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==== देशभक्ति की समझ ====
 
==== देशभक्ति की समझ ====
१... जिसे देश कहते हैं उसे वास्तविक रूप में राष्ट्र कहा जाता है । राष्ट्र केवल भौगोलिक नहीं, सांस्कृतिक इकाई है ।
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# जिसे देश कहते हैं उसे वास्तविक रूप में राष्ट्र कहा जाता है । राष्ट्र केवल भौगोलिक नहीं, सांस्कृतिक इकाई है ।
 
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# राष्ट्र भूमि का टुकडा मात्र नहीं है । वह भूमि, भूमि के ऊपर रहने वाली प्रजा और उस प्रजा का जीवनदर्शन मिलकर राष्ट्र बनता है । तत्त्व के रूप में राष्ट्र जीवनदर्शन है और व्यवहार के रूप में जीवनदर्शन, प्रजा और भूमि ये तीनों मिलकर राष्ट्र बनता है ।
2. राष्ट्र भूमि का टुकडा मात्र नहीं है । वह भूमि, भूमि के ऊपर रहने वाली प्रजा और उस प्रजा का जीवनदर्शन मिलकर राष्ट्र बनता है । तत्त्व के रूप में राष्ट्र जीवनदर्शन है और व्यवहार के रूप में जीवनदर्शन, प्रजा और भूमि ये तीनों मिलकर राष्ट्र बनता है ।
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# भूमि और उस पर रहनेवाली प्रजा का माता और पुत्र का सम्बन्ध होना अनिवार्य है । जगत में इस सम्बन्ध को विभिन्न नाम भले ही दिये गये हों तो भी भावना एक ही है । जैसे कि अंग्रेजी भाषा में मातृभामि के स्थान पर पितृभूमि और अरबी, फारसी आदि भाषाओं में वतन अथवा मादरे वतन कहा जाता है । भूमि के लिये भक्तिभाव होना राष्ट्रीय होने की अर्थात्‌ देश के नागरिक होने की प्रथम शर्त है ।
 
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# भूमि यदि माता है तो प्रजा में आपस में बन्धुभाव है यह भी स्वाभाविक है । देश की सम्पत्ति मेरी है, देश की प्रजा मेरी है, देश की नदियाँ, पर्वत, अरण्य सब मेरे हैं ऐसा भाव होना भी उतना ही स्वाभाविक है ।  
3. भूमि और उस पर रहनेवाली प्रजा का माता और पुत्र का सम्बन्ध होना अनिवार्य है । जगत में इस सम्बन्ध को विभिन्न नाम भले ही दिये गये हों तो भी भावना एक ही है । जैसे कि अंग्रेजी भाषा में मातृभामि के स्थान पर पितृभूमि और अरबी, फारसी आदि भाषाओं में वतन अथवा मादरे वतन कहा जाता है । भूमि के लिये भक्तिभाव होना राष्ट्रीय होने की अर्थात्‌ देश के नागरिक होने की प्रथम शर्त है ।
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# देश की भूमि, देश की सम्पत्ति मेरी है इसके दो अर्थ होते हैं । मेरे हैं अर्थात्‌ उन पर मेरा स्वामीत्व है, मैं उनका उपभोग मेरे सुख के लिये कर सकता हूँ ऐसा भी अर्थ होता है और मेरे हैं इसलिये मुझे उनका आदर करना चाहिये, उनकी रक्षा करनी चाहिये, उनके प्रति प्रेम और कृतज्ञतापूर्ण व्यवहार करना चाहिये ऐसा अर्थ भी होता है। भारत में हमेशा इस दूसरे अर्थ को ही माना है क्योंकि बन्धुभाव का सही अर्थ वही है ।
 
