Changes

Jump to navigation Jump to search
Line 314: Line 314:  
जो विद्यार्थी अध्ययन में तेजस्वी हैं उन्हें विद्यालय में शिक्षक बनना चाहिए। शिक्षक बनकर पैसे कितने मिलते हैं यह स्वतन्त्र विषय है। हो सकता है कि न भी मिले या कम मिले । जिस प्रकार अच्छा वर या अच्छी वधू पाने के लिए गुण और कर्तृत्व देखे जाते हैं, रूप या पैसा नहीं उसी प्रकार ज्ञानदान का पवित्र और श्रेष्ठ कार्य करने का भाग्य मिलता है तो पैसे नहीं देखे जाते । अतः विद्यालय के लिए शिक्षकों की पीढ़ियाँ विद्यालय ही तैयार करेगा और वर्तमान विद्यार्थी ही भावी शिक्षक होंगे। इस दृष्टि से विद्यालय ने विद्यार्थियों का चयन करना होगा और विद्यार्थी तथा उनके अभिभावकों ने इस बात के लिए अपने आपको प्रस्तुत करना होगा। यह कार्य विद्यालय की आवश्यकता और विद्यार्थियों की क्षमता और सिद्धता के अनुसार होगा।  
 
जो विद्यार्थी अध्ययन में तेजस्वी हैं उन्हें विद्यालय में शिक्षक बनना चाहिए। शिक्षक बनकर पैसे कितने मिलते हैं यह स्वतन्त्र विषय है। हो सकता है कि न भी मिले या कम मिले । जिस प्रकार अच्छा वर या अच्छी वधू पाने के लिए गुण और कर्तृत्व देखे जाते हैं, रूप या पैसा नहीं उसी प्रकार ज्ञानदान का पवित्र और श्रेष्ठ कार्य करने का भाग्य मिलता है तो पैसे नहीं देखे जाते । अतः विद्यालय के लिए शिक्षकों की पीढ़ियाँ विद्यालय ही तैयार करेगा और वर्तमान विद्यार्थी ही भावी शिक्षक होंगे। इस दृष्टि से विद्यालय ने विद्यार्थियों का चयन करना होगा और विद्यार्थी तथा उनके अभिभावकों ने इस बात के लिए अपने आपको प्रस्तुत करना होगा। यह कार्य विद्यालय की आवश्यकता और विद्यार्थियों की क्षमता और सिद्धता के अनुसार होगा।  
   −
जो विद्यार्थी शिक्षक नहीं बनते हैं वे अपने घर चलाते हैं और विभिन्न व्यवसाय करते हैं। विद्यालय की आर्थिक आवश्यकतायें पूर्ण करने का दायित्व उनका है। विद्यालय को उनसे मांगना न पड़े परन्तु एक व्यवस्था यह बनी हो कि हर पूर्व छात्र को विद्यालय के लिए निश्चित धनराशि नियमित रूप से देना है । यह विद्यालय का शुल्क नहीं है, विद्यार्थियों की गुरुदक्षिणा है । गुरुदक्षिणा केवल एक ही बार देनी होती है ऐसा
+
जो विद्यार्थी शिक्षक नहीं बनते हैं वे अपने घर चलाते हैं और विभिन्न व्यवसाय करते हैं। विद्यालय की आर्थिक आवश्यकतायें पूर्ण करने का दायित्व उनका है। विद्यालय को उनसे मांगना न पड़े परन्तु एक व्यवस्था यह बनी हो कि हर पूर्व छात्र को विद्यालय के लिए निश्चित धनराशि नियमित रूप से देना है । यह विद्यालय का शुल्क नहीं है, विद्यार्थियों की गुरुदक्षिणा है । गुरुदक्षिणा केवल एक ही बार देनी होती है ऐसा नहीं है, वह नियमित रूप से भी दी जा सकती है। गुरुदक्षिणा देने का काम विद्यार्थी की आवश्यकता होना चाहिए, विद्यालय की नहीं । ऐसी व्यवस्था करने के लिए विद्यालय ने प्रथम तो पढ़ाने हेतु शुल्क लेना बन्द करना चाहिए । शुल्क
 +
 
 +
और गुरुदक्षिणा दोनों एक साथ नहीं हो सकता। इसका भावात्मक पक्ष दायित्वबोध का है। कृतज्ञ विद्यार्थियों को होना है, विद्यालय को नहीं । हम विद्यालय को भी परिवार कहते हैं तो उसका व्यावहारिक पक्ष यही होना चाहिए। विद्यालय में प्रशासन हेतु भी एक व्यवस्था होनी होती है। आज इसके लिए संचालक मंडल होता है। नियुक्तियाँ करना, सरकार के साथ पत्रव्यवहार करना, आवश्यक सामग्री की खरीदी करना, भवन आदि बनवाना, धनसंग्रह करना आदि काम प्रबन्ध समिति के
    
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
 
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
1,815

edits

Navigation menu