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| | | |
− | तस्य प्रज्ञाभिपन्नस्य विचित्रपदपर्वणः।
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− | सूक्ष्मार्थन्याययुक्तस्य वेदार्थैर्भूषितस्य च॥ 1-2-41 | + | तस्य प्रज्ञाभिपन्नस्य विचित्रपदपर्वणः। |
| + | सूक्ष्मार्थन्याययुक्तस्य वेदार्थैर्भूषितस्य च॥ 1-2-41 |
| + | भारतस्येतिहासस्य श्रूयतां पर्वसंग्रहः। |
| + | पर्वानुक्रमणी पूर्वं द्वितीयः पर्वसंग्रहः॥ 1-2-42 |
| + | पौष्यं पौलोममास्तीकमादिरंशावतारणम्। |
| + | ततः सम्भवपर्वोक्तमद्भुतं रोमहर्षणम्॥ 1-2-43 |
| + | दाहो जतुगृहस्यात्र हैडिम्बं पर्व चोच्यते। |
| + | ततो बकवधः पर्व पर्व चैत्ररथं ततः॥ 1-2-44 |
| + | ततः स्वयंवरो देव्याः पाञ्चाल्याः पर्व चोच्यते। |
| + | क्षात्रधर्मेण निर्जित्य ततो वैवाहिकं स्मृतम्॥ 1-2-45 |
| + | विदुरागमनं पर्व राज्यलम्भस्तथैव च। |
| + | अर्जुनस्य वने वासः सुभद्राहरणं ततः॥ 1-2-46 |
| + | सुभद्राहरणादूर्ध्वं ज्ञेयं[या] हरणहारिकम्[का]। |
| + | ततः खाण्डवदाहाख्यं तत्रैव मयदर्शनम्॥ 1-2-47 |
| + | सभापर्व ततः प्रोक्तं मन्त्रपर्व ततः परम्। |
| + | जरासन्धवधः पर्व पर्व दिग्विजयं तथा॥ 1-2-48 |
| + | पर्व दिग्विजयादूर्ध्वं राजसूयिकमुच्यते। |
| + | ततश्चार्घाभिहरणं शिशुपालवधस्ततः॥ 1-2-49 |
| + | द्यूतपर्व ततः प्रोक्तमनुद्यूतमतः परम्। |
| + | तत आरण्यकं पर्व किर्मीरवध एव च॥ 1-2-50 |
| + | अर्जुनस्याभिगमनं पर्व ज्ञेयमतः परम्। |
| + | ईश्वरार्जुनयोर्युद्धं पर्व कैरातसंज्ञितम्॥ 1-2-51 |
| + | इन्द्रलोकाभिगमनं पर्व ज्ञेयमतः परम्। |
| + | नलोपाख्यानमपि च धार्मिकं करुणोदयम्॥ 1-2-52 |
| + | तीर्थयात्रा ततः पर्व कुरुराजस्य धीमतः। |
| + | जटासुरवधः पर्व यक्षयुद्धमतः परम्॥ 1-2-53 |
| + | निवातकवचैर्युद्धं पर्व चाजगरं ततः। |
| + | मार्कण्डेयसमास्या च पर्वानन्तरमुच्यते॥ 1-2-54 |
| + | संवादश्च ततः पर्व द्रौपदीसत्यभामयोः। |
| + | घोषयात्रा ततः पर्व मृगस्वप्नोद्भवं ततः॥ 1-2-55 |
| + | मन्त्रस्य निश्चयं कृत्वा कार्यस्यापि विचिन्तनम्। |
| + | व्रीहिद्रौणिकमाख्यानमैन्द्रद्युम्नं तथैव च। |
| + | द्रौपदीहरणं पर्व जयद्रथविमोक्षणम्॥ 1-2-56 |
| + | पतिव्रताया माहात्म्यं सावित्र्याः चैवमद्भुतम्। |
| + | रामोपाख्यानमत्रैव पर्व ज्ञेयमतः परम्॥ 1-2-57 |
| + | कुण्डलाहरणं पर्व ततः परमिहोच्यते। |
| + | आरणेयं ततः पर्व वैराटं तदनन्तरम्॥ 1-2-58 |
| + | पाण्डवानां प्रवेशश्च समयस्य च पालनम्। |
| + | कीचकानां वधः पर्व पर्व गोग्रहणं ततः॥ 1-2-59 |
| + | अभिमन्योश्च वैराट्याः पर्व वैवाहिकं स्मृतम्। |
| + | उद्योगपर्व विज्ञेयमत ऊर्ध्वं महाद्भुतम्॥ 1-2-60 |
| + | ततः संजययानाख्यं पर्व ज्ञेयमतः परम्। |
| + | प्रजागरं तथा पर्व धृतराष्ट्रस्य चिन्तया॥ 1-2-61 |
| + | पर्व सानत्सुजातं वै गुह्यमध्यात्मदर्शनम्। |
| + | यानसन्धिस्ततः पर्व भगवद्यानमेव च॥ 1-2-62 |
| + | मातलीयमुपाख्यानं चरितं गालवस्य च। |
| + | सावित्रं वामदेव्यं च वैन्योपाख्यानमेव च॥ 1-2-63 |
| + | जामदग्न्यमुपाख्यानं पर्व षोडशराजकम्। |
| + | सभाप्रवेशः कृष्णस्य विदुलापुत्रशासनम्॥ 1-2-64 |
| + | उद्योगः सैन्यनिर्याणं विश्वोपाख्यानमेव च। |
| + | (ज्ञेयं विवादपर्वात्र कर्णस्यापि महात्मनः।) |
| + | मन्त्रस्य निश्चयं कृत्वा कार्यं समभिचिन्तयन्। |
