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− | सौतिरुवाच
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− | अग्नेरथ वचः श्रुत्वा तद्रक्षः प्रजहार ताम्।
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− | ब्रह्मन्वराहरूपेण मनोमारुतरंहसा॥ 1-6-1 | + | सौतिरुवाच |
− | | + | अग्नेरथ वचः श्रुत्वा तद्रक्षः प्रजहार ताम्। |
− | ततः स गर्भो निवसन्कुक्षौ भृगुकुलोद्वहः। | + | ब्रह्मन्वराहरूपेण मनोमारुतरंहसा॥ 1-6-1 |
− | | + | ततः स गर्भो निवसन्कुक्षौ भृगुकुलोद्वहः। |
− | रोषान्मातुश्च्युतः कुक्षेश्च्यवनस्तेन सोऽभवत्॥ 1-6-2 | + | रोषान्मातुश्च्युतः कुक्षेश्च्यवनस्तेन सोऽभवत्॥ 1-6-2 |
− | | + | तं दृष्ट्वा मातुरुदराच्च्युतमादित्यवर्चसम्। |
− | तं दृष्ट्वा मातुरुदराच्च्युतमादित्यवर्चसम्। | + | तद्रक्षो भस्मसाद्भूतं पपात परिमुच्य ताम्॥ 1-6-3 |
− | | + | सा तमादाय सुश्रोणी ससार भृगुनन्दनम्। |
− | तद्रक्षो भस्मसाद्भूतं पपात परिमुच्य ताम्॥ 1-6-3 | + | च्यवनं भार्गवं पुत्रं पुलोमा दुःखमूर्च्छिता॥ 1-6-4 |
− | | + | तां ददर्श स्वयं ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः। |
− | सा तमादाय सुश्रोणी ससार भृगुनन्दनम्। | + | रुदन्तीं बाष्पपूर्णाक्षीं भृगोर्भार्यामनिन्दिताम्॥ 1-6-5 |
− | | + | सान्त्वयामास भगवान्वधूं ब्रह्मा पितामहः। |
− | च्यवनं भार्गवं पुत्रं पुलोमा दुःखमूर्च्छिता॥ 1-6-4 | + | अश्रुबिन्दूद्भवा तस्याः प्रावर्तत महानदी॥ 1-6-6 |
− | | + | अनुवर्त्माश्रिता[आवर्तन्ती सृतिं] तस्या भृगोः पत्न्यास्तपस्विनः। |
− | तां ददर्श स्वयं ब्रह्मा सर्वलोकपितामहः। | + | तस्या मार्गं सृतवतीं दृष्ट्वा तु सरितं तदा॥ 1-6-7 |
− | | + | नाम तस्यास्तदा नद्याश्चक्रे लोकपितामहः। |
− | रुदन्तीं बाष्पपूर्णाक्षीं भृगोर्भार्यामनिन्दिताम्॥ 1-6-5 | + | वधूसरा इति भगवांश्च्यवनस्याश्रमं प्रति॥ 1-6-8 |
− | | + | स एवं च्यवनो जज्ञे भृगोः पुत्रः प्रतापवान्। |
− | सान्त्वयामास भगवान्वधूं ब्रह्मा पितामहः। | + | तं ददर्श पिता तत्र च्यवनं तां च भामिनीम्। |
− | | + | स पुलोमां ततो भार्यां पप्रच्छ कुपितो भृगुः॥ 1-6-9 |
− | अश्रुबिन्दूद्भवा तस्याः प्रावर्तत महानदी॥ 1-6-6 | + | भृगुः उवाच |
− | | + | केनासि रक्षसे तस्मै कथिता त्वं जिहीर्षते। |
− | अनुवर्त्माश्रिता[आवर्तन्ती सृतिं] तस्या भृगोः पत्न्यास्तपस्विनः। | + | न हि त्वां वेद तद्रक्षो मद्भार्यां चारुहासिनीम्॥ 1-6-10 |
− | | + | तत्त्वमाख्याहि तं ह्यद्य शप्तुमिच्छाम्यहं रुषा। |
− | तस्या मार्गं सृतवतीं दृष्ट्वा तु सरितं तदा॥ 1-6-7 | + | बिभेति को न शापान्मे कस्य चायं व्यतिक्रमः॥ 1-6-11 |
− | | + | पुलोमोवाच |
− | नाम तस्यास्तदा नद्याश्चक्रे लोकपितामहः। | + | अग्निना भगवंस्तस्मै रक्षसेऽहं निवेदिता। |
− | | + | ततो मामनयद्रक्षः क्रोशन्तीं कुररीमिव॥ 1-6-12 |
