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− | उद्देश्य १. 'विज्ञान अर्थात् जैसा है वैसा ही जानना।' सृष्टि जैसी है, वैसी ही उसे | + | == उद्देश्य == |
| + | # 'विज्ञान अर्थात् जैसा है वैसा ही जानना।' सृष्टि जैसी है, वैसी ही उसे जानना है सृष्टिविज्ञान<ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। पदार्थों को उनकी मूल स्थिति में जानना है पदार्थविज्ञान। प्राणियों के विषय में जानना है प्राणीविज्ञान। एवं वनस्पति के विषय में जानना है वनस्पतिविज्ञान। |
| + | # विज्ञान भी बुद्धि विकास से संबंधित विषय है। |
| + | # बुद्धि के जो कारक सोपान हैं निरीक्षण, परीक्षण, संश्लेषण, विश्लेषण, वर्गीकरण, निष्कर्ष इन सबका उपयोग विज्ञान में होता है। इन सभी शक्तियों का विकास विज्ञान के द्वारा होता है। |
| + | # हम जिस सृष्टि के अंग हैं उस सृष्टि का यथार्थरस्वरूप में परिचय प्राप्त करने से हमें अपना स्वयं का परिचय भी खूब अच्छी तरह से होता है। इन सभी उद्देश्यों को ध्यान में रखकर ही प्राथमिक विद्यालय में भी विज्ञान विषय सिखाना चाहिए। |
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− | जानना है सृष्टिविज्ञान<ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। पदार्थों को उनकी मूल स्थिति में जानना है पदार्थविज्ञान। प्राणियों के विषय में जानना है प्राणीविज्ञान। एवं वनस्पति के
| + | == आलंबन == |
| + | # सामान्यतः गणित एवं भाषा के जितनी अहमियत् विज्ञान को नहीं दी जाती है। परंतु यह बहुत बड़ी गलती है। विज्ञान तो यथार्थज्ञान के लिए बहुत ही उपयोगी विषय है। इसलिए उसे अहमियत देना चाहिए। |
| + | # विज्ञान गणित के समान ही पढ़ने या लिखने का विषय नहीं है अपितु अनुभव करने का विषय है, प्रतीति का विषय है। (Subject of experience and realization) इसलिए पाठ्यपुस्तक के आधार पर उसका शिक्षणकार्य असंभव है। |
| + | # जैसे गणित गणना करना होता है, वैसे ही विज्ञान निरीक्षण एवं परीक्षण करना होता है। निरीक्षण का अर्थ है ध्यान से देखना एवं परीक्षण का अर्थ है परखना। परखना प्रयोग करना है। इसलिए विज्ञान अर्थात् प्रयोग। प्रयोगशाला में ही विज्ञान की पढ़ाई हो सकती है। |
| + | # विज्ञान हमारे चारों ओर के वातावरण में स्थित है। रसोई, स्नानघर, मैदान, विद्यालय इत्यादि सभी जगहों पर विज्ञान दिखाई देता है। विज्ञान के आधार पर ही हमारे सब कार्य होते हैं। इसलिए विज्ञान को व्यवहार के साथ जोड़कर ही सिखाना चाहिए। निरीक्षण, परीक्षण, अनुभव, प्रतीति इत्यादि का अनुभव करते-करते ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही जगत के सारे कार्य संपन्न होते हैं। |
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− | विषय में जानना है वनस्पतिविज्ञान। २. विज्ञान भी बुद्धि विकास से संबंधित विषय है। ३. बुद्धि के जो कारक सोपान हैं निरीक्षण, परीक्षण, संश्लेषण, विश्लेषण,
| + | == पाठ्यक्रम == |
| + | # पदार्थविज्ञान : धिर्नी, उत्तोलक, पदार्थों के गुणधर्म। |
| + | # भूगोल : दिशा, पृथ्वी, भारत का नक्शा। |
| + | # खगोल : अवकाशी पदार्थ, रात्रिदिवस, प्रातःकाल, मध्याह्नकाल, सायंकाल, ऋतु, पंचांग। |
| + | # रसायण शास्त्र : आसपास दिखाई देनेवाली रासायनिक प्रक्रियाएँ। |
| + | # वनस्पतिविज्ञान : बीज उगने की प्रक्रिया, पौधों के अंगप्रत्यंग, वनस्पति के प्रकार। |
| + | # प्राणीविज्ञान : जलचर, भूचर, नभचर, उभयचर, अंडज, स्वेदज, जरायुज, उद्भिज। |
| + | # वैज्ञानिकों का परिचय : नागार्जुन, चरक, सुश्रुत, भरद्वाज, आर्यभट्ट, वराहमिहिर, भास्कराचार्य, सी. वी. रामन, जगदीशचन्द्र बसु, रामानुजन। |
