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→‎कैसे सिखाएँ: लेख सम्पादित किया
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# पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ के लिए हानिकारक ऐसी किसी भी सामग्री का उपयोग नहीं करना चाहिए या ऐसा कोई क्रिया कलाप नहीं करना चाहिए।
 
# पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ के लिए हानिकारक ऐसी किसी भी सामग्री का उपयोग नहीं करना चाहिए या ऐसा कोई क्रिया कलाप नहीं करना चाहिए।
 
# परिवार की सेवा के केन्द्रबिन्दु स्वरूप भोजन बनाना, मूलभूत उद्योग के रूप में कृषि, सहायक उद्योग के रूप में कारीगरी, कलात्मक उद्योग के रूप में चित्र एवं इन सभी के लिए उपयोगी आधारभूत कौशलों का उद्योग में समावेश करना चाहिए।
 
# परिवार की सेवा के केन्द्रबिन्दु स्वरूप भोजन बनाना, मूलभूत उद्योग के रूप में कृषि, सहायक उद्योग के रूप में कारीगरी, कलात्मक उद्योग के रूप में चित्र एवं इन सभी के लिए उपयोगी आधारभूत कौशलों का उद्योग में समावेश करना चाहिए।
# इन सभी के आनुषंगिक गुणों के रूप में स्वच्छता, सुंदरता, सार्थकता, चुस्ती, व्यवस्थितता इत्यादि का महत्त्व समझा जा सके एवं संपूर्णता का आग्रह रखा जाए यह अपेक्षित है।
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# इन सभी के आनुषंगिक गुणों के रूप में स्वच्छता, सुंदरता, सार्थकता, चुस्ती, व्यवस्थितता इत्यादि का महत्व समझा जा सके एवं संपूर्णता का आग्रह रखा जाए यह अपेक्षित है।
    
== पाठ्यक्रम - क्रियाकलाप / कौशल एवं प्रयोजन ==
 
== पाठ्यक्रम - क्रियाकलाप / कौशल एवं प्रयोजन ==
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==== प्रयोजन ====
 
==== प्रयोजन ====
# मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु इत्यादि पंचमहाभूतों से घनिष्ठ संबंध निर्माण हो एवं उनके महत्त्व एवं उपयोग के विषय में जाना जा सके।
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# मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु इत्यादि पंचमहाभूतों से घनिष्ठ संबंध निर्माण हो एवं उनके महत्व एवं उपयोग के विषय में जाना जा सके।
 
# कूटना, छानना, गूंधना, आदि क्रियाओं में कुशलता प्राप्त कर सकें एवं व्यावहारिक प्रयोजन समझ सकें।
 
# कूटना, छानना, गूंधना, आदि क्रियाओं में कुशलता प्राप्त कर सकें एवं व्यावहारिक प्रयोजन समझ सकें।
 
# चबूतरा, चौपाल, खेलने के लिए खिलौने प्राप्त हो सकें।
 
# चबूतरा, चौपाल, खेलने के लिए खिलौने प्राप्त हो सकें।
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प्रथम दृष्टि में यह पाठ्यक्रम बहुत लंबा एवं कठिन दृष्टिगोचर होता है। परंतु प्रयोग करने से एवं अनुभव करने से ध्यान में आता है कि ये दोनों भय काल्पनिक हैं, क्योंकि ये सभी क्रियाकलाप सीखने के स्तर पर हैं। अर्थोपार्जन या घर चलाने की जिम्मेदारी से युक्त नहीं है। इसीलिए इसमें आचार्य एवं मातापिता का संपूर्ण मार्गदर्शन, सहयोग एवं नियंत्रण जरुरी है। अर्थात् भेल बने एवं सबको अल्पाहार मिले तथा भरपेट मिले या विद्यालय का बाग तैयार हो यह तो ठीक है परन्तु इसका मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के कौशल एवं समझ का विकास करना है, अनुभूति करना है। इसलिए छात्र के स्तर के अनुसार ही पूर्णता या उत्तमता की अपेक्षा रखी जाए। किसी भी कार्य के प्रारंभिक सोपान सीखने के लिए ही होता है। जब तक गलती न हो, किसी तरह का व्यय न हो, कहीं चोट न लगे तब तक कुछ भी सीखा नहीं जा सकता है। सीखने की शुरुआत अनुभवप्राप्ति से ही होती है। यह सब जितना जल्दी शुरू हो उतना ही छात्र जिस जिस से संबंधित है उन सभी को लाभ होता है। इस दृष्टि से इन सभी क्रियाकलापों का विचार करना चाहिए।
 
प्रथम दृष्टि में यह पाठ्यक्रम बहुत लंबा एवं कठिन दृष्टिगोचर होता है। परंतु प्रयोग करने से एवं अनुभव करने से ध्यान में आता है कि ये दोनों भय काल्पनिक हैं, क्योंकि ये सभी क्रियाकलाप सीखने के स्तर पर हैं। अर्थोपार्जन या घर चलाने की जिम्मेदारी से युक्त नहीं है। इसीलिए इसमें आचार्य एवं मातापिता का संपूर्ण मार्गदर्शन, सहयोग एवं नियंत्रण जरुरी है। अर्थात् भेल बने एवं सबको अल्पाहार मिले तथा भरपेट मिले या विद्यालय का बाग तैयार हो यह तो ठीक है परन्तु इसका मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के कौशल एवं समझ का विकास करना है, अनुभूति करना है। इसलिए छात्र के स्तर के अनुसार ही पूर्णता या उत्तमता की अपेक्षा रखी जाए। किसी भी कार्य के प्रारंभिक सोपान सीखने के लिए ही होता है। जब तक गलती न हो, किसी तरह का व्यय न हो, कहीं चोट न लगे तब तक कुछ भी सीखा नहीं जा सकता है। सीखने की शुरुआत अनुभवप्राप्ति से ही होती है। यह सब जितना जल्दी शुरू हो उतना ही छात्र जिस जिस से संबंधित है उन सभी को लाभ होता है। इस दृष्टि से इन सभी क्रियाकलापों का विचार करना चाहिए।
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इन सभी क्रियाकलापों से लगता है कि भिन्न भिन्न, मूलभूत कौशल भी अनेक प्रकार के हैं, परंतु मूलतः ये हाथ से संबंधित कौशल एवं क्रियाकलाप हैं। हाथ की विभिन्न क्षमताओं के विकास में सहयोगी बननेवाली मानसिक एवं बौद्धिक क्षमताएँ भी इसमें समाविष्ट हैं। एक सुभाषित है {{Citation needed}} :<blockquote>कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती । करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ।।</blockquote><blockquote>अर्थात् हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती एवं दोनो हाथ के मूल में गोविन्द का वास है। इसलिए प्रातःकाल हाथ का दर्शन करो।।</blockquote>लक्ष्मी अर्थात् वैभव, सरस्वती अर्थात् विद्या एवं कला, गोविन्द अर्थात् गायों को पालनेवाले (धन के स्वामी) एवं इन्द्रियों के स्वामी। जीवन में वैभव, विद्या, कला, धन इत्यादि प्राप्त करना है तो हाथों को काम करने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा। हाथों को कार्यान्वित करने के लिए ही उद्योग विषय की रचना की गई है।
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इन सभी क्रियाकलापों से लगता है कि भिन्न भिन्न, मूलभूत कौशल भी अनेक प्रकार के हैं, परंतु मूलतः ये हाथ से संबंधित कौशल एवं क्रियाकलाप हैं। हाथ की विभिन्न क्षमताओं के विकास में सहयोगी बननेवाली मानसिक एवं बौद्धिक क्षमताएँ भी इसमें समाविष्ट हैं। एक सुभाषित है {{Citation needed}} :<blockquote>कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती ।</blockquote><blockquote>करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ।।</blockquote><blockquote>अर्थात् हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती एवं दोनो हाथ के मूल में गोविन्द का वास है। इसलिए प्रातःकाल हाथ का दर्शन करो।।</blockquote>लक्ष्मी अर्थात् वैभव, सरस्वती अर्थात् विद्या एवं कला, गोविन्द अर्थात् गायों को पालनेवाले (धन के स्वामी) एवं इन्द्रियों के स्वामी। जीवन में वैभव, विद्या, कला, धन इत्यादि प्राप्त करना है तो हाथों को काम करने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा। हाथों को कार्यान्वित करने के लिए ही उद्योग विषय की रचना की गई है।
    
