Line 330: |
Line 330: |
| दूसरा बिंदु यह है कि इस बात पर विचार किया जाय कि गृहकार्य हमेशा लिखित ही क्यों होना चाहिए । पढ़ाई केवल लिखकर नहीं होती है । पढ़ाई अनेक प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से होती है। अभिभावकों और शिक्षकों की यह भी पक्की धारणा बन गई है कि लिखना ही मुख्य कार्य है । ज्ञान कितना भी | | दूसरा बिंदु यह है कि इस बात पर विचार किया जाय कि गृहकार्य हमेशा लिखित ही क्यों होना चाहिए । पढ़ाई केवल लिखकर नहीं होती है । पढ़ाई अनेक प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से होती है। अभिभावकों और शिक्षकों की यह भी पक्की धारणा बन गई है कि लिखना ही मुख्य कार्य है । ज्ञान कितना भी |
| | | |
− | ............. page-169 ............. | + | मौखिक रूप से अवगत हो तो भी जबतक लिखा नहीं जाता तबतक वह अधूरा है, ऐसा माना जाता है । यह धारणा सही नहीं है । कर्मन्द्रियों की कुशलता, आत्मविश्वास, व्यवहारदक्षता, सद्धावना, विचारशीलता और आकलनक्षमता लिखित रूप में व्यक्त ही नहीं हो सकते । लिखित रूप में गृहकार्य करने के लिए इन बातों की कोई आवश्यकता नहीं होती । तो भी गृहकार्य लिखित स्वरूप का दिया जाता है । इसके पीछे बड़ा विचित्र कारण सुनने को मिलता है । शिक्षक कहते हैं कि लिखित गृहकार्य नहीं दिया तो छात्र ने गृहकार्य किया कि नहीं इसका पता कैसे चलेगा । पढ़ने के लिए दिया तो वे नहीं करने पर भी किया है, ऐसा कहेंगे । अभिभावकों को भी लिखित कार्य ही प्रमाण लगता है । यह तो अविश्वास का मामला हुआ । शिक्षक को छात्र पर या अभिभावकों को शिक्षकों पर विश्वास नहीं होता कि वे सच बोलेंगे या जिसका प्रमाण नहीं देना पड़ता ऐसा भी निश्चित रूप से करेंगे ही । इसलिए गृहकार्य से कोई अर्थ साध्य न होता हो तो भी लिखित गृहकार्य देने का प्रचलन हो गया है । अब तो यह बात चुभने वाली भी नहीं रह गई है । |
| + | |
| + | यह ठीक तो नहीं है । इस विषय में विद्यालय ने अभिभावकों के साथ विश्वास का सम्बन्ध बनाना चाहिए । दोनों को यह ध्यान में लेना चाहिए की छात्र को ज्ञान प्राप्त होना महत्त्वपूर्ण है, कापी में लिखना नहीं । इसलिए पहली बात अविश्वास से और लिखित गृहकार्य से मुक्त होना है । इसका अर्थ यह नहीं है की लिखना सर्वथा निषिद्ध है । जहाँ आवश्यक है वहाँ लिखित अवश्य होना चाहिए । उदाहरण के लिए सुलेख ही पक्का करना हो तो लिखना ही चाहिए । वर्तनी सीखना हो तो लिखना ही चाहिए । लिखित अभिव्यक्ति लिखकर ही हो सकती है । गणित के कुछ सवाल लिखकर ही किये जाएंगे । अत: तात्पर्य समझकर लिखित गृहकार्य का प्रयोग कर सकते हैं । |
| + | |
| + | इसी प्रकार से यह भी विचार करने लायक तथ्य है कि गृहकार्य आखिर दिया क्यों जाता है । कया विद्यालय में पढ़ाई करना पर्याप्त नहीं है ? यदि पर्याप्त नहीं है तो विद्यालय का समय ही क्यों नहीं बढ़ाया जाना चाहिए ? घर वापस आने के बाद पुनः पढ़ाई क्यों करनी चाहिए ? इसके विविध कारण हो सकते हैं । एक कारण यह हो सकता है कि अभी जो चलता है उतने समय से अधिक विद्यालय चलाना संभव नहीं है । इसके कई व्यावहारिक कारण हैं । छात्रों को एकसाथ इतना समय पढ़ाई करना सुविधाजनक नहीं होता । शारीरिक रूप से थकान हो जाना भी सम्भव है । भोजन की सुविधा विद्यालय में सम्भव नहीं होती है । अतः विद्यालय की पढ़ाई पाँच घंटे से अधिक नहीं हो सकती । बारह वर्ष से अधिक आयु के छात्रों के लिए छः घंटे की पढ़ाई भी हो सकती है परन्तु उससे अधिक नहीं । |
| + | |
| + | अधिक महत्त्वपूर्ण विषय यह है कि विद्यालय के समय के अतिरिक्त औपचारिक पढ़ाई की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए । वास्तव में दिन के चौबीस घंटों में औपचारिक पढ़ाई के साथ-साथ बहुत कुछ और भी करना होता है । व्यायाम, खेल, घर के काम, घर से बाहर के काम, दिनचर्या के आवश्यक कार्य आदि बहुत सारी बातों के लिए समय मिलना चाहिए । शिक्षा केवल विद्यालय की औपचारिक पढ़ाई में ही सीमित नहीं होती है । जीवन-व्यवहार के अन्य कार्य भी शिक्षा के ही अंग हैं । अत: पहले तो गृहकार्य के नाम पर औपचारिक पढ़ाई का ही समय बढ़ाना नहीं चाहिए । इस दृष्टि से गृहकार्य का स्वरूप बदलने की नितान्त आवश्यकता है | |
| + | |
| + | सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि विद्यालय की औपचारिक पढ़ाई को व्यावहारिक जीवन के साथ जोड़कर सार्थक बनाने वाले गृहकार्य के विषय में विचार करना चाहिए । यह गृहकार्य केवल लिखित नहीं हो सकता यह स्वाभाविक है । यदि लिखित नहीं तो यह कैसा होगा इसके कुछ उदाहरण यहाँ दिये जा सकते हैं । |
| + | |
| + | १२. पाँचवीं के छात्रों को विद्यालय से घर जाते समय रास्ते में पड़ने वाली दुकानों के फ़लक अपनी कापी में लिखो । घर जाकर उनकी भाषा शुद्ध है कि नहीं यह जाँचो । यदि शुद्ध है तो दुकानदारों को अभिनन्दनपरक पत्र लिखो । यदि उनमें कोई अशुद्धि है तो उसे दूर कर शुद्ध करो और दुकानदार को उसकी उचित भाषा में सूचना दो । इस कार्य में समय जायेगा, सम्पर्क करना होगा, शब्दकोश देखना होगा, व्याकरण के नियम याद करने होंगे, पत्रलेखन करना होगा । कई बार ऐसे कामों को प्रोजेक्ट कहा जाता है । यदि विद्यालय में किया तो वह प्रोजेक्ट है, घर में किया तो गृहकार्य । इस प्रकार के गृहकार्य में भाषा का व्यावहारिक और शैक्षिक पक्ष समाविष्ट हो जाता है , केवल भाषाज्ञान के साथ-साथ अन्य व्यावहारिक पक्ष भी समझ में आते हैं । |
| + | |
| + | घर के सभी कमरों का नाप निकालकर प्रत्येक का क्षेत्रफल कितना है, इसकी तालिका बनाने का गृहकार्य दे सकते हैं । इसी पद्धति से भूमिति विद्यालय में भी पढ़ाई जा सकती है । |
| + | |
| + | घर का तीन या सात दिन का खर्च लिखकर उसका जोड़ करने का गणित गृहकार्य के रूप में दिया जा सकता है । |
| + | |