| + | # विज्ञान कथा : सृष्टि की उत्पत्ति की कथा, पृथ्वी की कथा, वृक्ष की कथा, मूलरूप की कथा, दूध की कथा। ये सभी मुद्दे निम्न प्रकार से सीखे जा सकते हैं: |
| + | ## सूचना प्राप्त करना एवं सूचना एकत्र करना |
| + | ## नमूनों का संग्रह करना |
| + | ## प्रयोग करना |
| + | ## निरीक्षण करना |
| + | ## वर्गीकरण करना |
| + | ## कहानी सुनना। |
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− | वर्गीकरण, निष्कर्ष इन सबका उपयोग विज्ञान में होता है। इन सभी शक्तियों
| + | == विवरण == |
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− | का विकास विज्ञान के द्वारा होता है। ४. हम जिस सृष्टि के अंग हैं उस सृष्टि का यथार्थरस्वरूप में परिचय प्राप्त करने | + | === पदार्थविज्ञान === |
| + | # चिर्नी : कुएँ पर घिर्नी का प्रयोग होता है। कहीं ऊँचाई पर भारी सामान चढ़ाने में भी घिर्नी का उपयोग होता है। चिर्नी पर रस्सी चढ़ाकर वस्तु को ऊपर खींचने की क्रिया का निरीक्षण करना एवं उसे प्रयोग के द्वारा अनुभव करना चाहिए। |
| + | # उत्तोलक : रसोई में उपयोगी सांडसी, चिमटा, बगीचे के माली की कैंची, शिशुवाटिका में रखा सीसाँ, खड़े खड़े बुहारी करने में उपयोगी झाडू - इन सभी में उत्तोलक का उपयोग होता है। उत्तोलक के कारण कम बल लगाकर अधिक वजन उठाया जा सकता है। इसका निरीक्षण करके प्रयोग करना चाहिए। |
| + | # पदार्थों के गुणधर्मों को जानना। उदाहरण के तौर पर: |
| + | ## लकड़ी, खाली कटोरी, कागज की नाव पानी में तैरती है। परंतु लोहे का टुकडा, रूपए का सिक्का पानी में डूब जाता है। |
| + | ## बिस्कुट, चीनी, नमक आदि घुलते हैं परंतु मोम, घी आदि पिघलते हैं। |
| + | ## गर्म होने पर बर्फ से पानी एवं पानी में से बाष्प बनती है। ठंडा होने पर वाष्प से पानी एवं पानी से बर्फ बनती है। इन सभी निरीक्षण एवं प्रयोगों से हमारे आसपास विज्ञान के तथ्यों के आविष्कार की प्रतिति होगी। |
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− | से हमें अपना स्वयं का परिचय भी खूब अच्छी तरह से होता है। इन सभी उद्देश्यों को ध्यान में रखकर ही प्राथमिक विद्यालय में भी विज्ञान विषय सिखाना चाहिए।
| + | === भूगोल === |
| + | # दिशा : प्रथम पूर्व दिशा का परिचय सवेरे सूर्य की ओर मुख करके खड़े रहकर एवं रखकर देना चाहिए। इसके बाद पूर्व के सामने की दिशा या अपनी पीठ की दिशा में पश्चिम, दाहिने हाथ पर दक्षिण एवं बाएँ हाथ पर उत्तर दिशा है यह समझना चाहिए। इसके बाद अन्य चार दिशाओं (हम उन्हें कोण भी कहते हैं) ईशान, अग्नि, नैऋत्य एवं वायव्य का परिचय मूल चार दिशाओं के आधार पर देना चाहिए। इसके बाद ऊपर एवं नीचे, इन दो दिशाओं का परिचय देना चाहिए। इस तरह कुल दस दिशाओं का परिचय देकर कुल दस दिशाओं की जानकारी देना चाहिए। प्रथम दिशाओं का परिचय जगत में; इसके बाद जमीन या कागज पर बताना चाहिए। कभी कभी कुतुबनूमा की सुई के आधार पर भी दिशाएँ समझना चाहिए। |
| + | # छात्रों को पृथ्वी का गोला अवश्य दिखाएँ। वह किस तरह से अपनी धुरी पर टिका हुआ है; किस तरह से एक तरफ को झुका हुआ है एवं झुकी हुई अवस्था में कैसे अपनी धुरी पर घूमता है, पृथ्वी पर किस तरह से देश एवं समुद्र दर्शाए गए हैं, किस तरह से एक भाग नीचे एवं एक भाग उपर की ओर रहता है, किस तरह बारी बारी से उपर का भाग नीचे एवं नीचे का भाग उपर आता है, यह बार बार बताना चाहिए। पृथ्वी के गोले का खेल ही छात्र बार बार खेलें ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहिए। |
