− | यह प्रश्नावली सब लोगों को अन्तर्मुख करने वाली थी। वास्तव में भारतीयों के रोम रोम में अच्छाई है। पवित्रता स्वभाव में तो हैं परन्तु पाश्चात्य अंधानुकरण एवं अध्ययन में कमी आने के कारण पवित्रता जैसी स्वाभाविक बात आज अव्यवहार्य हो गई है । स्वच्छता का बोलबाला इतना बढ़ गया है कि वह प्रदर्शन की वस्तु बन गई है। पर्यावरण की शुद्धि करने वाली प्रत्येक बात पवित्र है यह भरातीय मान्यता है । ॐ, वेद, ज्ञान, यज्ञ, सेवा, अन्न, गंगा, तुलसी, औषधि, गोमय, गोमाता, पंचमहाभूत, सद्भावना एवं | + | यह प्रश्नावली सब लोगों को अन्तर्मुख करने वाली थी। वास्तव में भारतीयों के रोम रोम में अच्छाई है। पवित्रता स्वभाव में तो हैं परन्तु पाश्चात्य अंधानुकरण एवं अध्ययन में कमी आने के कारण पवित्रता जैसी स्वाभाविक बात आज अव्यवहार्य हो गई है । स्वच्छता का बोलबाला इतना बढ़ गया है कि वह प्रदर्शन की वस्तु बन गई है। पर्यावरण की शुद्धि करने वाली प्रत्येक बात पवित्र है यह भरातीय मान्यता है । ॐ, वेद, ज्ञान, यज्ञ, सेवा, अन्न, गंगा, तुलसी, औषधि, गोमय, गोमाता, पंचमहाभूत, सद्भावना एवं सदाचार पवित्र हैं । विद्यालयों के सन्दर्भ में पवित्रता निर्माण करने हेतु दैनिक अग्निहोत्र, ब्रह्मनाद, सरस्वती वंदना, गीता के श्लोक, मानस की चौपाइयाँ आदि सहजता से कर सकते हैं । कक्षा में जाते समय जूते बाहर उतारना अत्यन्त सहज कार्य होना चाहिए। विद्यालय ज्ञान का केन्द्र है और ज्ञान पवित्रतम है । वास्तव में व्यवसाय और राजनीति अपने अपने स्थान पर उचित है, परन्तु उसे शिक्षा से जोडा गया तो शिक्षा अपवित्र हो जायेगी । इस बात को ध्यान में रखकर व्यवहार करेंगे तो विद्यालय की पवित्रता टिकेगी। |