| + | हमारे घर में कौन-कौन क्या-क्या काम करता है और घर के सभी सदस्यों का एक दिन कैसे बीतता है, इसका वर्णन कर निबंध लिखने को बता सकते हैं । |
| + | |
| + | एक सप्ताह का अल्पाहार स्वयं बनाकर ले आने का गृहकार्य भी हो सकता है । उस पदार्थ का वर्णन, उसमें कया क्या सामाग्री प्रयुक्त हुई है और उसका पोषक मूल्य तथा सात्त्विकता कैसी है, इसका वर्णन करने को कहा जा सकता है । कोई गीत, संवाद, सूत्र आदि कंठस्थ करने का गृहकार्य भी दिया जा सकता है । यह सूची शिक्षक की मौलिकता से बहुत बड़ी हो सकती है । तात्पर्य यह है कि पढ़ी हुई, सीखी हुई बातों को व्यवहार में लागू करना आए, इस दृष्टि से गृहकार्य का स्वरूप बनाना चाहिए । |
| + | |
| + | विद्यार्थी की जीवनचर्या का मुख्य कार्य अध्ययन करना है इस लिए उसकी सम्पूर्ण जीवनचर्या को अध्ययन के विषयों के अनुसार ढालना चाहिए । इस बात को ध्यान में रखकर गृहकार्य की योजना करनी चाहिए । |
| + | |
| + | ==== गृहकार्य की जाँच कैसे करें ==== |
| + | जो बातें लिखित स्वरूप की होती हैं उनकी जाँच शिक्षक को करनी तो चाहिए ही, परंतु यह कार्य अत्यन्त परेशान करने वाला होता है । बहुत समय उसमें जाता है । उतना समय उसके लिए दिया जाय तो अध्ययन जैसी अन्य आवश्यक बातों के लिए समय नहीं रहता । कई स्थानों पर शिक्षकों के लिए कापियाँ जाँचने का कार्य अनिवार्य किया जाता है, परंतु यह अविश्वास के कारण होता है । शिक्षक जहाँ अधिक विश्वासपात्र होते हैं, वहाँ ऐसा अविश्वास नहीं होता । विश्वास के वातावरण में लिखित गृहकार्य और उसे जाँचने की अनिवार्यता नहीं होगी । तब लिखित कार्य जाँचने की वैकल्पिक व्यवस्था कर शिक्षक अधिक अध्ययन करने के लिए समय प्राप्त कर सकता है । लिखित गृहकार्य जाँचने के लिए अभिभावकों की तथा स्वयं छात्रों की सहायता ली जा सकती है । यहाँ भी परस्पर सौहार्द और विश्वास की आवश्यकता रहेगी । सौहार्द नहीं रहा तो अभिभावक कहते हैं की यह काम शिक्षक का है, उसे वेतन ऐसे कामों के लिए ही दिया जाता है । छात्रों को यह काम नहीं देना चाहिए क्योंकि एक तो वे इस काम के लिए नहीं आते हैं, पढ़ने के लिए आते हैं, और दूसरा, वे विश्वसनीय नहीं हैं । छात्रों की अविश्वसनीयता और अक्षमता के कारण और छात्रों पर अन्याय होता है, इसलिये यह कार्य उन्हें नहीं सॉपना चाहिये । ऐसा तर्क अभिभावकों और संचालकों का रहता है । इसका और इसके जैसे अन्य प्रश्नों का समाधान तो सज्जनता और विश्वास बढ़ाने का ही है , अन्य किसी भी उपायों से विश्वास का संकट दूर नहीं हो सकता । गृहकार्य यदि लिखित है तो स्वयं सुधार हो सके ऐसा होना चाहिए ताकि छात्र अपने आप ही अपना गृहकार्य जाँच सकें । |
| + | |
| + | जो भी प्रायोगिक कार्य दिया होता है, उसकी जाँच भी प्रायोगिक पद्धति से ही होती है । वह इतनी व्यक्ति और कार्यसापेक्ष होती है कि उसको नियमों में बांधना संभव नहीं होता है । इसलिए उसकी चर्चा नहीं करेंगे । गृहकार्य के संबंध में इतनी चर्चा पर्याप्त है । |
| + | |
| + | === विद्यालय की दैनंदिन गतिविधियाँ === |
| + | क्या इतने प्रकार की गतिविधियाँ विद्यालय में |
| + | |
| + | नियमित रूप से हो सकती हैं - |
| + | |
| + | पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि की सेवा |
| + | |
| + | वृक्ष वनस्पति की सेवा |
| + | |
| + | स्वच्छता |
| + | |
| + | aca |
| + | |
| + | कारसेवा एवं यज्ञ |
| + | |
| + | व्यायाम |
| + | |
| + | योगाभ्यास |
| + | |
| + | साजसज्जा |
| + | |
| + | ९. गुरुसेवा, गुरुवन्दना |
| + | |
| + | १०, भोजन |
| + | |
| + | विद्यालय के समय में इन्हें किस प्रकार से बिठा |
| + | |
| + | सकते हैं ? |
| + | |
| + | इन सब बातों का शैक्षिक मूल्य कितना है ? |
| + | |
| + | इनको करने में किस प्रकार के अवरोध निर्माण हो |
| + | |
| + | सकते हैं ? |
| + | |
| + | उन्हें दूर कैसे करें ? |
| + | |
| + | और कौन सी गतिविधियाँ जोड़ी जा सकती हैं ? |
| + | |
| + | इन सब गतिविधियों के लिये आर्थिक बोज |
| + | |
| + | कितना उठाना पडेगा ? |
| + | |
| + | SoM SK ww ~ |
| + | |
| + | प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर |
| + | |
| + | गुजरात में नवसारी के सरस्वती विद्यामंदिर में समग्र |
| + | |
| + | विकास पाठ्यक्रम चलता है वहाँ के आचार्य जिज्ञाबेन |
| + | |
| + | पटेल जो रोज निम्न गतिविधियाँ अपने विद्यालय में करते हैं |
| + | |
| + | उन्होंने इस प्रश्नावली के उत्तर अपने अनुभव के आधार पर |
| + | |
| + | लिखे है । |
| + | |
| + | दस प्रकार की गतिविधियाँ नियमित रूप से होना |
| + | |
| + | संभव है क्या ? विद्यालय के समय पत्रक में उन्हें कैसे |
| + | |
| + | बिठायें ? उनका शैक्षिक मूल्य क्या है ? करने में किस |
| + | |
| + | प्रकार के अवरोध आते हैं ? उन अवरोधों को कैसे दूर |
| + | |
| + | किया जाय ? ऐसे पांच प्रश्न हैं । |
| + | |
| + | विद्यालय की दैनंदिन गतिविधियाँ |
| + | |
| + | gut |
| + | |
| + | चर्चा एवं अभिमत |
| + | |
| + | सर्व गतिविधियाँ महत्त्वपूर्ण है । नियोजित समय में |
| + | |
| + | नित्य करवाना कुशलता है । उनका महत्त्व यदि समझ में |
| + | |
| + | आता है तो कुशलता अपने आप आयेगी । उसके लिए इस |
| + | |
| + | प्रकार की योजना कर सकते हैं । |
| + | |
| + | गतिविधियाँ |
| + | |
| + | १. पशु पक्षी कीट पतंग आदि की सेवा |
| + | |
| + | इसमें पक्षिओं को दाना डालना एवं उन्होंने की हुई |
| + | |
| + | अस्वच्छता स्वच्छ करना ये दो प्रकार के काम होंगे |
| + | |
| + | विद्यालय के ५-६ बच्चों का गट प्रार्थना में न बैठे उस |
| + | |
| + | समय यह काम करेगा । एक सप्ताह के बाद गट बदलेगा |
| + | |
| + | काम वही रहेगा । उचित जगह पर पक्षिओं के लिए मिट्टी |
| + | |
| + | के पात्रों में पानी रखना । ये पात्र साफ करना, उनमें ताजा |
| + | |
| + | पानी भरना । मैदान या छज्जेपर दाने डालना (बाजरा |