| + | कीर्त्यते चाप्युपाख्यानं सैनापत्येऽभिषेचनम्। |
| + | श्वेतस्य वासुदेवेन चित्रं बहुकथाश्रयम्। |
| + | निर्याणं च ततः पर्व कुरुपाण्डवसेनयोः॥ 1-2-65 |
| + | रथातिरथसंख्या च पर्वोक्तं तदनन्तरम्। |
| + | उलूकदूतागमनं पर्वामर्षविवर्धनम्॥ 1-2-66 |
| + | अम्बोपाख्यानमत्रैव पर्व ज्ञेयमतः परम्। |
| + | भीष्माभिषेचनं पर्व ततश्चाद्भुतमुच्यते॥ 1-2-67 |
| + | जम्बूखण्डविनिर्माणं पर्वोक्तं तदनन्तरम्। |
| + | भूमिपर्व ततः प्रोक्तं द्वीपविस्तारकीर्तनम्॥ 1-2-68 |
| + | दिव्यं चक्षुर्ददौ यत्र संजयाय महानृषिः। |
| + | पर्वोक्तं भगवद्गीता पर्व भीष्मवधस्ततः। |
| + | द्रोणाभिषेचनं पर्व संशप्तकवधस्ततः॥ 1-2-69 |
| + | अभिमन्युवधः पर्व प्रतिज्ञापर्व चोच्यते। |
| + | जयद्रथवधः पर्व घटोत्कचवधस्ततः॥ 1-2-70 |
| + | ततो द्रोणवधः पर्व विज्ञेयं रो[लो]महर्षणम्। |
| + | मोक्षो नारायणास्त्रस्य पर्वानन्तरमुच्यते॥ 1-2-71 |
| + | कर्णपर्व ततो ज्ञेयं शल्यपर्व ततः परम्। |
| + | ह्रदप्रवेशनं पर्व गदायुद्धमतः परम्॥ 1-2-72 |
| + | सारस्वतं ततः पर्व तीर्थवंशानुकीर्तनम्। |
| + | अत ऊर्ध्वं तु बीभत्सं पर्व सौप्तिकमुच्यते॥ 1-2-73 |
| + | ऐषीकं पर्व चोद्दिष्टमत ऊर्ध्वं सुदारुणम्। |
| + | जलप्रदानिकं पर्व स्त्रीविलापस्ततः परम्॥ 1-2-74 |
| + | श्राद्धपर्व ततो ज्ञेयं कुरूणामौर्ध्वदै[दे]हिकम्। |
| + | चार्वाकनिग्रहः पर्व रक्षसो ब्रह्मरूपिणः॥ 1-2-75 |
| + | आभिषेचनिकं पर्व धर्मराजस्य धीमतः। |
| + | प्रविभागो गृहाणां च पर्वोक्तं तदनन्तरम्॥ 1-2-76 |
| + | शान्तिपर्व ततो यत्र राजधर्मानुशासनम्। |
| + | आपद्धर्मश्च पर्वोक्तं मोक्षधर्मस्ततः परम्॥ 1-2-77 |
| + | शुकप्रश्नाभिगमनं ब्रह्मप्रश्नानुशासनम्। |
| + | प्रादुर्भावश्च दुर्वासः संवादश्चैव मायया॥ 1-2-78 |
| + | ततः पर्व परिज्ञेयमानुशासनिकं परम्। |
| + | स्वर्गारोहणिकं चैव ततो भीष्मस्य धीमतः॥ 1-2-79 |
| + | ततोऽऽश्वमेधिकं पर्व सर्वपापप्रणाशनम्। |
| + | अनुगीता ततः पर्व ज्ञेयमध्यात्मवाचकम्॥ 1-2-80 |
| + | पर्व चाश्रमवासाख्यं पुत्रदर्शनमेव च। |
| + | नारदागमनं पर्व ततः परमिहोच्यते॥ 1-2-81 |
| + | मौसलं पर्व चोद्दिष्टं ततो घोरं सुदारुणम्। |
| + | महाप्रस्थानिकं पर्व स्वर्गारोहणिकं ततः॥ 1-2-82 |
| + | हरिवंशस्ततः पर्व पुराणं खिलसंज्ञितम्। |
| + | विष्णुपर्व शिशोश्चर्या विष्णोः कंसवधस्तथा॥ 1-2-83 |
| + | [[:Category:importance of mahabharata|''importance of mahabharata'']] [[:Category:index|''index'']] |
| + | [[:Category:chapters|''chapters'']] [[:Category:parv|''parv'']] [[:Category:sections|''sections'']] |
| + | [[:Category:महाभारत|''महाभारत'']] [[:Category:पर्वो|''पर्वो'']] [[:Category:संग्रह|''संग्रह'']] [[:Category:सूची|''सूची'']] |
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− | भारतस्येतिहासस्य श्रूयतां पर्वसंग्रहः।
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− | पर्वानुक्रमणी पूर्वं द्वितीयः पर्वसंग्रहः॥ 1-2-42
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− | पौष्यं पौलोममास्तीकमादिरंशावतारणम्।
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− | ततः सम्भवपर्वोक्तमद्भुतं रोमहर्षणम्॥ 1-2-43
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− | दाहो जतुगृहस्यात्र हैडिम्बं पर्व चोच्यते।
