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− | गते तु विदुरे राजन्नाश्रमं पाण्डवान्प्रति। | + | गते तु विदुरे राजन्नाश्रमं पाण्डवान्प्रति। |
− | | + | धृतराष्ट्रो महाप्राज्ञः पर्यतप्यत भारत॥ 3-6-1 |
− | धृतराष्ट्रो महाप्राज्ञः पर्यतप्यत भारत॥ 3-6-1 | + | विदुरस्य प्रभावं च सन्धिविग्रहकारितम्। |
− | | + | विवृद्धिं च परां मत्वा पाण्डवानां भविष्यति॥ 3-6-2 |
− | विदुरस्य प्रभावं च सन्धिविग्रहकारितम्। | + | स सभाद्वारमागम्य विदुरस्मारमोहितः। |
− | | + | समक्षं पार्थिवेन्द्राणां पपाताविष्टचेतनः॥ 3-6-3 |
− | विवृद्धिं च परां मत्वा पाण्डवानां भविष्यति॥ 3-6-2 | + | स तु लब्ध्वा पुनः संज्ञां समुत्थाय महीतलात्। |
− | | + | समीपोपस्थितं राजा सञ्जयं वाक्यमब्रवीत्॥ 3-6-4 |
− | स सभाद्वारमागम्य विदुरस्मारमोहितः। | + | भ्राता मम सुहृच्चैव साक्षाद्धर्म इवापरः। |
− | | + | तस्य स्मृत्याद्य सुभृशं हृदयं दीर्यतीव मे॥ 3-6-5 |
− | समक्षं पार्थिवेन्द्राणां पपाताविष्टचेतनः॥ 3-6-3 | + | तमानयस्व धर्मज्ञं मम भ्रातरमाशु वै। |
− | | + | इति ब्रुवन्स नृपतिः कृपणं पर्यदेवयत्॥ 3-6-6 |
− | स तु लब्ध्वा पुनः संज्ञां समुत्थाय महीतलात्। | + | पश्चात्तापाभिसन्तप्तो विदुरस्मारमोहितः। |
− | | + | भ्रातृस्नेहादिदं राजा सञ्जयं वाक्यमब्रवीत्॥ 3-6-7 |
− | समीपोपस्थितं राजा सञ्जयं वाक्यमब्रवीत्॥ 3-6-4 | + | गच्छ सञ्जय जानीहि भ्रातरं विदुरं मम। |
− | | + | यदि जीवति रोषेण मया पापेन निर्धुतः॥ 3-6-8 |
− | भ्राता मम सुहृच्चैव साक्षाद्धर्म इवापरः। | + | न हि तेन मम भ्रात्रा सुसूक्ष्ममपि किञ्चन। |
− | | + | व्यलीकं कृतपूर्वं वै प्राज्ञेनामितबुद्धिना॥ 3-6-9 |
− | तस्य स्मृत्याद्य सुभृशं हृदयं दीर्यतीव मे॥ 3-6-5 | + | स व्यलीकं परं प्राप्तो मत्तः परमबुद्धिमान्। |
− | | + | त्यक्ष्यामि जीवितं प्राज्ञ तं गच्छानय सञ्जय॥ 3-6-10 |
− | तमानयस्व धर्मज्ञं मम भ्रातरमाशु वै। | + | [[:Category:Dhrtarashtra and Vidura|''Dhrtarashtra and Vidura'']] |
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− | इति ब्रुवन्स नृपतिः कृपणं पर्यदेवयत्॥ 3-6-6 | |
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− | पश्चात्तापाभिसन्तप्तो विदुरस्मारमोहितः। | |
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− | भ्रातृस्नेहादिदं राजा सञ्जयं वाक्यमब्रवीत्॥ 3-6-7 | |
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− | गच्छ सञ्जय जानीहि भ्रातरं विदुरं मम। | |
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− | यदि जीवति रोषेण मया पापेन निर्धुतः॥ 3-6-8 | |
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− | न हि तेन मम भ्रात्रा सुसूक्ष्ममपि किञ्चन। | |
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− | व्यलीकं कृतपूर्वं वै प्राज्ञेनामितबुद्धिना॥ 3-6-9 | |
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− | स व्यलीकं परं प्राप्तो मत्तः परमबुद्धिमान्। | |
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− | त्यक्ष्यामि जीवितं प्राज्ञ तं गच्छानय सञ्जय॥ 3-6-10 | |
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| तस्य तद्वचनं श्रुत्वा राज्ञस्तमनुमान्य च। | | तस्य तद्वचनं श्रुत्वा राज्ञस्तमनुमान्य च। |