बर्फ तैयार करने की इस प्रक्रिया का भौतिक कारण यह बताया जा सकता है कि थर्मामीटर मौसम की गरमी को कुछ भी क्यों न बताए, कुछ भागों में जहाँ ठंड के मौसम में दिसंबर, जनवरी एवं फरवरी के महीनों में कड़ाके की सर्दी भले ही शून्य तापमान पर क्यों न पहुँच जाए, गड़ूढों में रखे बर्तन में रंध्रयुक्त मिट्टी के बर्तनों में रखा पानी इस स्थिति में जमीन की गरमी के होने के बावजूद भी जम जाएगा तथा प्रात: काल के पश्चात् गर्मी पड़ने के समय तक जमा रहेगा। मेरा मानना है कि वह संभव हो सकता है लेकिन साथ ही, मैं यह भी पर्यवेक्षण करने के लिए कहूँगा क्योंकि मैंने द्वनिया के उस हिस्से में स्थित अपने निवास स्थान के पास कहीं भी कोई भी बर्फ जमी हुई नहीं देखी। मैं नहीं कह सकता कि थर्मामीटर ने रात में शून्य डिग्री सैल्सियस तक तापमान मापा था क्योंकि मैंने कभी भी आवश्यक पर्यवेक्षण नहीं किया । लेकिन उन गड़ढों में रखे गए कड़ाह के अतिरिक्त और किसी भी स्थान पर अन्य किसी भी स्थिति में पानी नहीं जमा । मौसम का संभवत: पानी के जमने में किसी हद तक योगदान उस समय हो सकता है जब उसे जमीन की गर्मी से दूरी पर रखा जाए। मैंने पहले भी स्वयं पर्यवेक्षण किया है कि गडदो में इस विधि से रखे पात्रों में बर्फ उन रातों में अधिक रूप में जमी जब मौसम स्वच्छ तथा निरभ्र रहा था तथा आधी रात के पश्चात् ओस पड़ी था। कई भद्रजनों (अब इंग्लैंड में) ने इसी तरह की टिप्पणियाँ मेरे साथ इन गड़्ढ़ों में रखे बर्फ के पात्रों को देखने के पश्चात् की हैं। गन्नों या भारतीय मक्का के डंठलों की मुलायम गादी कडाहों के नीचे ठंडी हवा के लिए रास्ता देती है जो कि बर्तन के बाह्य भाग से छिद्रों के माध्यम से गर्मी की आनुपातिक मात्रा बाष्पीकृत रूप में निकल जाती है। | बर्फ तैयार करने की इस प्रक्रिया का भौतिक कारण यह बताया जा सकता है कि थर्मामीटर मौसम की गरमी को कुछ भी क्यों न बताए, कुछ भागों में जहाँ ठंड के मौसम में दिसंबर, जनवरी एवं फरवरी के महीनों में कड़ाके की सर्दी भले ही शून्य तापमान पर क्यों न पहुँच जाए, गड़ूढों में रखे बर्तन में रंध्रयुक्त मिट्टी के बर्तनों में रखा पानी इस स्थिति में जमीन की गरमी के होने के बावजूद भी जम जाएगा तथा प्रात: काल के पश्चात् गर्मी पड़ने के समय तक जमा रहेगा। मेरा मानना है कि वह संभव हो सकता है लेकिन साथ ही, मैं यह भी पर्यवेक्षण करने के लिए कहूँगा क्योंकि मैंने द्वनिया के उस हिस्से में स्थित अपने निवास स्थान के पास कहीं भी कोई भी बर्फ जमी हुई नहीं देखी। मैं नहीं कह सकता कि थर्मामीटर ने रात में शून्य डिग्री सैल्सियस तक तापमान मापा था क्योंकि मैंने कभी भी आवश्यक पर्यवेक्षण नहीं किया । लेकिन उन गड़ढों में रखे गए कड़ाह के अतिरिक्त और किसी भी स्थान पर अन्य किसी भी स्थिति में पानी नहीं जमा । मौसम का संभवत: पानी के जमने में किसी हद तक योगदान उस समय हो सकता है जब उसे जमीन की गर्मी से दूरी पर रखा जाए। मैंने पहले भी स्वयं पर्यवेक्षण किया है कि गडदो में इस विधि से रखे पात्रों में बर्फ उन रातों में अधिक रूप में जमी जब मौसम स्वच्छ तथा निरभ्र रहा था तथा आधी रात के पश्चात् ओस पड़ी था। कई भद्रजनों (अब इंग्लैंड में) ने इसी तरह की टिप्पणियाँ मेरे साथ इन गड़्ढ़ों में रखे बर्फ के पात्रों को देखने के पश्चात् की हैं। गन्नों या भारतीय मक्का के डंठलों की मुलायम गादी कडाहों के नीचे ठंडी हवा के लिए रास्ता देती है जो कि बर्तन के बाह्य भाग से छिद्रों के माध्यम से गर्मी की आनुपातिक मात्रा बाष्पीकृत रूप में निकल जाती है। |