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9. जो विद्यार्थी शिक्षक ही बनेंगे उनके प्रगत अध्ययन हेतु एक विशेष संस्था का निर्माण हो सकता है जहाँ विद्यालय अपने चयनित शिक्षकों को विशेष शिक्षा के लिये भेज सकते हैं । यहाँ मुख्य रूप से राष्ट्रीय शिक्षा की संकल्पना, राष्ट्रनिर्माण, ज्ञान की सेवा, वैश्विक समस्याओं के ज्ञानात्मक हल, धर्म और संस्कृति, भारतीय शिक्षा का वर्तमान, भारत का भविष्य शिक्षा के माध्यम से कैसे बनेगा, उत्तम अध्यापन आदि विषय प्रमुख रूप से पढाये जायेंगे ।
 
9. जो विद्यार्थी शिक्षक ही बनेंगे उनके प्रगत अध्ययन हेतु एक विशेष संस्था का निर्माण हो सकता है जहाँ विद्यालय अपने चयनित शिक्षकों को विशेष शिक्षा के लिये भेज सकते हैं । यहाँ मुख्य रूप से राष्ट्रीय शिक्षा की संकल्पना, राष्ट्रनिर्माण, ज्ञान की सेवा, वैश्विक समस्याओं के ज्ञानात्मक हल, धर्म और संस्कृति, भारतीय शिक्षा का वर्तमान, भारत का भविष्य शिक्षा के माध्यम से कैसे बनेगा, उत्तम अध्यापन आदि विषय प्रमुख रूप से पढाये जायेंगे ।
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उत्तमोत्तम शिक्षकों के दो काम होंगे। एक तो
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10. उत्तमोत्तम शिक्षकों के दो काम होंगे। एक तो विद्यालयों के शिक्षकों को सिखाना और दूसरा अनुसन्धान करना । नये नये शाख्रग्रन्थों का निर्माण करना जिसमें छोटे से छोटे विद्यार्थी से लेकर विट्रज्जनों तक सबके लिये सामग्री हो । इस कार्य के लिये देशविदेश के श्रेष्ठ विद्वानों के साथ सम्पर्क स्थापित करने का काम भी करना होगा। इसके लिये अनुसन्धान पीठों की भी रचना करनी होगी । बीस पचीस वर्ष की अवधि में विद्यालय के छात्र अनुसन्धान करने में जुट जाय ऐसी स्थिति बनानी होगी ।
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विद्यालयों के शिक्षकों को सिखाना और दूसरा
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11. कई व्यक्ति जन्मजात शिक्षक होते हैं । इनका स्वभाव ही शिक्षक का होता हैं क्योंकि स्वभाव जन्मजात होता है । ऐसे जन्मजात शिक्षकों को पहचानने का शाख्र और विधि हमें अनुसन्धान करके खोजनी होगी । इसके आधार पर शिक्षक बनने की सम्भावना रखने वाले विद्यार्थियों का चयन करना सरल होगा । अधिजननशास्त्र, मनोविज्ञान, आयुर्वेद, ज्योतिष, सामुद्रिकशास्त्र आदि ऐसे शास्त्र हैं जो इसमें हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं । अर्थात्‌ ये सब अपनी अपनी पद्धति से व्यक्ति को पहचानने का कार्य करते हैं । शिक्षक को इन सब का समायोजन कर अपने लिये उपयोगी सामग्री बनानी होगी ।
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अनुसन्धान करना नये नये शाख्रग्रन्थों का निर्माण
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12. अभिभावकों में भी स्वभाव से शिक्षक परन्तु अन्य व्यवसाय करने वाले अनेक व्यक्ति होते हैं । इन्हें शिक्षक बनने हेतु प्रेरित किया जा सकता है । इन्हें विद्यालय के शैक्षिक कार्य में, शिक्षा विचार के प्रसार में, विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाओं में सहभागी बनाया जा सकता है
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करना जिसमें छोटे से छोटे विद्यार्थी से लेकर विट्रज्जनों
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13. विभिन्न प्रकार के कार्य कर सेवानिवृत्त हुए कई लोग स्वभाव से शिक्षक होते हैं । उन्हें भी उनकी क्षमता  और रुचि के अनुसार शिक्षा की पुर्नरचना के विभिन्न कार्यों के साथ जोडा जा सकता है ।
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तक सबके लिये सामग्री हो । इस कार्य के लिये
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14. तात्पर्य यह है कि शिक्षा का क्षेत्र खुला करना चाहिये आज वह अनेक गैरशैक्षिक बातों का  बन्धक बन गया है । उसे इनसे मुक्त करना चाहिये ।  भारतीय समाजन्यवस्था का मूल तत्त्व परिवारभावना है। विद्यालय भी एक परिवार है । परिवार में परम्परा बनाना और बनाये रखना मूल काम है । समाजजीवन में दो प्रकार की परम्परायें होती हैं । एक है वंशपरम्परा जो पितापुत्र से बनती है । दूसरी है ज्ञानपरम्परा जो गुरुशिष्य अर्थात्‌ शिक्षक और विद्यार्थी से बनती है । विद्यालय का धर्म इस परम्परा को निभाने का है । शिक्षक अपने विद्यार्थी को शिक्षक बनाकर इस परम्परा को निभाता है।
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देशविदेश के श्रेष्ठ विद्वानों के साथ सम्पर्क स्थापित
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इस प्रकार सांस्कृतिक और व्यावहारिक दोनों प्रकार से उत्तम विद्यार्थी को शिक्षक बनाकर शिक्षाक्षेत्र के लिये अच्छे शिक्षक प्राप्त करने की योजना बनाना आवश्यक है ।
 
