उसे सुख या निद्रा की चाह नहीं होती और जो भूख से पीड़ित है उसे स्वाद की या पदार्थ पका है कि नहीं उसकी परवाह नहीं होती । | |
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| विद्या प्राप्त करने के लिये इच्छुक व्यक्ति को सुविधाभोगी नहीं होना चाहिये यह हमेशा से कहा | | विद्या प्राप्त करने के लिये इच्छुक व्यक्ति को सुविधाभोगी नहीं होना चाहिये यह हमेशा से कहा |
| गया । प्राचीन काल में तो विद्याध्यायन करने वाले | | गया । प्राचीन काल में तो विद्याध्यायन करने वाले |
− | छात्र को ब्रह्मचारी ही कहा जाता था और ब्रह्मचारी | + | छात्र को ब्रह्मचारी ही कहा जाता था और ब्रह्मचारी के लिये अनेक सुविधाओं का निषेध बताया गया था । सर्व प्रकार के शृंगार उसके लिये निषिद्ध थे । उसका मनोवैज्ञानिक कारण था । यदि मन उन सुखों में रहेगा तो अध्ययन में एकाग्र होकर लगेगा ही नहीं । साथ ही यह भी मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मन जब अध्ययन में एकाग्र हुआ होता है तब अन्य सुखसुविधाओं का स्मरण भी नहीं होता । विद्याध्यायन का आनन्द बुद्धि का आनन्द है । जब बुद्धि का आनन्द प्राप्त होता है तब इंद्रियों का आनन्द सुख नहीं देता । इसलिये भी विद्याध्यायन के समय |
− | के लिये अनेक सुविधाओं का निषेध बताया गया | |
− | था । सर्व प्रकार के शृंगार उसके लिये निषिद्ध थे । | |
− | उसका मनोवैज्ञानिक कारण था । यदि मन उन सुखों | |
− | में रहेगा तो अध्ययन में एकाग्र होकर लगेगा ही | |
− | नहीं । साथ ही यह भी मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि मन | |
− | जब अध्ययन में एकाग्र हुआ होता है तब अन्य | |
− | सुखसुविधाओं का स्मरण भी नहीं होता । | |
− | विद्याध्यायन का आनन्द बुद्धि का आनन्द है । जब | |
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− | सुख नहीं देता । इसलिये भी विद्याध्यायन के समय | |
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