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# मातापिता और समाज के लोग ज्ञान और भावना को महत्त्व नहीं देते, विद्यालय भवन, सुविधा, साधनसामग्री आदि को ही महत्त्व देते हैं । इसके आधार पर मूल्यांकन करते हैं ।
१... मातापिता और समाज के लोग ज्ञान और भावना को महत्त्व नहीं देते, विद्यालय waa, सुविधा, साधनसामग्री आदि को ही महत्त्व देते हैं । इसके आधार पर मूल्यांकन करते हैं ।
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# अभिभावकों और शिक्षकों का एकदूसरे पर विश्वास नहीं है, इस कारण से परीक्षा, गृहकार्य आदि सब लिखित रूप में ही होते हैं । इस कारण से पढ़ने पढ़ाने की मौलिक पद्धतियों का विकास ही नहीं होता है । विद्यार्थियों का अध्ययन स्वाभाविक ढंग से नहीं चलता ।
 
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# अंकों का ही महत्त्व होने के कारण से उनके सन्दर्भ में ही पढ़ाया जाता है । परीक्षा पद्धति वर्षोवर्ष अत्यन्त यांत्रिक और अंकों के खेलवाली बन गई है, बनाई गई है इसलिये सबकी चिन्ता अंक है, ज्ञान नहीं । अतः अंक मिलते हैं, ज्ञान नहीं ।
२... अभिभावकों और शिक्षकों का एकदूसरे पर विश्वास नहीं है, इस कारण से परीक्षा, गृहकार्य आदि सब लिखित रूप में ही होते हैं । इस कारण से पढ़ने पढ़ाने की मौलिक पद्धतियों का विकास ही नहीं होता है । विद्यार्थियों का अध्ययन स्वाभाविक ढंग से नहीं चलता ।
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# शिक्षा को अंकों का खेल बनाने वाले राजकीय और उद्योगक्षेत्र के लोग हैं । शिक्षा को पैसा, सत्ता और यंत्रों का गुलाम बना देने का परिणाम यह होता है कि यंत्र चलता है, ज्ञान, संस्कार, समझ आदि सब पलायन कर गये हैं ।
 
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# शिक्षा कारागार में अपराधी जकडे होते हैं उससे भी अधिक बुरी तरह से आसुरी शक्तियों के हाथ में जकडी गई है । अब यह तन्त्र निर्जीव भी है और आसुरी भी है । इस तन्त्र से ज्ञान की अपेक्षा नहीं की जा सकती ।
3. अंकों का ही महत्त्व होने के कारण से उनके सन्दर्भ में ही पढ़ाया जाता है । परीक्षा पद्धति वर्षोवर्ष अत्यन्त यांत्रिक और अंकों के खेलवाली बन गई है, बनाई गई है इसलिये सबकी चिन्ता अंक है, ज्ञान नहीं । अतः अंक मिलते हैं, ज्ञान नहीं ।
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४. शिक्षा को अंकों का खेल बनाने वाले राजकीय और उद्योगक्षेत्र के लोग हैं । शिक्षा को पैसा, सत्ता और यंत्रों का गुलाम बना देने का परिणाम यह होता है कि यंत्र चलता है, ज्ञान, संस्कार, समझ आदि सब पलायन कर गये हैं ।
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५. शिक्षा कारागार में अपराधी जकडे होते हैं उससे भी अधिक बुरी तरह से आसुरी शक्तियों के हाथ में जकडी गई है । अब यह तन्त्र निर्जीव भी है और आसुरी भी है । इस तन्त्र से ज्ञान की अपेक्षा नहीं की जा सकती ।
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विट्रज्जन ज्ञान की चर्चा करते हैं, शिक्षाशास्त्री अध्ययन अध्यापन पद्धतियों की चर्चा करते हैं, मातापिता अपनी सन्तान के सुनहरे भविष्य की चिन्ता करते हैं, सरकारी अधिकारी नियम, कानून, प्रशासन, कारवाई आदि की बातें करते हैं, राजकीय पक्ष के लोग शिक्षा की नई नई योजना बनाते हैं परन्तु इस तन्त्र से किसी भी प्रकार के सार्थक ज्ञान की अपेक्षा ही नहीं की जा सकती ।
 
विट्रज्जन ज्ञान की चर्चा करते हैं, शिक्षाशास्त्री अध्ययन अध्यापन पद्धतियों की चर्चा करते हैं, मातापिता अपनी सन्तान के सुनहरे भविष्य की चिन्ता करते हैं, सरकारी अधिकारी नियम, कानून, प्रशासन, कारवाई आदि की बातें करते हैं, राजकीय पक्ष के लोग शिक्षा की नई नई योजना बनाते हैं परन्तु इस तन्त्र से किसी भी प्रकार के सार्थक ज्ञान की अपेक्षा ही नहीं की जा सकती ।
  
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