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| # साष्टांग नमस्कार : जमीन पर सीधे लेटकर कपाल (मस्तक), नाक, दोनों कंधे, दोनों हाथ एवं दोनों घुटने जमीन से स्पर्श करें ऐसी मुद्रा में आकर पुनः सीधे खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें। | | # साष्टांग नमस्कार : जमीन पर सीधे लेटकर कपाल (मस्तक), नाक, दोनों कंधे, दोनों हाथ एवं दोनों घुटने जमीन से स्पर्श करें ऐसी मुद्रा में आकर पुनः सीधे खड़े होकर दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करें। |
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− | ==== ध्यान में रखने योग्य बातें ==== | + | ===== ध्यान में रखने योग्य बातें ===== |
| # नमस्कार करनेवाले या नमस्कार स्वीकार करनेवाले का शरीर अस्वच्छ हो तो चरण स्पर्श या साष्टांग प्रणाम न करें। | | # नमस्कार करनेवाले या नमस्कार स्वीकार करनेवाले का शरीर अस्वच्छ हो तो चरण स्पर्श या साष्टांग प्रणाम न करें। |
| # जूता या चप्पल पहनकर, जूठे हाथों से, सामने कोई भोजन कर रहा हो तब, जूता पहना हो तब या घर की चौखट पर खड़ा हो तब नमस्कार नहीं करना चाहिए। | | # जूता या चप्पल पहनकर, जूठे हाथों से, सामने कोई भोजन कर रहा हो तब, जूता पहना हो तब या घर की चौखट पर खड़ा हो तब नमस्कार नहीं करना चाहिए। |
| # अन्य किसी के साथ बातों में मग्न हों, ध्यान साधना में लीन हो या पूजा करते हों तब भी नमस्कार नहीं करना चाहिए। | | # अन्य किसी के साथ बातों में मग्न हों, ध्यान साधना में लीन हो या पूजा करते हों तब भी नमस्कार नहीं करना चाहिए। |
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− | === फूल चढ़ाना === | + | ==== फूल चढ़ाना ==== |
| फूल दानों हाथों से चढ़ाना चाहिए। फूल चढ़ाते समय ऊपर से नीचे की ओर डालें परंतु दोनों हथेलियां उपर की ओर खुली रखकर फूल चढ़ाएँ। फूल यदि देवता या किसी व्यक्ति के पैरों में चढ़ाना हो तो उपरोक्त विधि से चढ़ाए परंतु यदि सिर पर चढ़ाना हो तो उपर से शीश पर फूल रखें। फूल फेंककर कभी न चढाएँ। मूर्ति या प्रतिमा को चढ़ाने के लिए लिये गए फूल नीचे गिरे हुए, अन्य किसी के द्वारा उपयोग किए हुए या सूंघे हुए नहीं होने चाहिए। सुगंधीदार फूल ही सही फूल माने जाते हैं। इसीलिए हमेशा ऐसे फूल ही चढ़ाएँ। | | फूल दानों हाथों से चढ़ाना चाहिए। फूल चढ़ाते समय ऊपर से नीचे की ओर डालें परंतु दोनों हथेलियां उपर की ओर खुली रखकर फूल चढ़ाएँ। फूल यदि देवता या किसी व्यक्ति के पैरों में चढ़ाना हो तो उपरोक्त विधि से चढ़ाए परंतु यदि सिर पर चढ़ाना हो तो उपर से शीश पर फूल रखें। फूल फेंककर कभी न चढाएँ। मूर्ति या प्रतिमा को चढ़ाने के लिए लिये गए फूल नीचे गिरे हुए, अन्य किसी के द्वारा उपयोग किए हुए या सूंघे हुए नहीं होने चाहिए। सुगंधीदार फूल ही सही फूल माने जाते हैं। इसीलिए हमेशा ऐसे फूल ही चढ़ाएँ। |
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| कली न चढ़ाएँ । (कली पोधे या पेड़ से कभी न तोड़ें) ताजे फूल चढ़ाने से पहले बासी फूल उतार लें। मूर्ति, प्रतिमा या चित्र को स्वच्छ करें। आसपास का स्थान एवं चीजवस्तुएँ स्वच्छ करें एवं इसके बाद ही फूल चढ़ाएँ। जैसे स्नान से पूर्व इत्र नहीं लगाया जाता वैसे ही मूर्ति या चित्र को स्वच्छ करने से पूर्व फूल नहीं चढ़ाया जाता। | | कली न चढ़ाएँ । (कली पोधे या पेड़ से कभी न तोड़ें) ताजे फूल चढ़ाने से पहले बासी फूल उतार लें। मूर्ति, प्रतिमा या चित्र को स्वच्छ करें। आसपास का स्थान एवं चीजवस्तुएँ स्वच्छ करें एवं इसके बाद ही फूल चढ़ाएँ। जैसे स्नान से पूर्व इत्र नहीं लगाया जाता वैसे ही मूर्ति या चित्र को स्वच्छ करने से पूर्व फूल नहीं चढ़ाया जाता। |