== कैसे सिखाएँ ==
 
== कैसे सिखाएँ ==
उद्योग सिखाते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। १. जल्दी न करें
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उद्योग सिखाते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है:
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# जल्दी न करें: कोई भी कौशल धीरे धीरे सीखा जाता है। हाथ की गति कम हो, साथ ही मानसिक रूप से भी जल्दी न हो, धैर्य न खोएँ यह जरूरी है। यह गुण प्रथम सिखानेवाले गुरु एवं मातापिता में होना चाहिए। यदि उनमें धैर्य होगा तो छात्रों में अपने आप ही आ जाएगा। जल्दी पूर्ण होने पर अधिक कार्य किया जा सकेगा ऐसा तर्क भी उपयोगी नहीं है।
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# एक साथ एक ही काम लंबे समय तक न करें: किसी भी काम में महारत हासिल करने के लिए उसका अभ्यास आवश्यक है। अभ्यास अर्थात् पुनरावर्तन। अर्थात् एक ही कार्य बार बार नियमित रूप से करना। इसलिए प्रतिदिन कुछ समय उस कार्य के लिए देना चाहिए।
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# कार्य की इकाई छोटी एवं एक ही रखें। एक साथ अनेक कार्य न करें इस तरह करने से कार्य में सफाई आती है। कौशल हस्तगत होता है। उस कार्य के प्रति समझ भी स्पष्ट रूप से बढ़ती है।
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# गुणवत्ता का आग्रह रखें: निश्चितता, चौकसी, गुणवत्ता का आग्रह रखना चाहिए एवं छात्र में उसका आग्रह बने ऐसी प्रेरणा देना चाहिए। ऐसे आग्रह एवं अभ्यास से किसी भी कार्य का कर्मज संस्कार बनता है। ऐसा संस्कार होने के बाद वह छात्र जीवन में जब भी कुछ भी करेगा तो उसमें चौकसी, निश्चितता, उत्तमता आदि का आग्रह अवश्य होगा।
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# पूर्ण कार्य करें: कोई भी कार्य, जितनी इकाई निश्चित की हो उतना, शुरुआत से अंत तक पूर्ण करें, आधाअधूरा न छोड़े। छात्र के बस का न हो ऐसा कार्य उससे न करवाएँ। परंतु स्वयं करते समय उन्हें देखने अवश्य दें। कुछ संस्कार देखदेखकर भी बन जाते हैं। देखते देखते अपने आप निरीक्षण भी होता रहता है।
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# स्वाभाविक रहें: कोई भी कार्य करते समय आवश्यकतानुसार मौन रहें या बातचीत करते रहें। कार्य करते करते एकाग्रता आने पर स्वयं ही मौन आ जाता है एवं शांति स्थापित हो जाती है। उस समय शांति का भंग न करें। कार्य समाप्ति पर उस संदर्भ में बातचीत करें।
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# संगीत श्रवण: कार्य जब चल रहा है तब उत्तम, मधुर, धीमा संगीत सुनाने की व्यवस्था करें। इससे एकाग्रता एवं प्रसन्नता बढ़ती है। एवं स्वर, ताल, लय के पक्के संस्कार बनते हैं।
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# साधन सामग्री की गुणवत्ता तथा उसके रखरखाव का आग्रह: यह एक अच्छी शिक्षा का महत्वपूर्ण अंग है। पेन्सिल, मापपट्टी, स्लेट, कागज, रबर या पुस्तक, कापी या खुरपी, कुदाली, पानी देने की झारी या कूटने-पीसने, भरने के साधनों को स्वच्छ, योग्य नाप के, व्यवस्थित एवं उत्तम गुणवत्ता से युक्त एवं टूटेफूटे न हों इसका ध्यान रखें। इसके अतिरिक्त इनके रखरखाव का स्थान भी योग्य हो। उन पर धूल मिट्टी न जमे, जंग न लगे, टूटे या फटे नहीं इस पर भी ध्यान दें। यदि ऐसा हो तो तुरंत ही उन्हें ठीक करवा लें।
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# चीजों का महत्तम उपयोग करें: बनी हुई चीजों का पूर्ण उपयोग हो यह देखें। व्यय न होने दें। महत्तम उपयोग हो इसका ध्यान रखें। इस संस्कार के फलस्वरूप व्यक्ति, की घर की, एवं देश की समृद्धि में वृद्धि हो एवं वह भी बनी रहे यह अत्यंत आवश्यक है।
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# कूड़ा एवं निरर्थक वस्तुओं का निकाल: यह भी पर्यावरण, स्वच्छता, समृद्धि, संस्कार आदि से सीधा ही संबंधित है। साग-सब्जी के छिलके, बेकार कागज, जमीन, बर्तन, कपड़े धोने से बचा हुआ पानी, सूखे फूल या पत्तियाँ आदि का निकाल ठीक तरह से हो, इसकी व्यवस्था करें
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कोई भी कौशल धीरे धीरे सीखा जाता है। हाथ की गति कम हो, साथ ही मानसिक रूप से भी जल्दी न हो, धैर्य न खोएँ यह जरूरी है। यह गुण प्रथम सिखानेवाले गुरु एवं मातापिता में होना चाहिए। यदि उनमें धैर्य होगा तो छात्रों में अपने आप ही आ जाएगा। जल्दी पूर्ण होने पर अधिक कार्य
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== प्रत्यक्ष सिखाते समय ==
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किया जा सकेगा ऐसा तर्क भी उपयोगी नहीं है। २. एक साथ एक ही काम लंबे समय तक करें
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=== रेखा खींचना ===
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# प्रथम चरण है रेखा खींचना। छात्र अंगुली से, पेन्सिल से या पेन से जमीन पर, स्लेट पर, दीवार पर, या कागज पर टेढ़ीमेढ़ी रेखायें खींचता है। उसका वह क्रियाकलाप तो बहुत पहले से ही शुरू हो जाता है परन्तु उसकी पेन पकड़ने की पद्धति सही नहीं होती है। इसलिए उसे सही तरह से पेन पकड़ना सिखाएँ। सही तरीके से पेन पकड़ने से उसकी लकीरें भी ठीक बनेंगी।
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# आड़ीडेढ़ी रेखा, रेखा नहीं है। रेखा अर्थात् दो निश्चित बिन्दुओं को जोड़ना। ऐसी रेखा खींचने के लिए सर्वप्रथम किसी भी प्रकार के माप के बिना हाथ से ही रेखा खींचने के लिए कहना चाहिए। आड़ी-डेढ़ी रेखा एवं रेखा के बीच का अंतर मस्तिष्क में बैठने तक मुक्त रूप से रेखाएँ खिंचवाना चाहिए। इसके लिए कल्पना के अनुसार भिन्न-भिन्न वस्तुओं के आकार बनाने के लिए कह सकते हैं। ये रेखाएँ स्वाभाविक रूप से ही घुमावदार होंगी। गोल, अर्धगोल, लंबगोल, आम का आकार, बेलन का आकार आदि विविध प्रकार से टेढ़ी रेखाएँ खींचने का अभ्यास हो यह जरूरी है। इन आकारों में माप नहीं होगा परंतु धीरे धीरे उन्हें अनुपात की ओर ले जाएँ। पेन तथा हाथ की हलचल पर नियंत्रण रहे इसलिए मुक्त एवं नियंत्रित क्रियाएँ करवाएँ।
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# इसके बाद बारी आती है सीधी रेखा की। सीधी रेखा खींचने के लिए हाथ की हलचल पर अधिक नियंत्रण एवं अधिक एकाग्रता की जरूरत होती है। इसमें सहायता के लिए उन्हें बिन्दु निश्चित करके दें। ये बिन्दु एकदूसरे से बहुत दूर नहीं होने चाहिए। प्रथम उनसे सीधी रेखा खींचवानी चाहिये। ये रेखाएँ इतने प्रकार से खिंचवाएँ :
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## आड़ी रेखा - बाई ओर से दाहिनी ओर जानेवाली 
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## खड़ी रेखा – उपर से नीचे की ओर जानेवाली ।
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## तिरछी रेखा - बाई ओर से दाहिनी ओर जानेवाली
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## तिरछी रेखा – दाहिनी ओर से बाई ओर जाने वाली
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# इसके बाद कागज की तह बनाकर उस पर रेखा खिंचवाएँ या खिंची हुई रेखा पर ही रेखा खिंचवाएँ। ऐसी रेखा एक या दो या तीन ईंच जितनी लंबी होनी चाहिए।
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# इसके बाद बारी आती है फुटपट्टी से रेखा खींचने की। इसके लिए भी बिंदु निश्चित करना चाहिए। फुटपट्टी छोटी छः ईंचकी ही हो तो अधिक सुविधा रहेगी। पारदर्शक हो तो बहुत ही उत्तम है। फुटपट्टी से रेखा खींचने के लिए प्रथम स्लेट एवं बाद में कागज का उपयोग करें। जबतक रबड़ का उपयोग नहीं कर सकते तब तक पेन्सिलका अधिक उपयोग न करें। ये रेखायें आड़ी, खड़ी, तिरछी, सभी तरह की होनी चाहिए। यद्यपि अनुभवी आचार्य यह समझ सकते हैं कि फुटपट्टी के उपयोग से खड़ी रेखा खींचना सरल है परंतु आड़ी रेखा खींचना उतना सरल नहीं है। इसलिए प्रथम खड़ी रेखा, इसके बाद तिरछी रेखा एवं इसके बाद आड़ी रेखा खींचवाएँ।
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# इसी तरह घुमावदार रेखाओं को भी आनुपातिक करने का प्रयास करना चाहिए। एक सीमा में रहकर विभिन्न आकार बनवाने का अभ्यास करवाएँ।
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# इसके बाद सीधी, टेढ़ी एवं घुमावदार रेखाओं का एकसाथ उपयोग हो इस तरह भिन्न-भिन्न आकार बनाने का खेल चलता रहे।
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# सावधानियाँ
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## रेखा खींचना अन्य क्रियाकलापों के लिए मूलभूत कौशल है। इसलिए जब तक रेखा खींचना पूर्ण रूप से नहीं आता तब तक लेखन न करवाएँ। करवाएंगे तो लेख अच्छा न होने की संभावना रहेगी।
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## रेखा खींचने के लिए प्रथम रेत में अंगुलियों से, फिर जमीन पर खड़िया से, इसके बाद स्लेट पर पेन (खड़िया) से एवं अंत में कागज पर पेन्सिल से खींचने का क्रम बनाएँ।
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## कक्षा १ में प्रारंभ के तीन मास इस क्रिया के लिए देना चाहिए। इसके बाद रेखाओं का व्यावहारिक उपयोग अर्थात् लेखन, कोष्टक बनाना, चित्र बनाना आदि शुरू करें।
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## इससे संबंधित आनुषंगिक कौशल हैं - पेन पकड़ना, स्लेट पकड़ना, कागज, कड़ी सतह पर रखना आदि। इसकी ओर पर्याप्त ध्यान दें।
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## स्लेट, पेन, कागज, पेन्सिल, खड़िया के नीचे की जमीन की सतह योग्य है या नहीं इसका ध्यान रखें।
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## यह सब करते समय योग्य बैठक व्यवस्था बनाए रखें। छात्र पेट के बल लेटकर, आगे की ओर झुककर, स्लेट या कापी टेढ़ी रखकर लिखें इसका ध्यान रखें।
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## उद्योग की अभ्यासपुस्तिका में रेखा खींचने के लिए एक स्वतंत्र विभाग होना चाहिए। परंतु अभ्यास पुस्तिका की बारी तो अंत में आती है। उससे पहले पूर्ण अभ्यास रेती, जमीन, स्लेट,वगैरह पर करना आवश्यक है।
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## रेखा खींचने के कौशल का स्वतंत्र मूल्यांकन होना चाहिए। मूल्यांकन के बाद उस पर आधारित आगे के अन्य मुद्दों की ओर जाना चाहिए।
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## ध्यान रहे कि यह जीवनभर चलनेवाले विविध प्रकार के क्रियाकलापों की नींव है। भिन्न भिन्न विषयों के लिए आधारभूत सोपान भी यही है। इसलिए इसका महत्व बिलकुल भी कम नहीं आंकना चाहिए।
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## इस कौशल से संबंधित शब्द - रेखा, पंक्ति, बिंदु, सीधी रेखा, टेढ़ी रेखा, बेल-बूटेदार छाप, रंगोली वगैरह सरलता से समझे जा सके इस तरह उनका उपयोग करना चाहिए। पंक्ति में बैठना, रेखा पर खड़े रहना, रेखा पर चलना, रेखा के अंदर रहना इत्यादि समझ में आना चाहिए।
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किसी भी काम में महारत हासिल करने के लिए उसका अभ्यास आवश्यक है। अभ्यास अर्थात् पुनरावर्तन। अर्थात् एक ही कार्य बार बार नियमित रूप
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=== काटना ===
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# यह एक से अनेक बनाने की, बड़े से छोटा करने की एक रीति है जिसे काटना कहते हैं। यह भी रेखा खींचने के समान ही मूलभूत कौशल है। 'काटना' शब्द कागज काटना, कपड़ा काटना, फल एवं सब्जी काटना, रस्सी काटना, लकड़ी काटना इत्यादि के संदर्भ में उपयोग में लिया जाता है। परंतु हम यहाँ केवल कागज काटने के अर्थ के संदर्भ में इसका उपयोग करेंगे।
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# कागज के टुकड़े करने के लिए प्रथम हाथ का उपयोग होता है। हाथ से कागज काटा जाय तो उसे 'फाडना' कहते हैं। प्रथम छात्रों को कागज उनकी मरजी से फाड़ने देना चाहिए। यहाँ एक अंगुली एवं अंगूठे से कागज को पकड़ना ही मूल कौशल है। छात्र कागज को ठीक से पकड़ना सीखें इसका ध्यान रखें। प्रथम बड़े बड़े टुकडे करें एवं बाद में छोटे छोटे ऐसा क्रम रखें। हाथ से कागज फाड़ने में क्रम यह होगा:
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## हाथ से कागज फाड़कर टुकडे करना।
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## कागज की सीधी पट्टियाँ फाड़ना।
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## आवश्यकतानुसार छोटे बड़े टुकडे फाड़ना।
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## तह बनाकर तह ही रेखा पर से फाड़ना।
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## आकृति के किनारे किनारे से फाड़कर आकृति कतरना।
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# इस तरह से फटे हुए सभी टुकडों का कोई न कोई उपयोग हो ऐसा आयोजन करना चाहिए। ऐसा आयोजन छात्रों के ध्यान में भी होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर फटे हए कागजों के टकडों को पानी में भिगोकर, कूटकर, उसमें इमली के बीज का आटा मिलाकर खिलौने बनाएँ जाएँ। कटे फटे कागज की पट्टियों को एकदूसरे पर चिपकाकर तह करके कटोरी, टोकरी वगैरह बनवाएँ जाएँ। इन कटोरियों एवं टोकरियों का उपयोग सूखी वस्तुएँ रखने के लिए किया जाए। ऐसे बहुत अधिक कागज हों तो उन्हें फिर से कागज बनाने के उपयोग में भी लिया जा सकता है।
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# इसके पश्चात् होगा कैंची से काटना। इसके लिए कैंची छोटी होनी चाहिए। सबसे पहले कागज एवं कैंची पकड़ना सिखना चाहिए। इसके बाद पहले कागज के टुकडें काटना सिखाएँ। ऐसा करने से कैंची पर पकड़ अच्छी होगी। इसके बाद खींची हुई रेखा पर से काटना सिखाना चाहिए।
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# इस प्रकार काटते समय सामान्य मोटाई के कागज का उपयोग करना चाहिए। बहत मोटा या बहत पतला कागज इस समय काटने के लिए योग्य नहीं है। साथ ही वर्ग, आयत, त्रिभुज इत्यादि आकार काटने से आकारों का परिचय स्वयं ही हो जाता है।
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# प्रथम सीधी रेखा पर काटने के बाद घुमावदार रेखा के आकारों को कटवाना चाहिए। प्रथम कक्षा में सीधी रेखा पर एवं द्वितीय कक्षा में घुमावदार रेखा पर कटवाना चाहिए।
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# सावधानियाँ