| + | |
| + | चावल) पक्षिओं द्वारा की हुई गंदगी साफ करना |
| + | |
| + | शैक्षिक मूल्य : पक्षी निर्भयता से कहाँ आते हैं । |
| + | |
| + | चींटियाँ कहाँ रहती हैं ? उन्हें कितनी मात्रा में दाना पानी |
| + | |
| + | चाहिये ? इसका अंदाज लगाना । मन में प्राणीद्या निर्माण |
| + | |
| + | होती है । चित्त निर्मल रहता है । |
| + | |
| + | अवरोध - १. प्रार्थना मे न जाते हुए यह काम |
| + | |
| + | करवाना मन को अच्छा नहीं लगता । २. अभिभावक ऐसे |
| + | |
| + | सामान्य कामों को फालतू एवं अशैक्षिक समझते हैं । |
| + | |
| + | उपाय - १. शान्त बैठकर प्रार्थना करना और |
| + | |
| + | पक्षीकी सेवा करना दोनों समान ही है, यह विचार करना । |
| + | |
| + | बच्चों को इस का अर्थ समझाना रे. यह भी महत्त्वपूर्ण |
| + | |
| + | शिक्षा है इस बात को धयान में रखना । |
| + | |
| + | २. वृक्ष वनस्पती सेवा |
| + | |
| + | पौंधो को पानी पिलाना, वृक्षों के तनों को रंग |
| + | |
| + | लगाना, पतझड में गिरे हुई पत्ते, कचरा इकट्ठा करना, गमले |
| + | |
| + | साफ रखना, पौधों को खाद देना इत्यादी प्रकार के काम |
| + | |
| + | � |
| + | |
| + | ............. page-172 ............. |
| + | |
| + | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम |
| + | |
| + | सेवाकार्य ही हैं । १० बालकों का गट अवरोध - कुछलोग पूजापाठ के विरोधी होते हैं । |
| + | |
| + | बनाना, गट प्रमुख बनाना । इससे कार्यविभाजन होगा । उपाय - उनकी ओर ध्यान नहीं देना । उनसे |
| + | |
| + | खेल के कालांश में यह सेवाकार्य करना । भयभीत भी नहीं होना । |
| + | |
| + | शैक्षिक मूल्य - वृक्ष वनस्पति का परिचय, उनकी |
| + | |
| + | आवश्यकताएँ समझना उनके प्रति आत्मीयता निर्माण होती |
| + | |
| + | है । ये सारी बातें हमारे विद्यालय की हैं, उनका रक्षण एवं |
| + | |
| + | संवर्धन करना हमारा दायित्व है यह भाव जागृत होता है । |
| + | |
| + | अवरोध - सभी छात्र ठीक से काम करेंगे या नहीं ? |
| + | |
| + | आपस में झगड़ेंगे ऐसी आशंका निर्माण होती है । यह काम |
| + | |
| + | क्या पढ़ाई है ? ऐसा प्रश्न अभिभावक पूछ सकते हैं । |
| + | |
| + | उपाय - इस गतिविधी का स्वरूप और महत्त्व छात्रों |
| + | |
| + | को समझाना । शिक्षक ने थोडीबहुत देखरेख रखना । किताबी |
| + | |
| + | पढ़ाई से हटकर इस अभ्यास से छात्रों की मनःस्थिति में अच्छा |
| + | |
| + | बदलाव आता है । फिर अभिभावक भी शिकायत नहीं करेंगे । |
| + | |
| + | ५. कारसेवा एवं यज्ञ |
| + | |
| + | विद्यालय में अग्िहोत्र नित्य करें । विद्यालय की ५ |
| + | |
| + | वीं से ऊपर की कक्षाओं में से प्रतिदिन एक कक्षा के छात्र |
| + | |
| + | अग्निहोत्र करे । उस समय वे वन्दना में नहीं जायेंगे । बैठक |
| + | |
| + | व्यवस्था करना, यज्ञ की सामग्री रखना, बाद में उठाकर |
| + | |
| + | यथास्थान रखना, ४ छात्रोंने प्रत्यक्ष हवन करना इस प्रकार |
| + | |
| + | की योजना बने । उपरोक्त सर्व गतिविधियों में कुछ न कुछ |
| + | |
| + | कारसेवा हर विद्यर्थी को करनी ही है । अतः अलगसे |
| + | |
| + | कारसेवा न लगाए तो भी चलेगा । |
| + | |
| + | शैक्षिक मूल्य - पर्यावरण शुद्धि, वेदमंत्र कंठस्थ |
| + | |
| + | होना, उच्चारण स्पष्टता एवं आध्यात्मिक संस्कार साध्य होते |
| + | |
| + | ३. स्वच्छता हैं। |
| + | |
| + | सफाई करना, श्यामपट स्वच्छ करना, डेस्क बेंच अवरोध - घी और हवन सामग्री रोज खर्च होती है |
| + | |
| + | साफ रखना, कागज कचरा उठाकर कचरा पात्र में डालना ।.... ऐसा कुछ लोग सोचते हैं । |
| + | |
| + | इस प्रकार के सारे काम होंगे । रोज प्रार्थना के Ged ae उपाय - समिधा इकट्टी कर सकते हैं । घी खर्च |
| + | |
| + | १० मिनट यह स्वच्छता कार्य होगा । कक्षा शिक्षक इसका... होगा परंतु अन्य उपलब्धिओं की तुलना मे खर्च नगण्य है । |
| + | |
| + | ठीक से नियोजन करेंगे । सब को अपना कार्य समझायेंगे । घी जलकर नष्ट होता है और वह फिजूल खर्च है, यह |
| + | |
| + | अवरोध - कुछ बालक काम करेंगे, कुछ मस्ती विचार दूर करे । |
| + | |
| + | उपाय - अच्छे काम करने वालों का गौरव करना । |
| + | |
| + | न करनेवालों को डाँट नहीं, अपितु उनकी समझ बढ़ाना । |
| + | |
| + | कक्षाचार्य ने स्वयं इसमें सहभागी होना । |
| + | |
| + | शैक्षिक मूल्य - समूह में काम करने की आदत, |
| + | |
| + | विद्यालय के प्रति आत्मीय भाव जागृत करना । |
| + | |
| + | ६. व्यायाम |
| + | |
| + | दिन भर के समयपत्रक मे रोज १५ मिनिट व्यायाम के |
| + | |
| + | लिए निकालना चाहिये । व्यायाम का स्वरूप छात्रों की |
| + | |
| + | आयु के अनुसार निश्चित करें । वर्गशिक्षक रोज उपस्थिति |
| + | |
| + | लेता है उसी प्रकार व्यायाम भी अनिवार्य रूप से हो । |
| + | |
| + | शैक्षिक मूल्य - शरीर मे स्फूर्ति उत्साह एव लोच |
| + | |
| + | विद्यालय सरस्वती का मन्दिर है । अध्ययन रोज उसी. बढ़ता है । ये बातें ज्ञानार्जन के लिए अत्यावश्यक है । |
| + | |
| + | की वन्दना से शुरु होना चाहिये । पूजन करना शुद्ध एवं अवरोध - शिक्षक ही प्रमुख रूप से इसमें अवरोध |
| + | |
| + | सुस्वर में वन्दना करना । वन्दना मे शिक्षक, मुख्याध्यापक, .. है । येन केन प्रकारेण इसे मुख्याध्यापक ही दूर को । |
| + | |
| + | उपस्थित अतिथि एवं अभिभावकों को भी सम्मिलित करें । |
| + | |
| + | ४. वन्दना |
| + | |
| + | शैक्षिकमूल्य - सरस्वती वन्दना में संगीत, संस्कृत. '*ः योगाभ्यास |
| + | |
| + | और योग तीनों बातों का संयोग होता है । स्थिरता नित्य वंदना के बाद १० मिनिट प्रार्थना कक्ष में ही |
| + | |
| + | अनुशासन संयम आदि संस्कार होते है । योगाभ्यास हो । योगाभ्यास अर्थात् केवल आसन प्राणायाम |
| + | |
