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अतः वास्तव में साहस करने की आवश्यकता है । हमारे पास मार्गदर्शन की कमी नहीं है परन्तु मार्ग पर चलने से ही लक्ष्य नजदीक आता है और मार्ग पर चलना हमें होता है, अन्य किसी को नहीं ।
अतः वास्तव में साहस करने की आवश्यकता है । हमारे पास मार्गदर्शन की कमी नहीं है परन्तु मार्ग पर चलने से ही लक्ष्य नजदीक आता है और मार्ग पर चलना हमें होता है, अन्य किसी को नहीं ।
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पर्यावरण का विचार आजकल केवल प्रदूषण के सन्दर्भ
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सामने जो छात्र बैठे हैं उनकी बैठक व्यवस्था की रचना
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fat अध्ययन के स्वरूप के अनुसार भिन्न भिन्न हो सकती 2 |
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पैसों से सम्बन्ध जोड़ना सर्वसामान्य रचना तती प्रतति में आयताकार बैठने की है ।
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यह लोग नीचे बैठने की और कुर्सी पर बैठने की. खड़ी पंक्ति को तति कहते हैं और पड़ी प्रतति कहते हैं ।
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भिन्न-भिन्न रचनाएँ
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Sze
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पर्व ३ : विद्यालय की शैक्षिक व्यवस्थाएँ
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छात्रों की कुल संख्या के अनुसार तति और प्रतति संख्या
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बनती है । तति में प्रतति से अधिक संख्या होना स्वाभाविक
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है फिर भी कक्षा की आकृति और स्थान के अनुसार प्रतति में
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अधिक और तति ने कम संख्या बिठाई जा सकती है ।
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उदाहरण के लिए कक्षा में यदि ३० छात्रों की संख्या है तो ६
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तति और ५ प्रतति बनेंगे । ३५ संख्या है तो पांच तति और
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सात प्रतति बनेंगे । तति में और प्रतति में बैठे हुए छात्र एक
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दूसरे से समानांतर बना कर बैठते हैं तो अपने आप सुंदरता
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और अनुशासन का वातावरण बनता है । अध्ययन-अध्यापन
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करने वाले लोगों की मानसिकता पर भी इसका परिणाम होता
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है । यदि योगाध्यास करना है तो यह रचना बदलेगी या बदल
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सकती है । प्रथम प्रतति में यदि ५ बैठें है तो दूसरी में चार
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बैठेंगे और आगे वाले दो के बीच में एक छात्र बैठेगा ।
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उदाहरण के लिए प्रथम प्रतति में ६ बैठे हैं तो दूसरी में ५
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बैठेंगे तीसरी में ६ बैठेंगे चौथी में पाँच
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इस प्रकार से क्रमशः रचना होगी । इससे इस जगह में अधिक
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लोग बैठकर योग अभ्यास कर सकते हैं । यदि संगीत का
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अभ्यास करना है तो अध्यापक के सामने अर्ध मंडल में बैठना
सुरुचि पूर्ण और सुविधाजनक लगता है । इसमें भी प्रततियाँ
सुरुचि पूर्ण और सुविधाजनक लगता है । इसमें भी प्रततियाँ