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दूसरा बिंदु यह है कि इस बात पर विचार किया जाय कि गृहकार्य हमेशा लिखित ही क्यों होना चाहिए । पढ़ाई केवल लिखकर नहीं होती है । पढ़ाई अनेक प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से होती है। अभिभावकों और शिक्षकों की यह भी पक्की धारणा बन गई है कि लिखना ही मुख्य कार्य है । ज्ञान कितना भी
 
दूसरा बिंदु यह है कि इस बात पर विचार किया जाय कि गृहकार्य हमेशा लिखित ही क्यों होना चाहिए । पढ़ाई केवल लिखकर नहीं होती है । पढ़ाई अनेक प्रकार की गतिविधियों के माध्यम से होती है। अभिभावकों और शिक्षकों की यह भी पक्की धारणा बन गई है कि लिखना ही मुख्य कार्य है । ज्ञान कितना भी
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मौखिक रूप से अवगत हो तो भी जबतक लिखा नहीं जाता तबतक वह अधूरा है, ऐसा माना जाता है । यह धारणा सही नहीं है । कर्मन्द्रियों की कुशलता, आत्मविश्वास, व्यवहारदक्षता, सद्धावना, विचारशीलता और आकलनक्षमता लिखित रूप में व्यक्त ही नहीं हो सकते । लिखित रूप में गृहकार्य करने के लिए इन बातों की कोई आवश्यकता नहीं होती । तो भी गृहकार्य लिखित स्वरूप का दिया जाता है । इसके पीछे बड़ा विचित्र कारण सुनने को मिलता है । शिक्षक कहते हैं कि लिखित गृहकार्य नहीं दिया तो छात्र ने गृहकार्य किया कि नहीं इसका पता कैसे चलेगा । पढ़ने के लिए दिया तो वे नहीं करने पर भी किया है, ऐसा कहेंगे । अभिभावकों को भी लिखित कार्य ही प्रमाण लगता है । यह तो अविश्वास का मामला हुआ । शिक्षक को छात्र पर या अभिभावकों को शिक्षकों पर विश्वास नहीं होता कि वे सच बोलेंगे या जिसका प्रमाण नहीं देना पड़ता ऐसा भी निश्चित रूप से करेंगे ही । इसलिए गृहकार्य से कोई अर्थ साध्य न होता हो तो भी लिखित गृहकार्य देने का प्रचलन हो गया है । अब तो यह बात चुभने वाली भी नहीं रह गई है ।
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यह ठीक तो नहीं है । इस विषय में विद्यालय ने अभिभावकों के साथ विश्वास का सम्बन्ध बनाना चाहिए । दोनों को यह ध्यान में लेना चाहिए की छात्र को ज्ञान प्राप्त होना महत्त्वपूर्ण है, कापी में लिखना नहीं । इसलिए पहली बात अविश्वास से और लिखित गृहकार्य से मुक्त होना है । इसका अर्थ यह नहीं है की लिखना सर्वथा निषिद्ध है । जहाँ आवश्यक है वहाँ लिखित अवश्य होना चाहिए । उदाहरण के लिए सुलेख ही पक्का करना हो तो लिखना ही चाहिए । वर्तनी सीखना हो तो लिखना ही चाहिए । लिखित अभिव्यक्ति लिखकर ही हो सकती है । गणित के कुछ सवाल लिखकर ही किये जाएंगे । अत: तात्पर्य समझकर लिखित गृहकार्य का प्रयोग कर सकते हैं ।
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इसी प्रकार से यह भी विचार करने लायक तथ्य है कि गृहकार्य आखिर दिया क्यों जाता है । कया विद्यालय में पढ़ाई करना पर्याप्त नहीं है ? यदि पर्याप्त नहीं है तो विद्यालय का समय ही क्यों नहीं बढ़ाया जाना चाहिए ? घर वापस आने के बाद पुनः पढ़ाई क्यों करनी चाहिए ? इसके विविध कारण हो सकते हैं । एक कारण यह हो सकता है कि अभी जो चलता है उतने समय से अधिक विद्यालय चलाना संभव नहीं है । इसके कई व्यावहारिक कारण हैं । छात्रों को एकसाथ इतना समय पढ़ाई करना सुविधाजनक नहीं होता । शारीरिक रूप से थकान हो जाना भी सम्भव है । भोजन की सुविधा विद्यालय में सम्भव नहीं होती है । अतः विद्यालय की पढ़ाई पाँच घंटे से अधिक नहीं हो सकती । बारह वर्ष से अधिक आयु के छात्रों के लिए छः घंटे की पढ़ाई भी हो सकती है परन्तु उससे अधिक नहीं ।
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अधिक महत्त्वपूर्ण विषय यह है कि विद्यालय के समय के अतिरिक्त औपचारिक पढ़ाई की आवश्यकता ही नहीं होनी चाहिए । वास्तव में दिन के चौबीस घंटों में औपचारिक पढ़ाई के साथ-साथ बहुत कुछ और भी करना होता है । व्यायाम, खेल, घर के काम, घर से बाहर के काम, दिनचर्या के आवश्यक कार्य आदि बहुत सारी बातों के लिए समय मिलना चाहिए । शिक्षा केवल विद्यालय की औपचारिक पढ़ाई में ही सीमित नहीं होती है । जीवन-व्यवहार के अन्य कार्य भी शिक्षा के ही अंग हैं । अत: पहले तो गृहकार्य के नाम पर औपचारिक पढ़ाई का ही समय बढ़ाना नहीं चाहिए । इस दृष्टि से गृहकार्य का स्वरूप बदलने की नितान्त आवश्यकता है |
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सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि विद्यालय की औपचारिक पढ़ाई को व्यावहारिक जीवन के साथ जोड़कर सार्थक बनाने वाले गृहकार्य के विषय में विचार करना चाहिए । यह गृहकार्य केवल लिखित नहीं हो सकता यह स्वाभाविक है । यदि लिखित नहीं तो यह कैसा होगा इसके कुछ उदाहरण यहाँ दिये जा सकते हैं ।
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१२. पाँचवीं के छात्रों को विद्यालय से घर जाते समय रास्ते में पड़ने वाली दुकानों के फ़लक अपनी कापी में लिखो । घर जाकर उनकी भाषा शुद्ध है कि नहीं यह जाँचो । यदि शुद्ध है तो दुकानदारों को अभिनन्दनपरक पत्र लिखो । यदि उनमें कोई अशुद्धि है तो उसे दूर कर शुद्ध करो और दुकानदार को उसकी उचित भाषा में सूचना दो । इस कार्य में समय जायेगा, सम्पर्क करना होगा, शब्दकोश देखना होगा, व्याकरण के नियम याद करने होंगे, पत्रलेखन करना होगा । कई बार ऐसे कामों को प्रोजेक्ट कहा जाता है । यदि विद्यालय में किया तो वह प्रोजेक्ट है, घर में किया तो गृहकार्य । इस प्रकार के गृहकार्य में भाषा का व्यावहारिक और शैक्षिक पक्ष समाविष्ट हो जाता है , केवल भाषाज्ञान के साथ-साथ अन्य व्यावहारिक पक्ष भी समझ में आते हैं ।
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घर के सभी कमरों का नाप निकालकर प्रत्येक का क्षेत्रफल कितना है, इसकी तालिका बनाने का गृहकार्य दे सकते हैं । इसी पद्धति से भूमिति विद्यालय में भी पढ़ाई जा सकती है ।
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घर का तीन या सात दिन का खर्च लिखकर उसका जोड़ करने का गणित गृहकार्य के रूप में दिया जा सकता है ।
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हमारे घर में कौन-कौन क्या-क्या काम करता है और घर के सभी सदस्यों का एक दिन कैसे बीतता है, इसका वर्णन कर निबंध लिखने को बता सकते हैं ।
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एक सप्ताह का अल्पाहार स्वयं बनाकर ले आने का गृहकार्य भी हो सकता है । उस पदार्थ का वर्णन, उसमें कया क्या सामाग्री प्रयुक्त हुई है और उसका पोषक मूल्य तथा सात्त्विकता कैसी है, इसका वर्णन करने को कहा जा सकता है । कोई गीत, संवाद, सूत्र आदि कंठस्थ करने का गृहकार्य भी दिया जा सकता है । यह सूची शिक्षक की मौलिकता से बहुत बड़ी हो सकती है । तात्पर्य यह है कि पढ़ी हुई, सीखी हुई बातों को व्यवहार में लागू करना आए, इस दृष्टि से गृहकार्य का स्वरूप बनाना चाहिए ।
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विद्यार्थी की जीवनचर्या का मुख्य कार्य अध्ययन करना है इस लिए उसकी सम्पूर्ण जीवनचर्या को अध्ययन के विषयों के अनुसार ढालना चाहिए । इस बात को ध्यान में रखकर      गृहकार्य की योजना करनी चाहिए ।
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==== गृहकार्य की जाँच कैसे करें ====
