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| == उद्देश्य == | | == उद्देश्य == |
− | १. भाषा प्रकृति की ओर से मनुष्य को मिला हुआ विशिष्ट उपहार है<ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। केवल
| + | # भाषा प्रकृति की ओर से मनुष्य को मिला हुआ विशिष्ट उपहार है<ref>प्रारम्भिक पाठ्यक्रम एवं आचार्य अभिभावक निर्देशिका, प्रकाशक: पुनरुत्थान प्रकाशन सेवा ट्रस्ट, लेखिका: श्रीमती इंदुमती काटदरे</ref>। केवल मनुष्य को ही भाषा का वरदान प्राप्त है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को भाषा आनी ही चाहिए। |
− | | + | # किसी भी अन्य मानव या व्यक्ति से सोच विचार, भावना, या जानकारी का आदानप्रदान करने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। इसलिए कुछ भी सीखने की इच्छा रखनेवाले व्यक्ति को सर्वप्रथम भाषा सीखना चाहिए। |
− | मनुष्य को ही भाषा का वरदान प्राप्त है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को भाषा | + | # कोई भी विषय सीखना हो तो भाषा की सहायता से ही सीख सकते हैं। |
− | | + | # भाषा आधारभूत विषय है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को भाषा सीखना ही चाहिए। |
− | आनी ही चाहिए। २. किसी भी अन्य मानव या व्यक्ति से सोच विचार, भावना, या जानकारी का | |
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− | आदानप्रदान करने के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। इसलिए कुछ भी | |
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− | सीखने की इच्छा रखनेवाले व्यक्ति को सर्वप्रथम भाषा सीखना चाहिए। ३. कोई भी विषय सीखना हो तो भाषा की सहायता से ही सीख सकते हैं। | |
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− | भाषा आधारभूत विषय है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को भाषा सीखना ही चाहिए। | |
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| == आलंबन == | | == आलंबन == |
− | १. सर्व प्रथम भाषा अर्थात् मातृभाषा ही समझें, क्योंकि जीवन के प्रारंभ से ही
| + | # सर्व प्रथम भाषा अर्थात् मातृभाषा ही समझें, क्योंकि जीवन के प्रारंभ से ही मातृभाषा सीखने की शरूआत हो जाती है। मातृभाषा अच्छी तरह आने के बाद ही अन्य भाषा अच्छी तरह सीख सकते हैं। |
− | | + | # भाषा प्रत्यक्ष व्यवहार से संबंधित है। हमारे आसपास के जीवन से संबंधित है। जीवन का अनुभव, जीवन की समझ एवं भाषा विकास एकसाथ चलनेवाली प्रक्रिया है। इसलिए भाषा शिक्षण जीवननिष्ठ ही होना चाहिए। |
− | मातृभाषा सीखने की शरूआत हो जाती है। मातृभाषा अच्छी तरह आने के | |
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− | बाद ही अन्य भाषा अच्छी तरह सीख सकते हैं। २. भाषा प्रत्यक्ष व्यवहार से संबंधित है। हमारे आसपास के जीवन से संबंधित | |
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− | है। जीवन का अनुभव, जीवन की समझ एवं भाषा विकास एकसाथ चलनेवाली प्रक्रिया है। इसलिए भाषा शिक्षण जीवननिष्ठ ही होना चाहिए। | |
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| == भाषा सीखना क्या है == | | == भाषा सीखना क्या है == |
