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| |- | | |- |
| |कपड़े की | | |कपड़े की |
− | |भिन्न-भिन्न आकार एवं माप के कपड़े | + | |भिन्न-भिन्न आकार एवं माप के कपड़े एवं कपड़ों को कम जगह में व्यवस्थित रखने के लिए। |
− | एवं कपड़ों को कम जगह में | |
− | | |
− | व्यवस्थित रखने के लिए। | |
| |} | | |} |
| '''चिपकाना (कौशल)''' | | '''चिपकाना (कौशल)''' |
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| |- | | |- |
| |लेई से, गोंद से, फेविकोल से | | |लेई से, गोंद से, फेविकोल से |
− | |भिन्न-भिन्न आकार तैयार करने के | + | |भिन्न-भिन्न आकार तैयार करने के लिए । |
− | लिए । | |
| |- | | |- |
| |कागज तथा अन्य वस्तुएँ चिपकाना | | |कागज तथा अन्य वस्तुएँ चिपकाना |
− | |लिफाफा, तोरण तथा अन्य उपयोगी | + | |लिफाफा, तोरण तथा अन्य उपयोगी वस्तुएँ तैयार करना। |
− | वस्तुएँ तैयार करना। | |
− | | |
| अंगुली एवं तुलिका का उपयोग करके । | | अंगुली एवं तुलिका का उपयोग करके । |
| |} | | |} |
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| ==== क्रियाकलाप ==== | | ==== क्रियाकलाप ==== |
− | १. मिट्टी कूटना २. मिट्टी छानना ३. मिट्टी भिगोना ४. मिट्टी गूंधना ५. खिलौना बनाना एवं सांचे में ढालकर ईंट बनाना । ६. ईंट पकाना (भट्ठी में पकाना) ७. ईंट रंगना (गेरू से, चूने से अथवा अन्य प्राकृतिक रंग से) ८. ईंटों का उपयोग कर कोई वस्तु बनाना ।
| + | # मिट्टी कूटना |
| + | # मिट्टी छानना |
| + | # मिट्टी भिगोना |
| + | # मिट्टी गूंधना |
| + | # खिलौना बनाना एवं सांचे में ढालकर ईंट बनाना। |
| + | # ईंट पकाना (भट्ठी में पकाना) |
| + | # ईंट रंगना (गेरू से, चूने से अथवा अन्य प्राकृतिक रंग से) |
| + | # ईंटों का उपयोग कर कोई वस्तु बनाना । |
| | | |
| ==== प्रयोजन ==== | | ==== प्रयोजन ==== |
− | १. मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु इत्यादि पंचमहाभूतों से घनिष्ठ संबंध निर्माण
| + | # मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु इत्यादि पंचमहाभूतों से घनिष्ठ संबंध निर्माण हो एवं उनके महत्त्व एवं उपयोग के विषय में जाना जा सके। |
− | | + | # कूटना, छानना, गूंधना, आदि क्रियाओं में कुशलता प्राप्त कर सकें एवं व्यावहारिक प्रयोजन समझ सकें। |
− | हो एवं उनके महत्त्व एवं उपयोग के विषय में जाना जा सके। २. कूटना, छानना, गूंधना, आदि क्रियाओं में कुशलता प्राप्त कर सकें | + | # चबूतरा, चौपाल, खेलने के लिए खिलौने प्राप्त हो सकें। |
− | | + | # सर्जन एवं निर्माण का आनंद प्राप्त हो सके। |
− | एवं व्यावहारिक प्रयोजन समझ सकें। ३. चबूतरा, चौपाल, खेलने के लिए खिलौने प्राप्त हो सकें। ४. सर्जन एवं निर्माण का आनंद प्राप्त हो सके। | |
| | | |
| === पिरोना, सिलाई करना, कढ़ाई करना, गूंथना (कौशल) === | | === पिरोना, सिलाई करना, कढ़ाई करना, गूंथना (कौशल) === |
| | | |
| ==== क्रियाकलाप ==== | | ==== क्रियाकलाप ==== |
− | १. बड़े-छोटे मोती पिरोना। २. सुई में धागा पिरोना। ३. रेखा पर टांके लगाना। ४. कंतान या नेट पर टांके लगाना।
| + | # बड़े-छोटे मोती पिरोना। |
− | | + | # सुई में धागा पिरोना। |
− | ५. रस्सी या धागे से गांठें लगाना।
| + | # रेखा पर टांके लगाना। |
| + | # कंतान या नेट पर टांके लगाना। |
| + | # रस्सी या धागे से गांठें लगाना। |
| | | |
| ==== प्रयोजन ==== | | ==== प्रयोजन ==== |
− | १. जपने के लिए या गले में पहनने के लिए, या मूर्ति को पहनाने के