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जो बातें लिखित स्वरूप की होती हैं उनकी जाँच शिक्षक को करनी तो चाहिए ही, परंतु यह कार्य अत्यन्त परेशान करने वाला होता है । बहुत समय उसमें जाता है । उतना समय उसके लिए दिया जाय तो अध्ययन जैसी अन्य आवश्यक बातों के लिए समय नहीं रहता । कई स्थानों पर शिक्षकों के लिए कापियाँ जाँचने का कार्य अनिवार्य किया जाता है, परंतु यह अविश्वास के कारण होता है । शिक्षक जहाँ अधिक विश्वासपात्र होते हैं, वहाँ ऐसा अविश्वास नहीं होता । विश्वास के वातावरण में लिखित गृहकार्य और उसे जाँचने की अनिवार्यता नहीं होगी । तब लिखित कार्य जाँचने की वैकल्पिक व्यवस्था कर शिक्षक अधिक अध्ययन करने के लिए समय प्राप्त कर सकता है । लिखित गृहकार्य जाँचने के लिए अभिभावकों की तथा स्वयं छात्रों की सहायता ली जा सकती है । यहाँ भी परस्पर सौहार्द और विश्वास की आवश्यकता रहेगी । सौहार्द नहीं रहा तो अभिभावक कहते हैं की यह काम शिक्षक का है, उसे वेतन ऐसे कामों के लिए ही दिया जाता है । छात्रों को यह काम नहीं देना चाहिए क्योंकि एक तो वे इस काम के लिए नहीं आते हैं, पढ़ने के लिए आते हैं, और दूसरा, वे विश्वसनीय नहीं हैं । छात्रों की अविश्वसनीयता और अक्षमता के कारण और छात्रों पर अन्याय होता है, इसलिये यह कार्य उन्हें नहीं सॉपना चाहिये । ऐसा तर्क अभिभावकों और संचालकों का रहता है । इसका और इसके जैसे अन्य प्रश्नों का समाधान तो सज्जनता और विश्वास बढ़ाने का ही है , अन्य किसी भी उपायों से विश्वास का संकट दूर नहीं हो सकता । गृहकार्य यदि लिखित है तो स्वयं सुधार हो सके ऐसा होना चाहिए ताकि छात्र अपने आप ही अपना गृहकार्य जाँच सकें ।
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जो भी प्रायोगिक कार्य दिया होता है, उसकी जाँच भी प्रायोगिक पद्धति से ही होती है । वह इतनी व्यक्ति और कार्यसापेक्ष होती है कि उसको नियमों में बांधना संभव नहीं होता है । इसलिए उसकी चर्चा नहीं करेंगे । गृहकार्य के संबंध में इतनी चर्चा पर्याप्त है ।
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=== विद्यालय की दैनंदिन गतिविधियाँ ===
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क्या इतने प्रकार की गतिविधियाँ विद्यालय में
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नियमित रूप से हो सकती हैं -
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पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि की सेवा
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वृक्ष वनस्पति की सेवा
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स्वच्छता
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aca
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कारसेवा एवं यज्ञ
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व्यायाम
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योगाभ्यास
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साजसज्जा
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९. गुरुसेवा, गुरुवन्दना
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१०, भोजन
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विद्यालय के समय में इन्हें किस प्रकार से बिठा
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सकते हैं ?
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इन सब बातों का शैक्षिक मूल्य कितना है ?
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इनको करने में किस प्रकार के अवरोध निर्माण हो
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सकते हैं ?
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उन्हें दूर कैसे करें ?
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और कौन सी गतिविधियाँ जोड़ी जा सकती हैं ?
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इन सब गतिविधियों के लिये आर्थिक बोज
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कितना उठाना पडेगा ?
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SoM SK ww ~
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प्रश्नावली से प्राप्त उत्तर
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गुजरात में नवसारी के सरस्वती विद्यामंदिर में समग्र
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विकास पाठ्यक्रम चलता है वहाँ के आचार्य जिज्ञाबेन
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पटेल जो रोज निम्न गतिविधियाँ अपने विद्यालय में करते हैं
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उन्होंने इस प्रश्नावली के उत्तर अपने अनुभव के आधार पर
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लिखे है ।
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दस प्रकार की गतिविधियाँ नियमित रूप से होना
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संभव है क्या ? विद्यालय के समय पत्रक में उन्हें कैसे
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बिठायें ? उनका शैक्षिक मूल्य क्या है ? करने में किस
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प्रकार के अवरोध आते हैं ? उन अवरोधों को कैसे दूर
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किया जाय ? ऐसे पांच प्रश्न हैं ।
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विद्यालय की दैनंदिन गतिविधियाँ
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gut
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चर्चा एवं अभिमत
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सर्व गतिविधियाँ महत्त्वपूर्ण है । नियोजित समय में
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नित्य करवाना कुशलता है । उनका महत्त्व यदि समझ में
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आता है तो कुशलता अपने आप आयेगी । उसके लिए इस
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प्रकार की योजना कर सकते हैं ।
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गतिविधियाँ
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१. पशु पक्षी कीट पतंग आदि की सेवा
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इसमें पक्षिओं को दाना डालना एवं उन्होंने की हुई
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अस्वच्छता स्वच्छ करना ये दो प्रकार के काम होंगे
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विद्यालय के ५-६ बच्चों का गट प्रार्थना में न बैठे उस
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समय यह काम करेगा । एक सप्ताह के बाद गट बदलेगा
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काम वही रहेगा । उचित जगह पर पक्षिओं के लिए मिट्टी
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के पात्रों में पानी रखना । ये पात्र साफ करना, उनमें ताजा
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पानी भरना । मैदान या छज्जेपर दाने डालना (बाजरा
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चावल) पक्षिओं द्वारा की हुई गंदगी साफ करना
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शैक्षिक मूल्य : पक्षी निर्भयता से कहाँ आते हैं ।
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चींटियाँ कहाँ रहती हैं ? उन्हें कितनी मात्रा में दाना पानी
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चाहिये ? इसका अंदाज लगाना । मन में प्राणीद्या निर्माण
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होती है । चित्त निर्मल रहता है ।
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अवरोध - १. प्रार्थना मे न जाते हुए यह काम
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करवाना मन को अच्छा नहीं लगता । २. अभिभावक ऐसे
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सामान्य कामों को फालतू एवं अशैक्षिक समझते हैं ।
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उपाय - १. शान्त बैठकर प्रार्थना करना और
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पक्षीकी सेवा करना दोनों समान ही है, यह विचार करना ।
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बच्चों को इस का अर्थ समझाना रे. यह भी महत्त्वपूर्ण
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शिक्षा है इस बात को धयान में रखना ।
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२. वृक्ष वनस्पती सेवा
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पौंधो को पानी पिलाना, वृक्षों के तनों को रंग
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लगाना, पतझड में गिरे हुई पत्ते, कचरा इकट्ठा करना, गमले