− | वधूसरा इति भगवांश्च्यवनस्याश्रमं प्रति॥ 1-6-8 | + | साहं तव सुतस्यास्य तेजसा परिमोक्षिता। |
− | | + | भस्मीभूतं च तद्रक्षो मामुत्सृज्य पपात वै॥ 1-6-13 |
− | स एवं च्यवनो जज्ञे भृगोः पुत्रः प्रतापवान्। | + | सौतिरुवाच |
− | | + | इति श्रुत्वा पुलोमाया भृगुः परममन्युमान्। |
− | तं ददर्श पिता तत्र च्यवनं तां च भामिनीम्। | + | शशापाग्निमतिक्रुद्धः सर्वभक्षो भविष्यसि॥ 1-6-14 |
− | | + | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि अग्निशापे षष्ठोऽध्यायः॥ 6 ॥ |
− | स पुलोमां ततो भार्यां पप्रच्छ कुपितो भृगुः॥ 1-6-9 | + | [[:Category:Chyavan|''Chyavan'']] [[:Category:Maharshi|''Maharshi'']] [[:Category:birth|''birth '']] |
− | | + | [[:Category:birth of Chyavan|''birth of Chyavan'']] [[:Category:curse|''curse'']] [[:Category:Agnidev|''Agnidev'']] |
− | भृगुः उवाच | + | [[:Category:curse of Agnidev|''curse of Agnidev'']] [[:Category:Agni|''Agni'']] |
− | | + | [[:Category:च्यवन|''च्यवन'']] [[:Category:च्यवनका जन्म|''च्यवन जन्म'']] [[:Category:महर्षि|''महर्षि'']] |
− | केनासि रक्षसे तस्मै कथिता त्वं जिहीर्षते। | + | [[:Category:भृगुका अग्निदेवको शाप|''भृगुका अग्निदेवको शाप'']] [[:Category:भृगु|''भृगु'']] |
− | | + | [[:Category:अग्निदेव|''भृगुका अग्निदेव'']] [[:Category:अग्नि|''अग्नि'']] [[:Category:शाप|''शाप'']] |
− | न हि त्वां वेद तद्रक्षो मद्भार्यां चारुहासिनीम्॥ 1-6-10 | |
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− | तत्त्वमाख्याहि तं ह्यद्य शप्तुमिच्छाम्यहं रुषा। | |
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− | बिभेति को न शापान्मे कस्य चायं व्यतिक्रमः॥ 1-6-11 | |
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− | पुलोमोवाच | |
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− | अग्निना भगवंस्तस्मै रक्षसेऽहं निवेदिता। | |
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− | ततो मामनयद्रक्षः क्रोशन्तीं कुररीमिव॥ 1-6-12 | |
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− | साहं तव सुतस्यास्य तेजसा परिमोक्षिता। | |
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− | भस्मीभूतं च तद्रक्षो मामुत्सृज्य पपात वै॥ 1-6-13 | |
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− | सौतिरुवाच | |
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− | इति श्रुत्वा पुलोमाया भृगुः परममन्युमान्। | |
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− | शशापाग्निमतिक्रुद्धः सर्वभक्षो भविष्यसि॥ 1-6-14 | |
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− | इति श्रीमहाभारते आदिपर्वणि पौलोमपर्वणि अग्निशापे षष्ठोऽध्यायः॥ 6 ॥ | |