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## फाड़ने या काटने के लिए उपयोग में लिया जानेवाला कागज गंदा या झुर्रियोंवाला नहीं होना चाहिए। स्वच्छ एवं समान सतहवाला होना चाहिए।
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## फाड़ने या काटने के लिए तह बनाते समय तह की किनारी सीधी पड़े इसका ध्यान रखना चाहिए।
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## कागज सरलता से कट सके ऐसी अच्छी धार वाली तेज कैंची होनी चाहिए।
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## कैंची छात्रों के हाथ के अनुरूप होनी चाहिए।
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## कैंची का स्क्रू बहुत सख्त या ढीला नहीं होना चाहिए।
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## कागज के कटे या फटे टुकड़े चिपकाने के उपयोग में लिए जा सकें इस तरह सम्हाल कर रखना चाहिए। इसके लिए कागज के ही अच्छे लिफाफे बनाकर रखना चाहिए। प्रत्येक लिफाफे में वर्गीकरण करके भिन्न-भिन्न नाप के, भिन्न-भिन्न रंग के एवं भिन्न-भिन्न प्रकार के टुकड़े भरकर रखना चाहिए।
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## आगे के क्रियाकलापों के लिए यह कौशल महत्वपूर्ण है। इसलिए इसकी शुरुआत भी पहले से ही करना चाहिए। यद्यपि छोटी छोटी इकाईयों मैं बाँटकर पूरा वर्ष यह क्रियाकलाप करवा सकते हैं तथापि प्रथम एवं द्वितीय कक्षा में इतना करने के बाद अगली कक्षाओं में अधिक प्रकार से काटना या फाड़ना सिखाया जा सकता है।
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## प्लास्टिक या लेमिनेशन युक्त कागजों का उपयोग न करें क्योंकि उनकी कतरन चिपकाने के लिए उपयोगी नहीं है तथा पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है।
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## काटने के कार्य में कक्षा में कूडा होने की संभावना रहती है। इस कतरन के कूड़े को उठाकर भरन के लिए कूडेदान की व्यवस्था होना चाहिए। कागज जहाँ तहाँ उड़कर न जाएँ इसके लिए पेपरवेट (कागज दबावक) का उपयोग करना चाहिए। खिड़की-दरवाजों या पंखे की हवा से कागज की रक्षा करना भी आवश्यक है।
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## फाड़ते या काटते समय कागज खराब होने पर उसका निरर्थक व्यय होने की संभावना रहती है। इस बात को ध्यान में रखकर पर्याप्त कागज की व्यवस्था करना चाहिए।
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से करना। इसलिए प्रतिदिन कुछ समय उस कार्य के लिए देना चाहिए। ३. कार्य की इकाई छोटी एवं एक ही रखें। एक साथ अनेक कार्य करें
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=== तह करना ===
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# तह करना भी मूलभूत कौशल है। इसका उपयोग जितना अन्य वस्तुएँ बनाने में होता है उससे कहीं ज्यादा जीवन व्यवहार में कदम कदम पर होता है। इसलिए इसे व्यावहारिक कौशल भी माना जाता है।
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# सबसे पहला क्रम है कपड़ों की तह करने का। छात्रों के लिए इसे सरल बनाने के लिए समान नाप के कपड़े के टुकड़े लेना चाहिए। उदाहरण के तौर पर वर्गाकार या आयताकार हो तो समान नाप के अर्थात् उनकी आमने सामने की भुजाएँ सीधी एवं समान हों इस पर ध्यान देना चाहिए। ये टुकड़े चारों तरफ से तुरपे हुए होने चाहिए।
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# तह करते समय निम्न क्रम ध्यान में रखें:
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## सर्वप्रथम कपड़े के टुकड़ों को जमीन पर बिछाएँ।
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## अपनी (स्वयं की) ओर के दोनों सिरों को दोनों कोनों से पकड़ने के लिए अंगूठे एवं अंगुली का उपयोग करें।
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## दोनों हाथों से पकड़े हुए सिरों को सामने की ओर ले जाकर कोने से कोना एवं किनारी से किनारी मिलाएँ।
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## फिर से तह करना हो तो कपड़ा घुमाकर नीचे से उपर की ओर ले जाएँ।
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# प्रारंभ में सभी टुकड़े समान हों तो तहें एकदूसरे पर रखकर गड्डी बनाने में सुगमता रहेगी। इसलिए तह करने के बाद गड्डी बनवाएँ। गड्डी बनाते समय बंद सतह पर बंद सतह एवं खुली सतह पर खुली सतह आए इस पर ध्यान दें।
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# कपड़े के समान टुकडों की तह करना आ जाए तो फिर जुराबें, कमीज इत्यादि कपड़ों की तह करवाएँ। क्रम कपडों की तह वाला ही रखें।  
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# सावधानियाँ:
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## कपड़े के टुकडे पर चुनहट हो यह देखें।
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## टुकडें अस्वच्छ न हों यह भी देखें।
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## सूती एवं मादरपाट जैसे मोटे कपड़े ही चुनें।
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## इस कौशल के लिए खास तौर पर अन्य चीजों का उपयोग न होने से गंदगी या अव्यवस्था होने का कोई भय नहीं रहता।
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इस तरह करने से कार्य में सफाई आती है। कौशल हस्तगत होता है। उस
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=== चिपकाना ===
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# यह भी एक मूलभूत कौशल है। यों तो कोई भी चीज चिपका सकते हैं। परंतु कागज चिपकाना ही मुख क्रियाकलाप है।
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# भिन्न भिन्न मोटाई के कागजों को भिन्न भिन्न चीजों से चिपका सकते हैं। इसलिए प्रथम शिक्षक या मातापिता को कौन सी चीज किससे चिपकती है यह जानकर योग्य वस्तु का ही उपयोग करना चाहिए। किसी भी सतह के लिए किसी भी वस्तु का उपयोग करने की लापरवाही नहीं दर्शानी चाहिए।
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# कक्षा १ तथा २ में चिपकाने के लिए केवल दो ही पदार्थों का उपयोग करना चाहिए - एक लेई एवं दूसरा गोंद। लेई अच्छी तरह से बनाई हुई होनी चाहिए। हो सके तो प्रेस से तैयार लेई लाकर उपयोग में लेना चाहिए।
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# चिपकाने के लिए नीचे की सतह सख्त एवं उपर कागज या नर्म, मुडनेवाला गत्ता रखना चाहिए। उसकी किनारी पर एक ओर गोंद लगाकर दूसरे कागज की किनारी व्यवस्थित रखना चाहिए। इसके बाद हाथ पोंछकर उस किनारी पर अंगुली घुमाकर उसे दबाना चाहिए। इस तरह दो टुकड़ों को चिपकाकर एक बड़ा टुकड़ा बनाया जाता है।
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# एक कागज पर अन्य कागजों के छोटे छोटे टुकड़े चिपकाकर चित्र तैयार किया जाता है। ऐसा करने के लिए काटने की क्रिया मैं तैयार किए गए कागज के टुकडों का उपयोग करना चाहिए।
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# छोटे चित्र को बड़े कागज पर चिपकाने का क्रियाकलाप भी किया जा सकता है। लिफाफा बनाने या बंद करने में भी चिपकाने का काम किया जाता है।
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# जिस तरह चिपकाने में हाथ की अंगुलियों का उपयोग होता है उसी तरह तूलिका का भी उपयोग कर सकते हैं। तूलिका लेई से चिपकाने में उपयोगी नहीं है। परंतु गोंद के लिए उपयोगी है। बाजार में प्राप्त चित्रकाम की तूलिका के बजाय एक सलाई में रूई लपेटकर तैयार की गई तूलिका चिपकाने की क्रिया में अधिक उपयोगी सिद्ध होती है।
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# कागज के टुकड़े चिपकाकर तैयार किए गए चित्र से सजावट भी कर सकते हैं।
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# सावधानियाँ:
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## चिपकाने के लिए लेई या गोंद का उपयोग करते समय गंदी अंगुली या हाथ को साफ करने के लिए कपड़े का टुकडा प्रत्येक छात्र अवश्य रखे। उसे ऐसी आदत ही डालना चाहिए। नहीं तो फर्श या चटाई या जिस आसन पर बैठे हैं उस पर हाथ पोंछने की आदत पड़ जाती है।
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## इसी तरह नीचे की सतह पर यदि गोंद ढुल जाए या गलती से लग जाए तो उस पर अपना ही कागज चिपक जाता है। एवं निकालने में फट जाता है। जिससे व्यय होता है। ऐसा न हो इसका ध्यान रखना चाहिए।
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## आसपास पडे अनावश्यक कागजों पर गोंद गिरने से कागज पर एवं फर्श पर दाग बन जाते हैं। ऐसा न हो इसका ध्यान रखें।
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## चिपकाने का कार्य जहाँ किया हो वहाँ कार्य पूर्ण होने पर भीगे कपड़े से पोंछा करना एवं हाथ धोकर पोंछना आवश्यक है। इसी तरह गोंद पोंछने के लिए जिस कपड़े का उपयोग हुआ हो उसे भी धोकर, सुखाकर, तह करके रखना चाहिए। गोंद या लेई जिस पात्र, कटोरी या अन्य साधन में लिया हो उसे भी साफ करके ही रखना चाहिए।
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## रेखा खींचने के लिए जिस प्रकार सामने चौकी होना जरूरी है उसी तरह चिपकाने के लिए भी चौकी होना आवश्यक है।
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## चिपकाने का कोई न कोई व्यावहारिक प्रयोजन होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर चिपकाकर चित्र बनाना, तोरण बनाना, लिफाफे बंद करना, लिफाफे बनाना आदि।
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कार्य के प्रति समझ भी स्पष्ट रूप से बढ़ती है। ४. गुणवत्ता का आग्रह रखें
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=== ईंटें पकाना ===
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यह एक बहुत बड़ा प्रकल्प है। बहुत दिनों तक चलता है। इसमें अनेक छोटे छोटे क्रियाकलापों का समावेश होता है। ये सभी क्रिया कलाप अलग अलग एवं स्वतंत्र रूप सिखाना चाहिए।
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# मिट्टी कूटना: बहुत सख्त मिट्टी न लें। नर्म मिट्टी के ढेलों को हथौडे की सहायता से कूटें। ऐसा करने से मिट्टी का चूर्ण बन जाता है। एवं पथ्थर या अन्य चीजें ज्यों की त्यों रहती हैं।
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# मिट्टी छानना: द्वितीय क्रम में कूटी हुई मिट्टी को छाना जाता है। इसके लिए बहुत छोटे छिद्रोंवाली छननी न लें। इस क्रिया में अंजुली में मिट्टी भरकर छननी में डालें एवं दोनों हाथों से छननी हिलाना छात्रों को सिखाएँ।
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# मिट्टी भिगोना एवं गूंधना: एक बड़े एवं छिछले पात्र में मिट्टी डालकर उसमें आवश्यकतानुसार पानी डालें। जिस तरह हाथ से आटा गूंधते हैं उसी तरह मिट्टी को मसलकर गूंधना चाहिए। मिट्टी जितनी अधिक गूंधी जाय उतनी ही नरम बनती है। गूंधी हुई मिट्टी नरम, चिकनी, एवं सूखने पर दरारों रहित बनती है। इसलिए उसे अधिक से अधिक गूंधना चाहिए। गूंधने का कार्य दोनों हाथों एवं पांचों अंगुलियों के उपयोग से किया जाता है। पात्र में स्थित मिट्टी को उपर नीचे करके पूरी मिट्टी बराबर गूंधी जाए इसका ध्यान रखना चाहिए। गूंधी हुई मिट्टी हाथ में लेने पर बहुत जोर लगाना पडे इतनी सख्त या हाथ में से गिर जाए इतनी नर्म भी नहीं होनी चाहिए। मिट्टी गूंधने की क्रिया चार पाँच छात्र समूह में भी कर सकते हैं। गूंधने की क्रिया केवल एक ही दिन में पूर्ण न करें। यह क्रिया तीन-चार दिन तक चलने दें। प्रतिदिन कार्य पूर्ण होने पर मिट्टी पर थोड़ा सा पानी डालकर पात्र को ढककर रख दें जिससे मिट्टी सूख न जाए।
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# गूंधी हुई मिट्टी से खिलौना बनाना: गूंध गूंधकर तैयार की गई मिट्टी के छोटे छोटे गोले बनाकर उसमें से खिलौने बनाएँ। सभी अलग अलग बनाएँ। प्रारंभ में छोटी-छोटी गट्टी बन जाएंगी। इसके बाद तो कल्पनानुसार सीताफल, गणेश, चकला, बेलन, घडा, गुडिया, वगेरेह भी बनाया जा सकता है। इस प्रकार खिलौने बनाने के बाद उन्हें सुखाने के लिए धूप में रखना चाहिए।
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# इसी तरह मिट्टी के गोले को सांचे में ढालकर समान आकार की ईंटें बनाना चाहिए। (ईंटे बनाना खिलौने बनाने से सरल काम है। खिलौनों में कल्पनाशीलता एवं हाथों की कारीगरी दोनों की आवश्यकता होती है।) ईंटें बनाकर सुखाकर आगे का कार्य किया जा सकता है।
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# ईंटों एवं खिलौनों को सूखने के बाद आवाँ (कुम्हार की भट्ठी) में पकने के लिए रखना चाहिए। इस कार्य के जानकार को सहायता के लिए बुलाना चाहिए। छात्र ये सभी प्रक्रियाएँ देखें एवं जानें यह आवश्यक है।
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# भट्ठी (आँवा) में से निकालने के बाद सभी वस्तुओं को गेरू या खडी से रंगना चाहिए। रंगने के लिए कपड़े का गोला या ब्रुश उपयोग में लिया जाता है।
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# खिलौनों को सजाकर रखना चाहिए। ईंटों को भी सजावट के कार्य में ले सकते हैं। ईंटों से चौतरा या बड़ा चबूतरा भी बनाया जा सकता है। चबूतरा बनाने के लिए ईंटों को जोड़ने में मिट्टी का ही उपयोग करना चाहिए।
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# सावधानियाँ:
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## यह एक सामूहिक प्रकल्प हैं। लंबा चलनेवाला प्रकल्प है। इसी आधार पर इसका आयोजन करना चाहिए।
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## मिट्टी का काम करते समय गणवेश बदलकर कार्य करना चाहिए।
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## प्रतिदिन कार्य पूर्ण होने पर उस स्थान की सफाई करनी चाहिए।
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## मिट्टी अच्छी किस्म की हो इसका खास ध्यान रखना चाहिए।
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## यह कार्य लंबी समयावधि का होने के कारण किसीको आपत्ति न हो ऐसा विशिष्ट स्थान चुनना चाहिए।
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## छात्रों में निर्माण क्षमता एवं सौन्दर्यदृष्टि का विकास हो इस उद्देश्य से वार्तालाप करना चाहिए।
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## छात्रों द्वारा बनाए गए खिलौनों एवं ईंटों के प्रदर्शन का आयोजन करना चाहिए। मातापिता, अभिभावक एवं अन्य लोगों को प्रदर्शन देखने के लिए आमंत्रित करना चाहिए।