| + | श्५६्द |
| + | |
| + | � |
| + | |
| + | ............. page-173 ............. |
| + | |
| + | पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ |
| + | |
| + | ही नहीं । अनेक प्रकार से इसका अभ्यास हो सकता है । |
| + | |
| + | शैक्षिक मूल्य - छात्रों की ग्रहणशक्ति, धारणाशक्ति |
| + | |
| + | बढ़ती है उसका प्रयोग और मापन करके देखे । |
| + | |
| + | अवरोध - शिक्षक को इस विषय मे रुचि और |
| + | |
| + | महत्त्व कम रहता है, समझ कम और श्रम ज्यादा होते है । |
| + | |
| + | उपाय - योग्य एवं जानकार व्यक्ति से इसे ठीक से |
| + | |
| + | समझ ले, अभिभावकों से भी अनुकूलता प्राप्त करे । |
| + | |
| + | ८... साजसज्ा : |
| + | |
| + | नियमित रूप से भले अल्पमात्रा मे साजसज्जा अवश्य |
| + | |
| + | करे । सभी चीजे यथास्थान रखना वर्ग मे गुलदस्ता सजाना |
| + | |
| + | और अन्य कई प्रकार हो सकते है । |
| + | |
| + | शैक्षिक मूल्य - कलागुणों में वृद्धी, सौन्दर्य दूष्ठी बढती |
| + | |
| + | है, कल्पकता का आनंद एवं उत्साह वर्धन होता है । |
| + | |
| + | इस काम का नियोजन व पालन व्यवस्थित करना |
| + | |
| + | अन्यथा साजसज्जा कम और गडबड ज्यादा जैसा होगा । |
| + | |
| + | ९. गुरुसेवा गुरु वन्दना : |
| + | |
| + | आचार्यों को आदर देना, उनकी सेवा करना, गुरु |
| + | |
| + | निन््दा उपहास न करना । |
| + | |
| + | १०, भोजन : |
| + | |
| + | मध्यावकाश को भोजन के रूप में यह विद्यालयों में |
| + | |
| + | होने वाली नित्य गतिविधि है । भोजन बडा संस्कार है । |
| + | |
| + | अन्न से शरीर और मन की पुष्ठी होती है । इस विषय में |
| + | |
| + | विस्तृत विवेचन मध्यावकाश का भोजन इस प्रश्नावली में |
| + | |
| + | किया है । |
| + | |
| + | पाँच छ घण्टे के विद्यालय में ऐसी गतिविधियाँ संभव |
| + | |
| + | है । उसके लिए खर्च अधिक नहीं आता । कल्पकता एवं |
| + | |
| + | उत्कृष्ट योजकता मात्र आवश्यक है। मानसिकता भी |
| + | |
| + | आवश्यक है । आज विद्यालयों में ये गतिविधियाँ करवाना |
| + | |
| + | झंझट, बोझ भी लग सकता है । परन्तु भारतीय शिक्षा का |
| + | |
| + | प्रयोग करना है तो सब समझकर करना । छात्रों को इनका |
| + | |
| + | अच्छा परिणाम मिलेगा । शिक्षक एवं अभिभावकों को |
| + | |
| + | छात्रो के व्यवहार में अनुकूल परिवर्तन जरूर दिखेगा । |
| + | |
| + | श्प७ |
| + | |
| + | शुद्ध पढ़ने पढ़ाने के अतिरिक्त अनेक बातें ऐसी हैं |
| + | |
| + | जो पढाई की सहयोगी के रूप में विद्यालयों में होती है । |
| + | |
| + | इनका शैक्षिक दृष्टि से विचार किया जाना चाहिये क्योंकि |
| + | |
| + | इनका सीधा सम्बन्ध पढ़ाई से है । |
| + | |
| + | १, प्रार्थना |
| + | |
| + | प्रार्थथा से किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ होना |
| + | |
| + | भारत में केवल स्वाभाविक ही नहीं तो अनिवार्य माना |
| + | |
| + | गया है । हमने कल्याणकारी सभी बातों को देवता का |
| + | |
| + | स्वरूप दिया है। यहाँ तक की पानी को जलदेवता |
| + | |
| + | अथवा वरुण देवता, अग्नि को अग्थिदेवता, वायु को |
| + | |
| + | वायुदेवता, पृथ्वी को पृथ्वीदेवता कहा है | पृथ्वी को तो |
| + | |
| + | हम माता ही कहते हैं। तब विद्या को, ज्ञान को हम |
| + | |
| + | देवता न मानें ऐसा हो ही नहीं सकता । विद्या की, वाणी |
| + | |
| + | की, कला की, संगीत की देवता सरस्वती विद्यालयों की |
| + | |
| + | अधिष्ठात्री देवी है । अध्ययन अध्यापन के रूप में हम |
| + | |
| + | उसकी उपासना करते हैं। ज्ञान के सभी लक्षणों को |
| + | |
| + | साकार रूप देकर हमने सरस्वती की प्रतिमा बनाई है । इस |
| + | |
| + | देवता की प्रार्थना से प्रारम्भ करना नितान्त आवश्यक है । |
| + | |
| + | परन्तु इसमें केवल कर्मकाण्ड नहीं चलेगा । कुछ बातें |
| + | |
| + | ध्यान देने योग्य हैं |
| + | |
| + | जो भी करें शाख्रशुद्ध करें । विद्याकेन्द्रों में अशास्त्रीय |
| + | |
| + | नहीं चलता । सुशोभन अवश्य करना चाहिये और |
| + | |
| + | वह पर्यावरण और सौन्दर्य दृष्टि को ध्यान में रखकर |
| + | |
| + | किया जाना चाहिये । |
| + | |
| + | फूल, दीप और अगरबत्ती का प्रयोग यदि करते हैं |
| + | |
| + | तो ध्यान में रखें कि अगरबत्ती सिन्थेटिक न हो, |
| + | |
| + | दीप जर्सी के घी का न हो और फूल कृत्रिम न |
| + | |
| + | हों । इस निमित्त से विद्यालय में अन्यान्य चित्रों पर |
| + | |
| + | जो प्लास्टिक के फूलों की मालायें चढ़ाई जाती हैं |
| + | |
| + | वे उतार दी जाय । सरस्वती को यह मान्य नहीं है । |
| + | |
| + | प्रार्थथा शुद्ध स्वर और शुद्ध उच्चारण से गाई जानी |
| + | |
| + | चाहिये । सरस्वती वाणी और संगीत दोनों की देवता |
| + | |
| + | है । बेसूरा गायन, बेसूरे और बेढब वाद्य और बेताल |
| + | |
| + | � |
| + | |
| + | ............. page-174 ............. |
| + | |
| + | वादन, चिछ्ठा चिक्लाकर गाना, गलत |
| + | |
| + | उच्चारण करना उसे मान्य नहीं है। वह इसे क्षमा |
| + | |
| + | नहीं करेगी । कृपा करने की तो बात ही दूर की है । |
| + | |
| + | ०... प्रार्थना सभा का वातावरण पवित्र होना भी उतना |
| + | |
| + | ही आवश्यक है । यदि हम कर सकें तो प्रार्थनाकक्ष |
| + | |
| + | में प्रार्थना के अलावा मौन रहना, अन्य किसी प्रकार |
| + | |
| + | की बातें नहीं करना भी होना चाहिये । अधिकांश |
| + | |
| + | विद्यालयों में विद्यालय का प्रारम्भ सभा से होता |
| + | |
| + | है । जिसमें सूचनायें, समाचार वाचन, पंचांग कथन, |
| + | |
| + | किसी विद्यार्थी या कक्षा की प्रस्तुति, शिक्षक द्वारा |
| + | |
| + | प्रेरक उदूबोधन होता है और इस सभा का एक अंग |
| + | |
| + | प्रार्थथा है। यह विद्यालय के कामकाज का |