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साफ रखना, पौधों को खाद देना इत्यादी प्रकार के काम
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भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
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सेवाकार्य ही हैं । १० बालकों का गट अवरोध - कुछलोग पूजापाठ के विरोधी होते हैं ।
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बनाना, गट प्रमुख बनाना । इससे कार्यविभाजन होगा । उपाय - उनकी ओर ध्यान नहीं देना । उनसे
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खेल के कालांश में यह सेवाकार्य करना । भयभीत भी नहीं होना ।
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शैक्षिक मूल्य - वृक्ष वनस्पति का परिचय, उनकी
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आवश्यकताएँ समझना उनके प्रति आत्मीयता निर्माण होती
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है । ये सारी बातें हमारे विद्यालय की हैं, उनका रक्षण एवं
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संवर्धन करना हमारा दायित्व है यह भाव जागृत होता है ।
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अवरोध - सभी छात्र ठीक से काम करेंगे या नहीं ?
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आपस में झगड़ेंगे ऐसी आशंका निर्माण होती है । यह काम
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क्या पढ़ाई है ? ऐसा प्रश्न अभिभावक पूछ सकते हैं ।
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उपाय - इस गतिविधी का स्वरूप और महत्त्व छात्रों
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को समझाना । शिक्षक ने थोडीबहुत देखरेख रखना । किताबी
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पढ़ाई से हटकर इस अभ्यास से छात्रों की मनःस्थिति में अच्छा
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बदलाव आता है । फिर अभिभावक भी शिकायत नहीं करेंगे ।
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५. कारसेवा एवं यज्ञ
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विद्यालय में अग्िहोत्र नित्य करें । विद्यालय की ५
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वीं से ऊपर की कक्षाओं में से प्रतिदिन एक कक्षा के छात्र
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अग्निहोत्र करे । उस समय वे वन्दना में नहीं जायेंगे । बैठक
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व्यवस्था करना, यज्ञ की सामग्री रखना, बाद में उठाकर
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यथास्थान रखना, ४ छात्रोंने प्रत्यक्ष हवन करना इस प्रकार
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की योजना बने । उपरोक्त सर्व गतिविधियों में कुछ न कुछ
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कारसेवा हर विद्यर्थी को करनी ही है । अतः अलगसे
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कारसेवा न लगाए तो भी चलेगा ।
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शैक्षिक मूल्य - पर्यावरण शुद्धि, वेदमंत्र कंठस्थ
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होना, उच्चारण स्पष्टता एवं आध्यात्मिक संस्कार साध्य होते
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३. स्वच्छता हैं।
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सफाई करना, श्यामपट स्वच्छ करना, डेस्क बेंच अवरोध - घी और हवन सामग्री रोज खर्च होती है
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साफ रखना, कागज कचरा उठाकर कचरा पात्र में डालना ।.... ऐसा कुछ लोग सोचते हैं ।
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इस प्रकार के सारे काम होंगे । रोज प्रार्थना के Ged ae उपाय - समिधा इकट्टी कर सकते हैं । घी खर्च
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१० मिनट यह स्वच्छता कार्य होगा । कक्षा शिक्षक इसका... होगा परंतु अन्य उपलब्धिओं की तुलना मे खर्च नगण्य है ।
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ठीक से नियोजन करेंगे । सब को अपना कार्य समझायेंगे । घी जलकर नष्ट होता है और वह फिजूल खर्च है, यह
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अवरोध - कुछ बालक काम करेंगे, कुछ मस्ती विचार दूर करे ।
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उपाय - अच्छे काम करने वालों का गौरव करना ।
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न करनेवालों को डाँट नहीं, अपितु उनकी समझ बढ़ाना ।
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कक्षाचार्य ने स्वयं इसमें सहभागी होना ।
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शैक्षिक मूल्य - समूह में काम करने की आदत,
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विद्यालय के प्रति आत्मीय भाव जागृत करना ।
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६. व्यायाम
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दिन भर के समयपत्रक मे रोज १५ मिनिट व्यायाम के
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लिए निकालना चाहिये । व्यायाम का स्वरूप छात्रों की
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आयु के अनुसार निश्चित करें । वर्गशिक्षक रोज उपस्थिति
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लेता है उसी प्रकार व्यायाम भी अनिवार्य रूप से हो ।
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शैक्षिक मूल्य - शरीर मे स्फूर्ति उत्साह एव लोच
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विद्यालय सरस्वती का मन्दिर है । अध्ययन रोज उसी. बढ़ता है । ये बातें ज्ञानार्जन के लिए अत्यावश्यक है ।
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की वन्दना से शुरु होना चाहिये । पूजन करना शुद्ध एवं अवरोध - शिक्षक ही प्रमुख रूप से इसमें अवरोध
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सुस्वर में वन्दना करना । वन्दना मे शिक्षक, मुख्याध्यापक, .. है । येन केन प्रकारेण इसे मुख्याध्यापक ही दूर को ।
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उपस्थित अतिथि एवं अभिभावकों को भी सम्मिलित करें ।
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४. वन्दना
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शैक्षिकमूल्य - सरस्वती वन्दना में संगीत, संस्कृत. '*ः योगाभ्यास
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और योग तीनों बातों का संयोग होता है । स्थिरता नित्य वंदना के बाद १० मिनिट प्रार्थना कक्ष में ही
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अनुशासन संयम आदि संस्कार होते है । योगाभ्यास हो । योगाभ्यास अर्थात्‌ केवल आसन प्राणायाम
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श्५६्द
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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ही नहीं । अनेक प्रकार से इसका अभ्यास हो सकता है ।
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शैक्षिक मूल्य - छात्रों की ग्रहणशक्ति, धारणाशक्ति
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बढ़ती है उसका प्रयोग और मापन करके देखे ।
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अवरोध - शिक्षक को इस विषय मे रुचि और
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महत्त्व कम रहता है, समझ कम और श्रम ज्यादा होते है ।
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उपाय - योग्य एवं जानकार व्यक्ति से इसे ठीक से
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समझ ले, अभिभावकों से भी अनुकूलता प्राप्त करे ।
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८... साजसज्ा :
