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| == आलंबन == | | == आलंबन == |
| # सर्व प्रथम भाषा अर्थात् मातृभाषा ही समझें, क्योंकि जीवन के प्रारंभ से ही मातृभाषा सीखने की शरूआत हो जाती है। मातृभाषा अच्छी तरह आने के बाद ही अन्य भाषा अच्छी तरह सीख सकते हैं। | | # सर्व प्रथम भाषा अर्थात् मातृभाषा ही समझें, क्योंकि जीवन के प्रारंभ से ही मातृभाषा सीखने की शरूआत हो जाती है। मातृभाषा अच्छी तरह आने के बाद ही अन्य भाषा अच्छी तरह सीख सकते हैं। |
− | # भाषा प्रत्यक्ष व्यवहार से संबंधित है। हमारे आसपास के जीवन से संबंधित है। जीवन का अनुभव, जीवन की समझ एवं भाषा विकास एकसाथ चलनेवाली प्रक्रिया है। इसलिए भाषा शिक्षण जीवननिष्ठ ही होना चाहिए। | + | # भाषा प्रत्यक्ष व्यवहार से संबंधित है। हमारे आसपास के जीवन से संबंधित है। जीवन का अनुभव, जीवन की समझ एवं भाषा विकास एक साथ चलने वाली प्रक्रिया है। इसलिए भाषा शिक्षण जीवननिष्ठ ही होना चाहिए। |
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| == भाषा सीखना क्या है == | | == भाषा सीखना क्या है == |
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| # भाषा के मुख्य चार कौशल हैं; दो ध्वनिस्वरूप के एवं दो वर्णस्वरूप के। ध्वनिस्वरूप के दो कौशल अर्थात् सुनना (श्रवण) एवं बोलना (कथन)। वर्णस्वरूप के दो कौशल हैं - पढ़ना एवं लिखना। यहाँ भी कथन श्रवण का अनुसरण करता है एवं लेखन वाचन का अनुसरण करता है। अर्थात् व्यक्ति जैसा सुनता है वैसा बोलता है एवं जैसा पढ़ता है वैसा ही लिखता है। इस तरह भाषा के चार कौशलों का क्रम है श्रवण, भाषण, वाचन एवं लेखन। ये चारों कौशल इसी क्रम में सीखना चाहिए। | | # भाषा के मुख्य चार कौशल हैं; दो ध्वनिस्वरूप के एवं दो वर्णस्वरूप के। ध्वनिस्वरूप के दो कौशल अर्थात् सुनना (श्रवण) एवं बोलना (कथन)। वर्णस्वरूप के दो कौशल हैं - पढ़ना एवं लिखना। यहाँ भी कथन श्रवण का अनुसरण करता है एवं लेखन वाचन का अनुसरण करता है। अर्थात् व्यक्ति जैसा सुनता है वैसा बोलता है एवं जैसा पढ़ता है वैसा ही लिखता है। इस तरह भाषा के चार कौशलों का क्रम है श्रवण, भाषण, वाचन एवं लेखन। ये चारों कौशल इसी क्रम में सीखना चाहिए। |
| # भाषा के अन्य दो आयाम हैं शब्द एवं अर्थ। ध्वनिसमूह से बननेवाले अर्थहीन शब्द को भाषा नहीं कह सकते हैं। उदाहरण के तौर पर सासा रेरे गागा... ये ध्वनि हैं, इनमें स्वर हैं परंतु अर्थ नहीं है इसलिए वह संगीत है, परंतु भाषा नहीं है। शब्द यदि ध्वनि है तो उसका अर्थ जीवन में है। इस तरह जीवन के विविध सोपानों को स्पष्ट एवं अभिव्यक्त करनेवाला ध्वनिसमूह है भाषा। भाषा सीखने का अर्थ है शब्द एवं अर्थ दोनों सीखना। | | # भाषा के अन्य दो आयाम हैं शब्द एवं अर्थ। ध्वनिसमूह से बननेवाले अर्थहीन शब्द को भाषा नहीं कह सकते हैं। उदाहरण के तौर पर सासा रेरे गागा... ये ध्वनि हैं, इनमें स्वर हैं परंतु अर्थ नहीं है इसलिए वह संगीत है, परंतु भाषा नहीं है। शब्द यदि ध्वनि है तो उसका अर्थ जीवन में है। इस तरह जीवन के विविध सोपानों को स्पष्ट एवं अभिव्यक्त करनेवाला ध्वनिसमूह है भाषा। भाषा सीखने का अर्थ है शब्द एवं अर्थ दोनों सीखना। |