| + | # जपने के लिए या गले में पहनने के लिए, या मूर्ति को पहनाने के लिए माला तैयार करना। |
| + | # सुई-धागे की सहायता से फूलों की माला तैयार करना । |
| + | # कढ़ाई एवं गूंथने के मूल कौशलों की प्राप्ति करना। |
| + | # मोती (मनका) या कोई वस्तु निकल न जाए इसलिए या बांधने के लिए गाँठ लगाना। |
| | | |
− | लिए माला तैयार करना। २. सुई-धागे की सहायता से फूलों की माला तैयार करना । ३. कढ़ाई एवं गूंथने के मूल कौशलों की प्राप्ति करना। ४. मोती (मनका) या कोई वस्तु निकल न जाए इसलिए या बांधने के
| + | === बिनौला छिलना, कपास निकालना, रूई धुनना, बुनाई करना === |
| | | |
− | लिए गाँठ लगाना। * बिनौला छिलना, कपास निकालना, रूई धुनना, बुनाई करना प्रयोजन १. कपास हमारे वस्त्र की जरुरत की पूर्ति के लिए कितना आवश्यक है
| + | ==== प्रयोजन ==== |
− | | + | # कपास हमारे वस्त्र की जरुरत की पूर्ति के लिए कितना आवश्यक है एवं वस्त्र की बुनाई में किन-किन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है उसका क्रियात्मक अनुभव प्राप्त करना। |
− | एवं वस्त्र की बुनाई में किन-किन प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है | + | # रूई का उपयोग कताई-बुनाई के लिए करने की पूर्व तैयारी करना। |
− | | + | # दीपक के लिए बाती तैयार करना। |
− | उसका क्रियात्मक अनुभव प्राप्त करना। २. रूई का उपयोग कताई-बुनाई के लिए करने की पूर्वतैयारी करना। | |
− | | |
− | ३. दीपक के लिए बाती तैयार करना।
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| === चित्र === | | === चित्र === |
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| ==== क्रियाकलाप ==== | | ==== क्रियाकलाप ==== |
− | १. पूर्व प्राप्त रेखा खींचने के कौशल का उपयोग करके आकृति बनाना।
| + | # पूर्व प्राप्त रेखा खींचने के कौशल का उपयोग करके आकृति बनाना। |
− | | + | # रंगकाम का कौशल प्राप्त करना। |
− | २. रंगकाम का कौशल प्राप्त करना।
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| ==== प्रयोजन ==== | | ==== प्रयोजन ==== |
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| ==== क्रियाकलाप ==== | | ==== क्रियाकलाप ==== |
− | १, आटा गूंधना एवं माँड़ना, २. अनार, अंगूर, मेथी, धनिया इत्यादि चुनना, ३. उबले आलू, मटर की फलियां आदि छीलना, ४. उबले हुए आलू वगैरह काटना, ५. रोटी, पूड़ी बेलना, ६. छाछ (मट्ठा) मथना, ७. एकत्रित की गई वस्तुओं को चम्मच, कलछुल या हाथ से हिलाना, ८. नीबू निचोडना, ९. मूंगफली या अरहर के दाने या मिश्री वगैरह कूटना. १०. खाखरा या सिके हुए पापड़ को चूरना।
| + | # आटा गूंधना एवं माँड़ना |
| + | # अनार, अंगूर, मेथी, धनिया इत्यादि चुनना |
| + | # उबले आलू, मटर की फलियां आदि छीलना |
| + | # उबले हुए आलू वगैरह काटना |
| + | # रोटी, पूड़ी बेलना |
| + | # छाछ (मट्ठा) मथना |
| + | # एकत्रित की गई वस्तुओं को चम्मच, कलछुल या हाथ से हिलाना |
| + | # नीबू निचोडना |
| + | # मूंगफली या अरहर के दाने या मिश्री वगैरह कूटना |
| + | # खाखरा या सिके हुए पापड़ को चूरना। |
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| ==== प्रकल्प ==== | | ==== प्रकल्प ==== |
− | १. आलू-पोहा वगैरह जैसा नास्ता तैयार करना, २. भेल बनाना, ३. नीबू या सौंफ का शरबत बनाना, ४. पत्तागोभी, काकडी वगैरह का कचूमर बनाना।
| + | # आलू-पोहा वगैरह जैसा नाश्ता तैयार करना |
| + | # भेल बनाना |
| + | # नीबू या सौंफ का शरबत बनाना |
| + | # पत्तागोभी, काकडी वगैरह का कचूमर बनाना। |