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नियमित रूप से भले अल्पमात्रा मे साजसज्जा अवश्य
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करे । सभी चीजे यथास्थान रखना वर्ग मे गुलदस्ता सजाना
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और अन्य कई प्रकार हो सकते है ।
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शैक्षिक मूल्य - कलागुणों में वृद्धी, सौन्दर्य दूष्ठी बढती
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है, कल्पकता का आनंद एवं उत्साह वर्धन होता है ।
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इस काम का नियोजन व पालन व्यवस्थित करना
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अन्यथा साजसज्जा कम और गडबड ज्यादा जैसा होगा ।
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९. गुरुसेवा गुरु वन्दना :
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आचार्यों को आदर देना, उनकी सेवा करना, गुरु
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निन्‍्दा उपहास न करना ।
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१०, भोजन :
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मध्यावकाश को भोजन के रूप में यह विद्यालयों में
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होने वाली नित्य गतिविधि है । भोजन बडा संस्कार है ।
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अन्न से शरीर और मन की पुष्ठी होती है । इस विषय में
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विस्तृत विवेचन मध्यावकाश का भोजन इस प्रश्नावली में
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किया है ।
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पाँच छ घण्टे के विद्यालय में ऐसी गतिविधियाँ संभव
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है । उसके लिए खर्च अधिक नहीं आता । कल्पकता एवं
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उत्कृष्ट योजकता मात्र आवश्यक है। मानसिकता भी
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आवश्यक है । आज विद्यालयों में ये गतिविधियाँ करवाना
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झंझट, बोझ भी लग सकता है । परन्तु भारतीय शिक्षा का
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प्रयोग करना है तो सब समझकर करना । छात्रों को इनका
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अच्छा परिणाम मिलेगा । शिक्षक एवं अभिभावकों को
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छात्रो के व्यवहार में अनुकूल परिवर्तन जरूर दिखेगा ।
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श्प७
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शुद्ध पढ़ने पढ़ाने के अतिरिक्त अनेक बातें ऐसी हैं
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जो पढाई की सहयोगी के रूप में विद्यालयों में होती है ।
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इनका शैक्षिक दृष्टि से विचार किया जाना चाहिये क्योंकि
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इनका सीधा सम्बन्ध पढ़ाई से है ।
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१, प्रार्थना
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प्रार्थथा से किसी भी शुभ कार्य का प्रारम्भ होना
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भारत में केवल स्वाभाविक ही नहीं तो अनिवार्य माना
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गया है । हमने कल्याणकारी सभी बातों को देवता का
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स्वरूप दिया है। यहाँ तक की पानी को जलदेवता
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अथवा वरुण देवता, अग्नि को अग्थिदेवता, वायु को
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वायुदेवता, पृथ्वी को पृथ्वीदेवता कहा है | पृथ्वी को तो
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हम माता ही कहते हैं। तब विद्या को, ज्ञान को हम
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देवता न मानें ऐसा हो ही नहीं सकता । विद्या की, वाणी
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की, कला की, संगीत की देवता सरस्वती विद्यालयों की
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अधिष्ठात्री देवी है । अध्ययन अध्यापन के रूप में हम
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उसकी उपासना करते हैं। ज्ञान के सभी लक्षणों को
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साकार रूप देकर हमने सरस्वती की प्रतिमा बनाई है । इस
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देवता की प्रार्थना से प्रारम्भ करना नितान्त आवश्यक है ।
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परन्तु इसमें केवल कर्मकाण्ड नहीं चलेगा । कुछ बातें
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ध्यान देने योग्य हैं
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जो भी करें शाख्रशुद्ध करें । विद्याकेन्द्रों में अशास्त्रीय
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नहीं चलता । सुशोभन अवश्य करना चाहिये और
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वह पर्यावरण और सौन्दर्य दृष्टि को ध्यान में रखकर
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किया जाना चाहिये ।
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फूल, दीप और अगरबत्ती का प्रयोग यदि करते हैं
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तो ध्यान में रखें कि अगरबत्ती सिन्थेटिक न हो,
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दीप जर्सी के घी का न हो और फूल कृत्रिम न
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हों । इस निमित्त से विद्यालय में अन्यान्य चित्रों पर
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जो प्लास्टिक के फूलों की मालायें चढ़ाई जाती हैं
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वे उतार दी जाय । सरस्वती को यह मान्य नहीं है ।
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प्रार्थथा शुद्ध स्वर और शुद्ध उच्चारण से गाई जानी
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चाहिये । सरस्वती वाणी और संगीत दोनों की देवता
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है । बेसूरा गायन, बेसूरे और बेढब वाद्य और बेताल
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वादन, चिछ्ठा चिक्लाकर गाना, गलत
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उच्चारण करना उसे मान्य नहीं है। वह इसे क्षमा
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नहीं करेगी । कृपा करने की तो बात ही दूर की है ।
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०... प्रार्थना सभा का वातावरण पवित्र होना भी उतना
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ही आवश्यक है । यदि हम कर सकें तो प्रार्थनाकक्ष
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में प्रार्थना के अलावा मौन रहना, अन्य किसी प्रकार
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की बातें नहीं करना भी होना चाहिये । अधिकांश
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विद्यालयों में विद्यालय का प्रारम्भ सभा से होता
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है । जिसमें सूचनायें, समाचार वाचन, पंचांग कथन,
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किसी विद्यार्थी या कक्षा की प्रस्तुति, शिक्षक द्वारा
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प्रेरक उदूबोधन होता है और इस सभा का एक अंग
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प्रार्थथा है। यह विद्यालय के कामकाज का
 +
 
