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अर्थात्
 
अर्थात्
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यौवन, धनसम्पत्ति, सत्ता और अविवेक में से एक भी यदि है तो वह अनर्थ का कारण बनता है। जहाँ चारों एकत्र हों तब तो अनर्थ की सीमा ही नहीं रहती ।
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यौवन, धनसम्पत्ति, सत्ता और अविवेक में से एक भी यदि है तो वह अनर्थ का कारण बनता है। जहाँ चारों एकत्र हों तब तो अनर्थ की सीमा ही नहीं रहती । आज के महाविद्यालय के विद्यार्थियों में दो तो होते ही हैं। ये हैं यौवन और दूसरा है अविवेक । ठीक से संगोपन और अध्ययन नहीं होने के कारण से विवेक का विकास नहीं होता है। इसके परिणाम स्वरूप अनर्थों की परम्परा निर्मित होती है। अपने अध्यापकों के प्रति उन्हें आदर नहीं होता। अनुशासनमें रहने की वृत्ति नहीं होती । गम्भीर अध्ययन करने की न इच्छा होती है न क्षमता
    
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