Line 306: |
Line 306: |
| ससदस्यैः सहासीनः श्रावयामास भारतम्। | | ससदस्यैः सहासीनः श्रावयामास भारतम्। |
| कर्मान्तरेषु यज्ञस्य चोद्यमानः पुनः पुनः॥ 1-1-106 | | कर्मान्तरेषु यज्ञस्य चोद्यमानः पुनः पुनः॥ 1-1-106 |
− | [[:Category:Vyasdev|''Vyasdev'']] [[:Category:beget|''beget'']] [[:Category:Dhrtarashtra|''Dhrtarashtra'']] [[:Category:Pandu|''Pandu'']] [[:Category:Vidur|''Vidur'']] [[:Category:व्यासदेव|''व्यासदेव'']] [[:Category:तीन|''तीन'']] [[:Category:पुत्र|''पुत्र'']] [[:Category:धृतराष्ट्र|''धृतराष्ट्र'']] [[:Category:पाण्डु|''पाण्डु'']] [[:Category:विदुर|''विदुर'']] | + | [[:Category:Vyasdev|''Vyasdev'']] [[:Category:beget|''beget'']] [[:Category:Dhrtarashtra|''Dhrtarashtra'']] |
| + | [[:Category:Pandu|''Pandu'']] [[:Category:Vidur|''Vidur'']] [[:Category:व्यासदेव|''व्यासदेव'']] [[:Category:तीन|''तीन'']] |
| + | [[:Category:पुत्र|''पुत्र'']] [[:Category:धृतराष्ट्र|''धृतराष्ट्र'']] [[:Category:पाण्डु|''पाण्डु'']] [[:Category:विदुर|''विदुर'']] |
| | | |
| विस्तरं कुरुवंशस्य गान्धार्या धर्मशीलताम्। | | विस्तरं कुरुवंशस्य गान्धार्या धर्मशीलताम्। |
Line 318: |
Line 320: |
| ततोऽप्यर्धशतं भूयः संक्षेपं कृतवानृषिः। | | ततोऽप्यर्धशतं भूयः संक्षेपं कृतवानृषिः। |
| अनुक्रमणिकाध्यायं वृत्तानां[न्तं] सर्वपर्वणाम्॥ 1-1-111 | | अनुक्रमणिकाध्यायं वृत्तानां[न्तं] सर्वपर्वणाम्॥ 1-1-111 |
− | [[:Category:Mahabharata|''Mahabharata'']] [[:Category:Contents|''Contents'']] [[:Category:महाभारत|''महाभारत'']] [[:Category:विषय|''विषय'']] [[:Category:महाभारतके विषय|''महाभारतके विषय'']] | + | [[:Category:Mahabharata|''Mahabharata'']] [[:Category:Contents|''Contents'']] [[:Category:महाभारत|''महाभारत'']] |
| + | [[:Category:विषय|''विषय'']] [[:Category:महाभारतके विषय|''महाभारतके विषय'']] |
| | | |
| इदं द्वैपायनः पूर्वं पुत्रमध्यापयच्छुकम्। | | इदं द्वैपायनः पूर्वं पुत्रमध्यापयच्छुकम्। |
| ततोऽन्येभ्योऽनुरूपेभ्यः शिष्येभ्यः प्रददौ विभुः॥ 1-1-112 | | ततोऽन्येभ्योऽनुरूपेभ्यः शिष्येभ्यः प्रददौ विभुः॥ 1-1-112 |
− | [[:Category:Vyasdev|''Vyasdev'']] [[:Category:teaches|''teaches'']] [[:Category:Mahabharata|''Mahabharata'']] [[:Category:Sukhdev|''Sukhdev'']] [[:Category:Goswami|''Goswami'']] [[:Category:Sukhdev Goswami|''Sukhdev Goswami'']] [[:Category:व्यासदेव|''व्यासदेव'']] [[:Category:सुखदेव|''सुखदेव'']] [[:Category:गोस्वामी|''गोस्वामी'']] [[:Category:सुखदेव गोस्वामी|''सुखदेव गोस्वामी'']] | + | [[:Category:Vyasdev|''Vyasdev'']] [[:Category:teaches|''teaches'']] [[:Category:Mahabharata|''Mahabharata'']] |
| + | [[:Category:Sukhdev|''Sukhdev'']] [[:Category:Goswami|''Goswami'']] [[:Category:Sukhdev Goswami|''Sukhdev Goswami'']] |
| + | [[:Category:व्यासदेव|''व्यासदेव'']] [[:Category:सुखदेव|''सुखदेव'']] [[:Category:गोस्वामी|''गोस्वामी'']] [[:Category:सुखदेव गोस्वामी|''सुखदेव गोस्वामी'']] |
| | | |
| षष्टिं शतसहस्राणि चकारान्यां स संहिताम्। | | षष्टिं शतसहस्राणि चकारान्यां स संहिताम्। |
Line 417: |
Line 422: |
| | | |
| | | |
− | अन्वजानात्ततो द्यूतं धृतराष्ट्रः सुतप्रियः॥ 1-1-144 | + | अन्वजानात्ततो द्यूतं धृतराष्ट्रः सुतप्रियः॥ 1-1-144 |
| + | तच्छ्रुत्वा वासुदेवस्य कोपः समभवन्महान्। |
| + | [[:Category:gambling|''gambling'']] [[:Category:match|''match'']] [[:Category:invite|''invite'']] |
| + | [[:Category:gambling match invite|''gambling match invite'']] |
| + | [[:Category:पांडवोके साथ जुआ|''पांडवोके साथ जुआ'']] [[:Category:जुआ|''जुआ'']] [[:Category:मैच|''मैच'']] |
| | | |
− | तच्छ्रुत्वा वासुदेवस्य कोपः समभवन्महान्।
| |
| | | |
| नातिप्रीतमनाश्चासीद्विवादांश्चान्वमोदत॥ 1-1-145 | | नातिप्रीतमनाश्चासीद्विवादांश्चान्वमोदत॥ 1-1-145 |