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− | ततो बकवधः पर्व पर्व चैत्ररथं ततः॥ 1-2-44
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| |
− | ततः स्वयंवरो देव्याः पाञ्चाल्याः पर्व चोच्यते।
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− | क्षात्रधर्मेण निर्जित्य ततो वैवाहिकं स्मृतम्॥ 1-2-45
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− | विदुरागमनं पर्व राज्यलम्भस्तथैव च।
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− | अर्जुनस्य वने वासः सुभद्राहरणं ततः॥ 1-2-46
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− | सुभद्राहरणादूर्ध्वं ज्ञेयं[या] हरणहारिकम्[का]।
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− | ततः खाण्डवदाहाख्यं तत्रैव मयदर्शनम्॥ 1-2-47
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− | सभापर्व ततः प्रोक्तं मन्त्रपर्व ततः परम्।
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− | जरासन्धवधः पर्व पर्व दिग्विजयं तथा॥ 1-2-48
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− | पर्व दिग्विजयादूर्ध्वं राजसूयिकमुच्यते।
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− | ततश्चार्घाभिहरणं शिशुपालवधस्ततः॥ 1-2-49
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− | द्यूतपर्व ततः प्रोक्तमनुद्यूतमतः परम्।
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− | तत आरण्यकं पर्व किर्मीरवध एव च॥ 1-2-50
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− | अर्जुनस्याभिगमनं पर्व ज्ञेयमतः परम्।
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− | ईश्वरार्जुनयोर्युद्धं पर्व कैरातसंज्ञितम्॥ 1-2-51
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− | इन्द्रलोकाभिगमनं पर्व ज्ञेयमतः परम्।
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− | नलोपाख्यानमपि च धार्मिकं करुणोदयम्॥ 1-2-52
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− | तीर्थयात्रा ततः पर्व कुरुराजस्य धीमतः।
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− | जटासुरवधः पर्व यक्षयुद्धमतः परम्॥ 1-2-53
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− | निवातकवचैर्युद्धं पर्व चाजगरं ततः।
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− | मार्कण्डेयसमास्या च पर्वानन्तरमुच्यते॥ 1-2-54
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− | संवादश्च ततः पर्व द्रौपदीसत्यभामयोः।
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− | घोषयात्रा ततः पर्व मृगस्वप्नोद्भवं ततः॥ 1-2-55
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− | मन्त्रस्य निश्चयं कृत्वा कार्यस्यापि विचिन्तनम्।
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− | व्रीहिद्रौणिकमाख्यानमैन्द्रद्युम्नं तथैव च।
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− | द्रौपदीहरणं पर्व जयद्रथविमोक्षणम्॥ 1-2-56
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− | पतिव्रताया माहात्म्यं सावित्र्याः चैवमद्भुतम्।
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− | रामोपाख्यानमत्रैव पर्व ज्ञेयमतः परम्॥ 1-2-57
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− | कुण्डलाहरणं पर्व ततः परमिहोच्यते।