| + | |
| + | उपयोगितावादी दृष्टिकोण है जिससे प्रार्थना का |
| + | |
| + | महत्त्व कम हो जाता है । |
| + | |
| + | ०". एक बात विशेष उल्लेखनीय है । कई विद्यालयों में |
| + | |
| + | wet केवल विद्यार्थियों के लिये होती है । कुछ |
| + | |
| + | विद्यालय ऐसे हैं जहाँ शिक्षकगण प्रार्थना में सहभागी |
| + | |
| + | होता है परन्तु लगभग एक भी विद्यालय ऐसा नहीं |
| + | |
| + | है जहाँ सेवक, कार्यालयीन कर्मचारी, या उसी समय |
| + | |
| + | उपस्थित अभिभावक प्रार्थना में सम्मिलित होते हों । |
| + | |
| + | यह अवश्य आश्चर्यकारक है । |
| + | |
| + | ०... और एक आश्चर्यकारक बात यह है कि |
| + | |
| + | महाविद्यालय और विश्वविद्यालय ऐसे विद्याकेन्द्र हैं |
| + | |
| + | जहाँ प्रार्थना अनिवार्य या आवश्यक नहीं मानी |
| + | |
| + | जाती । अपवाद स्वरूप ही कहीं प्रार्थना होती |
| + | |
| + | दिखाई देती है । |
| + | |
| + | ०... सरकारी या गैरसरकारी शिक्षाविभाग के कार्यालयों या |
| + | |
| + | संस्थानों में भी प्रार्थना का प्रचलन नहीं है । प्रार्थना |
| + | |
| + | करना मानो धर्म निरपेक्ष देश में बच बच कर करने |
| + | |
| + | का विषय बन गया है । इस विषय को गम्भीरता से |
| + | |
| + | लेने की आवश्यकता है । |
| + | |
| + | २. संकल्प |
| + | |
| + | विद्यालयों को यह परिचित नहीं है परन्तु भारत में |
| + | |
| + | हर शुभ कार्य के प्रारम्भ में संकल्प किया जाता है जिसमें |
| + | |
| + | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम |
| + | |
| + | स्थान, काल, उद्देश्य आदि का उच्चारण किया जाता है । |
| + | |
| + | यह परिचित नहीं होने का एक कारण यह भी है कि इस |
| + | |
| + | संकल्प में वर्णित सन्दर्भ भूगोल, कालगणना आदि की |
| + | |
| + | भारतीय संकल्पना के अनुसार हैं और विद्यालयों में पढाई |
| + | |
| + | जानेवाली इतिहास और भूगोल की बातें कुछ और हैं । |
| + | |
| + | परन्तु विट्रज्जनों को इस बात का विचार करना चाहिये |
| + | |
| + | और भारतीय शास्त्रीय तथा सांस्कृतिक परम्पराओं को हम |
| + | |
| + | पुनः किस प्रकार स्थापित कर सकते हैं इसका विचार |
| + | |
| + | करना चाहिये। यह संकल्प संस्कृत में होता है। |
| + | |
| + | व्यावहारिक उद्देश्यों से उसे हिन्दी या अपनी अपनी भाषामें |
| + | |
| + | अनुदित किया जा सकता है । |
| + | |
| + | ३८ यज्ञ |
| + | |
| + | भारत की संस्कृति यज्ञसंस्कृति है । सृष्टि और समष्टि |
| + | |
| + | के लिये आवश्यक त्याग करना और उन्हें सन्तुष्ट करना ही |
| + | |
| + | यज्ञ है। ना समझ लोग इसे कुछ उपयोगी पदार्थों को |
| + | |
| + | जलाना कहते हैं। यज्ञ के सांस्कृतिक और भौतिक |
| + | |
| + | वैज्ञानिक खुलासे तो अनेक हैं परन्तु उन्हें ये खुलासे |
| + | |
| + | जानने का धैर्य नहीं होता और मानने का साहस नहीं |
| + | |
| + | होता । परन्तु जानकार और समझदार लोगों ने विचार कर |
| + | |
| + | लोगों को समझाना चाहिये । विशेषकर विद्यालयों में तो |
| + | |
| + | इसका प्रारम्भ हो ही सकता है । |
| + | |
| + | ४. मध्यावकाश का भोजन अथवा अल्पाहार |
| + | |
| + | लगभग सभी विद्यालयों में यह होता ही है। इसे |
| + | |
| + | संस्कृति और सभ्यता की गतिविधि बनाना चाहिये । |
| + | |
| + | भोजन कहीं भी बैठकर कैसे भी करने की बात नहीं है । |
| + | |
| + | उसे व्यवस्थित ढंग से करना चाहिये । |
| + | |
| + | इन बातों पर विचार किया जा सकता है |
| + | |
| + | ०. भोजन करने का स्थान पवित्र और साफ हो । |
| + | |
| + | ०... जूते पहनकर भोजन न किया जाय । |
| + | |
| + | ०... विद्यालय में भोजन करने का स्थान निश्चित किया |
| + | |
| + | जाय । यह बड़े हॉल जैसा कक्ष भी हो सकता है |
| + | |
| + | जहाँ सब एक साथ बैठें या अपने अपने कक्षाकक्ष |
| + | |
| + | के बाहर का बरामदा हो जहाँ छोटे समूहों में बैठा |
| + | |
| + | � |
| + | |
| + | ............. page-175 ............. |
| + | |
| + | पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ |
| + | |
| + | जाय या मैदानमें वृक्ष के नीचे भी हो जहाँ फिर छोटे |
| + | |
| + | समूहों में बैठा जाय । मैदान में या वृक्ष के नीचे |
| + | |
| + | गोबर से लीपी भूमि स्वास्थ्य और स्वच्छता की |
| + | |
| + | दृष्टि से बहुत लाभदायी होती है । |
| + | |
| + | भोजन से पूर्व हाथ पैर धोने का रिवाज बनाया |
| + | |
| + | जाय | |
| + | |
| + | भोजन सीधे डिब्बे से नहीं अपितु छोटी थाली में |
| + | |
| + | किया जाय । भोजन के पात्र विद्यालय में ही रखे |
| + | |
| + | जा सकते हैं । |
| + | |
| + | गोबर से लीपी भूमि पर सीधा बिना आसन के बैठा |
| + | |
| + | जा सकता है परन्तु अन्यत्र बिना आसन के नहीं |
| + | |
| + | बैठने का आग्रह होना चाहिये । |
| + | |
| + | भोजनमन्त्र बोलकर ही भोजन किया जाय । |
| + | |
| + | गोग्रास निकालकर ही भोजन किया जाय । |
| + | |
| + | आसपास के लोगों के साथ बाँटकर भोजन किया |
| + | |
| + | जाय | |
| + | |
| + | थाली में जूठन नहीं छोड़ना अनिवार्य बनाया जाय । |
| + | |
| + | भोजन के बाद हाथ धोना, कुछ्ला करना, भोजन के |
| + | |
| + | स्थान की सफाई करना, भोजन के पात्र साफ करना |
| + | |
| + | ah ver व्यवस्थित रखना सिखाया जाय । |
| + | |
| + | अधिक चर्चा इसी ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है । |
| + | |
| + | ५. राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का गायन |
| + | |
| + | “जन गण मन हमारा राष्ट्रगीत है और “वन्दे मातरम्' |
| + | |
| + | राष्ट्रगान । प्रतिदिन दोनों का गायन होना चाहिये । “वन्दे |
| + | |
| + | मातरमू पूर्ण गाना चाहिये । प्रार्थथा की तरह ही शुद्ध |
| + | |