| + | # पृथ्वी के गोले पर भारत का नक्शा दिखाना। उस पर दिशाएँ दर्शाना। उसमें क्या क्या लिखा है, उसे पढ़ने के लिए कहना। अलग अलग रंग का दर्शाते हैं, उसे जानने की उत्सुकता छात्रों में जगाना। प्रश्न जगने देना। प्रश्नों के सरल उत्तर देना। हमें अपनी तरफ से बहुत कुछ बताने की आवश्यकता नहीं है। उन्हीं को निरीक्षण करने देना चाहिए। |
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− | आलंबन १. सामान्यतः गणित एवं भाषा के जितनी अहमियत् विज्ञान को नहीं दी जाती
| + | === खगोल === |
| + | # आकाशी पदार्थ : सूर्य, चंद्र, तारे, आकाश का निरीक्षण करने के लिए कहना। |
| + | # पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, इसलिए रातदिन होते हैं। इसी कारण सुबह, दोपहर एवं शाम होती है। धूप एवं परछाईं का निरीक्षण करवाना। |
| + | # छः ऋतुओं का परिचय देना। उसके प्राकृतिक लक्षणों का वर्णन करना। उसका क्रम बनाए रखना। |
| + | # पंचांग : तिथि, वार, नक्षत्र, करण, योग इन शब्दों की पहचान करवाना एवं उनके नाम बताना। यह सिर्फ जानकारी है। अभी इसका विवरण देने की आवश्यकता नहीं है। रसायण शास्त्र हमारे आसपास अनेकों रासायनिक प्रक्रियाएँ होती रहती हैं। यह बताना एवं पहचान करवाना। जैसे कि: |
| + | ## हल्दी का पानी एवं साबुन का पानी मिलाने पर घोल का रंग लाल हो जाता है। |
| + | ## नीबू के पानी में सोडा मिलाने पर उसमें उफान आता है। |
| + | ## दूध में दही मिलाने पर दूध का दहीं बन जाता है। |
| + | ## मैले कपड़ों में साबुन लगाने पर मैल कटता है। |
| + | ## पीतल के बर्तन पर नीबू का रस लगाने पर वह चमकदार हो जाता है। |
| + | ## उबलते हुए दूध में नीबू का रस मिलाने पर पानी एवं दूध का मावा अलग हो जाता है। |
| + | ## फल या सागभाजी ज्यादा समय तक रखे रहे तो सड़ जाते है। |
| + | ## रोटी यदि खुली पड़ी रहे तो उस पर फफूंद लग जाती है। ऐसी अनेक प्रक्रियाओं का निरीक्षण करने का मौका मिलना चाहिए। ऐसे सभी प्रयोग करके देखना चाहिए। रसायणशास्त्र निरीक्षण एवं प्रयोग का विषय है। निरीक्षण एवं प्रयोग करने के बाद उस विषय पर वार्तालाप भी होना चाहिए। |
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− | है। परंतु यह बहुत बड़ी गलती है। विज्ञान तो यथार्थज्ञान के लिए बहुत ही उपयोगी विषय है। इसलिए उसे अहमियत देना चाहिए। विज्ञान गणित के समान ही पढ़ने या लिखने का विषय नहीं है अपितु अनुभव करने का विषय है, प्रतीति का विषय है। (Subject of experience and realization) इसलिए पाठ्यपुस्तक के आधार पर उसका शिक्षणकार्य असंभव है। जैसे गणित गणना करना होता है, वैसे ही विज्ञान निरीक्षण एवं परीक्षण करना होता है। निरीक्षण का अर्थ है ध्यान से देखना एवं परीक्षण का अर्थ है परखना। परखना प्रयोग करना है। इसलिए विज्ञान अर्थात् प्रयोग। प्रयोगशाला में ही विज्ञान की पढ़ाई हो सकती है।
| + | === वनस्पति विज्ञान === |
| + | # घास, पौधा, लता एवं वृक्ष ये चारों प्रकार दिखाने चाहिए एवं उनका वर्गीकरण करने के लिए कहना चाहिए। |
| + | # गमले में बीज उगाकर उसके उगने की प्रक्रिया का निरीक्षण करना चाहिए। बीज से अंकुर फूटना, अंकुर के बाद दो पत्ते, इसके बाद दो से अधिक पत्ते, उसमें से ही पतला तना, बढ़ते-बढ़ते फूल, फूल के बाद फल, एवं फल में बीज - इस समग्र प्रक्रिया में अवलोकन करने में बहुत ही आनंद आता है। पोई की लता, अनार जैसे वृक्ष में यह सब प्रक्रिया देखने को मिलती है। |
| + | # अनाज, दलहन एवं तिलहन इत्यादि का वर्गीकरण सिखाना। ४. फल, फूल, सब्जी भी दूसरे प्रकार का वर्गीकरण है। |
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− | ४. विज्ञान हमारे चारों ओर के वातावरण में स्थित है। रसोई, स्नानघर, मैदान,
| + | === प्राणीविज्ञान === |
