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| उसी प्रकार से परीक्षा का महत्त्व अत्यन्त कम कर देना चाहिये । जहाँ अनिवार्य नहीं है वहाँ परीक्षा होनी ही नहीं चाहिये । परीक्षा से शिक्षा को मुक्त कर देने के बाद ही ज्ञान के आनन्द की सम्भावना बनेगी । | | उसी प्रकार से परीक्षा का महत्त्व अत्यन्त कम कर देना चाहिये । जहाँ अनिवार्य नहीं है वहाँ परीक्षा होनी ही नहीं चाहिये । परीक्षा से शिक्षा को मुक्त कर देने के बाद ही ज्ञान के आनन्द की सम्भावना बनेगी । |
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− | नीतिमत्ता, fae, wa, ६... समाज की व्यवस्था में अर्थ का सन्दर्भ ज्ञान के सन्दर्भ | + | नीतिमत्ता, विश्वास, श्रद्धा, संस्कार, विनयशीलता, सदाचार आदि का अधिक महत्व प्रस्थापित करना चाहिए। |
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− | संस्कार, विनयशीलता, सदाचार आदि का अधिक में बदलना चाहिये । तभी शिक्षा की स्थिति बदल
| + | अध्यापन की पद्धति, गृहकार्य का स्वरूप, कार्यक्रमों का स्वरूप भी बदलना चाहिये । |
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− | महत्त्व प्रस्थापित करना चाहिये । सकती है ।
| + | शिक्षक स्वयं परिश्रम, नीतिमत्ता, सदाचार आदि के मामले में प्रेरक बन सकते हैं किंबहुना वे ही प्रेरक हैं । उनमें होगा तो विद्यार्थियों में आयेगा । |
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− | ¥. अध्यापन की पद्धति, गृहकार्य का स्वरूप, कार्यक्रमों मानसिकता में बदल किये बिना शिक्षा क्षेत्र समाज के
| + | समाज की व्यवस्था में अर्थ का सन्दर्भ ज्ञान के सन्दर्भ में बदलना चाहिए। तभी शिक्षा की स्थिति बदल सकती है। |
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− | का स्वरूप भी बदलना चाहिये । लिये कल्याणकारी नहीं हो सकता अतः सभी सम्बन्धित
| + | मानसिकता में बदल किये बिना शिक्षा क्षेत्र समाज के लिए कल्याणकारी नहीं हो सकता अतः सभी सम्बंधित लोगों को मिलकर सही मानसिकता बनाने का प्रयास करना चाहिए। |
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− | ५... शिक्षक स्वयं परिश्रम, नीतिमत्ता, सदाचार आदि के. लोगों को मिलकर सही मानसिकता बनाने का प्रयास करना
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− | मामले में प्रेरक बन सकते हैं किंबहुना वे ही प्रेरक. चाहिये ।
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− | हैं । उनमें होगा तो विद्यार्थियों में आयेगा ।
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| === विद्यार्थियों का मन:सन्तुलन === | | === विद्यार्थियों का मन:सन्तुलन === |