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करने का काम भी करना होगा। इसके लिये
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अनुसन्धान पीठों की भी रचना करनी होगी । बीस
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पचीस वर्ष की अवधि में विद्यालय के छात्र अनुसन्धान
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करने में जुट जाय ऐसी स्थिति बनानी होगी ।
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कई व्यक्ति जन्मजात शिक्षक होते हैं । इनका स्वभाव
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ही शिक्षक का होता हैं क्योंकि स्वभाव जन्मजात
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होता है । ऐसे जन्मजात शिक्षकों को पहचानने का
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शाख्र और विधि हमें अनुसन्धान करके खोजनी
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होगी । इसके आधार पर शिक्षक बनने की सम्भावना
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रखने वाले विद्यार्थियों का चयन करना सरल होगा ।
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सामुद्रिकशास्त्र आदि ऐसे शास्त्र हैं जो इसमें हमारा
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मार्गदर्शन कर सकते हैं । अर्थात्‌ ये सब अपनी अपनी
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पद्धति से व्यक्ति को पहचानने का कार्य करते हैं ।
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शिक्षक को इन सब का समायोजन कर अपने लिये
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उपयोगी सामग्री बनानी होगी ।
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शिक्षक बनने हेतु प्रेरित किया जा सकता है । इन्हें
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में, विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाओं में सहभागी बनाया
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पर्व २ : विद्यार्थी, शिक्षक, विद्यालय, परिवार
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स्वभाव से शिक्षक होते हैं । उन्हें भी उनकी क्षमता... प्रकार की परम्परायें होती हैं । एक है
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और रुचि के अनुसार शिक्षा की पुर्नरचना के विभिन्न. वंशपरम्परा जो पितापुत्र से बनती है । दूसरी है ज्ञानपरम्परा
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कार्यों के साथ जोडा जा सकता है । जो गुरुशिष्य अर्थात्‌ शिक्षक और विद्यार्थी से बनती है ।
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१४, तात्पर्य यह है कि शिक्षा का क्षेत्र खुला करना... विद्यालय का धर्म इस परम्परा को निभाने का है । शिक्षक
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चाहिये । आज वह अनेक गैरशैक्षिक बातों का... अपने विद्यार्थी को शिक्षक बनाकर इस परम्परा को निभाता
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बन्धक बन गया है । उसे इनसे मुक्त करना चाहिये । है।
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भारतीय समाजन्यवस्था का मूल तत्त्व परिवारभावना इस प्रकार सांस्कृतिक और व्यावहारिक दोनों प्रकार
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है। विद्यालय भी एक परिवार है । परिवार में परम्परा... से उत्तम विद्यार्थी को शिक्षक बनाकर शिक्षाक्षेत्र के लिये
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बनाना और बनाये रखना मूल काम है । समाजजीवन में दो... अच्छे शिक्षक प्राप्त करने की योजना बनाना आवश्यक है ।
 
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