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## छोटी छोटी ईंटों को अलग अलग रंगों से रंगकर उनमें से विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनाना चाहिए।
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## प्रथम दृष्टि में तो यह बहुत कठिन एवं अव्यावहारिक लगनेवाला प्रकल्प है। इसलिए इसका पक्का आयोजन होना चाहिए। उस आयोजन के बारे में अभिभावकों को सूचित करना चाहिए। आयोजन जब प्रत्यक्ष रूप से कार्यान्वित हो तब भी उसके प्रत्यक्ष दर्शन के लिए भी अभिभावकों को आमंत्रित करना चाहिए।
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## संपूर्ण प्रकल्प तो वर्ष में एक ही बार होगा परंतु उसके अलग-अलग क्रियाकलाप एक से अधिक बार करना चाहिए। ऐसा करने से ही हाथों में निपुणता आएगी।
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निश्चितता, चौकसी, गुणवत्ता का आग्रह रखना चाहिए एवं छात्र में उसका आग्रह बने ऐसी प्रेरणा देना चाहिए। ऐसे आग्रह एवं अभ्यास से किसी भी कार्य का कर्मज संस्कार बनता है। ऐसा संस्कार होने के बाद वह छात्र जीवन में जब भी कुछ भी करेगा तो उसमें चौकसी, निश्चितता, उत्तमता आदि का आग्रह अवश्य होगा।
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=== पिरोना, कढाई करना, गूंथना ===
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# पिरोना: सुईं में धागा पिरोना, धागे में मोती पिरोना, सुई-धागे से फूल पिरोकर माला बनाना। यह बहुत सरल प्रक्रिया है। केवल सुई बहुत नोकदार न लें एवं थोड़ी बड़ी लें, जिससे सुई में धागा पिरोना आसान हो सके। इसी तरह मोती भी हाथ से आसानी से पकड़े जा सकें ऐसे आकार के ही चुनें। सुईधागे में फूल पिरोना हो तो सुई नोकदार एवं पतली होनी चाहिए एवं धागा भी पतला लेना चाहिए।
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# कढ़ाई करना: कढ़ाई करना अर्थात् काढ़ना। दैनिक उपयोग की चीजों को अपनी कला कारीगरी से कैसे सुंदर बनाएँ इसका प्रत्यक्ष अनुभव करने के लिए कढ़ाई बहुत उपयोगी क्रियाकलाप है। यह कार्य आसान बनाने के लिए सुई भोथरी एवं बड़ी, कुछ मोटा धागा एवं टाट जैसे छिद्रोंवाला कपड़ा लेना चाहिए। अभ्यास करते करते समान नाप के टांके एवं ऐसे टांके लेने के लिए कितने छिद्रों की गिनती करनी पडेगी इसकी समझ, रंगों का संयोजन आदि मन में सही बैठते जाएँगे। यह क्रियाकलाप कक्षा २ में करवा सकते हैं।
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# गूंथना: इसका प्रथम चरण है मोटे धागे में गाँठे लगाना। सादी गाँठें लगाने में अधिक समय देने की जरूरत है। मोटे धागे को गाँठ लगाकर उसे खोलना भी सिखाना चाहिए। सादी गाँठ लगाना सीखने के बाद चोटी गूंथना सिखाना चाहिए। मोटी सुतली या मोटे मोटे तीन धागे लेकर चोटी गूंथना सिखाएँ। ऐसी गूंथी हुई लड़ियों की सहायता से आसन भी बनाया जा सकता है। फूलदानी रखने के लिए छोटी दरी भी बना सकते हैं। मालाएँ लटकाकर सजावट भी कर सकते हैं।
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# सावधानियाँ
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## मूल सामग्री अच्छी, समान नाप की एवं पक्के रंगोंवाली लेना चाहिए।
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## नमूना बनाने के बाद जल्दी फट जाए या उसका रंग उड़ जाए ऐसी न लें।
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## कुछ गूंथी हुई लड़ियों को सुलझाने पर मूल सुतली या धागा बन जाता है यह भी बताना चाहिए।
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## ऐसा सब सुशोभन का सामान छात्रों के घर एवं समाज में भी पहुँचाना चाहिए।
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५. पूर्ण कार्य करें
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=== कपास के बिनौले छीलना, बीज निकालना, रूई धुनना, बत्ती बनाना ===
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# अच्छी किस्म के रूई से भरपूर बड़े बड़े कपास के बिनौले लें।
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# उनमें से रूई निकालकर बीज एवं रूई के अलग अलग ढेर बनाएँ।
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# रूई में से बीज निकालना आसान काम नहीं है। इसके लिए बीज के आसपास की रूई अलग करके बीज निकाल लेना चाहिए। इसके लिए एक अंगुली एवं अंगूठे का उपयोग करना चाहिए। बीज निकालने के बाद उसका भी अलग संग्रह करना चाहिए।
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# रूई पर कचरा लगा हो तो उसे चुन चुनकर दूर करना चाहिए। इसके बाद रूई को धुनने के लिए उसमें किसी साधन का उपयोग किए बिना केवल अंगुलियों का ही उपयोग करना चाहिए। रूई को धुनना अर्थात् उसमें यदि किसी प्रकार की गाँठ वगैरह हो तो उसे दूर करके रूई को तार या बत्ती बनाने के लायक बनाना।
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# रूई धुनने के बाद रूई के छोटे छोटे पोल लेकर उन्हें लंबी लंबी पूनियों में ढालना सिखाना चाहिए। लंबी पूनियाँ अर्थात् लपेटना नहीं, केवल धुनी हुई रूई को लंबी करके वह टूटे नहीं ऐसी पूनियाँ तैयार करना। इसमें कुशलता प्राप्त करने के लिए धैर्य एवं अभ्यास की जरूरत है।
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# इसी तरह छोटे छोटे फाहों की एक एक बत्ती बनाना चाहिए। बत्ती बनाना बहुत ही कुशलता का काम है। इस अवस्था में उत्तम प्रकार की बत्ती बनने की अपेक्षा न रखें परंतु बत्ती बनाने में अंगुलियों को सिखाने की जरूरत होती है। यह क्रियाकलाप केवल अंगुलियों को कुशल बनाने के लिए है। बत्ती का उपयोग दीपप्रज्वलन के समय करना चाहिए।
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# सावधानियाँ
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## बिनौले, बीज या रूई को व्यर्थ नहीं फैंकना चाहिए। बिनौले के छिलकों का ईधन के रूप में एवं बीज का गिनती करने में उपयोग किया जा सकता है।
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## बीज में से तेल प्राप्त होता है। बीजों को रंगकर उसका उपयोग रंगोली बनाने में भी होता है। इसे मवेशियों को भी खिलाया जाता है। ऐसे सभी उपयोग छात्र देखें ऐसी व्यवस्था करें।
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## छिलके छात्रों के हाथों में चुभ न जाएँ इसका ध्यान रखना चाहिए।
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## रूई में से सूत बनता है, सूत में से कपड़ा बनता है। एवं कपड़े में से वस्त्र बनता है यह छात्रों को समझाएं।
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## कपास खेत में उगता है यह छात्रों को दिखाएँ।
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## कभी कभी छात्रों को खेत, जिन, घानी, कपडा मिल वगैरह की मुलाकात करवाएँ। उन्हें ये सभी अनुभव ही लेने दें। याद रखना, समझना एवं प्रश्नों के उत्तर देने का बोझ उन पर न डालें।
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## जीवन की मूलभूत आवश्यकता है वस्त्र। इस वस्त्रविद्या के साथ छात्र बचपन से ही संबंध स्थापित करें यह आवश्यक है। इसी दृष्टिकोण से यह अति प्राथमिक स्तर के क्रियाकलापों का यहाँ समावेश किया गया है।
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कोई भी कार्य, जितनी इकाई निश्चित की हो उतना, शुरुआत से अंत तक पूर्ण करें, आधाअधूरा न छोड़े। छात्र के बस का न हो ऐसा कार्य उससे न करवाएँ। परंतु स्वयं करते समय उन्हें देखने अवश्य दें। कुछ संस्कार देखदेखकर भी बन जाते हैं। देखते देखते अपने आप निरीक्षण भी होता रहता है। स्वाभाविक रहें कोई भी कार्य करते समय आवश्यकतानुसार मौन रहें या बातचीत करते रहें। कार्य करते करते एकाग्रता आने पर स्वयं ही मौन आ जाता है एवं शांति स्थापित हो जाती है। उस समय शांति का भंग न करें। कार्य समाप्ति
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=== चित्र बनाना एवं रंग भरना ===
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# जिस प्रकार यह कौशल रंग एवं रेखा का है, उसी तरह कल्पनाशीलता एवं सर्जनशीलता की अभिव्यक्ति का भी है। इसलिए दोनों दृष्टिकोण से यह क्रिया-कलाप करना चाहिए।
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# रेखा खींचने का अभ्यास हो चुका है। अब रेखा का उपयोग अपने मन की कल्पना, भावना, सोच आदि को आकारबद्ध करने में करना है। इसके लिए वास्तविक जीवन की अलग अलग वस्तुओं को रेखाबद्ध करते समय जो पैमाना रखना महत्वपूर्ण है वह मनमें समाए उस दिशा में छात्रों को प्रेरित करना चाहिए।
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# इसमें हम हमेशा एक गलती करते आए हैं। वह यह कि हम छात्रों को अपने बनाए हुए चित्र के जैसा चित्र ही बनाने के लिए कहते हैं। देख देखकर अनुकरण करने से कल्पनाशक्ति या पैमाना दो में से एक भी विकसित नहीं होता है। एक अच्छा चित्र अनुकरण करके बनाया जाए इसकी अपेक्षा कल्पना से बनाया हुआ चित्र थोड़ा कम सुन्दर हो तो भी अच्छा है। बाह्य एवं उधार ली हुई सुन्दरता की अपेक्षा मौलिकता का महत्व हमेशा से अधिक रहा है। इस बात का खास ख्याल रखें।
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# यदि अनुकरण ही करना है तो आसपास के पर्यावरण एवं विश्व में जो प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है उसका करना चाहिए। अनुकरण के लिए वस्तु को चुनने का अवकाश छात्रों को देना चाहिए। इसमें छात्रों को मार्गदर्शन एवं सहायता करना चाहिए; उनका नियंत्रण नहीं।
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# इसके बाद छात्रों को कल्पना से मौलिक दृश्य निर्माण के लिए कहना चाहिए।
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# रंग भरने के लिए प्रथम पेन्सिल का उपयोग करवाएँ। उससे पूर्व रंगीन चोक का भी उपयोग किया जा सकता है। इसके पश्चात् जलरंगों का उपयोग करवाएँ। जलरंगों के उपयोग के लिए सिंक पर रूई लपेटकर तैयार की गई तूलिका एवं बजाार में प्राप्त तूलिका का उपयोग करवाएँ।
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# चित्रों में रंग भरने से पहले बड़ी कूची से ईटें रंगवाना, गमले रंगवाना इत्यादि क्रियाएँ भी करवाएँ।
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# सावधानियाँ:
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## हाथ की मुक्त हलचल हो सके इसलिए पहले छात्रों से भूमि पर बड़े बड़े चित्र बनवाएँ। ऐसे चित्र में लंबी लंबी रेखाएँ ही होनी चाहिए। परंतु हाथ की मुक्त हलचल के लिए यह आवश्यक है। पहले तो पूरे शरीर की हलचल से बड़े स्थान पर ऐसी रेखाएँ बनावाएँ। परन्तु दूसरे सोपान में एक ही स्थान पर बैठकर केवल हाथ जहाँ तक पहुँच सके उतनी जगह में ही चित्र बनवाएँ।
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## भूमि पर चित्र बनाने के बाद उसे साफ करने के लिए भी कहें।
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## भूमि पर चित्र खडिया से ही बना सकते हैं। खडिया गुलाबी, आसमानी, पीले, लाल एवं सफेद रंग की होती हैं। इन रंगों का उभार आए ऐसा फर्श भी होना चाहिए। इसके अतिरिक्त खड़िया बार-बार टूट जाएँ ऐसी कच्ची भी नहीं होनी चाहिए।
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## चित्र बनाने से पहले या बनाने के साथ साथ चित्र देखने या देखते रहने का भी अभ्यास करवाएँ। इसके लिए शिशुवाटिका के चित्र पुस्तकालय का उपयोग करें। साथ ही दैनिक पत्र, अखबार, पत्रिकाएँ, दिनदर्शिकाएँ (केलेन्डर) इत्यादि में से चित्र कटवाकर चित्र संग्रह तैयार करने की आदत छात्रों में आए ऐसा प्रयास करें। यह आदत सभी के लिए लाभदायी सिद्ध होगी।
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## देखे या बनाए गए चित्रों के विषय में वार्तालाप होना भी आवश्यक है। इसके कारण छात्रों की कल्पनाशीलता के बारे में जानकारी मिलती है एवं उनकी अभिव्यक्ति व क्षमता का विकास होता है।
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## तैयार किये गये चित्रो की प्रदर्शनी अवश्य लगवाएँ। छात्र स्वयं, अन्य छात्र, अभिभावक एवं अन्य, ये चित्र देखें एवं प्रशंसा करें यह भी आवश्यक है। इससे चित्र बनानेवाले छात्रों को प्रोत्साहन मिलता है।
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पर उस संदर्भ में बातचीत करें। ७. संगीत श्रवण
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=== रसोई के कार्य छीलना, मसलना वगैरह ===
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# इन सभी क्रियाकलापों से सब इतने परिचित हैं कि इनका वर्णन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए हम केवल ध्यान में रखने योग्य सावधानियों के बारे में ही सोचेंगे।
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# सब सामान स्वच्छ, अच्छी किस्म का एवं उचित मात्रा में होना चाहिए।
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# सब साधन छात्रों के योग्य छोटे एवं अच्छे होने चाहिए।
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# कार्य करने के बाद की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें।
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# कोई भी व्यंजन बनने के बाद स्वादिष्ट होना चाहिए।
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# व्यंजन बनने के बाद सभी को खाने या चखने के लिए मिले इतना अर्थात् पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए।
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# पूर्वतैयारी, एवं बाद की स्वच्छता एवं व्यवस्थितता के लिए पर्याप्त समय दे।
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# खाने के लिए प्लेट, कटोरी या थाली का उपयोग करना चाहिए। व्यवस्थित बैठकर ही भोजन करना चाहिए।
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# बनाते समय एवं भोजन करते समय खूब धीमा एवं मधुर संगीत छात्रों को सुनवाना चाहिए।
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# रसोई से संबंधित क्रियाकलापों को करने के लिए विद्यालय में एक रसोई भी हो तो सुविधा रहेगी।
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कार्य जब चल रहा है तब उत्तम, मधुर, धीमा संगीत सुनाने की व्यवस्था करें। इससे एकाग्रता एवं प्रसन्नता बढ़ती है। एवं स्वर, ताल, लय के पक्के
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=== कृषि ===
 