− | | + | # जलचर, नभचर, भूचर प्राणी जैसे कि मछली, चील, घोड़ा, कछुआ इत्यादि दिखाकर पहचान करवाना। |
− | विद्यालय इत्यादि सभी जगहों पर विज्ञान दिखाई देता है। विज्ञान के आधार पर ही हमारे सब कार्य होते हैं। इसलिए विज्ञान को व्यवहार के साथ जोड़कर ही सिखाना चाहिए। निरीक्षण, परीक्षण, अनुभव, प्रतीति इत्यादि का अनुभव करते-करते ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही जगत के सारे कार्य संपन्न होते हैं।
| + | # अंडज प्राणी (अंड़े में से जन्म लेनेवाले अर्थात् पक्षी), स्वेदज प्राणी (पसीने में से जन्म लेनेवाले अर्तात् जूं जैसे प्राणी) जरायुज प्राणी (गर्भाशय से जन्म लेनेवाले अर्थात् गाय, कुत्ता, मनुष्य इत्यादि) एवं उद्भिज प्राणी (पानी में से जन्म लेनेवाले प्राणी जैसे शैवाल) का परिचय करवाना एवं इन शब्दों का परिचय करवाना। |
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− | पाठ्यक्रम १. पदार्थविज्ञान : धिर्नी, उत्तोलक, पदार्थों के गुणधर्म। २. भूगोल : दिशा, पृथ्वी, भारत का नक्शा। ३. खगोल : अवकाशी पदार्थ, रात्रिदिवस, प्रातःकाल, मध्याह्नकाल, सायंकाल,
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− | ऋतु, पंचांग। ४. रसायण शास्त्र : आसपास दिखाई देनेवाली रासायनिक प्रक्रियाएँ। ५. वनस्पतिविज्ञान : बीज उगने की प्रक्रिया, पौधों के अंगप्रत्यंग, वनस्पति के
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− | प्रकार। ६. प्राणीविज्ञान : जलचर, भूचर, नभचर, उभयचर, अंडज, स्वेदज, जरायुज,
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− | उद्भिज। वैज्ञानिकों का परिचय : नागार्जुन, चरक, सुश्रुत, भरद्वाज, आर्यभट्ट, वराह
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− | मिहिर, भास्कराचार्य, सी. वी. रामन, जगदीशचन्द्र बसु, रामानुजन। ८. विज्ञान कथा : सृष्टि की उत्पत्ति की कथा, पृथ्वी की कथा, वृक्ष की कथा,
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− | मूलरूप की कथा, दूध की कथा। ये सभी मुद्दे निम्न प्रकार से सीखे जा सकते हैं। १. सूचना प्राप्त करना एवं सूचना एकत्र करना, २. नमूनों का संग्रह करना, ३. प्रयोग करना, ४. निरीक्षण करना, ५. वर्गीकरण करना, ६. कहानी
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− | सुनना। विवरण १. पदार्थविज्ञान १. चिर्नी : कुएँ पर घिर्नी का प्रयोग होता है। कहीं ऊँचाई पर भारी
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− | सामान चढ़ाने में भी घिर्नी का उपयोग होता है। चिर्नी पर रस्सी
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− | चढ़ाकर वस्तु को ऊपर खींचने की क्रिया का निरीक्षण करना एवं उसे प्रयोग के द्वारा अनुभव करना चाहिए। उत्तोलक : रसोई में उपयोगी सांडसी, चिमटा, बगीचे के माली की कैंची, शिशुवाटिका में रखा सीसाँ, खड़े खड़े बुहारी करने में उपयोगी झाडू - इन सभी में उत्तोलक का उपयोग होता है। उत्तोलक के कारण कम बल लगाकर अधिक वजन उठाया जा सकता है। इसका
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− | निरीक्षण करके प्रयोग करना चाहिए। ३. पदार्थों के गुणधर्मों को जानना। उदाहरण के तौर पर १. लकड़ी, खाली कटोरी, कागज की नाव पानी में तैरती है। परंतु लोहे
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− | का टुकडा, रूपए का सिक्का पानी में डूब जाता है। २. बिस्कुट, चीनी, नमक आदि घुलते हैं परंतु मोम, घी आदि
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− | पिघलते हैं। ३. गर्म होने पर बर्फ से पानी एवं पानी में से बाष्प बनती है। ठंडा होने
