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− | सौतिरुवाच
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− | मात्रा हि भुजगाः शप्ताः पूर्वं ब्रह्मविदां वर।
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− | जनमेजयस्य वो यज्ञे धक्ष्यत्यनिलसारथिः॥ 1-15-1
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− | तस्य शापस्य शान्त्यर्थं प्रददौ पन्नगोत्तमः। | + | सौतिरुवाच |
− | | + | मात्रा हि भुजगाः शप्ताः पूर्वं ब्रह्मविदां वर। |
− | स्वसारमृषये तस्मै सुव्रताय महात्मने॥ 1-15-2 | + | जनमेजयस्य वो यज्ञे धक्ष्यत्यनिलसारथिः॥ 1-15-1 |
− | | + | तस्य शापस्य शान्त्यर्थं प्रददौ पन्नगोत्तमः। |
− | स च तां प्रतिजग्राह विधिदृष्टेन कर्मणा। | + | स्वसारमृषये तस्मै सुव्रताय महात्मने॥ 1-15-2 |
− | | + | स च तां प्रतिजग्राह विधिदृष्टेन कर्मणा। |
− | आस्तीको नाम पुत्रश्च तस्यां जज्ञे महामनाः॥ 1-15-3 | + | आस्तीको नाम पुत्रश्च तस्यां जज्ञे महामनाः॥ 1-15-3 |
− | | + | तपस्वी च महात्मा च वेदवेदाङ्गपारगः। |
− | तपस्वी च महात्मा च वेदवेदाङ्गपारगः। | + | समः सर्वस्य लोकस्य पितृमातृभयापहः॥ 1-15-4 |
− | | + | अथ दीर्घस्य कालस्य पाण्डवेयो नराधिपः। |
− | समः सर्वस्य लोकस्य पितृमातृभयापहः॥ 1-15-4 | + | आजहार महायज्ञं सर्पसत्रमिति श्रुतिः॥ 1-15-5 |
− | | + | तस्मिन्प्रवृत्ते सत्रे तु सर्पाणामन्तकाय वै। |
− | अथ दीर्घस्य कालस्य पाण्डवेयो नराधिपः। | + | मोचयामास तान्नागानास्तीकः सुमहातपाः॥ 1-15-6 |
− | | + | भ्रातॄंश्च मातुलांश्चैव तथैवान्यान्स पन्नगान्। |
− | आजहार महायज्ञं सर्पसत्रमिति श्रुतिः॥ 1-15-5 | + | पितॄंश्च तारयामास संतत्या तपसा तथा॥ 1-15-7 |
− | | + | व्रतैश्च विविधैर्ब्रह्मन्स्वाध्यायैश्चानृणोऽभवत्। |
− | तस्मिन्प्रवृत्ते सत्रे तु सर्पाणामन्तकाय वै। | + | देवांश्च तर्पयामास यज्ञैर्विविधदक्षिणैः॥ 1-15-8 |
− | | + | ऋषींश्च ब्रह्मचर्येण संतत्या च पितामहान्। |
− | मोचयामास तान्नागानास्तीकः सुमहातपाः॥ 1-15-6 | + | अपहृत्य गुरुं भारं पितॄणां संशितव्रतः॥ 1-15-9 |
− | | + | जरत्कारुर्गतः स्वर्गं सहितः स्वैः पितामहैः। |
− | भ्रातॄंश्च मातुलांश्चैव तथैवान्यान्स पन्नगान्। | + | आस्तीकं च सुतं प्राप्य धर्मं चानुत्तमं मुनिः॥ 1-15-10 |
− | | + | जरत्कारुः सुमहता कालेन स्वर्गमेयिवान्। |
− | पितॄंश्च तारयामास संतत्या तपसा तथा॥ 1-15-7 | + | एतदाख्यानमास्तीकं यथावत्कथितं मया। |
− | | + | प्रब्रूहि भृगुशार्दूल किमन्यत्कथयामि ते॥ 1-15-11 |
− | व्रतैश्च विविधैर्ब्रह्मन्स्वाध्यायैश्चानृणोऽभवत्। | + | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सर्पाणां मातृशापप्रस्तावे पञ्चदशोऽध्यायः॥ 15 ॥ |
− | | + | [[:Category:Astika|''Astika'']] [[:Category:Birth of Astika|''Birth of Astika'']] [[:Category:Birth|''Birth'']] |
− | देवांश्च तर्पयामास यज्ञैर्विविधदक्षिणैः॥ 1-15-8 | + | [[:Category:Protection of Nagvansh|''Protection of Nagvansh'']] [[:Category:Protection|''Protection'']] |
− | | + | [[:Category:Nagvansh|''Nagvansh'']] |
− | ऋषींश्च ब्रह्मचर्येण संतत्या च पितामहान्। | + | [[:Category:आस्तीक|''आस्तीक'']] [[:Category:आस्तीकका जन्म|''आस्तीकका जन्म'']] [[:Category:नागवंश|''नागवंश'']] |
− | | + | [[:Category:नागवंशकी रक्षा|''नागवंशकी रक्षा'']] [[:Category:रक्षा|''रक्षा'']] |
− | अपहृत्य गुरुं भारं पितॄणां संशितव्रतः॥ 1-15-9 | |
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− | जरत्कारुर्गतः स्वर्गं सहितः स्वैः पितामहैः। | |
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− | आस्तीकं च सुतं प्राप्य धर्मं चानुत्तमं मुनिः॥ 1-15-10 | |
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− | जरत्कारुः सुमहता कालेन स्वर्गमेयिवान्। | |
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− | एतदाख्यानमास्तीकं यथावत्कथितं मया। | |
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− | प्रब्रूहि भृगुशार्दूल किमन्यत्कथयामि ते॥ 1-15-11 | |
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− | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि आस्तीकपर्वणि सर्पाणां मातृशापप्रस्तावे पञ्चदशोऽध्यायः॥ 15 ॥ | |