१२. ज्ञान की पवित्रता और श्रेष्ठता की रक्षा करना अच्छे समाज का अनिवार्य कर्तव्य है क्योंकि यदि ज्ञान की श्रेष्ठता और पवित्रता नहीं रही तो समाज दीनहीन, दरिद्र और असंस्कृत बन जाता है, आसुरी और पाशवी वृत्तियाँ समाज को नाश की ओर ले जाती हैं। इसे ही अधर्म का अभ्युत्थान कहते हैं । | १२. ज्ञान की पवित्रता और श्रेष्ठता की रक्षा करना अच्छे समाज का अनिवार्य कर्तव्य है क्योंकि यदि ज्ञान की श्रेष्ठता और पवित्रता नहीं रही तो समाज दीनहीन, दरिद्र और असंस्कृत बन जाता है, आसुरी और पाशवी वृत्तियाँ समाज को नाश की ओर ले जाती हैं। इसे ही अधर्म का अभ्युत्थान कहते हैं । |