| + | स्वर, शुद्ध उच्चारण, ताल और गाने की, खड़े रहने की |
| + | |
| + | सही पद्धति का आग्रह अपेक्षित है । पूर्ण कण्ठस्थ होना |
| + | |
| + | भी अपेक्षित ही है । |
| + | |
| + | ६. सर्वेभवन्तु सुखिन: |
| + | |
| + | जिस प्रकार अध्ययन प्रार्भ करने से पूर्व संकल्प |
| + | |
| + | करते हैं उसी प्रकार आज का अध्ययन पूर्ण होने के बाद |
| + | |
| + | सब के मंगल की कामना करनी चाहिये । अतः सर्वे |
| + | |
| + | wag Ghat: से विद्यालय पूर्ण होना अच्छा है । |
| + | |
| + | 848 |
| + | |
| + | इतनी बातें तो लगभग सर्वत्र |
| + | |
| + | होती हैं, जो नहीं होतीं वे भी हो सकती हैं । परन्तु और |
| + | |
| + | एक दो व्यवस्थाओं की बातें इनमें जोड़ी जा सकती हैं । |
| + | |
| + | १, घर जाने से पूर्व अपने अपने कक्ष की पूर्ण |
| + | |
| + | स्वच्छता और व्यवस्था करके जाना । इसमें झाड़ू |
| + | |
| + | पोंछा, कक्षा के श्यामफलक का लेखन, सारी साधन |
| + | |
| + | सामग्री की व्यवस्था आदि बातें हो सकती हैं । |
| + | |
| + | २... प्रार्थना कक्ष, बरामदे, आँगन, मैदान, कार्यालय के |
| + | |
| + | कमरे आदि की स्वच्छता करके जाना । |
| + | |
| + | 3. सूचना फलक, सुशोभन के स्थान, फलक लेखन, |
| + | |
| + | विशेष बातें, सुविचार आदि काम करना । |
| + | |
| + | ६... बगीचे की सेवा करना । |
| + | |
| + | विद्यालय अपनी सुविधा और आवश्यकता के |
| + | |
| + | अनुसार इस सूची को घटा बढ़ा सकता है । |
| + | |
| + | इन सभी बातों का उद्देश है |
| + | |
| + | विद्यालयीन शिक्षा को जीवमान बनाना । विद्यालय |
| + | |
| + | कहने से महाविद्यालय और विश्वविद्यालय को भी |
| + | |
| + | गिनना है । |
| + | |
| + | विद्यालय के साथ पारिवारिक भाव और जिम्मेदारी |
| + | |
| + | का भाव जगाना । यह हमारा विद्यालय है और हमे |
| + | |
| + | ं |
| + | |
| + | उसे स्वच्छ और व्यवस्थित रखना है ऐसा सबको |
| + | |
| + | लगना चाहिये । |
| + | |
| + | इन सभी गतिविधियों में विद्यार्थी, शिक्षक और |
| + | |
| + | कार्यालयीन लोग भी जुड़ें तभी पूर्ण विद्यालय |
| + | |
| + | परिवार बनता है । |
| + | |
| + | अपनी संस्कृति के साथ जुड़ना भी इन गतिविधियों |
| + | |
| + | का उद्देश्य है । हर गतिविधि को कर्मकाण्ड बनने से |
| + | |
| + | रोककर ज्ञाननिष्ठ और भावनात्मक बनाना चाहिये । |
| + | |
| + | कक्षाकक्ष के विज्ञान, गणित, अंग्रेजी जैसे विषयों से |
| + | |
| + | भी इनका महत्त्व अधिक है । |
| + | |
| + | इन गतिविधियों को मूल्यांकन, स्पर्धा या अंकों के |
| + | |
| + | साथ जोड़ने की गलती नहीं करनी चाहिये । ऐसा |
| + | |
| + | किया तो इनसे अधिक अंकों की चिन्ता होने लगेगी |
| + | |
| + | और हर बात कृत्रिम हो जायेगी । |
| + | |
| + | श्, |
| + | |
| + | � |
| + | |
| + | ............. page-176 ............. |
| + | |
| + | विद्यालय में पुस्तकालय क्यों होना चाहिये ? |
| + | |
| + | विद्यालय के पुस्तकालय में पुस्तकों की संख्या |
| + | |
| + | कितनी होनी चाहिये ? |
| + | |
| + | ये पुस्तके कैसी हों ? कितने प्रकार की हों ? |
| + | |
| + | पुस्तकालय के साथ वाचनालय भी क्यों होना |
| + | |
| + | चाहिये ? |
| + | |
| + | पुस्तकालय एवं वाचनालय का उपयोग छात्र एवं |
| + | |
| + | आचार्य कर सर्के इसलिये क्या क्या व्यवस्थायें |
| + | |
| + | करनी चाहिये ? |
| + | |
| + | पुस्तकालय एवं वाचनालय का उपयोग करने के |
| + | |
| + | लिये छात्रों को कैसे प्रेरित कर सकते हैं ? |
| + | |
| + | एक एक कक्षा का कशक्षापुस्तकालय कैसे |
| + | |
| + | बनायें ? |
| + | |
| + | पुस्तकालय में पुस्तकों के साथ साथ और क्या |
| + | |
| + | क्या हो सकता है ? |
| + | |
| + | पुस्तकालय एवं वाचनालय को केन्द्र में रखकर |
| + | |
| + | किस प्रकार के कार्यक्रम अथवा गतिविधियों की |
| + | |
| + | रचना हो सकती है ? |
| + | |
| + | पुस्तकालय का उपयोग अभिभावक भी कर सर्के |
| + | |
| + | ऐसी व्यवस्था किस प्रकार से कर सकते हैं ? |
| + | |
| + | १०, |
| + | |
| + | ग्रत्यक्ष वार्तालाप से प्राप्त उत्तर |
| + | |
| + | इस संबंध में जो प्रश्नावली दो तीन लोगों को भरवाने |
| + | |
| + | के लिए भेजी गयी वे नियोजित समय से प्राप्त नहीं हुई । |
| + | |
| + | अतः अनेक लोगों से प्रत्यक्ष बातचीत करके उनके उत्तर |
| + | |
| + | और अनुभव यहा सम्मिलित किये है । |
| + | |
| + | अध्ययन अध्यापन के लिए अत्यंत उपयुक्त एवं पूरक |
| + | |
| + | भूमिका पुस्तकालय की होती है । ग्रंथ एवं पुस्तके ज्ञाननिधी |
| + | |
| + | है। जहा ज्ञान की साधना होती है वहाँ पुस्तकालय |
| + | |
| + | अनिवार्य है । विद्यालय का स्तर प्राथमिक, माध्यमिक |
| + | |
| + | अथवा उच्चशिक्षा भले ही हो स्तर के अनुसार पुस्तकालयों |
| + | |
| + | में पुस्तकों की संख्या रहे । विद्यार्थी संख्या तथा पुस्तकों की |
| + | |
| + | संख्या इनका अनुपात कम से कम १:१० होना चाहिए । |
| + | |
| + | विद्यालय में पुस्तकालय |
| + | |
| + | १६० |
| + | |
| + | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम |
| + | |
| + | महाविद्यालयों में पुस्तकालय समृद्ध होना चाहिए कारण वहाँ |
| + | |
| + | अध्यापन की अपेक्षा भारतीय भाषाओं में अध्यात्म, दर्शन, |
| + | |
| + | धर्म-संस्कृति, राष्ट्र, विभिन्न विचारधारायें, इतिहास, भूगोल, |
| + | |
| + | विज्ञान आदि की पुस्तकें, कोष, एटलस, बालसाहित्य, |
| + | |
| + | दृश्य-श्राव्य सामग्री आदि सभी प्रकार की पुस्तकें आवश्यक |
| + | |
| + | होंगी । पुस्तकालय में बैठकर पढ़ सके इस प्रकार की |
| + | |
| + | पुस्तकालय की व्यवस्था होनी चाहिये । छात्र शिक्षक सभी |
| + | |
| + | आराम से पढ़ सके ऐसी स्वना व स्थान हो तो अच्छा । |
| + | |
