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वर्तमान में विद्यालय की आर्थिक व्यवस्था भी शिक्षकों के जिम्मे नहीं होती। वे केवल पढाने के लिये होते हैं । पढाने के लिये उन्हें वेतन मिलता है । विद्यालय की आर्थिक जिम्मेदारी संचालकों की अथवा सरकार की होती है । भवन, साधनसामग्री, फर्नीचर आदि सब उनकी जिम्मेदारी में है और उसका स्वामित्व भी उनका ही है।
 
वर्तमान में विद्यालय की आर्थिक व्यवस्था भी शिक्षकों के जिम्मे नहीं होती। वे केवल पढाने के लिये होते हैं । पढाने के लिये उन्हें वेतन मिलता है । विद्यालय की आर्थिक जिम्मेदारी संचालकों की अथवा सरकार की होती है । भवन, साधनसामग्री, फर्नीचर आदि सब उनकी जिम्मेदारी में है और उसका स्वामित्व भी उनका ही है।
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विद्यालय में सफाई, मरम्मत आदि करने हेतु सफाई
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विद्यालय में सफाई, मरम्मत आदि करने हेतु सफाई कर्मचारी होते हैं। वह भी शिक्षकों को नहीं करना है। कार्यालयीन काम करने हेतु बाबू होते हैं । शिक्षक, बाबू, सफाई कर्मचारी आदि से काम करवाने की जिम्मेदारी मुख्याध्यापक की होती है।
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वर्तमान विद्यालयों की यह एक प्रकार से विशृंखल व्यवस्था है । यह परिवार की व्यवस्था नहीं है।
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हम यदि विद्यालय को परिवार मानें तो विद्यालय संचालन की जिम्मेदारी शिक्षकों और विद्यार्थियों की है। मुख्याध्यापक विद्यालय का मुखिया है, शेष सारे सहयोगी । सब मिलकर स्वतन्त्रतापूर्वक विद्यालय चलाते हैं ।
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===== विद्यार्थी क्या कर सकते हैं =====
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१. स्वच्छता आदि से सम्बन्धित व्यवस्थाओं में सहभाग : सम्पूर्ण विद्यालय की स्वच्छता, व्यवस्था, सुशोभन,
    
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
 
परन्तु हम सब जानते हैं कि हमें इनमें से एक भी
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