− | १. भाषा के दो स्वरूप है। ध्वनिस्वरूप एवं वर्णस्वरूप। मौखिक भाषा ध्वनिस्वरूप है एवं लिखित भाषा वर्णस्वरूप है। इन दोनों में मूल भाषा तो ध्वनिस्वरूप ही है। वर्णस्वरूप ध्वनिस्वरूप का अनुसरण ही करता है। अर्थात् भाषा को प्रथम बोला जाता है, इसके बाद लिखा जाता है। जैसे बोला जाता है, वैसे ही एवं वैसा ही लिखा भी जाता है। भाषा की व्याख्या यही कहती है। भाषा की परिभाषा है, या भाष्यते सा भाषा। जो हम बोलते ३. हैं वहीं भाषा है। भाषा सीखना अर्थात् अच्छा बोलना, एवं अच्छा एवं सही लिखना सीखना। __ भाषा के मुख्य चार कौशल हैं; दो ध्वनिस्वरूप के एवं दो वर्णस्वरूप के।
| + | # भाषा के दो स्वरूप है। ध्वनिस्वरूप एवं वर्णस्वरूप। मौखिक भाषा ध्वनिस्वरूप है एवं लिखित भाषा वर्णस्वरूप है। इन दोनों में मूल भाषा तो ध्वनिस्वरूप ही है। वर्णस्वरूप ध्वनिस्वरूप का अनुसरण ही करता है। अर्थात् भाषा को प्रथम बोला जाता है, इसके बाद लिखा जाता है। जैसे बोला जाता है, वैसे ही एवं वैसा ही लिखा भी जाता है। भाषा की व्याख्या यही कहती है। भाषा की परिभाषा है, या भाष्यते सा भाषा। जो हम बोलते हैं वहीं भाषा है। भाषा सीखना अर्थात् अच्छा बोलना, एवं अच्छा एवं सही लिखना सीखना। |
− | | + | # भाषा के मुख्य चार कौशल हैं; दो ध्वनिस्वरूप के एवं दो वर्णस्वरूप के। ध्वनिस्वरूप के दो कौशल अर्थात् सुनना (श्रवण) एवं बोलना (कथन)। वर्णस्वरूप के दो कौशल हैं - पढ़ना एवं लिखना। यहाँ भी कथन श्रवण का अनुसरण करता है एवं लेखन वाचन का अनुसरण करता है। अर्थात् व्यक्ति जैसा सुनता है वैसा बोलता है एवं जैसा पढ़ता है वैसा ही लिखता है। इस तरह भाषा के चार कौशलों का क्रम है श्रवण, भाषण, वाचन एवं लेखन। ये चारों कौशल इसी क्रम में सीखना चाहिए। |
− | ध्वनिस्वरूप के दो कौशल अर्थात् सुनना (श्रवण) एवं बोलना (कथन)। वर्णस्वरूप के दो कौशल हैं - पढ़ना एवं लिखना। यहाँ भी कथन श्रवण का अनुसरण करता है एवं लेखन वाचन का अनुसरण करता है। अर्थात् व्यक्ति जैसा सुनता है वैसा बोलता है एवं जैसा पढ़ता है वैसा ही लिखता है। इस तरह भाषा के चार कौशलों का क्रम है श्रवण, भाषण, वाचन एवं लेखन। ये चारों कौशल इसी क्रम में सीखना चाहिए। भाषा के अन्य दो आयाम हैं शब्द एवं अर्थ। ध्वनिसमूह से बननेवाले अर्थहीन शब्द को भाषा नहीं कह सकते हैं। उदाहरण के तौर पर सासा रेरे गागा... ये ध्वनि हैं, इनमें स्वर हैं परंतु अर्थ नहीं है इसलिए वह संगीत है, परंतु भाषा नहीं है। शब्द यदि ध्वनि है तो उसका अर्थ जीवन में है। इस तरह जीवन के विविध सोपानों को स्पष्ट एवं अभिव्यक्त करनेवाला | + | # भाषा के अन्य दो आयाम हैं शब्द एवं अर्थ। ध्वनिसमूह से बननेवाले अर्थहीन शब्द को भाषा नहीं कह सकते हैं। उदाहरण के तौर पर सासा रेरे गागा... ये ध्वनि हैं, इनमें स्वर हैं परंतु अर्थ नहीं है इसलिए वह संगीत है, परंतु भाषा नहीं है। शब्द यदि ध्वनि है तो उसका अर्थ जीवन में है। इस तरह जीवन के विविध सोपानों को स्पष्ट एवं अभिव्यक्त करनेवाला ध्वनिसमूह है भाषा। भाषा सीखने का अर्थ है शब्द एवं अर्थ दोनों सीखना। |
− | | + | # शब्द, शब्दरचना, शब्दों की योग्य व्यवस्था से बननेवाला वाक्य, वाक्यों के विविध प्रकार, वाक्यों की विविध प्रकार की रचना आदि सबकुछ मिलकर व्याकरण बनता है। वचन, पुरुष लिंग, संधि, समास वगैरह सब व्याकरण का एक भाग है। यह सब भी सीखना पड़ता है। |