| + | दैनिक वृत्तपत्र पाक्षिक मासिक शैक्षिक पत्रिका्ें पर्याप्त मात्रा |
| + | |
| + | मे उपलब्ध हो । पुस्तकालयों में वेद उपनिषद आदि |
| + | |
| + | साहित्य अवश्य हो । पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है अपितु |
| + | |
| + | हमारी संस्कृति का दर्शन है । इनका दर्शन छात्र इस आयु में |
| + | |
| + | करेंगे तो आगे जाकर इनका अध्ययन भी होगा । विषय के |
| + | |
| + | शिक्षक छात्रों को अपने विषय की संदर्भ पुस्तकों के नाम |
| + | |
| + | बताए और उन्हें पढने के लिए प्रेरित करे । एक विद्यालय |
| + | |
| + | के ग्रंथपाल स्वयं सभी विषयों का अध्ययन करते थे और |
| + | |
| + | वर्गशः उपयुक्त संदर्भ साहित्य से छात्रों को परिचित करवाते |
| + | |
| + | थे । वाचनालय में खरिदी हुई नवीन पुस्तकों के परिचय |
| + | |
| + | सूचना फलक पर लिखते और छात्रों को वाचन हेतु प्रेरित |
| + | |
| + | व आकर्षित करते थे । |
| + | |
| + | पुस्तकों को कब्हर चढाना, पुस्तकालय की स्वच्छता |
| + | |
| + | एवं पुर्नरचना करना, पुस्तकों की मरम्मत करना आदि कार्यों |
| + | |
| + | में बड़े छात्रों का सहयोग लेने से उनकी वाचन की ओर |
| + | |
| + | उत्कंठा जाग्रत होती है । ज्ञान प्राप्ति की भूख निर्माण होती |
| + | |
| + | है । कक्षाकक्ष का स्वतंत्र पुस्तकालय हो ऐसी भी व्यवस्था |
| + | |
| + | कर सकते हैं । इसलिए चरित्र, कहानी, काव्य आदि प्रकार |
| + | |
| + | की पुस्तकें घर घर से भेंट रूप में छात्र प्राप्त कर और अपनी |
| + | |
| + | कक्षा का वर्ग पुस्तकालय तैयार करे । अपने जन्मदिन पर |
| + | |
| + | कुछ पुस्तकें भेंट दें । बड़े बड़े शहरों में बड़े बड़े पुस्तकालय |
| + | |
| + | होते हैं । वहाँ वाचक वर्ग अत्यधिक कम है । उनसे |
| + | |
| + | सहयोग लेकर हम वर्गपुस्तकालय के लिए छात्रों के लायक |
| + | |
| + | पुस्तकें लाना और वर्ष के बाद पुनः लौटाना ऐसा करने से |
| + | |
| + | विद्यालय का वर्ग पुस्तकालय नित्यनूतन रहेगा । एक |
| + | |
| + | � |
| + | |
| + | ............. page-177 ............. |
| + | |
| + | पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ |
| + | |
| + | विद्यालय ने यह प्रयोग बहुत सफलता पूर्वक किया | |
| + | |
| + | पुस्तकों के साथ साथ सी.डी., इ लर्निंग सेवा भी हो सकती |
| + | |
| + | है। गाँव के वाचनालयों का स्थान पुनर्जीवित करने हेतु |
| + | |
| + | ग्रंथयात्रा, ग्रंथप्रदर्शनी, लेखकों से प्रत्यक्ष वार्तालाप जैसे |
| + | |
| + | प्रकट कार्यक्रमों का आयोजन करें । |
| + | |
| + | ज्ञान प्रबोधिनी निगडी के विद्यालय में छात्रों के लिए |
| + | |
| + | समृद्ध एवं चैतन्यमय वाचनालय है । छात्रों के लिए वह |
| + | |
| + | निःशुल्क है और नगरवासियों के लिए सायंकाल के समय |
| + | |
| + | Beh ASIC चलता है । यह एक यशस्वी प्रयोग है । |
| + | |
| + | विमर्श |
| + | |
| + | पुस्तकालय का नाम पढ़ते ही गौरवमयी ज्ञानसृष्टि |
| + | |
| + | कल्पना चक्षु के समक्ष अवतरित हो जाती है । जब से |
| + | |
| + | भगवान गणेशने लिपि का आविष्कार किया, ज्ञान लिखित |
| + | |
| + | रूप में सुरक्षित होने लगा । अब तक श्रुति और श्रुतज्ञान की |
| + | |
| + | महिमा थी अब पुस्तकों की महिमा होने लगी । पुस्तक धीरे |
| + | |
| + | धीरे ज्ञान का प्रतीक बन गया । पुस्तक ज्ञान के समान |
| + | |
| + | पवित्र माना जाने लगा और उसका सम्मान होने लगा । |
| + | |
| + | आज भी पुस्तक को ज्ञानसम्पदा के रूप में ही सम्माननित |
| + | |
| + | किया जाता है । |
| + | |
| + | पुस्तकालय की पवित्रता बनाये रखना |
| + | |
| + | विद्यालय का पुस्तकालय इसी कारण से एक पवित्र |
| + | |
| + | स्थान है । प्रथम आवश्यकता उसकी पवित्रता की रक्षा |
| + | |
| + | करने की है । इस दृष्टि से कुछ नियम बनाने चाहिये । |
| + | |
| + | ०... पुस्तकालय में जूते पहनकर प्रवेश नहीं करना |
| + | |
| + | चाहिये । |
| + | |
| + | पुस्तकालय स्वच्छ रखना चाहिये । पुस्तकालय की |
| + | |
| + | पुस्तकों, आल्मारियों, अन्य फर्नीचर, सम्पूर्ण कक्ष को |
| + | |
| + | स्वच्छ रखने का काम विद्यार्थियों और शिक्षकों ने |
| + | |
| + | सेवा के रूप में करना चाहिये, नौकरों द्वारा नहीं |
| + | |
| + | करवाना चाहिये । |
| + | |
| + | पुस्तकालय में खाना, चाय पीना, शोर मचाना, |
| + | |
| + | अशिष्ट बातें करना, अशिष्ट भाषा प्रयोग करना वर्जित |
| + | |
| + | होना चाहिये । |
| + | |
| + | Fak |
| + | |
| + | पुस्तकालय में ज्ञान की देवी |
| + | |
| + | सरस्वती की प्रतिमा और ज्ञान के आदि ग्रन्थ वेद |
| + | |
| + | पूजा स्थान में रखने से पुस्तकालय का सम्मान होता |
| + | |
| + | है । वातावरण और मानसिकता पवित्र बनते हैं । |
| + | |
| + | पुस्तकालय का सम्मान करने का दूसरा आयाम है |
| + | |
| + | उसका उपयोग करना । विद्यालय के मुख्याध्यायक से लेकर |
| + | |
| + | छोटी से छोटी कक्षा के छोटे से छोटे विद्यार्थी तक सभी |
| + | |
| + | लोगों में वाचन संस्कृति का विकास होना चाहिये । पुस्तक |
| + | |
| + | पढने का रस निर्मिण करना शिक्षाक्रम का अत्यन्त |
| + | |
| + | महत्त्वपूर्ण आयाम है । |
| + | |
| + | इस दृष्टि से सभी आयु वर्ग के विद्यार्थियों के लायक |
| + | |
| + | पुस्तकें पुस्तकालय में होनी चाहिये । शिशुओं के लिये |
| + | |
| + | चित्रपुस्तिकाओं से लेकर देशविदेश के लेखकों की विभिन्न |
| + | |
| + | विषयों की. गम्भीर अध्यनय करने लायक पुस्तकें |
| + | |
| + | पुस्तकालय में होनी चाहिये । |
| + | |
| + | पढ़ने की रुचि निर्माण करना |
| + | |
| + | विद्यार्थियों में पुस्तक पढ़ने की रुचि निर्माण हो इस |
| + | |
| + | दृष्टि से कुछ इस प्रकार विशेष प्रयास करने चाहिये । |
| + | |