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# जीवनदूर्शन की इस स्पष्टता के बाद विद्यार्थियों को राष्ट्रविषयक जानकारी भी होना आवश्यक है । मेरे देश का भूगोल, मेरे देश की सीमायें, मेरे देश की जलवायु, मेरे देश की प्रकृतिसम्पदा आदि का सम्यक्‌ परिचय मुझे अर्थात्‌ विद्यार्थियों को होना ही चाहिये । दुनिया के विभिन्न राष्ट्रीं से भिन्न मेरे देश के भूगोल की क्या विशेषतायें हैं यह मुझे जानना चाहिये । उदाहरण के लिये केवल भारत में छः ऋऋतुयें हैं, केवल भारत में ऐसा भूभाग है जहाँ वर्ष में तीन फसलें ली जा सकती हैं, भारत की गंगा नदी की बराबरी करने वाली नदी पृथ्वी पर कहीं नहीं है । भारत की गाय की बराबरी करने वाला कोई प्राणी विश्व में नहीं है और ऐसी गंगा और गाय को गंगामैया और गोमाता कहने वाली प्रजा भी विश्व में कहीं नहीं है । भारत की ऐसी विशेषताओं का ज्ञान भारत के हर विद्यार्थी को दिया जाना चाहिये । देशभक्ति का यह प्रथम सोपान है ।
४. भूमि यदि माता है तो प्रजा में आपस में बन्धुभाव है यह भी स्वाभाविक है । देश की सम्पत्ति मेरी है, देश की प्रजा मेरी है, देश की नदियाँ, पर्वत, अरण्य सब मेरे हैं ऐसा भाव होना भी उतना ही स्वाभाविक है ।  
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# भूगोल की तरह भारत के इतिहास की भी जानकारी चाहिये । हम कितने प्राचीन हैं, विश्व में हमारी क्या छबी रही है, भारत पर कब, किसके, क्यों आक्रमण हुए हैं और भारत ने आक्रान्ताओं के साथ कैसा व्यवहार किया है, विश्व के अन्य राष्ट्रीं के साथ भारत का व्यवहार कैसा रहा है इसकी जानकारी विद्यार्थियों को होनी चाहिये । भारत का इतिहास अर्थात्‌ हमारे पूर्वजों का इतिहास ऐसी दृष्टि भी बननी चाहिये ।
 
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# यह देश कैसे चलता है अर्थात्‌ अपने समाजजीवन की व्यवस्थायें कैसे करता है यह भी हर विद्यार्थी को जानना जरूरी है । अर्थात्‌ भारत को जानने के लिये इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र,  आदि जानने की आवश्यकता होती है । तभी हम ज्ञानपूर्वक देश के साथ ज़ुड सकते हैं और देश के सच्चे नागरिक बन सकते हैं ।इस सन्दर्भ में विचार करने पर लगता है कि हमने देशभक्ति विषय का सर्वथा विपर्यास कर दिया है। यहाँ उट्लिखित सभी विषयों की घोर उपेक्षा होती है। कोई उन्हें पढ़ना नहीं चाहता क्योंकि उससे अच्छे वेतन वाली नौकरी नहीं मिलती । इन विषयों का सम्बन्ध देशभक्ति के साथ है ऐसा न पढनेवाला मानता है न पढ़ाने वाला । मूल सर्न्दर्भ ही नहीं होने के कारण इनका पाठ्यक्रम भी निर्रर्थक होता है और अध्ययन अध्यापन पद्धति शुष्क और उदासीभरी । इसके चलते समय और शक्ति का अपव्यय होता है । यही नहीं तो राष्ट्रविरोधी अनेक बातें पाठ्यक्रम में घुस जाती हैं, अनेक गलत तथ्य पढाये जाने लगते हैं। इन विषयों की शिक्षा सन्दर्भरहित और देशभक्ति केवल औपचारिक प्रदर्शन की वस्तु बन जाती है ।
५. देश की भूमि, देश की सम्पत्ति मेरी है इसके दो अर्थ होते हैं । मेरे हैं अर्थात्‌ उन पर मेरा स्वामीत्व है, मैं उनका उपभोग मेरे सुख के लिये कर सकता हूँ ऐसा भी अर्थ होता है और मेरे हैं इसलिये मुझे उनका आदर करना चाहिये, उनकी रक्षा करनी चाहिये, उनके प्रति प्रेम और कृतज्ञतापूर्ण व्यवहार करना चाहिये ऐसा अर्थ भी होता है। भारत में हमेशा इस दूसरे अर्थ को ही माना है क्योंकि बन्धुभाव का सही अर्थ वही है ।
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# यह देश कैसा है और कैसे चलता है इसकी जानकारी बडी कक्षाओं में बडी आयु के छात्रों को ही दी जा सकती है ऐसा नहीं है । शिशुअवस्था से ही विभिन्न क्रियाकलापों तथा गतिविधियों के माध्यम से यह कार्य शुरू हो जाता है । देशभक्ति केवल कार्यक्रमों और गतिविधियों का ही विषय नहीं है । मुख्य और केन्द्रवर्ती विषयों के माध्यम से सिखाया जानेवाला विषय है । भूगोल अर्थात्‌ मातृभूमि का गुणसंकीर्तन, इतिहास अर्थात्‌ हमारे पूर्वजों से प्रेरणा प्राप्त करने हेतु उनका स्मरण, समाजशास्त्र अर्थात्‌ हमारी परम्परा और कर्तव्यों की समझ ऐसा हमारे विभिन्न विषयों का स्वरूप बनना चाहिये । अर्थात्‌ देशभक्ति का ज्ञानात्मक स्वरूप विभिन्न विषयों के साथ समरस होना चाहिये ।
 