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− | === चंदन घिसना === | + | ==== चंदन घिसना ==== |
| शीतलता के लिए चंदन का लेप किया जाता है। यह मानव भी कर सकते हैं। भगवान की मूर्ति को भी कर सकते हैं। इसके लिए एक छोटा चकले के समान गोल पत्थर धोकर स्वच्छ करके चंदन की लकड़ी को भी धोकर उसपर रगड़ें। थोड़ा पानी डालकर रगड़ने पर लकड़ी घिसेगी एवं चंदन का लेप तैयार होगा। सूख जाने पर पुनः पानी की कुछ बूंदे पत्थर पर डालकर चंदन की लकड़ी रगड़ें। आवश्यक मात्रा में लेप तैयार हो जाने पर लेप को हाथ से पोंछकर कटोरी में ले लें। आवश्यकता से अधिक पानी न डालें। | | शीतलता के लिए चंदन का लेप किया जाता है। यह मानव भी कर सकते हैं। भगवान की मूर्ति को भी कर सकते हैं। इसके लिए एक छोटा चकले के समान गोल पत्थर धोकर स्वच्छ करके चंदन की लकड़ी को भी धोकर उसपर रगड़ें। थोड़ा पानी डालकर रगड़ने पर लकड़ी घिसेगी एवं चंदन का लेप तैयार होगा। सूख जाने पर पुनः पानी की कुछ बूंदे पत्थर पर डालकर चंदन की लकड़ी रगड़ें। आवश्यक मात्रा में लेप तैयार हो जाने पर लेप को हाथ से पोंछकर कटोरी में ले लें। आवश्यकता से अधिक पानी न डालें। |
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− | === यज्ञ में आहुति देना === | + | ==== यज्ञ में आहुति देना ==== |
| यज्ञ में दी जानेवाली आहुति के द्रव्य को चुटकी में पकड़ें। बीच की दो ऊँगली एवं अंगूठे से पकड़ें। यज्ञ में आहुति देते समय हथेली आकाश की ओर रहे इस प्रकार रखें, एवं नीचे की ओर छोड़े। हथेली उल्टी दिशा में न रखें या आहुति न फैंकें। | | यज्ञ में दी जानेवाली आहुति के द्रव्य को चुटकी में पकड़ें। बीच की दो ऊँगली एवं अंगूठे से पकड़ें। यज्ञ में आहुति देते समय हथेली आकाश की ओर रहे इस प्रकार रखें, एवं नीचे की ओर छोड़े। हथेली उल्टी दिशा में न रखें या आहुति न फैंकें। |
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− | === नैवेद्य चढ़ाना === | + | ==== नैवेद्य चढ़ाना ==== |
| नैवेद्य अर्थात् स्नान, फूल, धूप, होने के बाद भगवान को भोजन करवाना। जो नैवेद्य या प्रसाद चढ़ाना है उसे कटोरी, प्लेट या थाली में रखकर भगवान के सामने रखें। रखने से पहले उस स्थान को पानी छिड़ककर स्वच्छ करें। थाली या कटोरी रखने के बाद हाथ में पानी लेकर कटोरी या थाली के चारों ओर बाएं से दाँयी ओर घुमाएँ। अब बाँया हाथ मुख के सामने रखकर दायें हाथ से अर्पण की मुद्रा बनाकर निम्न मंत्र का उच्चारण करे। ॐ प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा। एक बार उच्चारण करने के बाद दाँयी हथेली में पानी लेकर छोड़ें एवं मंत्र बोलें। इसके बाद पुनः पानी छोड़ें एवं सबको प्रसाद बाँटें। | | नैवेद्य अर्थात् स्नान, फूल, धूप, होने के बाद भगवान को भोजन करवाना। जो नैवेद्य या प्रसाद चढ़ाना है उसे कटोरी, प्लेट या थाली में रखकर भगवान के सामने रखें। रखने से पहले उस स्थान को पानी छिड़ककर स्वच्छ करें। थाली या कटोरी रखने के बाद हाथ में पानी लेकर कटोरी या थाली के चारों ओर बाएं से दाँयी ओर घुमाएँ। अब बाँया हाथ मुख के सामने रखकर दायें हाथ से अर्पण की मुद्रा बनाकर निम्न मंत्र का उच्चारण करे। ॐ प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा, समानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा। एक बार उच्चारण करने के बाद दाँयी हथेली में पानी लेकर छोड़ें एवं मंत्र बोलें। इसके बाद पुनः पानी छोड़ें एवं सबको प्रसाद बाँटें। |
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