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उपयोगितावादी दृष्टिकोण है जिससे प्रार्थना का
 +
 
 +
महत्त्व कम हो जाता है ।
 +
 
 +
०". एक बात विशेष उल्लेखनीय है । कई विद्यालयों में
 +
 
 +
wet केवल विद्यार्थियों के लिये होती है । कुछ
 +
 
 +
विद्यालय ऐसे हैं जहाँ शिक्षकगण प्रार्थना में सहभागी
 +
 
 +
होता है परन्तु लगभग एक भी विद्यालय ऐसा नहीं
 +
 
 +
है जहाँ सेवक, कार्यालयीन कर्मचारी, या उसी समय
 +
 
 +
उपस्थित अभिभावक प्रार्थना में सम्मिलित होते हों ।
 +
 
 +
यह अवश्य आश्चर्यकारक है ।
 +
 
 +
०... और एक आश्चर्यकारक बात यह है कि
 +
 
 +
महाविद्यालय और विश्वविद्यालय ऐसे विद्याकेन्द्र हैं
 +
 
 +
जहाँ प्रार्थना अनिवार्य या आवश्यक नहीं मानी
 +
 
 +
जाती । अपवाद स्वरूप ही कहीं प्रार्थना होती
 +
 
 +
दिखाई देती है ।
 +
 
 +
०... सरकारी या गैरसरकारी शिक्षाविभाग के कार्यालयों या
 +
 
 +
संस्थानों में भी प्रार्थना का प्रचलन नहीं है । प्रार्थना
 +
 
 +
करना मानो धर्म निरपेक्ष देश में बच बच कर करने
 +
 
 +
का विषय बन गया है । इस विषय को गम्भीरता से
 +
 
 +
लेने की आवश्यकता है ।
 +
 
 +
२. संकल्प
 +
 
 +
विद्यालयों को यह परिचित नहीं है परन्तु भारत में
 +
 
 +
हर शुभ कार्य के प्रारम्भ में संकल्प किया जाता है जिसमें
 +
 
 +
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 +
 
 +
स्थान, काल, उद्देश्य आदि का उच्चारण किया जाता है ।
 +
 
 +
यह परिचित नहीं होने का एक कारण यह भी है कि इस
 +
 
 +
संकल्प में वर्णित सन्दर्भ भूगोल, कालगणना आदि की
 +
 
 +
भारतीय संकल्पना के अनुसार हैं और विद्यालयों में पढाई
 +
 
 +
जानेवाली इतिहास और भूगोल की बातें कुछ और हैं ।
 +
 
 +
परन्तु विट्रज्जनों को इस बात का विचार करना चाहिये
 +
 
 +
और भारतीय शास्त्रीय तथा सांस्कृतिक परम्पराओं को हम
 +
 
 +
पुनः किस प्रकार स्थापित कर सकते हैं इसका विचार
 +
 
 +
करना चाहिये। यह संकल्प संस्कृत में होता है।
 +
 
 +
व्यावहारिक उद्देश्यों से उसे हिन्दी या अपनी अपनी भाषामें
 +
 
 +
अनुदित किया जा सकता है ।
 +
 
 +
३८ यज्ञ
 +
 
 +
भारत की संस्कृति यज्ञसंस्कृति है । सृष्टि और समष्टि
 +
 
 +
के लिये आवश्यक त्याग करना और उन्हें सन्तुष्ट करना ही
 +
 
 +
यज्ञ है। ना समझ लोग इसे कुछ उपयोगी पदार्थों को
 +
 
 +
जलाना कहते हैं। यज्ञ के सांस्कृतिक और भौतिक
 +
 
 +
वैज्ञानिक खुलासे तो अनेक हैं परन्तु उन्हें ये खुलासे
 +
 
 +
जानने का धैर्य नहीं होता और मानने का साहस नहीं
 +
 
 +
होता । परन्तु जानकार और समझदार लोगों ने विचार कर
 +
 
 +
लोगों को समझाना चाहिये । विशेषकर विद्यालयों में तो
 +
 
 +
इसका प्रारम्भ हो ही सकता है ।
 +
 
 +
४. मध्यावकाश का भोजन अथवा अल्पाहार
 +
 
 +
लगभग सभी विद्यालयों में यह होता ही है। इसे
 +
 
 +
संस्कृति और सभ्यता की गतिविधि बनाना चाहिये ।
 +
 
 +
भोजन कहीं भी बैठकर कैसे भी करने की बात नहीं है ।
 +
 
 +
उसे व्यवस्थित ढंग से करना चाहिये ।
 +
 
 +
इन बातों पर विचार किया जा सकता है
 +
 
 +
०. भोजन करने का स्थान पवित्र और साफ हो ।
 +
 
 +
०... जूते पहनकर भोजन न किया जाय ।
 +
 
 +
०... विद्यालय में भोजन करने का स्थान निश्चित किया
 +
 
 +
जाय । यह बड़े हॉल जैसा कक्ष भी हो सकता है
 +
 
 +
जहाँ सब एक साथ बैठें या अपने अपने कक्षाकक्ष
 +
 
 +
के बाहर का बरामदा हो जहाँ छोटे समूहों में बैठा
 +
 
 +
 +
 
 +
............. page-175 .............
 +
 
 +
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
 +
 
 +
जाय या मैदानमें वृक्ष के नीचे भी हो जहाँ फिर छोटे
 +
 
 +
समूहों में बैठा जाय । मैदान में या वृक्ष के नीचे
 +
 
 +
गोबर से लीपी भूमि स्वास्थ्य और स्वच्छता की
 +
 
 +
दृष्टि से बहुत लाभदायी होती है ।
 +
 
 +
भोजन से पूर्व हाथ पैर धोने का रिवाज बनाया
 +
 
 +
जाय |
 +
 
 +
भोजन सीधे डिब्बे से नहीं अपितु छोटी थाली में
 +
 
 +
किया जाय । भोजन के पात्र विद्यालय में ही रखे
 +
 
 +
जा सकते हैं ।
 +
 
 +
गोबर से लीपी भूमि पर सीधा बिना आसन के बैठा
 +
 
 +
जा सकता है परन्तु अन्यत्र बिना आसन के नहीं
 +
 
 +
बैठने का आग्रह होना चाहिये ।
 +
 
 +
भोजनमन्त्र बोलकर ही भोजन किया जाय ।
 +
 
 +
गोग्रास निकालकर ही भोजन किया जाय ।
 +
 
 +
आसपास के लोगों के साथ बाँटकर भोजन किया
 +
 
 +
जाय |
 +
 
 +
थाली में जूठन नहीं छोड़ना अनिवार्य बनाया जाय ।
 +
 
 +
भोजन के बाद हाथ धोना, कुछ्ला करना, भोजन के
 +
 
 +
स्थान की सफाई करना, भोजन के पात्र साफ करना
 +
 
 +
ah ver व्यवस्थित रखना सिखाया जाय ।
 +
 
 +
अधिक चर्चा इसी ग्रन्थ में अन्यत्र की गई है ।
 +
 
 +
५. राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का गायन
 +
 
 +
“जन गण मन हमारा राष्ट्रगीत है और “वन्दे मातरम्‌'
 +
 
 +
राष्ट्रगान । प्रतिदिन दोनों का गायन होना चाहिये । “वन्दे
 +
 
 +
मातरमू पूर्ण गाना चाहिये । प्रार्थथा की तरह ही शुद्ध
 +
 
 +
स्वर, शुद्ध उच्चारण, ताल और गाने की, खड़े रहने की
 +
 
 +
सही पद्धति का आग्रह अपेक्षित है । पूर्ण कण्ठस्थ होना