− | # शब्द, शब्दरचना, शब्दों की योग्य व्यवस्था से बननेवाला वाक्य, वाक्यों के विविध प्रकार, वाक्यों की विविध प्रकार की रचना आदि सबकुछ मिलकर व्याकरण बनता है। वचन, पुरुष लिंग, संधि, समास वगैरह सब व्याकरण का एक भाग है। यह सब भी सीखना पड़ता है। | + | # शब्द, शब्दरचना, शब्दों की योग्य व्यवस्था से बननेवाला वाक्य, वाक्यों के विविध प्रकार, वाक्यों की विविध प्रकार की रचना आदि सब कुछ मिलकर व्याकरण बनता है। वचन, पुरुष लिंग, संधि, समास वगैरह सब व्याकरण का एक भाग है। यह सब भी सीखना पड़ता है। |
− | # जानकारी एवं विचार की अभिव्यक्ति अर्थात् निबंध, अपने विषय में कहना हो तो आत्मकथा, छंदोबद्ध रचना करना हो तो पद्य, भावना या विचारों को शब्दों में व्यक्त करके स्वर में गायन करना अर्थात् गीत, अन्य किसी के विषय में वर्णन करना हो तो चरित्रकथन, पूर्वसमय में घटित घटना को मनोरंजक रूप से कहना हो तो कहानी, संवाद के रूप में कहना हो तो नाटक ऐसे विविध प्रकार की अभिव्यक्तियों को सीखना भी भाषा शिक्षण ही कहलाता है। अर्थात् भाषा केवल शब्द नहीं है या मात्र अर्थ भी नहीं है परंतु यह शब्द एवं अर्थ दोनों हैं। इन दोनों के संबंध में कितनी एकात्मता है यह दर्शाने के लिए महाकवि कालिदास ने शिव एवं पार्वती को जो उपमा दी है वह समझने की यहाँ आवश्यकता है। रघुवंश नामक महाकाव्य का प्रथम श्लोक इस प्रकार है<ref>महाकवि कालिदास, रघुवंश महाकाव्य, प्रथम छंद</ref> - | + | # जानकारी एवं विचार की अभिव्यक्ति अर्थात् निबंध, अपने विषय में कहना हो तो आत्मकथा, छंदोबद्ध रचना करना हो तो पद्य, भावना या विचारों को शब्दों में व्यक्त करके स्वर में गायन करना अर्थात् गीत, अन्य किसी के विषय में वर्णन करना हो तो चरित्रकथन, पूर्व समय में घटित घटना को मनोरंजक रूप से कहना हो तो कहानी, संवाद के रूप में कहना हो तो नाटक ऐसे विविध प्रकार की अभिव्यक्तियों को सीखना भी भाषा शिक्षण ही कहलाता है। अर्थात् भाषा केवल शब्द नहीं है या मात्र अर्थ भी नहीं है परंतु यह शब्द एवं अर्थ दोनों हैं। इन दोनों के संबंध में कितनी एकात्मता है यह दर्शाने के लिए महाकवि कालिदास ने शिव एवं पार्वती को जो उपमा दी है वह समझने की यहाँ आवश्यकता है। रघुवंश नामक महाकाव्य का प्रथम श्लोक इस प्रकार है<ref>महाकवि कालिदास, रघुवंश महाकाव्य, प्रथम छंद</ref> - |
| <blockquote>वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।</blockquote><blockquote>जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ।।</blockquote><blockquote>वाक् (शब्द) एवं अर्थ के समान एकदूसरे से जुड़े हुए, शब्द आवं अर्थ की प्राप्ति स्वरूप, जगत के मातापिता पार्वती एवं परमेश्वर (शंकर) को मैं वंदन करता हूँ।