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यह भी जीवन को टिकाए रखनेवाला मूल उद्योग है। हमारी सभी प्रकार की मूल आवश्यकताएँ भूमि ही पूर्ण करती है। कृषि भूमि से संबंधित उद्योग है। इसलिए सभी छात्रों को भूमि से संबंधित कार्यों का परिचय होना विकास की दृष्टि से आवश्यक है। इस दृष्टि से निम्न क्रियाकलापों के बारे में सोचा गया है:
संस्कार बनते हैं। ८. साधन सामग्री की गुणवत्ता तथा उसके रखरखाव का आग्रह
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# जमीन नर्म बनाना : जमीन पर पानी छिड़ककर उसे गोड़कर नर्म बनाना चाहिए। ऐसी जमीन को ही जोत सकते हैं।
 
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# मिट्टी खोदकर क्यारे तैयार करना : छोटी छोटी कुदालियों से मिट्टी खोदने का कार्य करवाएँ। छोटे फावड़े से खोदी हुई मिट्टी बाहर निकाल कर एक तरफ ढेर बनाएँ।
यह एक अच्छी शिक्षा का महत्त्वपूर्ण अंग है। पेन्सिल, मापपट्टी, स्लेट, कागज, रबर या पुस्तक, कापी या खुरपी, कुदाली, पानी देने की झारी या कूटने-पीसने, भरने के साधनों को स्वच्छ, योग्य नाप के, व्यवस्थित एवं उत्तम गुणवत्ता से युक्त एवं टूटेफूटे न हों इसका ध्यान रखें। इसके अतिरिक्त इनके रखरखाव का स्थान भी योग्य हो। उन पर धूल मिट्टी न जमे, जंग न लगे, टूटे या फटे नहीं इस पर भी ध्यान दें। यदि ऐसा हो तो तुरंत ही उन्हें ठीक करवा लें। चीजों का महत्तम उपयोग करें बनी हुई चीजों का पूर्ण उपयोग हो यह देखें। व्यय न होने दें। महत्तम उपयोग हो इसका ध्यान रखें। इस संस्कार के फलस्वरूप व्यक्ति, की घर की, एवं
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# मिट्टी साफ करना : मिट्टी में से कंकड़ पत्थर एवं अन्य हानिकारक वस्तुएँ चुन लें। व्यर्थ घास, खरपतवार आदि निकालकर मिट्टी को साफ करें। मिट्टी के ढेलों को हाथ या हथौड़ी से फोड़कर मिट्टी चूर चूर करें। स्वच्छ मिट्टी फिर से क्यारियों में डालें। क्यारियों के किनारे किनारे मेंड बनाएँ।
 
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# क्यारियां तैयार करते समय मिट्टी में खाद मिलाएँ। खाद भी मिट्टी के समान ही बारीक होना चाहिए। खाद में कृत्रिम खाद का उपयोग कभी न करें। हमेशा गोबर या केंचुए द्वारा तैयार खाद ही लें।
देश की समृद्धि में वृद्धि हो एवं वह भी बनी रहे यह अत्यंत आवश्यक है। १०. कूड़ा एवं निरर्थक वस्तुओं का निकाल
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# इसके बाद क्यारियों में मेथी, पालक, धनिया, राई, तुलसी, गेंदा इत्यादि पौधे लगाएँ। ये बीज या पौधे जल्दी उग जाते है एवं इनकी पत्तियाँ एवं फूल हमारे दैनिक उपयोग में लिए जा सकते हैं इसलिए इनका चयन किया गया है यह छात्रों को समझाएँ। बीज उगाने हों तो क्यारे उस नाप के बनाने चाहिए, पौधे उगाने हों तो उसके अनुरूप क्यारे बनाने चाहिए। इसके बाद अच्छी तरह समान दूरी पर, समान गहराई में बीज या पौधे लगाना चाहिए। अच्छी तरह मिट्टी डालकर पानी देना, एवं पौधों के बढ़ने की प्रक्रिया का निरीक्षण समय समय पर करते रहना, उसकी सफाई करते रहना, पानी देते रहना एवं इस विषय पर वार्तालाप भी करते रहना चाहिए। पौधे की सुरक्षा की व्यवस्था भी करना चाहिए।
 
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# पौधे तैयार हो जाने पर पत्ते या फूल चुनना चाहिए। पत्ते का अल्पाहार बनाने में, एवं फूलों का पुष्पगुच्छ या माला बनाने में उपयोग करें।  
यह भी पर्यावरण, स्वच्छता, समृद्धि, संस्कार आदि से सीधा ही संबंधित
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# सावधानियाँ
 
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## सभी औजार अच्छे एवं छोटे नाप के होना चाहिए।
है। साग-सब्जी के छिलके, बेकार कागज, जमीन, बर्तन, कपड़े धोने से बचा हुआ पानी, सूखे फूल या पत्तियाँ आदि का निकाल ठीक तरह से हो
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## विद्यालय में एक कोना कृषिकार्य के लिए होना चाहिए।  
 
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## विद्यालय में खुली जमीन न हो तो गमलों का उपयोग करना चाहिए।
इसकी व्यवस्था करें। प्रत्यक्ष सिखाते समय
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## पौधों को पानी देने के लिए झारी अवश्य रखें। छात्रों को इसका बहुत आकर्षण होता है।
 
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## इसी तरह पत्ते एवं फूल चुनने के लिए छोटी छोटी टोकरियाँ भी जरूरी हैं। इसमें छात्रों को आनंद मिलता है एवं व्यवस्थित काम करने के संस्कार बनते हैं।
रेखा खींचना प्रथम चरण है रेखा खींचना। छात्र अंगुली से, पेन्सिल से या पेन से जमीन पर, स्लेट पर, दीवार पर, या कागज पर टेढ़ीमेढ़ी रेखायें खींचता है। उसका वह क्रियाकलाप तो बहुत पहले से ही शुरू हो जाता है परन्तु उसकी पेन पकड़ने की पद्धति सही नहीं होती है। इसलिए उसे सही तरह से पेन पकड़ना सिखाएँ। सही तरीके से पेन पकड़ने से उसकी लकीरें भी ठीक बनेंगी। आड़ीडेढ़ी रेखा, रेखा नहीं है। रेखा अर्थात् दो निश्चित बिन्दुओं को जोड़ना। ऐसी रेखा खींचने के लिए सर्वप्रथम किसी भी प्रकार के माप के बिना हाथ से ही रेखा खींचने के लिए कहना चाहिए। आड़ी-डेढ़ी रेखा एवं रेखा के बीच का अंतर मस्तिष्क में बैठने तक मुक्त रूप से रेखाएँ खिंचवाना चाहिए। इसके लिए कल्पना के अनुसार भिन्न-भिन्न वस्तुओं के आकार बनाने के लिए कह सकते हैं। ये रेखाएँ स्वाभाविक रूप से ही घुमावदार होंगी। गोल, अर्धगोल, लंबगोल, आम का आकार, बेलन का आकार आदि विविध प्रकार से टेढ़ी रेखाएँ खींचने का अभ्यास हो यह जरूरी है। इन आकारों में माप नहीं होगा परंतु धीरे धीरे उन्हें अनुपात की ओर ले जाएँ। पेन तथा हाथ की हलचल पर नियंत्रण रहे इसलिए मुक्त एवं नियंत्रित क्रियाएँ करवाएँ। इसके बाद बारी आती है सीधी रेखा की। सीधी रेखा खींचने के लिए हाथ की हलचल पर अधिक नियंत्रण एवं अधिक एकाग्रता की जरूरत होती है। इसमें सहायता के लिए उन्हें बिन्दु निश्चित करके दें। ये बिन्दु एकदूसरे से बहुत दूर नहीं होने चाहिए। प्रथम उनसे सीधी रेखा खींचवानी चाहिये। ये रेखाएँ इतने प्रकार से खिंचवाएँ : १. आड़ी रेखा - बाई ओर से दाहिनी ओर जानेवाली जैसे कि → २. खड़ी रेखा – उपर से नीचे की ओर जानेवाली जैसे कि । ३. तिरछी रेखा - बाई ओर से दाहिनी ओर जानेवाली जैसे कि । ४. तिरछी रेखा – दाहिनी ओर से बाई ओर जाने वाली जैसे कि ।
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## बगीचे में या खेतों में काम करते समय गणवेश निकालकर दूसरे वस्त्र पहनकर काम करें।
 