| + | ०". कक्षा में पुस्तकों का पर्विय करवा कर उन्हें पढ़ने |
| + | |
| + | हेतु प्रेरित करना । पढ़ी जाने वाली पुस्तकों के |
| + | |
| + | सम्बन्ध में चर्चा करना । |
| + | |
| + | पुस्तकों की प्रदर्शनी आयोजित करना । सबको उसे |
| + | |
| + | देखने का अवसर देना । |
| + | |
| + | नगर में लगने वाले पुस्तक मेलों में जाने के लिये |
| + | |
| + | विद्यार्थियों को प्रेरित करना । पुस्तकों की खरीदी को |
| + | |
| + | प्रोत्साहित करना । |
| + | |
| + | समय समय पर वाचन शिबिरों का आयोजन करना |
| + | |
| + | और समूहवाचन का भी प्रयोग करना । |
| + | |
| + | छोटे छोटे गटों में एक पढ़े और शेष सुनें ऐसी योजना |
| + | |
| + | करना । बारी बारी से सब पढ़ें । |
| + | |
| + | घर में दादाजी या दादीमाँ को पढकर सुनाने का |
| + | |
| + | गृहकार्य देना । आदत विकसित होने के बाद गृहकार्य |
| + | |
| + | देने की आवश्यकता न रहे यह लक्ष्य रखना । |
| + | |
| + | � |
| + | |
| + | ............. page-178 ............. |
| + | |
| + | भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम |
| + | |
| + | ०... आसपास के लोग पढ़ते होंगे तो... की दृश्यश्राव्य सामग्री का प्रचलन बढा है। ये अधिक |
| + | |
| + | विद्यार्थियों को पढ़ने की प्रेरणा अपने आप मिलेगी । .... प्रभावी हैं ऐसा भी बोला जाता है । परन्तु अनुभवी और |
| + | |
| + | ०... विद्यार्थियों को पढ़ने हेतु समय मिले इस दृष्टि से अन्य... जानकार लोगों का कहना है कि स्थायी प्रभाव की दृष्टि से |
| + | |
| + | गृहकार्य या क्रियाकलाप कम करना । यह सामग्री पुस्तकों का स्थान नहीं ले सकती । पुस्तकों से |
| + | |
| + | तीसरा मुद्दा है पुस्तकों का चयन और व्यवस्था इस... अधिक प्रभावी प्रत्यक्ष वार्तालाप, प्रत्यक्ष शिक्षा या प्रत्यक्ष |
| + | |
| + | दृष्टि से इस प्रकार विचार करना चाहिये... भाषण ही हो सकता है । अन्य सभी बातों का क्रम बाद में |
| + | |
| + | ०... विद्यालय का एक केन्द्रीय पुस्तकालय होना चाहिये ही आता है। इस दृष्टि से पुस्तकों का महत्त्व स्थापित |
| + | |
| + | करना चाहिये । |
| + | |
| + | उसी प्रकार प्रत्येक कक्षा का भी पुस्तकालय होना |
| + | |
| + | चाहिये । कक्षा में छात्रों की संख्या जितनी पुस्तकें at पुस्तकों का जतन करना |
| + | |
| + | उसमें होनी ही चाहिये । जिससे वाचन के कालांश में अन्तिम मुद्दा है पुस्तकों का जतन करने का । कुछ |
| + | |
| + | सबको पढ़ने के लिये स्वतन्त्र पुस्तक मिल सके | |
| + | |
| + | पुस्तकें सभी विद्यार्थियों इस प्रकार से विचार करना चाहिये... |
| + | |
| + | <nowiki>*</nowiki>.. कक्षा पुस्तकालय की सभी पुस्तकें सभी विद्यार्थियों ने _ ०»... अपनी पदों A) aterert पिया चाहिये | |
| + | |
| + | पढ़ी हुई हों ऐसी अपेक्षा करनी चाहिये । ०... पुस्तकों में चित्रविचित्र आकृतियाँ बनाकर उन्हें खराब |
| + | |
| + | ०... कक्षा में पढ़ाई हेतु जो विषय और पाठ्यक्रम होता है नहीं करना चाहिये । |
| + | |
| + | उससे सम्बन्धित पुस्तकें कक्षा पुस्तकालय में होनी. ०... पुस्तकों को व्यवस्थित रखना सिखाना चाहिये । वे |
| + | |
| + | चाहिये ताकि उन्हें पढ़ने से विद्यार्थियों की समझ फटे नहीं, उनका बन्धन शिथिल न हो ऐसी सावधानी |
| + | |
| + | स्पष्ट हो और जानकारी ae | रखना सिखाना चाहिये । |
| + | |
| + | ०... कक्षाकक्ष के पुस्तकालय के समान ही प्रत्येक घरमें .. *.. पुस्तकों को आवरण चढाना सिखाना चाहिये । |
| + | |
| + | पुस्तकालय a tar ame ear चाहिये । शिक्षित ° Ms पुस्तकालय को व्यवस्थित रखने का काम घर |
| + | |
| + | व्यक्ति के घर की शोभा पुस्तकें ही होती हैं । शिक्षित में रहनेवाले विद्यार्थियों का होना चाहिये । उन्हें यह |
| + | |
| + | लोगों का व्यसन पुस्तक पढ़ना होता है । घर में बड़ों सिखाने का काम घर सकी बड़े लोगों का है । हि |
| + | |
| + | और छोटों सबके लिये पुस्तकें होनी चाहिये । सब... *... विद्यालय के पुस्तकों की स्वच्छता, सम्हाल, उन |
| + | |
| + | साथ मिलकर पढते हों ऐसी कल्पना भी सम्य है । आवरण चढ़ाने का काम विद्यार्थियों की शिक्षा का |
| + | |
| + | एक अंग होना चाहिये । |
| + | |
| + | ०... विद्यालय के सभी पुरस्कार पुस्तक के रूप में देने का पंजिका पुस्तकों |
| + | |
| + | Sens दे © पंजिका के साथ पुस्तकों का मिलान करने का काम |
| + | |
| + | प्रचलन बढ़ाना चाहिये । |
| + | |
| + | मे जब पुस्तकें आयें उनकी भी विद्यार्थियों को सिखाना चाहिये । |
| + | |
| + | <nowiki>*</nowiki>. विद्यालय में जब भी नई पुस्तकें आयें उनकी . |e से आनेवाले अतिथियों को पुस्ताकालय |
| + | |
| + | सम्मानपूर्वक शोभायात्रा निकाली जाय, पूजा की जाय “दिखाया, Sees aoe सता |
| + | |
| + | और बाद में पुस्तकालय में स्थापित की जाय । विद्यार्थियों को आना चाहिये । |
| + | |
| + | सम्मान करने के और तरीके भी सोचे जाय । ज्ञानजगत में जिस प्रकार बहुश्नुत होने की महिमा है |
| + | |
| + | ° एक खाने का पदार्थ, पहनने का वख्र, खेलने की. उसी प्रकार बहुपाठी होने का भी महत्त्व है। विद्यार्थी |
| + | |
| + | वस्तु न खरीदकर पुस्तक खरीदी जाय इस के लिये... बहुपाठी बनें ऐसी सभी शिक्षकों और अभिभावकों की |
| + | |
| + | विद्यार्थियों को प्रेरित करना चाहिये । आकांक्षा होनी चाहिये । इस दृष्टि से हर प्रकार से सार्थक |
| + | |
| + | आजकल पुस्तकों के पर्याय के रूप में अनेक प्रकार... प्रयास करने चाहिये । |
| + | |
| + | BGR |
| + | |
| + | � |
| + | |
| + | ............. page-179 ............. |
| + | |
| + | Navigation menu |
| + | |
| + | British EnglishTsvoraTalkPreferencesWatchlistContributionsLog outPageDiscussionCreate New PageReadEditEdit sourceView historyUnwatch |