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| ==== प्रयोजन ==== | | ==== प्रयोजन ==== |
− | १. प्रत्यक्ष भोजन तैयार करने के लिए सक्षम बनना, २. घर से, रसोई से मानसिक संधान का अनुभव करना, ३. स्वाद, विविधता, प्रक्रिया, पद्धति वगैरह का क्रियात्मक अनुभव प्राप्त करना, ४. विविध उपकारणों के उपयोग की क्षमता का विकास करना तथा इन उपकरणों की बनावट एवं उनके कार्यों को जानना ।
| + | # प्रत्यक्ष भोजन तैयार करने के लिए सक्षम बनना |
| + | # घर से, रसोई से मानसिक संधान का अनुभव करना |
| + | # स्वाद, विविधता, प्रक्रिया, पद्धति वगैरह का क्रियात्मक अनुभव प्राप्त करना |
| + | # विविध उपकारणों के उपयोग की क्षमता का विकास करना तथा इन उपकरणों की बनावट एवं उनके कार्यों को जानना । |
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| === कृषि === | | === कृषि === |
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| ==== क्रियाकलाप ==== | | ==== क्रियाकलाप ==== |
− | १. जमीन नरम बनाना, मिट्टी खोदकर क्यारियाँ बनाना, ३. मिट्टी साफ करना (कंकड एवं निरर्थक घास दूर करना), ४. खाद मिलाकर क्यारियां करना, ५. बीज बोना या पौधे लगाना, ६. पानी देना, ७. सफाई करना, खरपतवार दूर करना, ८. पौधे की वृद्धि का अवलोकन करना, ९. फूलपत्ते चुनना।
| + | # जमीन नरम बनाना |
| + | # मिट्टी खोदकर क्यारियाँ बनाना |
| + | # मिट्टी साफ करना (कंकड एवं निरर्थक घास दूर करना) |
| + | # खाद मिलाकर क्यारियां करना |
| + | # बीज बोना या पौधे लगाना |
| + | # पानी देना |
| + | # सफाई करना, खरपतवार दूर करना |
| + | # पौधे की वृद्धि का अवलोकन करना |
| + | # फूलपत्ते चुनना। |
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| ==== प्रयोजन ==== | | ==== प्रयोजन ==== |
− | १. जैसे रसोई में भोजन बनता है वैसे ही जमीन से भोजन के लिए मूल सामग्री
| + | # जैसे रसोई में भोजन बनता है वैसे ही जमीन से भोजन के लिए मूल सामग्री प्राप्त होती है। |
− | | + | # अन्नदात्री भूमि की खातिरदारी करना। अन्न उगने की प्रक्रिया में सहभागी बनना। |
− | प्राप्त होती है। २. अन्नदात्री भूमि की खातिरदारी करना। अन्न उगने की प्रक्रिया में सहभागी | + | # सर्जन के रहस्यों का अनुभव करना। |
− | | |
− | बनना। ३. सर्जन के रहस्यों का अनुभव करना।
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| == समझ == | | == समझ == |
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| प्रथम दृष्टि में यह पाठ्यक्रम बहुत लंबा एवं कठिन दृष्टिगोचर होता है। परंतु प्रयोग करने से एवं अनुभव करने से ध्यान में आता है कि ये दोनों भय काल्पनिक हैं, क्योंकि ये सभी क्रियाकलाप सीखने के स्तर पर हैं। अर्थोपार्जन या घर चलाने की जिम्मेदारी से युक्त नहीं है। इसीलिए इसमें आचार्य एवं मातापिता का संपूर्ण मार्गदर्शन, सहयोग एवं नियंत्रण जरुरी है। अर्थात् भेल बने एवं सबको अल्पाहार मिले तथा भरपेट मिले या विद्यालय का बाग तैयार हो यह तो ठीक है परन्तु इसका मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के कौशल एवं समझ का विकास करना है, अनुभूति करना है। इसलिए छात्र के स्तर के अनुसार ही पूर्णता या उत्तमता की अपेक्षा रखी जाए। किसी भी कार्य के प्रारंभिक सोपान सीखने के लिए ही होता है। जब तक गलती न हो, किसी तरह का व्यय न हो, कहीं चोट न लगे तब तक कुछ भी सीखा नहीं जा सकता है। सीखने की शुरुआत अनुभवप्राप्ति से ही होती है। यह सब जितना जल्दी शुरू हो उतना ही छात्र जिस जिस से संबंधित है उन सभी को लाभ होता है। इस दृष्टि से इन सभी