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६. जीवनदूर्शन की इस स्पष्टता के बाद विद्यार्थियों को राष्ट्रविषयक जानकारी भी होना आवश्यक है । मेरे देश का भूगोल, मेरे देश की सीमायें, मेरे देश की जलवायु, मेरे देश की प्रकृतिसम्पदा आदि का सम्यक्‌ परिचय मुझे अर्थात्‌ विद्यार्थियों को होना ही चाहिये । दुनिया के विभिन्न राष्ट्रीं से भिन्न मेरे देश के भूगोल की क्या विशेषतायें हैं यह मुझे जानना चाहिये । उदाहरण के लिये केवल भारत में छः ऋऋतुयें हैं, केवल भारत में ऐसा भूभाग है जहाँ वर्ष में तीन फसलें ली जा सकती हैं, भारत की गंगा नदी की बराबरी करने वाली नदी पृथ्वी पर कहीं नहीं है । भारत की गाय की बराबरी करने वाला कोई प्राणी विश्व में नहीं है और ऐसी गंगा और गाय को गंगामैया और गोमाता कहने वाली प्रजा भी विश्व में कहीं नहीं है । भारत की ऐसी विशेषताओं का ज्ञान भारत के हर विद्यार्थी को दिया जाना चाहिये । देशभक्ति का यह प्रथम सोपान है ।
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७. भूगोल की तरह भारत के इतिहास की भी जानकारी चाहिये । हम कितने प्राचीन हैं, विश्व में हमारी क्या छबी रही है, भारत पर कब, किसके, क्यों आक्रमण हुए हैं और भारत ने आक्रान्ताओं के साथ कैसा व्यवहार किया है, विश्व के अन्य राष्ट्रीं के साथ भारत का व्यवहार कैसा रहा है इसकी जानकारी विद्यार्थियों को होनी चाहिये । भारत का इतिहास अर्थात्‌ हमारे पूर्वजों का इतिहास ऐसी दृष्टि भी बननी चाहिये ।
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८. यह देश कैसे चलता है अर्थात्‌ अपने समाजजीवन की व्यवस्थायें कैसे करता है यह भी हर विद्यार्थी को जानना जरूरी है । अर्थात्‌ भारत को जानने के लिये इतिहास, भूगोल, समाजशास्त्र,  आदि जानने की आवश्यकता होती है । तभी हम ज्ञानपूर्वक देश के साथ ज़ुड सकते हैं और देश के सच्चे नागरिक बन सकते हैं
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इस सन्दर्भ में विचार करने पर लगता है कि हमने देशभक्ति विषय का सर्वथा विपर्यास कर दिया है। यहाँ उट्लिखित सभी विषयों की घोर उपेक्षा होती है। कोई उन्हें पढ़ना नहीं चाहता क्योंकि उससे अच्छे वेतन वाली नौकरी नहीं मिलती । इन विषयों का सम्बन्ध देशभक्ति के साथ है ऐसा न पढनेवाला मानता है न पढ़ाने वाला । मूल सर्न्दर्भ ही नहीं होने के कारण इनका पाठ्यक्रम भी निर्रर्थक होता है और अध्ययन अध्यापन पद्धति शुष्क और उदासीभरी । इसके चलते समय और शक्ति का अपव्यय होता है । यही नहीं तो राष्ट्रविरोधी अनेक बातें पाठ्यक्रम में घुस जाती हैं, अनेक गलत तथ्य पढाये जाने लगते हैं। इन विषयों की शिक्षा सन्दर्भरहित और देशभक्ति केवल औपचारिक प्रदर्शन की वस्तु बन जाती है ।
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९. यह देश कैसा है और कैसे चलता है इसकी जानकारी बडी कक्षाओं में बडी आयु के छात्रों को ही दी जा सकती है ऐसा नहीं है । शिशुअवस्था से ही विभिन्न क्रियाकलापों तथा गतिविधियों के माध्यम से यह कार्य शुरू हो जाता है । देशभक्ति केवल कार्यक्रमों और गतिविधियों का ही विषय नहीं है । मुख्य और केन्द्रवर्ती विषयों के माध्यम से सिखाया जानेवाला विषय है । भूगोल अर्थात्‌ मातृभूमि का गुणसंकीर्तन, इतिहास अर्थात्‌ हमारे पूर्वजों से प्रेरणा प्राप्त करने हेतु उनका स्मरण, समाजशास्त्र अर्थात्‌ हमारी परम्परा और कर्तव्यों की समझ ऐसा हमारे विभिन्न विषयों का स्वरूप बनना चाहिये । अर्थात्‌ देशभक्ति का ज्ञानात्मक स्वरूप विभिन्न विषयों के साथ समरस होना चाहिये ।
      
==== देशभक्ति की भावना ====
 
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