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− | पर बाष्प से पानी एवं पानी से बर्फ बनती है। इन सभी निरीक्षण एवं प्रयोगों से हमारे आसपास विज्ञान के तथ्यों के
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− | आविष्कार की प्रतिति होगी। २. भूगोल १. दिशा : प्रथम पूर्व दिशा का परिचय सवेरे सूर्य की ओर मुख करके
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− | खड़े रहकर एवं रखकर देना चाहिए। इसके बाद पूर्व के सामने की दिशा या अपनी पीठ की दिशा में पश्चिम, दाहिने हाथ पर दक्षिण एवं बाएँ हाथ पर उत्तर दिशा है यह समझना चाहिए। इसके बाद अन्य चार दिशाओं (हम उन्हें कोण भी कहते हैं) ईशान, अग्नि, नैऋत्य एवं वायव्य का परिचय मूल चार दिशाओं के आधार पर देना चाहिए। इसके बाद ऊपर एवं नीचे, इन दो दिशाओं का परिचय देना चाहिए। इस तरह कुल दस दिशाओं का परिचय देकर कुल दस दिशाओं की जानकारी देना चाहिए। प्रथम दिशाओं का परिचय जगत में; इसके बाद जमीन या कागज पर बताना चाहिए। कभी कभी कुतुबनूमा की
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− | सुई के आधार पर भी दिशाएँ समझना चाहिए। २. छात्रों को पृथ्वी का गोला अवश्य दिखाएँ। वह किस तरह से अपनी
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− | धुरी पर टिका हुआ है; किस तरह से एक तरफ को झुका हुआ है एवं झुकी हुई अवस्था में कैसे अपनी धुरी पर घूमता है, पृथ्वी पर किस तरह से देश एवं समुद्र दर्शाए गए हैं, किस तरह से एक भाग नीचे एवं एक भाग उपर की ओर रहता है, किस तरह बारी बारी से उपर का भाग नीचे एवं नीचे का भाग उपर आता है, यह बार बार बताना चाहिए। पृथ्वी के गोले का खेल ही छात्र बार बार खेलें ऐसे वातावरण
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− | का निर्माण करना चाहिए। ३. पृथ्वी के गोले पर भारत का नक्शा दिखाना। उस पर दिशाएँ दर्शाना।
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− | उसमें क्या क्या लिखा है, उसे पढ़ने के लिए कहना। अलग अलग रंग का दर्शाते हैं, उसे जानने की उत्सुकता छात्रों में जगाना। प्रश्न जगने देना। प्रश्नों के सरल उत्तर देना। हमें अपनी तरफ से बहुत कुछ
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− | बताने की आवश्यकता नहीं है। उन्हींको निरीक्षण करने देना चाहिए। ३. खगोल १. आकाशी पदार्थ : सूर्य, चंद्र, तारे, आकाश का निरीक्षण करने के लिए
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− | कहना। २. पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है, इसलिए रातदिन होते हैं। इसी कारण
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− | सुबह, दोपहर एवं शाम होती है। धूप एवं परछाईं का निरीक्षण
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− | करवाना। ३. छः ऋतुओं का परिचय देना। उसके प्राकृतिक लक्षणों का वर्णन
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− | करना। उसका क्रम बनाए रखना। ४. पंचांग : तिथि, वार, नक्षत्र, करण, योग इन शब्दों की पहचान
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− | करवाना एवं उनके नाम बताना। यह सिर्फ जानकारी है। अभी इसका
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− | विवरण देने की आवश्यकता नहीं है। रसायण शास्त्र हमारे आसपास अनेकों रासायनिक प्रक्रियाएँ होती रहती हैं। यह बताना एवं पहचान करवाना। जैसे कि
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− | १. हल्दी का पानी एवं साबुन का पानी मिलाने पर घोल का रंग लाल हो