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४. इसके बाद कागज की तह बनाकर उस पर रेखा खिंचवाएँ या खिंची हुई
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रेखा पर ही रेखा खिंचवाएँ। ऐसी रेखा एक या दो या तीन ईंच जितनी लंबी होनी चाहिए। इसके बाद बारी आती है फुटपट्टी से रेखा खींचने की। इसके लिए भी बिंदु निश्चित करना चाहिए। फुटपट्टी छोटी छः ईंचकी ही हो तो अधिक सुविधा रहेगी। पारदर्शक हो तो बहुत ही उत्तम है। फुटपट्टी से रेखा खींचने के लिए प्रथम स्लेट एवं बाद में कागज का उपयोग करें। जबतक रबड़ का उपयोग नहीं कर सकते तब तक पेन्सिलका अधिक उपयोग न करें। ये रेखायें आड़ी, खड़ी, तिरछी, सभी तरह की होनी चाहिए। यद्यपि अनुभवी आचार्य यह समझ सकते हैं कि फुटपट्टी के उपयोग से खड़ी रेखा खींचना सरल है परंतु आड़ी रेखा खींचना उतना सरल नहीं है। इसलिए प्रथम खड़ी रेखा,
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इसके बाद तिरछी रेखा एवं इसके बाद आड़ी रेखा खींचवाएँ। ६. इसी तरह घुमावदार रेखाओं को भी आनुपातिक करने का प्रयास करना
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चाहिए। एक सीमा में रहकर विभिन्न आकार बनवाने का अभ्यास करवाएँ। ७. इसके बाद सीधी, टेढ़ी एवं घुमावदार रेखाओं का एकसाथ उपयोग हो इस
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तरह भिन्न-भिन्न आकार बनाने का खेल चलता रहे। सावधानियाँ १. रेखा खींचना अन्य क्रियाकलापों के लिए मूलभूत कौशल है। इसलिए जब
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तक रेखा खींचना पूर्ण रूप से नहीं आता तब तक लेखन न करवाएँ।
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करवाएंगे तो लेख अच्छा न होने की संभावना रहेगी। २. रेखा खींचने के लिए प्रथम रेत में अंगुलियों से, फिर जमीन पर खड़िया से,
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इसके बाद स्लेट पर पेन (खड़िया) से एवं अंत में कागज पर पेन्सिल से खींचने का क्रम बनाएँ। कक्षा १ में प्रारंभ के तीन मास इस क्रिया के लिए देना चाहिए। इसके बाद रेखाओं का व्यावहारिक उपयोग अर्थात् लेखन, कोष्टक बनाना, चित्र बनाना
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आदि शुरू करें। ४. इससे संबंधित आनुषंगिक कौशल हैं - पेन पकड़ना, स्लेट पकड़ना,
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कागज, कड़ी सतह पर रखना आदि। इसकी ओर पर्याप्त ध्यान दें। ५. स्लेट, पेन, कागज, पेन्सिल, खड़िया के नीचे की जमीन की सतह योग्य है
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या नहीं इसका ध्यान रखें।
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६. यह सब करते समय योग्य बैठक व्यवस्था बनाए रखें। छात्र पेट के बल
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लेटकर, आगे की ओर झुककर, स्लेट या कापी टेढ़ी रखकर न लिखें
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इसका ध्यान रखें। ७. उद्योग की अभ्यासपुस्तिका में रेखा खींचने के लिए एक स्वतंत्र विभाग होना
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चाहिए। परंतु अभ्यास पुस्तिका की बारी तो अंत में आती है। उससे पहले
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पूर्ण अभ्यास रेती, जमीन, स्लेट,वगैरह पर करना आवश्यक है। ८. रेखा खींचने के कौशल का स्वतंत्र मूल्यांकन होना चाहिए। मूल्यांकन के
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बाद उस पर आधारित आगे के अन्य मुद्दों की ओर जाना चाहिए। ९. ध्यान रहे कि यह जीवनभर चलनेवाले विविध प्रकार के क्रियाकलापों की
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नींव है। भिन्न भिन्न विषयों के लिए आधारभूत सोपान भी यही है। इसलिए
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इसका महत्त्व बिलकुल भी कम नहीं आंकना चाहिए। १०. इस कौशल से संबंधित शब्द - रेखा, पंक्ति, बिंदु, सीधी रेखा, टेढ़ी रेखा,
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बेल-बूटेदार छाप, रंगोली वगैरह सरलता से समझे जा सके इस तरह उनका उपयोग करना चाहिए। पंक्ति में बैठना, रेखा पर खड़े रहना, रेखा पर
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चलना, रेखा के अंदर रहना इत्यादि समझ में आना चाहिए। २. काटना १. यह एक से अनेक बनाने की, बड़े से छोटा करने की एक रीति है जिसे
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काटना कहते हैं। यह भी रेखा खींचने के समान ही मूलभूत कौशल है। 'काटना' शब्द कागज काटना, कपड़ा काटना, फल एवं सब्जी काटना, रस्सी काटना, लकड़ी काटना इत्यादि के संदर्भ में उपयोग में लिया जाता है। परंतु हम यहाँ केवल कागज काटने के अर्थ के संदर्भ में इसका उपयोग करेंगे। कागज के टुकड़े करने के लिए प्रथम हाथ का उपयोग होता है। हाथ से कागज काटा जाय तो उसे 'फाडना' कहते हैं। प्रथम छात्रों को कागज उनकी मरजी से फाड़ने देना चाहिए। यहाँ एक अंगुली एवं अंगूठे से कागज को पकड़ना ही मूल कौशल है। छात्र कागज को ठीक से पकड़ना सीखें इसका ध्यान रखें। प्रथम बड़े बड़े टुकडे करें एवं बाद में छोटे छोटे ऐसा क्रम रखें। हाथ से कागज फाड़ने में क्रम यह होगा - १. हाथ से कागज फाड़कर टुकडे करना। २. कागज की सीधी पट्टियाँ फाड़ना।
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३.
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३. आवश्यकतानुसार छोटे बड़े टुकडे फाड़ना। ४. तह बनाकर तह ही रेखा पर से फाड़ना। ५. आकृति के किनारे किनारे से फाड़कर आकृति कतरना। इस तरह से फटे हुए सभी टुकडों का कोई न कोई उपयोग हो ऐसा आयोजन करना चाहिए। ऐसा आयोजन छात्रों के ध्यान में भी होना चाहिए। उदाहरण के तौर पर फटे हए कागजों के टकडों को पानी में भिगोकर, कूटकर, उसमें इमली के बीज का आटा मिलाकर खिलौने बनाएँ जाएँ। कटे फटे कागज की पट्टियों को एकदूसरे पर चिपकाकर तह करके कटोरी, टोकरी वगैरह बनवाएँ जाएँ। इन कटोरियों एवं टोकरियों का उपयोग सूखी वस्तुएँ रखने के लिए किया जाए। ऐसे बहुत अधिक कागज हों तो उन्हें
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फिर से कागज बनाने के उपयोग में भी लिया जा सकता है। ४. इसके पश्चात् होगा कैंची से काटना। इसके लिए कैंची छोटी होनी चाहिए।
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सबसे पहले कागज एवं कैंची पकड़ना सिखना चाहिए। इसके बाद पहले कागज के टुकडें काटना सिखाएँ। ऐसा करने से कैंची पर पकड़ अच्छी
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होगी। इसके बाद खींची हुई रेखा पर से काटना सिखाना चाहिए। ५. इस प्रकार काटते समय सामान्य मोटाई के कागज का उपयोग करना
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चाहिए। बहत मोटा या बहत पतला कागज इस समय काटने के लिए योग्य नहीं है। साथ ही वर्ग, आयत, त्रिभुज इत्यादि आकार काटने से आकारों
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का परिचय स्वयं ही हो जाता है। ६. प्रथम सीधी रेखा पर काटने के बाद घुमावदार रेखा के आकारों को
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कटवाना चाहिए। प्रथम कक्षा में सीधी रेखा पर एवं द्वितीय कक्षा में
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घुमावदार रेखा पर कटवाना चाहिए। सावधानियाँ १. फाड़ने या काटने के लिए उपयोग में लिया जानेवाला कागज गंदा या
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झुर्रियोंवाला नहीं होना चाहिए। स्वच्छ एवं समान सतहवाला होना चाहिए। २. फाड़ने या काटने के लिए तह बनाते समय तह की किनारी सीधी पड़े
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इसका ध्यान रखना चाहिए। ३. कागज सरलता से कट सके ऐसी अच्छी धार वाली तेज कैंची होनी चाहिए। ४. कैंची छात्रों के हाथ के अनुरूप होनी चाहिए।
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५. कैंची का स्क्रू बहुत सख्त या ढीला नहीं होना चाहिए। ६. कागज के कटे या फटे टुकड़े चिपकाने के उपयोग में लिए जा सकें इस तरह
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सम्हाल कर रखना चाहिए। इसके लिए कागज के ही अच्छे लिफाफे बनाकर रखना चाहिए। प्रत्येक लिफाफे में वर्गीकरण करके भिन्न-भिन्न नाप के,
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भिन्न-भिन्न रंग के एवं भिन्न-भिन्न प्रकार के टुकड़े भरकर रखना चाहिए। ७. आगे के क्रियाकलापों के लिए यह कौशल महत्त्वपूर्ण है। इसलिए इसकी
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शुरुआत भी पहले से ही करना चाहिए। यद्यपि छोटी छोटी इकाईयों मैं बाँटकर पूरा वर्ष यह क्रियाकलाप करवा सकते हैं तथापि प्रथम एवं द्वितीय कक्षा में इतना करने के बाद अगली कक्षाओं में अधिक प्रकार से काटना या फाड़ना सिखाया जा सकता है। प्लास्टिक या लेमिनेशन युक्त कागजों का उपयोग न करें क्योंकि उनकी कतरन चिपकाने के लिए उपयोगी नहीं है तथा पर्यावरण के लिए भी हानिकारक है। काटने के कार्य में कक्षा में कूडा होने की संभावना रहती है। इस कतरन के कूड़े को उठाकर भरन के लिए कूडेदान की व्यवस्था होना चाहिए। कागज जहाँ तहाँ उड़कर न जाएँ इसके लिए पेपरवेट (कागज दबावक) का उपयोग करना चाहिए। खिड़की-दरवाजों या पंखे की हवा से कागज की
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रक्षा करना भी आवश्यक है। १०. फाड़ते या काटते समय कागज खराब होने पर उसका निरर्थक व्यय होने
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की संभावना रहती है। इस बात को ध्यान में रखकर पर्याप्त कागज की
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व्यवस्था करना चाहिए। ३. तह करना १. तह करना भी मूलभूत कौशल है। इसका उपयोग जितना अन्य वस्तुएँ
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बनाने में होता है उससे कहीं ज्यादा जीवन व्यवहार में कदम कदम पर
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होता है। इसलिए इसे व्यावहारिक कौशल भी माना जाता है। २. सबसे पहला क्रम है कपड़ों की तह करने का। छात्रों के लिए इसे सरल
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बनाने के लिए समान नाप के कपड़े के टुकड़े लेना चाहिए। उदाहरण के तौर पर वर्गाकार या आयताकार हो तो समान नाप के अर्थात् उनकी आमने सामने की भुजाएँ सीधी एवं समान हों इस पर ध्यान देना चाहिए। ये टुकड़े चारों तरफ से तुरपे हुए होने चाहिए।
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३. तह करते समय निम्न क्रम ध्यान में रखें
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१. सर्वप्रथम कपड़े के टुकड़ों को जमीन पर बिछाएँ। २. अपनी (स्वयं की) ओर के दोनों सिरों को दोनों कोनों से पकड़ने के लिए अंगूठे एवं अंगुली का उपयोग करें। ३. दोनों हाथों से पकड़े हुए सिरों को सामने की ओर ले जाकर कोने से कोना एवं किनारी से किनारी मिलाएँ। ४. फिर से तह करना हो तो कपड़ा घुमाकर नीचे से उपर की ओर ले
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जाएँ। ४. प्रारंभ में सभी टुकड़े समान हों तो तहें एकदूसरे पर रखकर गड्डी बनाने में
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सुगमता रहेगी। इसलिए तह करने के बाद गड्डी बनवाएँ। गड्डी बनाते समय बंद सतह पर बंद सतह एवं खुली सतह पर खुली सतह आए इस पर ध्यान
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दें।
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५. कपड़े के समान टुकडों की तह करना आ जाए तो फिर जुराबें, कमीज
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इत्यादि कपड़ों की तह करवाएँ। क्रम कपडों की तह वाला ही रखें। सावधानियाँ १. कपड़े के टुकडे पर चुनहट न हो यह देखें। २. टुकडें अस्वच्छ न हों यह भी देखें। ३. सूती एवं मादरपाट जैसे मोटे कपड़े ही चुनें। ४. इस कौशल के लिए खास तौर पर अन्य चीजों का उपयोग न होने से गंदगी
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या अव्यवस्था होने का कोई भय नहीं रहता।
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चिपकाना १. यह भी एक मूलभूत कौशल है। यों तो कोई भी चीज चिपका सकते हैं।
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परंतु कागज चिपकाना ही मुख क्रियाकलाप है। २. भिन्न भिन्न मोटाई के कागजों को भिन्न भिन्न चीजों से चिपका सकते हैं।
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इसलिए प्रथम शिक्षक या मातापिता को कौन सी चीज किससे चिपकती है यह जानकर योग्य वस्तु का ही उपयोग करना चाहिए। किसी भी सतह के
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लिए किसी भी वस्तु का उपयोग करने की लापरवाही नहीं दर्शानी चाहिए। ३. कक्षा १ तथा २ में चिपकाने के लिए केवल दो ही पदार्थों का उपयोग करना