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− | आरणेयं ततः पर्व वैराटं तदनन्तरम्॥ 1-2-58
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− | पाण्डवानां प्रवेशश्च समयस्य च पालनम्।
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− | कीचकानां वधः पर्व पर्व गोग्रहणं ततः॥ 1-2-59
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− | अभिमन्योश्च वैराट्याः पर्व वैवाहिकं स्मृतम्।
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− | उद्योगपर्व विज्ञेयमत ऊर्ध्वं महाद्भुतम्॥ 1-2-60
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− | ततः संजययानाख्यं पर्व ज्ञेयमतः परम्।
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− | प्रजागरं तथा पर्व धृतराष्ट्रस्य चिन्तया॥ 1-2-61
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− | पर्व सानत्सुजातं वै गुह्यमध्यात्मदर्शनम्।
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− | यानसन्धिस्ततः पर्व भगवद्यानमेव च॥ 1-2-62
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− | मातलीयमुपाख्यानं चरितं गालवस्य च।
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− | सावित्रं वामदेव्यं च वैन्योपाख्यानमेव च॥ 1-2-63
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− | जामदग्न्यमुपाख्यानं पर्व षोडशराजकम्।
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− | सभाप्रवेशः कृष्णस्य विदुलापुत्रशासनम्॥ 1-2-64
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− | उद्योगः सैन्यनिर्याणं विश्वोपाख्यानमेव च।
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− | (ज्ञेयं विवादपर्वात्र कर्णस्यापि महात्मनः।)
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− | मन्त्रस्य निश्चयं कृत्वा कार्यं समभिचिन्तयन्।
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− | कीर्त्यते चाप्युपाख्यानं सैनापत्येऽभिषेचनम्।
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− | श्वेतस्य वासुदेवेन चित्रं बहुकथाश्रयम्।
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− | निर्याणं च ततः पर्व कुरुपाण्डवसेनयोः॥ 1-2-65
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− | रथातिरथसंख्या च पर्वोक्तं तदनन्तरम्।
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− | उलूकदूतागमनं पर्वामर्षविवर्धनम्॥ 1-2-66
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− | अम्बोपाख्यानमत्रैव पर्व ज्ञेयमतः परम्।
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− | भीष्माभिषेचनं पर्व ततश्चाद्भुतमुच्यते॥ 1-2-67
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− | जम्बूखण्डविनिर्माणं पर्वोक्तं तदनन्तरम्।
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− | भूमिपर्व ततः प्रोक्तं द्वीपविस्तारकीर्तनम्॥ 1-2-68
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− | दिव्यं चक्षुर्ददौ यत्र संजयाय महानृषिः।
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− | पर्वोक्तं भगवद्गीता पर्व भीष्मवधस्ततः।
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− | द्रोणाभिषेचनं पर्व संशप्तकवधस्ततः॥ 1-2-69
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− | अभिमन्युवधः पर्व प्रतिज्ञापर्व चोच्यते।