− | ध्वनिसमूह है भाषा। भाषा सीखने का अर्थ है शब्द एवं अर्थ दोनों सीखना। ४. शब्द, शब्दरचना, शब्दों की योग्य व्यवस्था से बननेवाला वाक्य, वाक्यों के | + | # जानकारी एवं विचार की अभिव्यक्ति अर्थात् निबंध, अपने विषय में कहना हो तो आत्मकथा, छंदोबद्ध रचना करना हो तो पद्य, भावना या विचारों को शब्दों में व्यक्त करके स्वर में गायन करना अर्थात् गीत, अन्य किसी के विषय में वर्णन करना हो तो चरित्रकथन, पूर्वसमय में घटित घटना को मनोरंजक रूप से कहना हो तो कहानी, संवाद के रूप में कहना हो तो नाटक ऐसे विविध प्रकार की अभिव्यक्तियों को सीखना भी भाषा शिक्षण ही कहलाता है। अर्थात् भाषा केवल शब्द नहीं है या मात्र अर्थ भी नहीं है परंतु यह शब्द एवं अर्थ दोनों हैं। इन दोनों के संबंध में कितनी एकात्मता है यह दर्शाने के लिए महाकवि कालिदास ने शिव एवं पार्वती को जो उपमा दी है वह समझने की यहाँ आवश्यकता है। रघुवंश नामक महाकाव्य का प्रथम श्लोक इस प्रकार है<ref>महाकवि कालिदास, रघुवंश महाकाव्य, प्रथम छंद</ref> - |
− | | + | <blockquote>वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।</blockquote><blockquote>जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ।।</blockquote><blockquote>वाक् (शब्द) एवं अर्थ के समान एकदूसरे से जुड़े हुए, शब्द आवं अर्थ की प्राप्ति स्वरूप, जगत के मातापिता पार्वती एवं परमेश्वर (शंकर) को मैं वंदन करता हूँ।</blockquote>अर्थात शब्द एवं अर्थ भाषारूपी सिक्के के दो पहलू के समान हैं। इसलिए भाषा सीखना अर्थात् जीवन की अभिव्यक्ति का अर्थ सीखने के बराबर है। इस प्रकार देखें तो भाषा अच्छी तरह से सीखना बहुत बड़ी उपलब्धि है। भाषा का संबंध पाँचो कोशों के विकास से है। इसलिए भाषा सीखना या सिखाना बहुत महत्त्वपूर्ण घटना है। |
− | विविध प्रकार, वाक्यों की विविध प्रकार की रचना आदि सबकुछ मिलकर व्याकरण बनता है। वचन, पुरुष लिंग, संधि, समास वगैरह सब व्याकरण का एक भाग है। यह सब भी सीखना पड़ता है। जानकारी एवं विचार की अभिव्यक्ति अर्थात् निबंध, अपने विषय में कहना हो तो आत्मकथा, छंदोबद्ध रचना करना हो तो पद्य, भावना या विचारों को शब्दों में व्यक्त करके स्वर में गायन करना अर्थात् गीत, अन्य किसी के विषय में वर्णन करना हो तो चरित्रकथन, पूर्वसमय में घटित घटना को मनोरंजक रूप से कहना हो तो कहानी, संवाद के रूप में कहना हो तो नाटक ऐसे विविध प्रकार की अभिव्यक्तियों को सीखना भी भाषा शिक्षण ही कहलाता है। अर्थात् भाषा केवल शब्द नहीं है या मात्र अर्थ भी नहीं है परंतु यह शब्द एवं अर्थ दोनों हैं। इन दोनों के संबंध में कितनी एकात्मता है यह दर्शाने के लिए महाकवि कालीदास ने शिव एवं पार्वती को जो उपमा दी है वह समझने | |
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− | की यहाँ आवश्यकता है। रघुवंश नामक महाकाव्य का प्रथम श्लोक इस प्रकार है - | |
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− | वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये । | |
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− | जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ।। वाक् (शब्द) एवं अर्थ के समान एकदूसरे से जुड़े हुए, शब्द आवं अर्थ की प्राप्ति स्वरूप, जगत के मातापिता पार्वती एवं परमेश्वर (शंकर) को मैं वंदन करता हूँ। | |
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− | अर्तात् शब्द एवं अर्थ भाषारूपी सिक्के के दो पहलू के समान हैं। इसलिए भाषा सीखना अर्थात् जीवन की अभिव्यक्ति का अर्थ सीखने के बराबर है।
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− | इस प्रकार देखें तो भाषा अच्छी तरह से सीखना बहुत बड़ी उपलब्धि है। भाषा का संबंध पाँचो कोशों के विकास से है। इसलिए भाषा सीखना या सिखाना बहुत महत्त्वपूर्ण घटना है। | |
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| इस विषय पर जोर देकर इसलिए कहना पड़ता है क्यों कि आज भाषा की बहुत उपेक्षा हो रही है। सही उच्चारण, सुंदर लेखन, योग्य संवादों का उपयोग, सही वर्तनी, सही वाक्यरचना, मधुर एवं ललित भाषण एवं लेखन, मौलिक लेखन, वगैरह की लोग तनिक भी परवाह नहीं करते हैं। गुजराती या हिन्दी वाक्यों में अनेक अंग्रेजी शब्दों का उपयोग करके भाषा को विकृत बना दिया गया है। ऐसा करके हम अपने ही ज्ञान के स्रोत को सुखा रहे हैं। ऐसा होने से रोकने के लिए भाषा अच्छी तरह से सीखना कितना आवश्यक है, यही समझाने के लिए इतना विवेचन किया गया है। | | इस विषय पर जोर देकर इसलिए कहना पड़ता है क्यों कि आज भाषा की बहुत उपेक्षा हो रही है। सही उच्चारण, सुंदर लेखन, योग्य संवादों का उपयोग, सही वर्तनी, सही वाक्यरचना, मधुर एवं ललित भाषण एवं लेखन, मौलिक लेखन, वगैरह की लोग तनिक भी परवाह नहीं करते हैं। गुजराती या हिन्दी वाक्यों में अनेक अंग्रेजी शब्दों का उपयोग करके भाषा को विकृत बना दिया गया है। ऐसा करके हम अपने ही ज्ञान के स्रोत को सुखा रहे हैं। ऐसा होने से रोकने के लिए भाषा अच्छी तरह से सीखना कितना आवश्यक है, यही समझाने के लिए इतना विवेचन किया गया है। |
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− | संक्षेप में कहा जाए तो भाषा सीखना अर्थात् १. शुद्ध एवं स्पष्ट उच्चारण करना-अक्षरों का, शब्दों का, वाक्यों का २. सुंदर एवं शुद्ध लेखन सीखना - अक्षरों का, शब्दों का, वाक्यों का ३. शुद्ध, स्पष्ट, तेज, भाववाही, मौन एवं सस्वर पढ़ना सीखना ४. शब्दों का अर्थ जानना एवं इस प्रकार शब्दरचना एवं वाक्यरचना | + | संक्षेप में कहा जाए तो भाषा सीखना अर्थात्: |
− | | + | # शुद्ध एवं स्पष्ट उच्चारण करना-अक्षरों का, शब्दों का, वाक्यों का |
− | सीखना। ५. भाषा की रचना अर्थात् व्याकरण का अध्ययन ६. विविध छंदों एवं लय से काव्यगान करना सीखना। अर्थात् भाषा एवं संगीत का समन्वय करना। कक्षा १ एवं २ में सबसे ज्यादा जरुरी
| + | # सुंदर एवं शुद्ध लेखन सीखना - अक्षरों का, शब्दों का, वाक्यों का |
− | | + | # शुद्ध, स्पष्ट, तेज, भाववाही, मौन एवं सस्वर पढ़ना सीखना |
− | उच्चारण, वाचन, लेखन एवं शब्दरचना है। | + | # शब्दों का अर्थ जानना एवं इस प्रकार शब्दरचना एवं वाक्यरचना सीखना। |
| + | # भाषा की रचना अर्थात् व्याकरण का अध्ययन |