 +
 
 +
भी अपेक्षित ही है ।
 +
 
 +
६. सर्वेभवन्तु सुखिन:
 +
 
 +
जिस प्रकार अध्ययन प्रार्भ करने से पूर्व संकल्प
 +
 
 +
करते हैं उसी प्रकार आज का अध्ययन पूर्ण होने के बाद
 +
 
 +
सब के मंगल की कामना करनी चाहिये । अतः सर्वे
 +
 
 +
wag Ghat: से विद्यालय पूर्ण होना अच्छा है ।
 +
 
 +
848
 +
 
 +
इतनी बातें तो लगभग सर्वत्र
 +
 
 +
होती हैं, जो नहीं होतीं वे भी हो सकती हैं । परन्तु और
 +
 
 +
एक दो व्यवस्थाओं की बातें इनमें जोड़ी जा सकती हैं ।
 +
 
 +
१, घर जाने से पूर्व अपने अपने कक्ष की पूर्ण
 +
 
 +
स्वच्छता और व्यवस्था करके जाना । इसमें झाड़ू
 +
 
 +
पोंछा, कक्षा के श्यामफलक का लेखन, सारी साधन
 +
 
 +
सामग्री की व्यवस्था आदि बातें हो सकती हैं ।
 +
 
 +
२... प्रार्थना कक्ष, बरामदे, आँगन, मैदान, कार्यालय के
 +
 
 +
कमरे आदि की स्वच्छता करके जाना ।
 +
 
 +
3. सूचना फलक, सुशोभन के स्थान, फलक लेखन,
 +
 
 +
विशेष बातें, सुविचार आदि काम करना ।
 +
 
 +
६... बगीचे की सेवा करना ।
 +
 
 +
विद्यालय अपनी सुविधा और आवश्यकता के
 +
 
 +
अनुसार इस सूची को घटा बढ़ा सकता है ।
 +
 
 +
इन सभी बातों का उद्देश है
 +
 
 +
विद्यालयीन शिक्षा को जीवमान बनाना । विद्यालय
 +
 
 +
कहने से महाविद्यालय और विश्वविद्यालय को भी
 +
 
 +
गिनना है ।
 +
 
 +
विद्यालय के साथ पारिवारिक भाव और जिम्मेदारी
 +
 
 +
का भाव जगाना । यह हमारा विद्यालय है और हमे
 +
 
 +
 +
 
 +
उसे स्वच्छ और व्यवस्थित रखना है ऐसा सबको
 +
 
 +
लगना चाहिये ।
 +
 
 +
इन सभी गतिविधियों में विद्यार्थी, शिक्षक और
 +
 
 +
कार्यालयीन लोग भी जुड़ें तभी पूर्ण विद्यालय
 +
 
 +
परिवार बनता है ।
 +
 
 +
अपनी संस्कृति के साथ जुड़ना भी इन गतिविधियों
 +
 
 +
का उद्देश्य है । हर गतिविधि को कर्मकाण्ड बनने से
 +
 
 +
रोककर ज्ञाननिष्ठ और भावनात्मक बनाना चाहिये ।
 +
 
 +
कक्षाकक्ष के विज्ञान, गणित, अंग्रेजी जैसे विषयों से
 +
 
 +
भी इनका महत्त्व अधिक है ।
 +
 
 +
इन गतिविधियों को मूल्यांकन, स्पर्धा या अंकों के
 +
 
 +
साथ जोड़ने की गलती नहीं करनी चाहिये । ऐसा
 +
 
 +
किया तो इनसे अधिक अंकों की चिन्ता होने लगेगी
 +
 
 +
और हर बात कृत्रिम हो जायेगी ।
 +
 
 +
श्,
 +
 
 +
 +
 
 +
............. page-176 .............
 +
 
 +
विद्यालय में पुस्तकालय क्यों होना चाहिये ?
 +
 
 +
विद्यालय के पुस्तकालय में पुस्तकों की संख्या
 +
 
 +
कितनी होनी चाहिये ?
 +
 
 +
ये पुस्तके कैसी हों ? कितने प्रकार की हों ?
 +
 
 +
पुस्तकालय के साथ वाचनालय भी क्यों होना
 +
 
 +
चाहिये ?
 +
 
 +
पुस्तकालय एवं वाचनालय का उपयोग छात्र एवं
 +
 
 +
आचार्य कर सर्के इसलिये क्या क्या व्यवस्थायें
 +
 
 +
करनी चाहिये ?
 +
 
 +
पुस्तकालय एवं वाचनालय का उपयोग करने के
 +
 
 +
लिये छात्रों को कैसे प्रेरित कर सकते हैं ?
 +
 
 +
एक एक कक्षा का कशक्षापुस्तकालय कैसे
 +
 
 +
बनायें ?
 +
 
 +
पुस्तकालय में पुस्तकों के साथ साथ और क्या
 +
 
 +
क्या हो सकता है ?
 +
 
 +
पुस्तकालय एवं वाचनालय को केन्द्र में रखकर
 +
 
 +
किस प्रकार के कार्यक्रम अथवा गतिविधियों की
 +
 
 +
रचना हो सकती है ?
 +
 
 +
पुस्तकालय का उपयोग अभिभावक भी कर सर्के
 +
 
 +
ऐसी व्यवस्था किस प्रकार से कर सकते हैं ?
 +
 
 +
१०,
 +
 
 +
ग्रत्यक्ष वार्तालाप से प्राप्त उत्तर
 +
 
 +
इस संबंध में जो प्रश्नावली दो तीन लोगों को भरवाने
 +
 
 +
के लिए भेजी गयी वे नियोजित समय से प्राप्त नहीं हुई ।
 +
 
 +
अतः अनेक लोगों से प्रत्यक्ष बातचीत करके उनके उत्तर
 +
 
 +
और अनुभव यहा सम्मिलित किये है ।
 +
 
 +
अध्ययन अध्यापन के लिए अत्यंत उपयुक्त एवं पूरक
 +
 
 +
भूमिका पुस्तकालय की होती है । ग्रंथ एवं पुस्तके ज्ञाननिधी
 +
 
 +
है। जहा ज्ञान की साधना होती है वहाँ पुस्तकालय
 +
 
 +
अनिवार्य है । विद्यालय का स्तर प्राथमिक, माध्यमिक
 +
 
 +
अथवा उच्चशिक्षा भले ही हो स्तर के अनुसार पुस्तकालयों
 +
 
 +
में पुस्तकों की संख्या रहे । विद्यार्थी संख्या तथा पुस्तकों की
 +
 
 +
संख्या इनका अनुपात कम से कम १:१० होना चाहिए ।
 +
 
 +
विद्यालय में पुस्तकालय
 +
 
 +
१६०
 +
 
 +
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 +
 
 +
महाविद्यालयों में पुस्तकालय समृद्ध होना चाहिए कारण वहाँ
 +
 
 +
अध्यापन की अपेक्षा भारतीय भाषाओं में अध्यात्म, दर्शन,
 +
 
 +
धर्म-संस्कृति, राष्ट्र, विभिन्न विचारधारायें, इतिहास, भूगोल,
 +
 
 +
विज्ञान आदि की पुस्तकें, कोष, एटलस, बालसाहित्य,
 +
 
 +
दृश्य-श्राव्य सामग्री आदि सभी प्रकार की पुस्तकें आवश्यक
 +
 
 +
होंगी । पुस्तकालय में बैठकर पढ़ सके इस प्रकार की
 +
 
 +
पुस्तकालय की व्यवस्था होनी चाहिये । छात्र शिक्षक सभी
 +
 
 +
आराम से पढ़ सके ऐसी स्वना व स्थान हो तो अच्छा ।
 +
 
 +
दैनिक वृत्तपत्र पाक्षिक मासिक शैक्षिक पत्रिका्ें पर्याप्त मात्रा
 +
 
 +
मे उपलब्ध हो । पुस्तकालयों में वेद उपनिषद आदि
 +
 
 +
साहित्य अवश्य हो । पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है अपितु
 +
 
