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1. अभिभावकों को अपनी सन्तानों को सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में भेजने हेतु प्रेरित करना यह वर्तमान परिस्थिति में करनेलायक प्रथम उपाय है। सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में जो सुविधा है वह पर्याप्त है, जो शिक्षक हैं वे नीयत से कैसे भी हों शैक्षिक पात्रता की दृष्टि से पर्याप्त हैं । सरकारी विद्यालय में शुल्क नहीं है, वह सस्ता है। घर के पास है इसलिये वाहन का खर्च नहीं है। अन्य तामझाम नहीं हैं। बालक चलकर विद्यालय जा सकते हैं इसलिये समय और श्रम की बचत होती है । अतः इन विद्यालयों में भेजना अधिक अच्छा है । तन्त्र तो शिक्षकों को पढाने हेतु बाध्य नहीं कर सकता परन्तु अभिभावक कर सकते हैं। अभिभावकों के आग्रह का परिणाम तन्त्र पर भी होता है । अतः यह प्रबोधन का विषय बनना चाहिये । प्रश्न केवल यह है कि सरकार की इस मामले में सहायता करने हेतु कोई आयेगा नहीं, आयेगा तो किसी न किसी प्रकार के लाभ की अपेक्षा से आयेगा । सरकार से मिलने वाले लाभ या तो आर्थिक या राजनीतिक होते हैं । यह होते हुए भी सरकारी विद्यालयों में अपनी सन्तानों को पढाना लोगों के लिये लाभकारी ही है ।
 
1. अभिभावकों को अपनी सन्तानों को सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में भेजने हेतु प्रेरित करना यह वर्तमान परिस्थिति में करनेलायक प्रथम उपाय है। सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में जो सुविधा है वह पर्याप्त है, जो शिक्षक हैं वे नीयत से कैसे भी हों शैक्षिक पात्रता की दृष्टि से पर्याप्त हैं । सरकारी विद्यालय में शुल्क नहीं है, वह सस्ता है। घर के पास है इसलिये वाहन का खर्च नहीं है। अन्य तामझाम नहीं हैं। बालक चलकर विद्यालय जा सकते हैं इसलिये समय और श्रम की बचत होती है । अतः इन विद्यालयों में भेजना अधिक अच्छा है । तन्त्र तो शिक्षकों को पढाने हेतु बाध्य नहीं कर सकता परन्तु अभिभावक कर सकते हैं। अभिभावकों के आग्रह का परिणाम तन्त्र पर भी होता है । अतः यह प्रबोधन का विषय बनना चाहिये । प्रश्न केवल यह है कि सरकार की इस मामले में सहायता करने हेतु कोई आयेगा नहीं, आयेगा तो किसी न किसी प्रकार के लाभ की अपेक्षा से आयेगा । सरकार से मिलने वाले लाभ या तो आर्थिक या राजनीतिक होते हैं । यह होते हुए भी सरकारी विद्यालयों में अपनी सन्तानों को पढाना लोगों के लिये लाभकारी ही है ।
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समाजसेवी संगठनों को अभिभावक प्रबोधन का कार्य करना चाहिये । शिक्षा महँगी हो गई है उसका भी
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समाजसेवी संगठनों को अभिभावक प्रबोधन का कार्य करना चाहिये । शिक्षा महँगी हो गई है उसका भी उपाय हो जायेगा । यह भी आज का विकट प्रश्न बना हुआ है।
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2. प्रबोधन की आवश्यकता सरकार को भी है । सरकारी प्राथमिक शिक्षकों के पास पढाने के अतिरिक्त इतने अधिक काम रहते हैं कि वे पढाने का काम कम कर पाते हैं। उदाहरण के लिये जनगणना, विभिन्न प्रकार के सर्वेक्षण, चुनाव के समय जानकारी पहुँचाने का काम आदि विभिन्न सरकारी योजनाओं का काम प्राथमिक शिक्षकों को करना पडता है। शिक्षक और अभिभावक इससे तंग आ जाते हैं। यदि सरकारी विद्यालय ठीक से चलते हैं तो शिक्षकों को इस प्रकार की व्यस्तता से मुक्त करना होगा । अ-मानवीयतन्त्र सहजता से ऐसा करता नहीं है इसलिये उसके लिये प्रबोधन की अधिक आवश्यकता होगी।
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3. प्रबोधन का कार्य निःस्वार्थ लोग या संस्थायें ही कर सकती हैं। यदि वे भी किसी प्रकार के लाभ की अपेक्षा करेंगे तो राजकीय पक्ष उनका लाभ उठायेंगे । फिर प्रबोधन भी एक व्यवसाय बन जायेगा। सरकार यदि अपनी प्रतिष्ठा बढाने हेतु पैसे का आधार लेती है तो उसका लाभ उठाने वाले तत्त्व निकल आयेंगे । इसलिये स्वेच्छा से, निरपेक्ष भाव से, समाजसेवा करने वाले
    
कानून, सुविधा, सामग्री, fem, (२) पढ़ाने न पढ़ाने का मूल्यांकन करने की पद्धति अत्यन्त
 
कानून, सुविधा, सामग्री, fem, (२) पढ़ाने न पढ़ाने का मूल्यांकन करने की पद्धति अत्यन्त
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