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आज तो अध्ययन पूर्ण हुआ इसलिए छात्र एक बोझ कम हुआ ऐसा मानते हैं । प्राथमिक या माध्यमिक विद्यालय पूर्ण कर जब उच्च शिक्षा में जाते हैं तब अनेक प्रकार के बंधनों से मुक्ति मिली ऐसा भी अनुभव करते हैं। गृहस्थ जीवन में जब विद्यालय को याद करते हैं तब कुछ भावात्मक बातें भी होती हैं । जिन शिक्षकों ने विशेष रूप से प्रशंसा या सहायता की थी उन्हें और जिन्होंने विशेष रूप से दंडित किया था उन्हें याद करते हैं । किस प्रकार शैतानी करते थे या कौन शिक्षक कैसा था इसकी भी चर्चा कभी कभी हो जाती है । अपने विद्यालय का गौरव अनुभव करने के किस्से भी क्वचित होते हैं।
 
आज तो अध्ययन पूर्ण हुआ इसलिए छात्र एक बोझ कम हुआ ऐसा मानते हैं । प्राथमिक या माध्यमिक विद्यालय पूर्ण कर जब उच्च शिक्षा में जाते हैं तब अनेक प्रकार के बंधनों से मुक्ति मिली ऐसा भी अनुभव करते हैं। गृहस्थ जीवन में जब विद्यालय को याद करते हैं तब कुछ भावात्मक बातें भी होती हैं । जिन शिक्षकों ने विशेष रूप से प्रशंसा या सहायता की थी उन्हें और जिन्होंने विशेष रूप से दंडित किया था उन्हें याद करते हैं । किस प्रकार शैतानी करते थे या कौन शिक्षक कैसा था इसकी भी चर्चा कभी कभी हो जाती है । अपने विद्यालय का गौरव अनुभव करने के किस्से भी क्वचित होते हैं।
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कभी कभी विद्यालय के लिए आर्थिक सहायता की आवश्यकता हुई तो अधिक कमाने वाले छात्रों को विद्यालय
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कभी कभी विद्यालय के लिए आर्थिक सहायता की आवश्यकता हुई तो अधिक कमाने वाले छात्रों को विद्यालय याद करता है। कभी पूर्व छात्रों के स्नेहमिलन जैसे कार्यक्रम भी बनते हैं । बहुत कम संख्या में परंतु पूर्व छात्रसंघ भी बनता है । ये छात्र अपनी योजना से ही मिलते हैं और कोई न कोई कार्यक्रम करते हैं ।
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ऐसा विविध प्रकार का क्रम रहता हो तो भी एक बात लक्षणीय है कि अध्ययन पूर्ण करने के बाद छात्रों और विद्यालय का व्यवस्थित सम्बन्ध नहीं रहता ।
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यह सम्बन्ध रहना चाहिए । कैसे रहेगा ? जरा सोचें । अध्ययन पूर्ण करने के बाद छात्र कायदे से तो विद्यालय नहीं जाते यह सत्य है परन्तु छात्रों का जीवन गढ़ने में विद्यालय की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। छात्रों की बुद्धि, मानस, कौशल आदि का गठन विद्यालय के अध्ययन के कारण ही हुआ है । विद्यालय में गया है वह छात्र जो नहीं गया उससे सर्वथा भिन्न होगा। यह भिन्नता विद्यालय के कारण ही है। यह समझ में आया और उसका स्मरण रहा तो छात्र विद्यालय के प्रति कृतज्ञ रहेगा । आज ऐसी कृतज्ञता की भावना नहीं दिखाई देती है यह भी सत्य है । इसका कारण यह है कि लोग मानते हैं कि छात्र शुल्क देता है और शुल्क के बदले में शिक्षक पढ़ाते हैं । यह बहुत यांत्रिक और व्यावसायिक व्यवहार हुआ। ऐसे व्यवहार में भी शुल्क के बदले में तो ज्ञान नहीं ही मिला है। यदि शुल्क के बदले में वस्तु की तरह ज्ञान मिलता तो सभी छात्रों को एक जैसा ही मिलता । यदि पैसे से ही ज्ञान दिया जाता तो सभी शिक्षक एक जैसा ही पढ़ाते । वास्तव में पैसे से ज्ञान लिया और दिया नहीं जाता है यह आज के बाजारीकरण के जमाने में भी समझ में आने वाली बात है । तात्पर्य यह है कि विद्यार्थी का पूरा जीवन विद्यालय ने ही बनाया है। कृतज्ञतापूर्वक विद्यालय के साथ पेश आना हर छात्र के लिए सम्भव बनना चाहिए ।
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===== विद्यालय के प्रति कृतज्ञता का भाव जगाना =====
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विद्यालय ने ही इसका विचार करना चाहिए । विद्यार्थियों के साथ का व्यवहार ऐसा ही होना चाहिए कि इनके विद्यालय के साथ आत्मीय सम्बन्ध बने । जिस प्रकार घर के साथ घर के सदस्यों का सम्बन्ध हमेशा के लिए
    
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
 
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
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