 +
हमारी संस्कृति का दर्शन है । इनका दर्शन छात्र इस आयु में
 +
 
 +
करेंगे तो आगे जाकर इनका अध्ययन भी होगा । विषय के
 +
 
 +
शिक्षक छात्रों को अपने विषय की संदर्भ पुस्तकों के नाम
 +
 
 +
बताए और उन्हें पढने के लिए प्रेरित करे । एक विद्यालय
 +
 
 +
के ग्रंथपाल स्वयं सभी विषयों का अध्ययन करते थे और
 +
 
 +
वर्गशः उपयुक्त संदर्भ साहित्य से छात्रों को परिचित करवाते
 +
 
 +
थे । वाचनालय में खरिदी हुई नवीन पुस्तकों के परिचय
 +
 
 +
सूचना फलक पर लिखते और छात्रों को वाचन हेतु प्रेरित
 +
 
 +
व आकर्षित करते थे ।
 +
 
 +
पुस्तकों को कब्हर चढाना, पुस्तकालय की स्वच्छता
 +
 
 +
एवं पुर्नरचना करना, पुस्तकों की मरम्मत करना आदि कार्यों
 +
 
 +
में बड़े छात्रों का सहयोग लेने से उनकी वाचन की ओर
 +
 
 +
उत्कंठा जाग्रत होती है । ज्ञान प्राप्ति की भूख निर्माण होती
 +
 
 +
है । कक्षाकक्ष का स्वतंत्र पुस्तकालय हो ऐसी भी व्यवस्था
 +
 
 +
कर सकते हैं । इसलिए चरित्र, कहानी, काव्य आदि प्रकार
 +
 
 +
की पुस्तकें घर घर से भेंट रूप में छात्र प्राप्त कर और अपनी
 +
 
 +
कक्षा का वर्ग पुस्तकालय तैयार करे । अपने जन्मदिन पर
 +
 
 +
कुछ पुस्तकें भेंट दें । बड़े बड़े शहरों में बड़े बड़े पुस्तकालय
 +
 
 +
होते हैं । वहाँ वाचक वर्ग अत्यधिक कम है । उनसे
 +
 
 +
सहयोग लेकर हम वर्गपुस्तकालय के लिए छात्रों के लायक
 +
 
 +
पुस्तकें लाना और वर्ष के बाद पुनः लौटाना ऐसा करने से
 +
 
 +
विद्यालय का वर्ग पुस्तकालय नित्यनूतन रहेगा । एक
 +
 
 +
 +
 
 +
............. page-177 .............
 +
 
 +
पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
 +
 
 +
विद्यालय ने यह प्रयोग बहुत सफलता पूर्वक किया |
 +
 
 +
पुस्तकों के साथ साथ सी.डी., इ लर्निंग सेवा भी हो सकती
 +
 
 +
है। गाँव के वाचनालयों का स्थान पुनर्जीवित करने हेतु
 +
 
 +
ग्रंथयात्रा, ग्रंथप्रदर्शनी, लेखकों से प्रत्यक्ष वार्तालाप जैसे
 +
 
 +
प्रकट कार्यक्रमों का आयोजन करें ।
 +
 
 +
ज्ञान प्रबोधिनी निगडी के विद्यालय में छात्रों के लिए
 +
 
 +
समृद्ध एवं चैतन्यमय वाचनालय है । छात्रों के लिए वह
 +
 
 +
निःशुल्क है और नगरवासियों के लिए सायंकाल के समय
 +
 
 +
Beh ASIC चलता है । यह एक यशस्वी प्रयोग है ।
 +
 
 +
विमर्श
 +
 
 +
पुस्तकालय का नाम पढ़ते ही गौरवमयी ज्ञानसृष्टि
 +
 
 +
कल्पना चक्षु के समक्ष अवतरित हो जाती है । जब से
 +
 
 +
भगवान गणेशने लिपि का आविष्कार किया, ज्ञान लिखित
 +
 
 +
रूप में सुरक्षित होने लगा । अब तक श्रुति और श्रुतज्ञान की
 +
 
 +
महिमा थी अब पुस्तकों की महिमा होने लगी । पुस्तक धीरे
 +
 
 +
धीरे ज्ञान का प्रतीक बन गया । पुस्तक ज्ञान के समान
 +
 
 +
पवित्र माना जाने लगा और उसका सम्मान होने लगा ।
 +
 
 +
आज भी पुस्तक को ज्ञानसम्पदा के रूप में ही सम्माननित
 +
 
 +
किया जाता है ।
 +
 
 +
पुस्तकालय की पवित्रता बनाये रखना
 +
 
 +
विद्यालय का पुस्तकालय इसी कारण से एक पवित्र
 +
 
 +
स्थान है । प्रथम आवश्यकता उसकी पवित्रता की रक्षा
 +
 
 +
करने की है । इस दृष्टि से कुछ नियम बनाने चाहिये ।
 +
 
 +
०... पुस्तकालय में जूते पहनकर प्रवेश नहीं करना
 +
 
 +
चाहिये ।
 +
 
 +
पुस्तकालय स्वच्छ रखना चाहिये । पुस्तकालय की
 +
 
 +
पुस्तकों, आल्मारियों, अन्य फर्नीचर, सम्पूर्ण कक्ष को
 +
 
 +
स्वच्छ रखने का काम विद्यार्थियों और शिक्षकों ने
 +
 
 +
सेवा के रूप में करना चाहिये, नौकरों द्वारा नहीं
 +
 
 +
करवाना चाहिये ।
 +
 
 +
पुस्तकालय में खाना, चाय पीना, शोर मचाना,
 +
 
 +
अशिष्ट बातें करना, अशिष्ट भाषा प्रयोग करना वर्जित
 +
 
 +
होना चाहिये ।
 +
 
 +
Fak
 +
 
 +
पुस्तकालय में ज्ञान की देवी
 +
 
 +
सरस्वती की प्रतिमा और ज्ञान के आदि ग्रन्थ वेद
 +
 
 +
पूजा स्थान में रखने से पुस्तकालय का सम्मान होता
 +
 
 +
है । वातावरण और मानसिकता पवित्र बनते हैं ।
 +
 
 +
पुस्तकालय का सम्मान करने का दूसरा आयाम है
 +
 
 +
उसका उपयोग करना । विद्यालय के मुख्याध्यायक से लेकर
 +
 
 +
छोटी से छोटी कक्षा के छोटे से छोटे विद्यार्थी तक सभी
 +
 
 +
लोगों में वाचन संस्कृति का विकास होना चाहिये । पुस्तक
 +
 
 +
पढने का रस निर्मिण करना शिक्षाक्रम का अत्यन्त
 +
 
 +
महत्त्वपूर्ण आयाम है ।
 +
 
 +
इस दृष्टि से सभी आयु वर्ग के विद्यार्थियों के लायक
 +
 
 +
पुस्तकें पुस्तकालय में होनी चाहिये । शिशुओं के लिये
 +
 
 +
चित्रपुस्तिकाओं से लेकर देशविदेश के लेखकों की विभिन्न
 +
 
 +
विषयों की. गम्भीर अध्यनय करने लायक पुस्तकें
 +
 
 +
पुस्तकालय में होनी चाहिये ।
 +
 
 +
पढ़ने की रुचि निर्माण करना
 +
 
 +
विद्यार्थियों में पुस्तक पढ़ने की रुचि निर्माण हो इस
 +
 
 +
दृष्टि से कुछ इस प्रकार विशेष प्रयास करने चाहिये ।
 +
 
 +
०". कक्षा में पुस्तकों का पर्विय करवा कर उन्हें पढ़ने
 +
 
 +
हेतु प्रेरित करना । पढ़ी जाने वाली पुस्तकों के
 +
 
 +
सम्बन्ध में चर्चा करना ।
 +
 
 +
पुस्तकों की प्रदर्शनी आयोजित करना । सबको उसे
 +
 
 +
देखने का अवसर देना ।
 +
 
 +
नगर में लगने वाले पुस्तक मेलों में जाने के लिये
 +
 
 +
विद्यार्थियों को प्रेरित करना । पुस्तकों की खरीदी को
 +
 
 +
प्रोत्साहित करना ।
 +
 
 +
समय समय पर वाचन शिबिरों का आयोजन करना
