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शूद्र वर्ण की शिक्षा के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं:
 
शूद्र वर्ण की शिक्षा के प्रमुख अंग इस प्रकार हैं:
 
# शूद्र वर्ण के साथ निर्माण और स्वच्छता के सारे कार्य जुड़े हुए हैं । प्रजा का आरोग्य और असंख्य वस्तुओं की सुविधा का आधार शूद्रों पर है । उदाहरण के लिए विभिन्न प्रकार के पात्र बनाना, कृषि के लिए आवश्यक यंत्र निर्माण करना, वस्त्रों, भवनों, वाहनों आदि का निर्माण करना शूद्रों का काम है। स्वाभाविक ही है कि समाज की समृद्धि का मूल आधार प्रथम शूद्रों पर है और दूसरा वैश्यों पर है। शूद्रों द्वारा निर्माण की हुई वस्तुओं के बाजार की व्यवस्था वैश्य करता है ।
 
# शूद्र वर्ण के साथ निर्माण और स्वच्छता के सारे कार्य जुड़े हुए हैं । प्रजा का आरोग्य और असंख्य वस्तुओं की सुविधा का आधार शूद्रों पर है । उदाहरण के लिए विभिन्न प्रकार के पात्र बनाना, कृषि के लिए आवश्यक यंत्र निर्माण करना, वस्त्रों, भवनों, वाहनों आदि का निर्माण करना शूद्रों का काम है। स्वाभाविक ही है कि समाज की समृद्धि का मूल आधार प्रथम शूद्रों पर है और दूसरा वैश्यों पर है। शूद्रों द्वारा निर्माण की हुई वस्तुओं के बाजार की व्यवस्था वैश्य करता है ।
# सम्पूर्ण समाज को सर्व प्रकार की सुविधा प्राप्त हो, कष्ट दूर हों यह देखने का दायित्व शूद्रों का है। इस दायित्व का बोध कराने वाली शिक्षा सामाजिक दायित्वबोध, देशभक्ति, धर्मनिष्ठा, धर्म
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# सम्पूर्ण समाज को सर्व प्रकार की सुविधा प्राप्त हो, कष्ट दूर हों यह देखने का दायित्व शूद्रों का है। इस दायित्व का बोध कराने वाली शिक्षा शूद्रों के लिए होनी चाहिए।
''शूद्रों के लिए होनी चाहिए और संस्कृति का ज्ञान आदि बातें सभी वर्णों के लिए''
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# आज की भाषा में कहें तो सर्व प्रकार का इंजीनियरिंग, सर्व प्रकार के कारखाने, सड़क, पुल, बांध आदि निर्माण करने के प्रकल्प शूद्रों के खाते में ही जाएँगे। इन कामों के साथ जुड़ी हुई शिक्षा संस्थायें भी शूद्रों के ही अधिकार में रहेंगी। 
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# शूद्रों के साथ विगत दो सौ वर्षों से बहुत अन्याय और अत्याचार हुए हैं। समाज के ब्राह्मण आदि तीनों वर्गों का यह अपराध है। परिणामस्वरूप शूद्रों में एक ओर हीनताबोध और उसके ही एक स्वरूप में विद्रोह तथा अन्य वर्गों के प्रति द्वेष और तिरस्कार की भावना पनप उठी है । इसमें उनका दोष नहीं है । विद्रोह की भावना जागना स्वाभाविक ही है। परन्तु इससे समाज का स्वास्थ्य खराब होता ही है समाज का स्वास्थ्य ठीक हो इस दृष्टि से सभी वर्गों के लिए उचित शिक्षा की व्यवस्था होना आवश्यक है। 
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# निर्माण का क्षेत्र कारीगरी का क्षेत्र है। कारीगरी की हर वस्तु में उत्कृष्टता शूद्रों के काम का लक्ष्य है। अतीत में अनेक वस्तुओं में उत्कृष्टता के श्रेष्ठतम नमूने हमने विश्व को दिये हैं इस बात का स्मरण हमने शूद्रों को कराना चाहिए। ऐसी कारीगरी की प्रेरणा भी देनी चाहिए।
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''३. आज की भाषा में कहें तो सर्व प्रकार का आवश्यक हैं ।''
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== कुछ सामान्य बातें ==
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# अब तक हमने चारों वर्गों की विशिष्ट शिक्षा की चर्चा की। फिर भी कुछ बातें ऐसी हैं जो चारों वर्णों के लिए समान हैं। उदाहरण के लिए वाचन और लेखन, सामान्य हिसाब, सामान्य शिष्टाचार, देश दुनिया की जानकारी सभी वर्गों की शिक्षा का अंग होना चाहिए।