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चाहिए - एक लेई एवं दूसरा गोंद। लेई अच्छी तरह से बनाई हुई होनी चाहिए। हो सके तो प्रेस से तैयार लेई लाकर उपयोग में लेना चाहिए। चिपकाने के लिए नीचे की सतह सख्त एवं उपर कागज या नर्म, मुडनेवाला गत्ता रखना चाहिए। उसकी किनारी पर एक ओर गोंद लगाकर दूसरे कागज की किनारी व्यवस्थित रखना चाहिए। इसके बाद हाथ पोंछकर उस किनारी पर अंगुली घुमाकर उसे दबाना चाहिए। इस तरह दो टुकड़ों को चिपकाकर
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एक बड़ा टुकड़ा बनाया जाता है। ५. एक कागज पर अन्य कागजों के छोटे छोटे टुकड़े चिपकाकर चित्र तैयार
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किया जाता है। ऐसा करने के लिए काटने की क्रिया मैं तैयार किए गए
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कागज के टुकडों का उपयोग करना चाहिए। ६. छोटे चित्र को बड़े कागज पर चिपकाने का क्रियाकलाप भी किया जा सकता
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है। लिफाफा बनाने या बंद करने में भी चिपकाने का काम किया जाता है। ७. जिस तरह चिपकाने में हाथ की अंगुलियों का उपयोग होता है उसी तरह
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तूलिका का भी उपयोग कर सकते हैं। तूलिका लेई से चिपकाने में उपयोगी नहीं है। परंतु गोंद के लिए उपयोगी है। बाजार में प्राप्त चित्रकाम की तूलिका के बजाय एक सलाई में रूई लपेटकर तैयार की गई तूलिका
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चिपकाने की क्रिया में अधिक उपयोगी सिद्ध होती है। ८. कागज के टुकड़े चिपकाकर तैयार किए गए चित्र से सजावट भी कर सकते
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सावधानियाँ १. चिपकाने के लिए लेई या गोंद का उपयोग करते समय गंदी अंगुली या हाथ
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को साफ करने के लिए कपड़े का टुकडा प्रत्येक छात्र अवश्य रखे। उसे ऐसी आदत ही डालना चाहिए। नहीं तो फर्श या चटाई या जिस आसन पर
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बैठे हैं उस पर हाथ पोंछने की आदत पड़ जाती है। २. इसी तरह नीचे की सतह पर यदि गोंद ढुल जाए या गलती से लग जाए
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तो उस पर अपना ही कागज चिपक जाता है। एवं निकालने में फट जाता
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है। जिससे व्यय होता है। ऐसा न हो इसका ध्यान रखना चाहिए। ३. आसपास पडे अनावश्यक कागजों पर गोंद गिरने से कागज पर एवं फर्श पर
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दाग बन जाते हैं। ऐसा न हो इसका ध्यान रखें।
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४. चिपकाने का कार्य जहाँ किया हो वहाँ कार्य पूर्ण होने पर भीगे कपड़े से
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पोंछा करना एवं हाथ धोकर पोंछना आवश्यक है। इसी तरह गोंद पोंछने के लिए जिस कपड़े का उपयोग हुआ हो उसे भी धोकर, सुखाकर, तह करके रखना चाहिए। गोंद या लेई जिस पात्र, कटोरी या अन्य साधन में लिया हो
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उसे भी साफ करके ही रखना चाहिए। ५. रेखा खींचने के लिए जिस प्रकार सामने चौकी होना जरूरी है उसी तरह
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चिपकाने के लिए भी चौकी होना आवश्यक है। ६. चिपकाने का कोई न कोई व्यावहारिक प्रयोजन होना चाहिए। उदाहरण के
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तौर पर चिपकाकर चित्र बनाना, तोरण बनाना, लिफाफे बंद करना, लिफाफे
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बनाना आदि। ५. ईंटें पकाना
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यह एक बहुत बड़ा प्रकल्प है। बहुत दिनों तक चलता है। इसमें अनेक छोटे छोटे क्रियाकलापों का समावेश होता है। ये सभी क्रिया कलाप अलग अलग एवं स्वतंत्र रूप सिखाना चाहिए। १. मिट्टी कूटना
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बहुत सख्त मिट्टी न लें। नर्म मिट्टी के ढेलों को हथौडे की सहायता से कूटें। ऐसा करने से मिट्टी का चूर्ण बन जाता है। एवं पथ्थर या अन्य चीजें
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ज्यों की त्यों रहती हैं। २. मिट्टी छानना
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द्वितीय क्रम में कूटी हुई मिट्टी को छाना जाता है। इसके लिए बहुत छोटे छिद्रोंवाली छननी न लें। इस क्रिया में अंजुली में मिट्टी भरकर छननी में
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डालें एवं दोनों हाथों से छननी हिलाना छात्रों को सिखाएँ। ३. मिट्टी भिगोना एवं गूंधना
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एक बड़े एवं छिछले पात्र में मिट्टी डालकर उसमें आवश्यकतानुसार पानी डालें। जिस तरह हाथ से आटा गूंधते हैं उसी तरह मिट्टी को मसलकर गूंधना चाहिए। मिट्टी जितनी अधिक गूंधी जाय उतनी ही नरम बनती है। गूंधी हुई मिट्टी नरम, चिकनी, एवं सूखने पर दरारों रहित बनती है। इसलिए उसे अधिक से अधिक गूंधना चाहिए। गूंधने का कार्य दोनों हाथों एवं पांचों अंगुलियों के उपयोग से किया जाता है। पात्र में स्थित मिट्टी को उपरनीचे
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करके पूरी मिट्टी बराबर गूंधी जाए इसका ध्यान रखना चाहिए। गूंधी हुई मिट्टी हाथ में लेने पर बहुत जोर लगाना पडे इतनी सख्त या हाथ में से गिर जाए इतनी नर्म भी नहीं होनी चाहिए। मिट्टी गूंधने की क्रिया चार पाँच छात्र समूह में भी कर सकते हैं।
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गूंधने की क्रिया केवल एक ही दिन में पूर्ण न करें। यह क्रिया तीन-चार दिन तक चलने दें। प्रतिदिन कार्य पूर्ण होने पर मिट्टी पर थोड़ा सा पानी
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डालकर पात्र को ढककर रख दें जिससे मिट्टी सूख न जाए। ४. गूंधी हुई मिट्टी से खिलौना बनाना
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गूंध गूंधकर तैयार की गई मिट्टी के छोटे छोटे गोले बनाकर उसमें से खिलौने बनाएँ। सभी अलग अलग बनाएँ। प्रारंभ में छोटी-छोटी गट्टी बन जाएंगी। इसके बाद तो कल्पनानुसार सीताफल, गणेश, चकला, बेलन, घडा, गुडिया, वगेरेह भी बनाया जा सकता है। इस प्रकार खिलौने बनाने के
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बाद उन्हें सुखाने के लिए धूप में रखना चाहिए। ५. इसी तरह मिट्टी के गोले को सांचे में ढालकर समान आकार की ईंटें बनाना
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चाहिए। (ईंटे बनाना खिलौने बनाने से सरल काम है। खिलौनों में कल्पनाशीलता एवं हाथों की कारीगरी दोनों की आवश्यकता होती है।) ईंटें
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बनाकर सुखाकर आगे का कार्य किया जा सकता है। ६. ईंटों एवं खिलौनों को सूखने के बाद आवाँ (कुम्हार की भट्ठी) में पकने के
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लिए रखना चाहिए। इस कार्य के जानकार को सहायता के लिए बुलाना
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चाहिए। छात्र ये सभी प्रक्रियाएँ देखें एवं जानें यह आवश्यक है। ७. भट्ठी (आँवा) में से निकालने के बाद सभी वस्तुओं को गेरू या खडी से रंगना
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चाहिए। रंगने के लिए कपड़े का गोला या ब्रुश उपयोग में लिया जाता है। ८. खिलौनों को सजाकर रखना चाहिए। ईंटों को भी सजावट के कार्य में ले
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सकते हैं। ईंटों से चौतरा या बड़ा चबूतरा भी बनाया जा सकता है। चबूतरा
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बनाने के लिए ईंटों को जोड़ने में मिट्टी का ही उपयोग करना चाहिए। सावधानियाँ १. यह एक सामूहिक प्रकल्प हैं। लंबा चलनेवाला प्रकल्प है। इसी आधार पर
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इसका आयोजन करना चाहिए। २. मिट्टी का काम करते समय गणवेश बदलकर कार्य करना चाहिए।
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३. प्रतिदिन कार्य पूर्ण होने पर उस स्थान की सपाई करनी चाहिए। ४. मिट्टी अच्छी किस्म की हो इसका खास ध्यान रखना चाहिए। ५. यह कार्य लंबी समयावधि का होने के कारण किसीको आपत्ति न हो ऐसा
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विशिष्ट स्थान चुनना चाहिए। ६. छात्रों में निर्माण क्षमता एवं सौन्दर्यदृष्टि का विकास हो इस उद्देश्य से
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वार्तालाप करना चाहिए। ७. छात्रों द्वारा बनाए गए खिलौनों एवं ईंटों के प्रदर्शन का आयोजन करना
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चाहिए। मातापिता, अभिभावक एवं अन्य लोगों को प्रदर्शन देखने के लिए
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आमंत्रित करना चाहिए। ८. छोटी छोटी ईंटों को अलग अलग रंगों से रंगकर उनमें से विभिन्न प्रकार की
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वस्तुएँ बनाना चाहिए। ९. प्रथम दृष्टि में तो यह बहुत कठिन एवं अव्यावहारिक लगनेवाला प्रकल्प है।
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इसलिए इसका पक्का आयोजन होना चाहिए। उस आयोजन के बारे में अभिभावकों को सूचित करना चाहिए। आयोजन जब प्रत्यक्ष रूप से कार्यान्वित हो तब भी उसके प्रत्यक्ष दर्शन के लिए भी अभिभावकों को
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आमंत्रित करना चाहिए। १०. संपूर्ण प्रकल्प तो वर्ष में एक ही बार होगा परंतु उसके अलग-अलग
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क्रियाकलाप एक से अधिक बार करना चाहिए। ऐसा करने से ही हाथों में
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निपुणता आएगी। ६. पिरोना, कढाई करना, गूंथना १. पिरोना
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सुईं में धागा पिरोना, धागे में मोती पिरोना, सुई-धागे से फूल पिरोकर माला बनाना। यह बहुत सरल प्रक्रिया है। केवल सुई बहुत नोकदार न लें एवं थोड़ी बड़ी लें, जिससे सुई में धागा पिरोना आसान हो सके। इसी तरह मोती भी हाथ से आसानी से पकड़े जा सकें ऐसे आकार के ही चुनें। सुईधागे में फूल पिरोना हो तो सुई नोकदार एवं पतली होनी चाहिए एवं धागा भी पतला लेना चाहिए। कढ़ाई करना कढ़ाई करना अर्थात् काढ़ना। दैनिक उपयोग की चीजों को अपनी कला
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कारीगरी से कैसे सुंदर बनाएँ इसका प्रत्यक्ष अनुभव करने के लिए कढ़ाई बहुत उपयोगी क्रियाकलाप है। यह कार्य आसान बनाने के लिए सुई भोथरी एवं बड़ी, कुछ मोटा धागा एवं टाट जैसे छिद्रोंवाला कपड़ा लेना चाहिए। अभ्यास करते करते समान नाप के टांके एवं ऐसे टांके लेने के लिए कितने छिद्रों की गिनती करनी पडेगी इसकी समझ, रंगों का संयोजन आदि मन में सही बैठते जाएँगे। यह क्रियाकलाप कक्षा २ में करवा सकते हैं। गूंथना इसका प्रथम चरण है मोटे धागे में गाँठे लगाना। सादी गाँठें लगाने में अधिक समय देने की जरूरत है। मोटे धागे को गाँठ लगाकर उसे खोलना भी सिखाना चाहिए। सादी गाँठ लगाना सीखने के बाद चोटी गूंथना सिखाना चाहिए। मोटी सुतली या मोटे मोटे तीन धागे लेकर चोटी गूंथना सिखाएँ। ऐसी गूंथी हुई लड़ियों की सहायता से आसन भी बनाया जा सकता है। फूलदानी रखने के लिए छोटी दरी भी बना सकते हैं। मालाएँ लटकाकर
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सजावट भी कर सकते हैं। सावधानियाँ १. मूल सामग्री अच्छी, समान नाप की एवं पक्के रंगोंवाली लेना चाहिए। २. नमूना बनाने के बाद जल्दी फट जाए या उसका रंग उड़ जाए ऐसी न लें। ३. कुछ गूंथी हुई लड़ियों को सुलझाने पर मूल सुतली या धागा बन जाता है
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यह भी बताना चाहिए। ४. ऐसा सब सुशोभन का सामान छात्रों के घर एवं समाज में भी पहुँचाना
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चाहिए। ७. कपास के बिनौले छीलना, बीज निकालना, रूई धुनना, बत्ती बनाना १. अच्छी किस्म के रूई से भरपूर बड़े बड़े कपास के बिनौले लें। २. उनमें से रूई निकालकर बीज एवं रूई के अलग अलग ढेर बनाएँ। ३. रूई में से बीज निकालना आसान काम नहीं है। इसके लिए बीज के
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आसपास की रूई अलग करके बीज निकाल लेना चाहिए। इसके लिए एक अंगुली एवं अंगूठे का उपयोग करना चाहिए। बीज निकालने के बाद उसका