</blockquote>अर्थात शब्द एवं अर्थ भाषारूपी सिक्के के दो पहलू के समान हैं। इसलिए भाषा सीखना अर्थात् जीवन की अभिव्यक्ति का अर्थ सीखने के बराबर है। इस प्रकार देखें तो भाषा अच्छी तरह से सीखना बहुत बड़ी उपलब्धि है। भाषा का संबंध पाँचो कोशों के विकास से है। इसलिए भाषा सीखना या सिखाना बहुत महत्त्वपूर्ण घटना है। | | <blockquote>वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।</blockquote><blockquote>जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ।।</blockquote><blockquote>वाक् (शब्द) एवं अर्थ के समान एकदूसरे से जुड़े हुए, शब्द आवं अर्थ की प्राप्ति स्वरूप, जगत के मातापिता पार्वती एवं परमेश्वर (शंकर) को मैं वंदन करता हूँ।</blockquote>अर्थात शब्द एवं अर्थ भाषारूपी सिक्के के दो पहलू के समान हैं। इसलिए भाषा सीखना अर्थात् जीवन की अभिव्यक्ति का अर्थ सीखने के बराबर है। इस प्रकार देखें तो भाषा अच्छी तरह से सीखना बहुत बड़ी उपलब्धि है। भाषा का संबंध पाँचो कोशों के विकास से है। इसलिए भाषा सीखना या सिखाना बहुत महत्त्वपूर्ण घटना है। |
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| ## एक विशिष्ट प्रकार की द्विरुक्ति जैसे पानी-वानी, ताली-वाली, पेन-वेन...इत्यादि। | | ## एक विशिष्ट प्रकार की द्विरुक्ति जैसे पानी-वानी, ताली-वाली, पेन-वेन...इत्यादि। |
| ## शब्द संयोजन जैसे कि बातचीत, गपगोले, तितर-बितर आदि। | | ## शब्द संयोजन जैसे कि बातचीत, गपगोले, तितर-बितर आदि। |
− | (इन यौगिकों से संबंधित खेल भाषा खेल की सूची में दिए गए हैं।)
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| इस प्रकार भाषा एक आधारभूत विषय है। इसे अच्छी तरह से सीखने के लिए विविध क्रियाकलाप एवं कार्यक्रम करने चाहिए। गीतपुस्तिका, कहानीसंग्रह, नाट्यपुस्तिका, कहावत पुस्तिका, निबंधपुस्तिका, शब्दकोश, शब्दचित्रकोश, भाषाकीय खेल आदि अनेकों प्रकार की सामग्री का उपयोग करना चाहिए। भाषा की सामग्री में अन्य विषयों की जानकारी का भी समावेश हो जाता है। शिक्षकों एवं मातापिता के लिए यह आवश्यक है कि वे छात्रों में वाचन के प्रति रुचि उत्पन्न करने का प्रयास करें। इसके लिए घर में एवं विद्यालय में पुस्तकालय अवश्य होना ही चाहिए। छात्रों को हमेशा नियमित पुस्तकालय में ले जाना चाहिए एवं उन्हें पुस्तकों के बीच स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए। | | इस प्रकार भाषा एक आधारभूत विषय है। इसे अच्छी तरह से सीखने के लिए विविध क्रियाकलाप एवं कार्यक्रम करने चाहिए। गीतपुस्तिका, कहानीसंग्रह, नाट्यपुस्तिका, कहावत पुस्तिका, निबंधपुस्तिका, शब्दकोश, शब्दचित्रकोश, भाषाकीय खेल आदि अनेकों प्रकार की सामग्री का उपयोग करना चाहिए। भाषा की सामग्री में अन्य विषयों की जानकारी का भी समावेश हो जाता है। शिक्षकों एवं मातापिता के लिए यह आवश्यक है कि वे छात्रों में वाचन के प्रति रुचि उत्पन्न करने का प्रयास करें। इसके लिए घर में एवं विद्यालय में पुस्तकालय अवश्य होना ही चाहिए। छात्रों को हमेशा नियमित पुस्तकालय में ले जाना चाहिए एवं उन्हें पुस्तकों के बीच स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए। |
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