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− | जाता है। २. नीबू के पानी में सोडा मिलाने पर उसमें उफान आता है। ३. दूध में दही मिलाने पर दूध का दहीं बन जाता है। ४. मैले कपड़ों में साबुन लगाने पर मैल कटता है। ५. पीतल के बर्तन पर नीबू का रस लगाने पर वह चमकदार हो
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− | जाता है। ६. उबलते हुए दूध में नीबू का रस मिलाने पर पानी एवं दूध का मावा
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− | अलग हो जाता है।
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− | भी होना चाहिए। ५. वनस्पति विज्ञान १. घास, पौधा, लता एवं वृक्ष ये चारों प्रकार दिखाने चाहिए एवं उनका
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− | वर्गीकरण करने के लिए कहना चाहिए। २. गमले में बीज उगाकर उसके उगने की प्रक्रिया का निरीक्षण करना
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− | चाहिए। बीज से अंकुर फूटना, अंकुर के बाद दो पत्ते, इसके बाद दो से अधिक पत्ते, उसमें से ही पतला तना, बढ़ते-बढ़ते फूल, फूल के बाद फल, एवं फल में बीज - इस समग्र प्रक्रिया में अवलोकन करने में बहुत ही आनंद आता है। पोई की लता, अनार जैसे वृक्ष में यह
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− | सब प्रक्रिया देखने को मिलती है। ३. अनाज, दलहन एवं तिलहन इत्यादि का वर्गीकरण सिखाना। ४. फल, फूल, सब्जी भी दूसरे प्रकार का वर्गीकरण है।
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− | प्राणीविज्ञान १. जलचर, नभचर, भूचर प्राणी जैसे कि मछली, चील, घोड़ा, कछुआ
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− | इत्यादि दिखाकर पहचान करवाना। २. अंडज प्राणी (अंड़े में से जन्म लेनेवाले अर्थात् पक्षी), स्वेदज प्राणी | |
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− | (पसीने में से जन्म लेनेवाले अर्तात् जूं जैसे प्राणी) जरायुज प्राणी (गर्भाशय से जन्म लेनेवाले अर्थात् गाय, कुत्ता, मनुष्य इत्यादि) एवं उद्भिज प्राणी (पानी में से जन्म लेनेवाले प्राणी जैसे शैवाल) का | |
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− | परिचय करवाना एवं इन शब्दों का परिचय करवाना। ७. वैज्ञानिकों का परिचय | |
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| + | === वैज्ञानिकों का परिचय === |
| भारत ने विश्व को महान वैज्ञानिक प्रदान किए हैं। विज्ञान के क्षेत्र में इन वैज्ञानिकों ने अनेकों खोजें करके अमूल्य योगदान दिया है। प्रत्येक क्षेत्र में विश्व के देशों में वह आगे है। इसलिए इन वैज्ञानिकों का केवल नाम बताकर ही उनके चरित्र का अत्यंत सरल, एवं संक्षिप्त परिचय छात्रों को देना चाहिए। विज्ञान कथाएँ विज्ञान कथाएँ भी विज्ञान को रोचक बनाने के लिए हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए एवं जानकारी प्राप्त करने के लिए हैं। साथ ही व्यवहार में तत्त्व कैसे अनुस्यूत होता है उसकी प्रतीति करने के लिए हैं। | | भारत ने विश्व को महान वैज्ञानिक प्रदान किए हैं। विज्ञान के क्षेत्र में इन वैज्ञानिकों ने अनेकों खोजें करके अमूल्य योगदान दिया है। प्रत्येक क्षेत्र में विश्व के देशों में वह आगे है। इसलिए इन वैज्ञानिकों का केवल नाम बताकर ही उनके चरित्र का अत्यंत सरल, एवं संक्षिप्त परिचय छात्रों को देना चाहिए। विज्ञान कथाएँ विज्ञान कथाएँ भी विज्ञान को रोचक बनाने के लिए हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करने के लिए एवं जानकारी प्राप्त करने के लिए हैं। साथ ही व्यवहार में तत्त्व कैसे अनुस्यूत होता है उसकी प्रतीति करने के लिए हैं। |
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| ==References== | | ==References== |