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# सद्गुण और सदाचार की शिक्षा सभी वर्गों के लिए आवश्यक है। व्यक्तिगत जीवन की शुद्धता और पवित्रता, सार्वजनिक जीवन की नीतिमतता, सामाजिक दायित्वबोध, देशभक्ति, धर्मनिष्ठा, धर्म और संस्कृति का ज्ञान आदि बातें सभी वर्गों के लिए आवश्यक हैं।
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# ऐसा लग सकता है कि आज माध्यमिक स्तर तक की शिक्षा सबके लिए समान ही है । वह इस स्वरूप की हो सकती है। परन्तु हितकारी यह होगा कि चारों वर्गों की स्वतंत्र शिक्षा कि व्यवस्था हो और ये सारी बातें उसके साथ समरस बनाकर सिखाई जाएँ । ऐसा होने से अपने वर्ण की शिक्षा छोटी आयु से ही प्राप्त हो सकेगी । व्यक्ति के समुचित विकास के लिए यह आवश्यक है।
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# वर्ण के साथ आचार और व्यवसाय जुड़े हुए हैं। किसी भी व्यवसाय के साथ उस व्यवसाय की शिक्षा भी जुड़ी हुई होनी चाहिए। उस शिक्षा का शिशु अवस्था से लेकर उच्च शिक्षा तक की व्यवस्था उस व्यवसाय का ही अंग बननी चाहिए । अनुसन्धान भी उसका अंग होगा। इसका अर्थ यह हुआ कि हर व्यवसाय के गुरुकुल, या प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक के केंद्र एक स्थान पर ही होंगे । इस अर्थ में चारों वर्गों के लोग समान रूप से उच्च शिक्षित हो सकते हैं, अपने विषय का अध्यापन कर सकते हैं और अपने विषय में अनुसन्धान भी कर सकते हैं ।
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# यदि हम जन्म से वर्ण चाहते हैं तो बहुत समस्या नहीं है । परन्तु यदि हम जन्म से वर्ण नहीं चाहते हैं और अपना वर्ण स्वयं निश्चित करना चाहते हैं तो यह कार्य औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ होने से पूर्व करना चाहिए ताकि प्रारम्भ से ही अपने वर्ण के अनुरूप शिक्षा मिले । ध्यान यह रखना चाहिए कि हम दो वर्गों में एक साथ न रहें। जन्म से हम ब्राह्मण हैं और व्यवसाय हम वैश्य या शूद्र का कर रहे हैं तो दोनों वर्गों के लाभ लेना चाहेंगे और दोनों के बंधनों से मुक्त रहेंगे ऐसा नहीं हो सकता आज ऐसा ही हो रहा है इसलिए इस बात का विशेष उल्लेख करने की आवश्यकता लगती है।
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''इंजीनियरिंग, सर्व प्रकार के कारखाने, सड़क, पुल, हे. ऐसा लग सकता है कि आज माध्यमिक स्तर तक''
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''बांध आदि निर्माण करने के प्रकल्प शूद्रों के खाते में की शिक्षा सबके लिए समान ही है । वह इस स्वरूप''
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''ही जाएँगे। इन कामों के साथ जुड़ी हुई शिक्षा की हो सकती है । परन्तु हितकारी यह होगा कि''
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''संस्थायें भी शूद्रों के ही अधिकार में रहेंगी । चारों वर्णों की स्वतंत्र शिक्षा कि व्यवस्था हो और ये''
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''४. शूद्रों के साथ विगत दो सौ वर्षों से बहुत अन्याय सारी बातें उसके साथ समरस बनाकर सिखाई जाएँ ।''
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''और अत्याचार हुए हैं । समाज के ब्राह्मण आदि ऐसा होने से अपने वर्ण की शिक्षा छोटी आयु से ही''
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''तीनों वर्णों का यह अपराध है । परिणामस्वरूप शूद्रं प्राप्त हो सकेगी । व्यक्ति के समुचित विकास के लिए''
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''में एक ओर हीनताबोध और उसके ही एक स्वरूप में यह आवश्यक है |''
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''विद्रोह तथा अन्य वर्णों के प्रति ट्रेष और तिरस्कार x. वर्ण के साथ आचार और व्यवसाय जुड़े हुए हैं ।''
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''की भावना पनप उठी है । इसमें उनका दोष नहीं है । किसी भी व्यवसाय के साथ उस व्यवसाय की शिक्षा''