| + | # विविध छंदों एवं लय से काव्यगान करना सीखना। अर्थात् भाषा एवं संगीत का समन्वय करना। कक्षा १ एवं २ में सबसे ज्यादा जरुरी उच्चारण, वाचन, लेखन एवं शब्दरचना है। |
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| == पाठ्यक्रम == | | == पाठ्यक्रम == |
− | १. बोलना : वर्ण, स्वर, शब्द, वाक्य, विरामचिह्न, आरोहअवरोह, संयुक्ताक्षर, ___ अनुप्रासात्मक एवं अनुरणनात्मक शब्दों का स्पष्ट शुद्ध उच्चारण।
| + | # बोलना : वर्ण, स्वर, शब्द, वाक्य, विरामचिह्न, आरोहअवरोह, संयुक्ताक्षर, अनुप्रासात्मक एवं अनुरणनात्मक शब्दों का स्पष्ट शुद्ध उच्चारण। |
| + | # वाचन : शब्द, वाक्य, परिच्छेद, अक्षर, वर्तनी का स्पष्ट शुद्ध उच्चारण सहित, भाववाही तथा मौनवाचन |
| + | # लेखन : वर्ण, मात्रा, शब्द, संयुक्ताक्षर, वाक्यलेखन। |
| + | # शब्दरचना एवं शब्दों का अर्थ |
| + | # वाक्यरचना एवं वाक्यों का अर्थ |
| + | # कविता एवं गीत का पठन एवं गान |
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− | वाचन : शब्द, वाक्य, परिच्छेद, अक्षर, वर्तनी का स्पष्ट शुद्ध उच्चारण
| + | == विवरण == |
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− | सहित, भाववाही तथा मौनवाचन ३. लेखन : वर्ण, मात्रा, शब्द, संयुक्ताक्षर, वाक्यलेखन। ४. शब्दरचना एवं शब्दों का अर्थ ५. वाक्यरचना एवं वाक्यों का अर्थ ६. कविता एवं गीत का पठन एवं गान
| + | === भाषण === |
− | | + | १. छात्र जैसा सुनते हैं वैसा ही बोलते हैं। इसलिए छात्रों को शुद्ध बोलना |
− | == विवरण == | |
− | १. भाषण १. छात्र जैसा सुनते हैं वैसा ही बोलते हैं। इसलिए छात्रों को शुद्ध बोलना
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| सिखाने के लिए शिक्षक को हमेशा शुद्ध उच्चारण के साथ ही बोलना चाहिए। | | सिखाने के लिए शिक्षक को हमेशा शुद्ध उच्चारण के साथ ही बोलना चाहिए। |
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| करना) सीखने के लिए इन सभीका अभ्यास करना चाहिए। | | करना) सीखने के लिए इन सभीका अभ्यास करना चाहिए। |
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− | == वाचन == | + | === वाचन === |
| १. वाचन का प्रारंभ वर्गों से न करके शब्दों एवं वाक्यों से करना चाहिए। | | १. वाचन का प्रारंभ वर्गों से न करके शब्दों एवं वाक्यों से करना चाहिए। |
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Line 137: |
Line 115: |
| का अभ्यास होते रहना चाहिए। प्रारंभ में सस्वर (जोर से) पढ़ने के बाद मंद स्वर में वाचन एवं अंत में मन में ही वाचन हो यही वाचन का क्रम है। यह वाचन सिखाना अर्थात् धाराप्रवाह वाचन ही सिखाना अपेक्षित है। | | का अभ्यास होते रहना चाहिए। प्रारंभ में सस्वर (जोर से) पढ़ने के बाद मंद स्वर में वाचन एवं अंत में मन में ही वाचन हो यही वाचन का क्रम है। यह वाचन सिखाना अर्थात् धाराप्रवाह वाचन ही सिखाना अपेक्षित है। |
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− | == लेखन == | + | === लेखन === |
| १. वैसे तो लिखना सीखना चित्र के समान ही उद्योग का एक भाग माना जाना | | १. वैसे तो लिखना सीखना चित्र के समान ही उद्योग का एक भाग माना जाना |
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