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− | जयद्रथवधः पर्व घटोत्कचवधस्ततः॥ 1-2-70
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− | ततो द्रोणवधः पर्व विज्ञेयं रो[लो]महर्षणम्।
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− | मोक्षो नारायणास्त्रस्य पर्वानन्तरमुच्यते॥ 1-2-71
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− | कर्णपर्व ततो ज्ञेयं शल्यपर्व ततः परम्।
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− | ह्रदप्रवेशनं पर्व गदायुद्धमतः परम्॥ 1-2-72
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− | सारस्वतं ततः पर्व तीर्थवंशानुकीर्तनम्।
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− | अत ऊर्ध्वं तु बीभत्सं पर्व सौप्तिकमुच्यते॥ 1-2-73
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− | ऐषीकं पर्व चोद्दिष्टमत ऊर्ध्वं सुदारुणम्।
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− | जलप्रदानिकं पर्व स्त्रीविलापस्ततः परम्॥ 1-2-74
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− | श्राद्धपर्व ततो ज्ञेयं कुरूणामौर्ध्वदै[दे]हिकम्।
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− | चार्वाकनिग्रहः पर्व रक्षसो ब्रह्मरूपिणः॥ 1-2-75
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− | आभिषेचनिकं पर्व धर्मराजस्य धीमतः।
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− | प्रविभागो गृहाणां च पर्वोक्तं तदनन्तरम्॥ 1-2-76
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− | शान्तिपर्व ततो यत्र राजधर्मानुशासनम्।
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− | आपद्धर्मश्च पर्वोक्तं मोक्षधर्मस्ततः परम्॥ 1-2-77
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− | शुकप्रश्नाभिगमनं ब्रह्मप्रश्नानुशासनम्।
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− | प्रादुर्भावश्च दुर्वासः संवादश्चैव मायया॥ 1-2-78
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− | ततः पर्व परिज्ञेयमानुशासनिकं परम्।
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− | स्वर्गारोहणिकं चैव ततो भीष्मस्य धीमतः॥ 1-2-79
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− | ततोऽऽश्वमेधिकं पर्व सर्वपापप्रणाशनम्।
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− | अनुगीता ततः पर्व ज्ञेयमध्यात्मवाचकम्॥ 1-2-80
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− | पर्व चाश्रमवासाख्यं पुत्रदर्शनमेव च।
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− | नारदागमनं पर्व ततः परमिहोच्यते॥ 1-2-81
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− | मौसलं पर्व चोद्दिष्टं ततो घोरं सुदारुणम्।
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− | महाप्रस्थानिकं पर्व स्वर्गारोहणिकं ततः॥ 1-2-82
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− | हरिवंशस्ततः पर्व पुराणं खिलसंज्ञितम्।
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− | विष्णुपर्व शिशोश्चर्या विष्णोः कंसवधस्तथा॥ 1-2-83
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| भविष्यपर्व चाप्युक्तं खिलेष्वेवाद्भुतं महत्। | | भविष्यपर्व चाप्युक्तं खिलेष्वेवाद्भुतं महत्। |