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इस प्रकार यहाँ विद्यार्थी और शिक्षक मिलकर विद्यालय का संचालन करें इस विषय में कुछ विवरण दिया गया है । परन्तु ऐसा होना इतना सरल नहीं है । इसे सम्भव बनाने हेतु भी योजना पूर्वक कुछ प्रयास करने होंगे । ये प्रयास कुछ इस प्रकार हो सकते हैं...  
 
इस प्रकार यहाँ विद्यार्थी और शिक्षक मिलकर विद्यालय का संचालन करें इस विषय में कुछ विवरण दिया गया है । परन्तु ऐसा होना इतना सरल नहीं है । इसे सम्भव बनाने हेतु भी योजना पूर्वक कुछ प्रयास करने होंगे । ये प्रयास कुछ इस प्रकार हो सकते हैं...  
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1. इस संकल्पना की स्वीकृति लोकमानस में होना और अभिभावकों की समझ में आना आवश्यक है। आज केवल परीक्षा में अंक लाना ही शिक्षा का उद्देश्य माना जाता है तब शेष सारी बातें निरर्थक लगना स्वाभाविक है। अतः सार्थक शिक्षा की कल्पना लेकर व्यापक समाजप्रबोधन करना होगा । अभिभावकों की स्वीकृति के बिना कोई काम होना असम्भव है। इस दृष्टि से अनेक शिक्षण चिंतकों ने विभिन्न स्वरूपों में लोकमानस से संवाद करने की आवश्यकता होगी। बहुत कुछ लिखा जाना चाहिये और प्रचलित और प्रसारित होना चाहिये। हाथ से काम करने को आज हेय माना जाने लगा है। विद्यार्थी को घर में भी किसी प्रकार का काम करने का अभ्यास नहीं है । हर मातापिता की आकांक्षा होती है कि उनकी सन्तान पढलिखकर ऐसा व्यवसाय करे जहाँ उसे हाथ से काम न करना पडे । इस स्थिति में विद्यार्थी को हर काम सिखाना होगा और घर में भी करने के
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1. इस संकल्पना की स्वीकृति लोकमानस में होना और अभिभावकों की समझ में आना आवश्यक है। आज केवल परीक्षा में अंक लाना ही शिक्षा का उद्देश्य माना जाता है तब शेष सारी बातें निरर्थक लगना स्वाभाविक है। अतः सार्थक शिक्षा की कल्पना लेकर व्यापक समाजप्रबोधन करना होगा । अभिभावकों की स्वीकृति के बिना कोई काम होना असम्भव है। इस दृष्टि से अनेक शिक्षण चिंतकों ने विभिन्न स्वरूपों में लोकमानस से संवाद करने की आवश्यकता होगी। बहुत कुछ लिखा जाना चाहिये और प्रचलित और प्रसारित होना चाहिये।  
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2. हाथ से काम करने को आज हेय माना जाने लगा है। विद्यार्थी को घर में भी किसी प्रकार का काम करने का अभ्यास नहीं है । हर मातापिता की आकांक्षा होती है कि उनकी सन्तान पढलिखकर ऐसा व्यवसाय करे जहाँ उसे हाथ से काम न करना पडे । इस स्थिति में विद्यार्थी को हर काम सिखाना होगा और घर में भी करने के लिये उसे प्रेरित करना होगा। फिर हाथों को काम करना सिखाना होगा यह एक बहुत बड़ा काम है और धैर्यपूर्वक करने की आवश्यकता है ।
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3. विद्यालय की अध्ययन अध्यापन पद्धति, समयविभाजन, परीक्षा पद्धति, व्यवस्थायें आदि सब इस संकल्पना के अनुरूप बदलना होगा । गणवेश भी बदल सकता है। हर विषय को क्रियात्मक पद्धति से ढालना होगा। हर विषय का मूल्यांकन क्रियात्मक बनाना होगा । यही नहीं तो अनेक बातों को परीक्षा से परे रखना होगा। परीक्षा की पद्धति, परीक्षा का महत्त्व, परीक्षा विषयक मानसिकता में बड़ा बदल करना होगा । पुस्तकों का और लेखन का महत्त्व कम करना होगा । पढाई को जीवन के साथ जोडना होगा ।
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4. किसी एक विद्यालय में इस प्रकार की शिक्षा होगी तो वह विद्यालय एक प्रयोग के रूप में चल तो जायेगा । प्रयोग के रूप में उसे प्रतिष्ठा भी कदाचित मिलेगी, उसके विषय में कहीं कोई लेख भी लिखा जायेगा परन्तु मुख्य धारा की शिक्षा में कोई परिवर्तन नहीं होगा । प्रयोग तो आज भी बहुत अच्छे हो रहे हैं, अच्छे से अच्छे हो रहे हैं परन्तु आवश्यकता मुख्य धारा की शिक्षा में परिवर्तन होने की है । मुख्य धारा जब भारतीय होगी तब भारत की शिक्षा भारतीय होगी और शिक्षा जब भारतीय होगी तब भारत भी भारत बनेगा।
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मुख्य धारा की शिक्षा में इस प्रकार का परिवर्तन हो इस दृष्टि से देश के मूर्धन्य शिक्षाविदों ने इस पर चिन्तन करना होगा और बडे बडे देशव्यापी सामाजिकसांस्कृतिक-शैक्षिक संगठनों ने इसे अपनाना होगा । जब यह परिवर्तन देशव्यापी बनता है तभी अर्थपूर्ण भी बनता है। एक और शिक्षण चिन्तन, दूसरी और समाज प्रबोधन और तीसरी ओर प्रत्यक्ष कार्य ऐसे तीनों एक साथ होंगे तभी परिवर्तन होने की सम्भावना बनेगी।
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5. विद्यार्थी की अपेक्षा शिक्षकों की मानसिकता अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। वेतन की अपेक्षा, अध्यापन का अत्यन्त संकुचित अर्थ और दायित्वबोध का अभाव समाज के अन्य घटकों की तरह शिक्षक समुदाय को भी ग्रस रहे हैं। वास्तव में शिक्षकों की भूमिका इसमें केन्द्रवर्ती है। उनका प्रबोधन, प्रशिक्षण और सज्जता बढाने के प्रभावी प्रयास करने होंगे।
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6. यह कार्य त्वरित गति से तो नहीं होगा । धैर्यपूर्वक और निरन्तरतापूर्वक इस कार्य में लगे रहने की आवश्यकता है। भारतीय शिक्षा की पुनर्प्रतिष्ठा हेतु यह करना अनिवार्य है यह निश्चित है।
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=== विद्यालय और पूर्व छात्र ===
 
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
 
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
  
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