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''विद्रोह की भावना जागना स्वाभाविक ही है । परन्तु भी जुड़ी हुई होनी चाहिए । उस शिक्षा का शिशु''
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''इससे समाज का स्वास्थ्य खराब होता ही है । समाज अवस्था से लेकर उच्च शिक्षा तक की व्यवस्था उस''
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''का स्वास्थ्य ठीक हो इस दृष्टि से सभी वर्णों के लिए व्यवसाय का ही अंग बननी चाहिए । अनुसन्धान भी''
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''उचित शिक्षा की व्यवस्था होना आवश्यक है । उसका अंग होगा । इसका अर्थ यह हुआ कि हर''
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''५... निर्माण का क्षेत्र कारीगरी का क्षेत्र है । कारीगरी की व्यवसाय के गुरुकुल, या प्राथमिक से लेकर उच्च''
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''हर वस्तु में उत्कृष्टता शूद्रों के काम का लक्ष्य है । शिक्षा तक के केंद्र एक स्थान पर ही होंगे । इस अर्थ''
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''अतीत में अनेक वस्तुओं में उत्कृष्टता के श्रेष्ठतम में चारों वर्णों के लोग समान रूप से उच्च शिक्षित हो''
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''नमूने हमने विश्व को दिये हैं इस बात का स्मरण हमने सकते हैं, अपने विषय का अध्यापन कर सकते हैं''
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''शूद्रों को कराना चाहिए । ऐसी कारीगरी की प्रेरणा और अपने विषय में अनुसन्धान भी कर सकते हैं ।''
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''भी देनी चाहिए । ५... यदि हम जन्म से वर्ण चाहते हैं तो बहुत समस्या नहीं''
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''है। परन्तु यदि हम जन्म से वर्ण नहीं चाहते हैं और''
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== ''कुछ सामान्य बातें'' ==
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''अपना वर्ण स्वयं निश्चित करना चाहते हैं तो यह कार्य''
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''8. अबतक हमने चारों वर्णों की विशिष्ट शिक्षा की चर्चा औपचारिक शिक्षा प्रारम्भ होने से पूर्व करना चाहिए''
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''की । फिर भी कुछ बातें ऐसी हैं जो चारों वर्णों के ताकि प्रारम्भ से ही अपने वर्ण के अनुरूप शिक्षा''
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''लिए समान हैं । उदाहरण के लिए वाचन और मिले । ध्यान यह रखना चाहिए कि हम दो वर्ण में''
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''लेखन, सामान्य हिसाब, सामान्य शिष्टाचार, देश एक साथ न रहें। जन्म से हम ब्राह्मण हैं और''
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''दुनिया की जानकारी सभी वर्णों की शिक्षा का अंग व्यवसाय हम वैश्य या शूद्र का कर रहे हैं तो दोनों''
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''होना चाहिए। वर्णों के लाभ लेना चाहेंगे और दोनों के बंधनों से''
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''२... सदुण और सदाचार की शिक्षा सभी वर्णों के लिए मुक्त रहेंगे ऐसा नहीं हो सकता । आज ऐसा ही हो''
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''आवश्यक है । व्यक्तिगत जीवन की शुद्धता और रहा है इसलिए इस बात का विशेष उल्लेख करने की''
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''पवित्रता, _ सार्वजनिक जीवन की. नीतिमतता, आवश्यकता लगती है ।''
   
==References==
 
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<references />
 
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