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भी अलग संग्रह करना चाहिए। ४. रूई पर कचरा लगा हो तो उसे चुन चुनकर दूर करना चाहिए। इसके बाद रूई को धुनने के लिए उसमें किसी साधन का उपयोग किए बिना केवल अंगुलियों का ही उपयोग करना चाहिए। रूई को धुनना अर्थात् उसमें यदि किसी प्रकार की गाँठ वगैरह हो तो उसे दूर करके रूई को तार या बत्ती
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बनाने के लायक बनाना। ५. रूई धुनने के बाद रूई के छोटे छोटे पोल लेकर उन्हें लंबी लंबी पूनियों में
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ढालना सिखाना चाहिए। लंबी पूनियाँ अर्थात् लपेटना नहीं, केवल धुनी हुई रूई को लंबी करके वह टूटे नहीं ऐसी पूनियाँ तैयार करना। इसमें कुशलता
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प्राप्त करने के लिए धैर्य एवं अभ्यास की जरूरत है। ६. इसी तरह छोटे छोटे फाहों की एक एक बत्ती बनाना चाहिए। बत्ती बनाना
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बहुत ही कुशलता का काम है। इस अवस्था में उत्तम प्रकार की बत्ती बनने की अपेक्षा न रखें परंतु बत्ती बनाने में अंगुलियों को सिखाने की जरूरत होती है। यह क्रियाकलाप केवल अंगुलियों को कुशल बनाने के लिए है।
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बत्ती का उपयोग दीपप्रज्वलन के समय करना चाहिए। सावधानियाँ १. बिनौले, बीज या रूई को व्यर्थ नहीं फैंकना चाहिए।
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बिनौले के छिलकों का ईधन के रूप में एवं बीज का गिनती करने में
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उपयोग किया जा सकता है। २. बीज में से तेल प्राप्त होता है। बीजों को रंगकर उसका उपयोग रंगोली
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बनाने में भी होता है। इसे मवेशियों को भी खिलाया जाता है। ऐसे सभी
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उपयोग छात्र देखें ऐसी व्यवस्था करें। ३. छिलके छात्रों के हाथों में चुभ न जाएँ इसका ध्यान रखना चाहिए। ४. रूई में से सूत बनता है, सूत में से कपड़ा बनता है। एवं कपड़े में से वस्त्र
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बनता है यह छात्रों को समजाएँ। ५. कपास खेत में उगता है यह छात्रों को दिखाएँ। ६. कभी कभी छात्रों को खेत, जिन, घानी, कपडा मिल वगैरह की मुलाकात
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करवाएँ। उन्हें ये सभी अनुभव ही लेने दें। याद रखना, समझना एवं प्रश्नों
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के उत्तर देने का बोझ उन पर न डालें। ७. जीवन की मूलभूत आवश्यकता है वस्त्र। इस वस्त्रविद्या के साथ छात्र बचपन
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से ही संबंध स्थापित करें यह आवश्यक है। इसी दृष्टिकोण से यह अति
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३५
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प्राथमिक स्तर के क्रियाकलापों का यहाँ समावेश किया गया है। ८. चित्र बनाना एवं रंग भरना १. जिस प्रकार यह कौशल रंग एवं रेखा का है, उसी तरह कल्पनाशीलता एवं
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सर्जनशीलता की अभिव्यक्ति का भी है। इसलिए दोनों दृष्टिकोण से यह क्रिया-कलाप करना चाहिए। रेखा खींचने का अभ्यास हो चुका है। अब रेखा का उपयोग अपने मन की कल्पना, भावना, सोच आदि को आकारबद्ध करने में करना है। इसके लिए वास्तविक जीवन की अलग अलग वस्तुओं को रेखाबद्ध करते समय जो पैमाना रखना महत्त्वपूर्ण है वह मनमें समाए उस दिशा में छात्रों को प्रेरित
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करना चाहिए। ३. इसमें हम हमेशा एक गलती करते आए हैं। वह यह कि हम छात्रों को अपने
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बनाए हुए चित्र के जैसा चित्र ही बनाने के लिए कहते हैं। देख देखकर अनुकरण करने से कल्पनाशक्ति या पैमाना दो में से एक भी विकसित नहीं होता है। एक अच्छा चित्र अनुकरण करके बनाया जाए इसकी अपेक्षा कल्पना से बनाया हुआ चित्र थोड़ा कम सुन्दर हो तो भी अच्छा है। बाह्य एवं उधार ली हुई सुन्दरता की अपेक्षा मौलिकता का महत्त्व हमेशा से
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अधिक रहा है। इस बात का खास ख्याल रखें। ४. यदि अनुकरण ही करना है तो आसपास के पर्यावरण एवं विश्व में जो प्रत्यक्ष
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दिखाई दे रहा है उसका करना चाहिए। अनुकरण के लिए वस्तु को चुनने का अवकाश छात्रों को देना चाहिए। इसमें छात्रों को मार्गदर्शन एवं सहायता
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करना चाहिए; उनका नियंत्रण नहीं। ५. इसके बाद छात्रों को कल्पना से मौलिक दृश्य निर्माण के लिए कहना
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चाहिए। ६. रंग भरने के लिए प्रथम पेन्सिल का उपयोग करवाएँ। उससे पूर्व रंगीन चोक
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का भी उपयोग किया जा सकता है। इसके पश्चात् जलरंगों का उपयोग करवाएँ। जलरंगों के उपयोग के लिए सिंक पर रूई लपेटकर तैयार की गई
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तूलिका एवं बजाार में प्राप्त तूलिका का उपयोग करवाएँ। ७. चित्रों में रंग भरने से पहले बड़ी कूची से ईटें रंगवाना, गमले रंगवाना इत्यादि
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क्रियाएँ भी करवाएँ।
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सावधानियाँ १. हाथ की मुक्त हलचल हो सके इसलिए पहले छात्रों से भूमि पर बड़े बड़े
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चित्र बनवाएँ। ऐसे चित्र में लंबी लंबी रेखाएँ ही होनी चाहिए। परंतु हाथ की मुक्त हलचल के लिए यह आवश्यक है। पहले तो पूरे शरीर की हलचल से बड़े स्थान पर ऐसी रेखाएँ बनावाएँ। परन्तु दूसरे सोपान में एक ही स्थान पर बैठकर केवल हाथ जहाँ तक पहुँच सके उतनी जगह में ही चित्र
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बनवाएँ। २. भूमि पर चित्र बनाने के बाद उसे साफ करने के लिए भी कहें। ३. भूमि पर चित्र खडिया से ही बना सकते हैं। खडिया गुलाबी, आसमानी,
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पीले, लाल एवं सफेद रंग की होती हैं। इन रंगों का उभार आए ऐसा फर्श भी होना चाहिए। इसके अतिरिक्त खड़िया बार-बार टूट जाएँ ऐसी कच्ची भी नहीं होनी चाहिए। चित्र बनाने से पहले या बनाने के साथ साथ चित्र देखने या देखते रहने का भी अभ्यास करवाएँ। इसके लिए शिशुवाटिका के चित्र पुस्तकालय का उपयोग करें। साथ ही दैनिक पत्र, अखबार, पत्रिकाएँ, दिनदर्शिकाएँ (केलेन्डर) इत्यादि में से चित्र कटवाकर चित्र संग्रह तैयार करने की आदत छात्रों में आए ऐसा प्रयास करें। यह आदत सभी के लिए लाभदायी सिद्ध
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होगी। ५. देखे या बनाए गए चित्रों के विषय में वार्तालाप होना भी आवश्यक है। इसके
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कारण छात्रों की कल्पनाशीलता के बारे में जानकारी मिलती है एवं उनकी
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अभिव्यक्ति व क्षमता का विकास होता है। ६. तैयार किये गये चित्रो की प्रदर्शनी अवश्य लगवाएँ। छात्र स्वयं, अन्य छात्र,
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अभिभावक एवं अन्य, ये चित्र देखें एवं प्रशंसा करें यह भी आवश्यक है। इससे चित्र बनानेवाले छात्रों को प्रोत्साहन मिलता है। रसोई के कार्य छीलना, मसलना... वगैरह (सूची पूर्व में दी गई है) १. इन सभी क्रियाकलापों से सब इतने परिचित हैं कि इनका वर्णन करने
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की कोई आवश्यकता नहीं है। इसलिए हम केवल ध्यान में रखने योग्य सावधानियों के बारे में ही सोचेंगे। सब सामान स्वच्छ, अच्छी किस्म का एवं उचित मात्रा में होना
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चाहिए। ३. सब साधन छात्रों के योग्य छोटे एवं अच्छे होने चाहिए। ४. कार्य करने के बाद की स्वच्छता पर विशेष ध्यान दें। ५. कोई भी व्यंजन बनने के बाद स्वादिष्ट होना चाहिए। ६. व्यंजन बनने के बाद सभी को खाने या चखने के लिए मिले इतना
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अर्थात् पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए। ७. पूर्वतैयारी, एवं बाद की स्वच्छता एवं व्यवस्थितता के लिए पर्याप्त
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समय दे। ८. खाने के लिए प्लेट, कटोरी या थाली का उपयोग करना चाहिए।
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व्यवस्थित बैठकर ही भोजन करना चाहिए। ९. बनाते समय एवं भोजन करते समय खूब धीमा एवं मधुर संगीत छात्रों
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को सुनवाना चाहिए। १०. रसोई से संबंधित क्रियाकलापों को करने के लिए विद्यालय में एक
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रसोई भी हो तो सुविधा रहेगी। १०. कृषि
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यह भी जीवन को टिकाए रखनेवाला मूल उद्योग है। हमारी सभी प्रकार की मूल आवश्यकताएँ भूमि ही पूर्ण करती है। कृषि भूमि से संबंधित उद्योग है। इसलिए सभी छात्रों को भूमि से संबंधित कार्यों का परिचय होना विकास की दृष्टि से आवश्यक है। इस दृष्टि से निम्न क्रियाकलापों के बारे में सोचा गया है। १. जमीन नर्म बनाना : जमीन पर पानी छिड़ककर उसे गोड़कर नर्म बनाना
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चाहिए। ऐसी जमीन को ही जोत सकते हैं। २. मिट्टी खोदकर क्यारे तैयार करना : छोटी छोटी कुदालियों से मिट्टी खोदने
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का कार्य करवाएँ। छोटे फावड़े से खोदी हुई मिट्टी बाहर निकाल कर एक
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तरफ ढेर बनाएँ। ३. मिट्टी साफ करना : मिट्टी में से कंकड़ पत्थर एवं अन्य हानिकारक वस्तुएँ
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चुन लें। व्यर्थ घास, खरपतवार आदि निकालकर मिट्टी को साफ करें। मिट्टी
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के ढेलों को हाथ या हथौड़ी से फोड़कर मिट्टी चूर चूर करें। स्वच्छ मिट्टी
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फिर से क्यारियों में डालें। क्यारियों के किनारे किनारे मेंड बनाएँ। ४. क्यारियां तैयार करते समय मिट्टी में खाद मिलाएँ। खाद भी मिट्टी के समान
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ही बारीक होना चाहिए। खाद में कृत्रिम खाद का उपयोग कभी न करें।
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हमेशा गोबर या केंचुए द्वारा तैयार खाद ही लें। ५. इसके बाद क्यारियों में मेथी, पालक, धनिया, राई, तुलसी, गेंदा इत्यादि
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पौधे लगाएँ। ये बीज या पौधे जल्दी उग जाते है एवं इनकी पत्तियाँ एवं फूल हमारे दैनिक उपयोग में लिए जा सकते हैं इसलिए इनका चयन किया गया है यह छात्रों को समझाएँ। बीज उगाने हों तो क्यारे उस नाप के बनाने चाहिए, पौधे उगाने हों तो उसके अनुरूप क्यारे बनाने चाहिए। इसके बाद अच्छी तरह समान दूरी पर, समान गहराई में बीज या पौधे लगाना चाहिए। अच्छी तरह मिट्टी डालकर पानी देना, एवं पौधों के बढ़ने की प्रक्रिया का निरीक्षण समय समय पर करते रहना, उसकी सफाई करते रहना, पानी देते रहना एवं इस विषय पर वार्तालाप भी करते रहना चाहिए। पौधे की सुरक्षा
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की व्यवस्था भी करना चाहिए। ६. पौधे तैयार हो जाने पर पत्ते या फूल चुनना चाहिए। पत्ते का अल्पाहार
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बनाने में, एवं फूलों का पुष्पगुच्छ या माला बनाने में उपयोग करें। सावधानियाँ १. सभी औजार अच्छे एवं छोटे नाप के होना चाहिए। २. विद्यालय में एक कोना कृषिकार्य के लिए होना चाहिए। ३. विद्यालय में खुली जमीन न हो तो गमलों का उपयोग करना चाहिए। ४. पौधों को पानी देने के लिए झारी अवश्य रखें। छात्रों को इसका बहुत
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आकर्षण होता है। ५. इसी तरह पत्ते एवं फूल चुनने के लिए छोटी छोटी टोकरियाँ भी जरूरी हैं।
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इसमें छात्रों को आनंद मिलता है एवं व्यवस्थित काम करने के संस्कार
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बनते हैं। ६. बगीचे में या खेतों में काम करते समय गणवेश निकालकर दूसरे वस्त्र
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पहनकर काम करें।
      
==References==
 
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