 +
 
 +
और समूहवाचन का भी प्रयोग करना ।
 +
 
 +
छोटे छोटे गटों में एक पढ़े और शेष सुनें ऐसी योजना
 +
 
 +
करना । बारी बारी से सब पढ़ें ।
 +
 
 +
घर में दादाजी या दादीमाँ को पढकर सुनाने का
 +
 
 +
गृहकार्य देना । आदत विकसित होने के बाद गृहकार्य
 +
 
 +
देने की आवश्यकता न रहे यह लक्ष्य रखना ।
 +
 
 +
 +
 
 +
............. page-178 .............
 +
 
 +
भारतीय शिक्षा के व्यावहारिक आयाम
 +
 
 +
०... आसपास के लोग पढ़ते होंगे तो... की दृश्यश्राव्य सामग्री का प्रचलन बढा है। ये अधिक
 +
 
 +
विद्यार्थियों को पढ़ने की प्रेरणा अपने आप मिलेगी । .... प्रभावी हैं ऐसा भी बोला जाता है । परन्तु अनुभवी और
 +
 
 +
०... विद्यार्थियों को पढ़ने हेतु समय मिले इस दृष्टि से अन्य... जानकार लोगों का कहना है कि स्थायी प्रभाव की दृष्टि से
 +
 
 +
गृहकार्य या क्रियाकलाप कम करना । यह सामग्री पुस्तकों का स्थान नहीं ले सकती । पुस्तकों से
 +
 
 +
तीसरा मुद्दा है पुस्तकों का चयन और व्यवस्था इस... अधिक प्रभावी प्रत्यक्ष वार्तालाप, प्रत्यक्ष शिक्षा या प्रत्यक्ष
 +
 
 +
दृष्टि से इस प्रकार विचार करना चाहिये... भाषण ही हो सकता है । अन्य सभी बातों का क्रम बाद में
 +
 
 +
०... विद्यालय का एक केन्द्रीय पुस्तकालय होना चाहिये ही आता है। इस दृष्टि से पुस्तकों का महत्त्व स्थापित
 +
 
 +
करना चाहिये ।
 +
 
 +
उसी प्रकार प्रत्येक कक्षा का भी पुस्तकालय होना
 +
 
 +
चाहिये । कक्षा में छात्रों की संख्या जितनी पुस्तकें at पुस्तकों का जतन करना
 +
 
 +
उसमें होनी ही चाहिये । जिससे वाचन के कालांश में अन्तिम मुद्दा है पुस्तकों का जतन करने का । कुछ
 +
 
 +
सबको पढ़ने के लिये स्वतन्त्र पुस्तक मिल सके |
 +
 
 +
पुस्तकें सभी विद्यार्थियों इस प्रकार से विचार करना चाहिये...
 +
 
 +
<nowiki>*</nowiki>.. कक्षा पुस्तकालय की सभी पुस्तकें सभी विद्यार्थियों ने _ ०»... अपनी पदों A) aterert पिया चाहिये |
 +
 
 +
पढ़ी हुई हों ऐसी अपेक्षा करनी चाहिये । ०... पुस्तकों में चित्रविचित्र आकृतियाँ बनाकर उन्हें खराब
 +
 
 +
०... कक्षा में पढ़ाई हेतु जो विषय और पाठ्यक्रम होता है नहीं करना चाहिये ।
 +
 
 +
उससे सम्बन्धित पुस्तकें कक्षा पुस्तकालय में होनी. ०... पुस्तकों को व्यवस्थित रखना सिखाना चाहिये । वे
 +
 
 +
चाहिये ताकि उन्हें पढ़ने से विद्यार्थियों की समझ फटे नहीं, उनका बन्धन शिथिल न हो ऐसी सावधानी
 +
 
 +
स्पष्ट हो और जानकारी ae | रखना सिखाना चाहिये ।
 +
 
 +
०... कक्षाकक्ष के पुस्तकालय के समान ही प्रत्येक घरमें .. *.. पुस्तकों को आवरण चढाना सिखाना चाहिये ।
 +
 
 +
पुस्तकालय a tar ame ear चाहिये । शिक्षित ° Ms पुस्तकालय को व्यवस्थित रखने का काम घर
 +
 
 +
व्यक्ति के घर की शोभा पुस्तकें ही होती हैं । शिक्षित में रहनेवाले विद्यार्थियों का होना चाहिये । उन्हें यह
 +
 
 +
लोगों का व्यसन पुस्तक पढ़ना होता है । घर में बड़ों सिखाने का काम घर सकी बड़े लोगों का है । हि
 +
 
 +
और छोटों सबके लिये पुस्तकें होनी चाहिये । सब... *... विद्यालय के पुस्तकों की स्वच्छता, सम्हाल, उन
 +
 
 +
साथ मिलकर पढते हों ऐसी कल्पना भी सम्य है । आवरण चढ़ाने का काम विद्यार्थियों की शिक्षा का
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एक अंग होना चाहिये ।
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०... विद्यालय के सभी पुरस्कार पुस्तक के रूप में देने का पंजिका पुस्तकों
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Sens दे © पंजिका के साथ पुस्तकों का मिलान करने का काम
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प्रचलन बढ़ाना चाहिये ।
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मे जब पुस्तकें आयें उनकी भी विद्यार्थियों को सिखाना चाहिये ।
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<nowiki>*</nowiki>. विद्यालय में जब भी नई पुस्तकें आयें उनकी . |e से आनेवाले अतिथियों को पुस्ताकालय
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सम्मानपूर्वक शोभायात्रा निकाली जाय, पूजा की जाय “दिखाया, Sees aoe सता
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और बाद में पुस्तकालय में स्थापित की जाय । विद्यार्थियों को आना चाहिये ।
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सम्मान करने के और तरीके भी सोचे जाय । ज्ञानजगत में जिस प्रकार बहुश्नुत होने की महिमा है
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° एक खाने का पदार्थ, पहनने का वख्र, खेलने की. उसी प्रकार बहुपाठी होने का भी महत्त्व है। विद्यार्थी
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वस्तु न खरीदकर पुस्तक खरीदी जाय इस के लिये... बहुपाठी बनें ऐसी सभी शिक्षकों और अभिभावकों की
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विद्यार्थियों को प्रेरित करना चाहिये । आकांक्षा होनी चाहिये । इस दृष्टि से हर प्रकार से सार्थक
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आजकल पुस्तकों के पर्याय के रूप में अनेक प्रकार... प्रयास करने चाहिये ।
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BGR
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