क्रियाकलापों का विचार करना चाहिए। | | प्रथम दृष्टि में यह पाठ्यक्रम बहुत लंबा एवं कठिन दृष्टिगोचर होता है। परंतु प्रयोग करने से एवं अनुभव करने से ध्यान में आता है कि ये दोनों भय काल्पनिक हैं, क्योंकि ये सभी क्रियाकलाप सीखने के स्तर पर हैं। अर्थोपार्जन या घर चलाने की जिम्मेदारी से युक्त नहीं है। इसीलिए इसमें आचार्य एवं मातापिता का संपूर्ण मार्गदर्शन, सहयोग एवं नियंत्रण जरुरी है। अर्थात् भेल बने एवं सबको अल्पाहार मिले तथा भरपेट मिले या विद्यालय का बाग तैयार हो यह तो ठीक है परन्तु इसका मुख्य उद्देश्य सभी प्रकार के कौशल एवं समझ का विकास करना है, अनुभूति करना है। इसलिए छात्र के स्तर के अनुसार ही पूर्णता या उत्तमता की अपेक्षा रखी जाए। किसी भी कार्य के प्रारंभिक सोपान सीखने के लिए ही होता है। जब तक गलती न हो, किसी तरह का व्यय न हो, कहीं चोट न लगे तब तक कुछ भी सीखा नहीं जा सकता है। सीखने की शुरुआत अनुभवप्राप्ति से ही होती है। यह सब जितना जल्दी शुरू हो उतना ही छात्र जिस जिस से संबंधित है उन सभी को लाभ होता है। इस दृष्टि से इन सभी क्रियाकलापों का विचार करना चाहिए। |
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− | इन सभी क्रियाकलापों से लगता है कि भिन्न भिन्न, मूलभूत कौशल भी अनेक प्रकार के हैं, परंतु मूलतः ये हाथ से संबंधित कौशल एवं क्रियाकलाप हैं। हाथ की विभिन्न क्षमताओं के विकास में सहयोगी बननेवाली मानसिक एवं बौद्धिक क्षमताएँ भी इसमें समाविष्ट हैं। एक सुभाषित है | + | इन सभी क्रियाकलापों से लगता है कि भिन्न भिन्न, मूलभूत कौशल भी अनेक प्रकार के हैं, परंतु मूलतः ये हाथ से संबंधित कौशल एवं क्रियाकलाप हैं। हाथ की विभिन्न क्षमताओं के विकास में सहयोगी बननेवाली मानसिक एवं बौद्धिक क्षमताएँ भी इसमें समाविष्ट हैं। एक सुभाषित है:<blockquote>कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती । करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ।।</blockquote><blockquote>अर्थात् हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती एवं दोनो हाथ के मूल में गोविन्द का वास है। इसलिए प्रातःकाल हाथ का दर्शन करो।।</blockquote>लक्ष्मी अर्थात् वैभव, सरस्वती अर्थात् विद्या एवं कला, गोविन्द अर्थात् गायों को पालनेवाले (धन के स्वामी) एवं इन्द्रियों के स्वामी। जीवन में वैभव, विद्या, कला, धन इत्यादि प्राप्त करना है तो हाथों को काम करने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा। हाथों को कार्यान्वित करने के लिए ही उद्योग विषय की रचना की गई है। |
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− | कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती । करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम् ।। | |
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− | अर्थात् हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती एवं दोनो हाथ के मूल में गोविन्द का वास है। इसलिए प्रातःकाल हाथ का दर्शन करो।। | |
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− | लक्ष्मी अर्थात् वैभव, सरस्वती अर्थात् विद्या एवं कला, गोविन्द अर्थात् गायों को पालनेवाले (धन के स्वामी) एवं इन्द्रियों के स्वामी। जीवन में वैभव, विद्या, कला, धन इत्यादि प्राप्त करना है तो हाथों को काम करने के लिए प्रेरित करना पड़ेगा। हाथों को कार्यान्वित करने के लिए ही उद्योग विषय की रचना की गई है। | |
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| == कैसे सिखाएँ == | | == कैसे सिखाएँ == |