| Line 449: |
Line 449: |
| | [[:Category:Pandavas|''Pandavas'']] [[:Category:Birth|''Birth'']] [[:Category:Birth of Pandavas|''Birth of Pandavas'']] | | [[:Category:Pandavas|''Pandavas'']] [[:Category:Birth|''Birth'']] [[:Category:Birth of Pandavas|''Birth of Pandavas'']] |
| | [[:Category:पांण्डवोंका जन्म|''पांण्डवोंका जन्म'']] [[:Category:पाण्डव|''पाण्डव'']] [[:Category:जन्म|''जन्म'']] | | [[:Category:पांण्डवोंका जन्म|''पांण्डवोंका जन्म'']] [[:Category:पाण्डव|''पाण्डव'']] [[:Category:जन्म|''जन्म'']] |
| | + | |
| | + | |
| | + | पुत्राश्च भ्रातरश्चेमे शिष्याश्च सुहृदश्च वः॥ 1-1-123 |
| | + | पाण्डवा एत इत्युक्त्वा मुनयोऽन्तर्हितास्ततः। |
| | + | तांस्तैर्निवेदितान्दृष्ट्वा पाण्डवान्कौरवास्तदा॥ 1-1-124 |
| | + | शिष्टाश्च वर्णाः पौरा ये ते हर्षाच्चुक्रुशुर्भृशम्। |
| | + | आहुः केचिन्न तस्यैते तस्यैत इति चापरे॥ 1-1-125 |
| | + | यदा चिरमृतः पाण्डुः कथं तस्येति चापरे। |
| | + | स्वागतं सर्वथा दिष्ट्या पाण्डोः पश्याम संततिम्॥ 1-1-126 |
| | + | उच्यतां स्वागतमिति वाचोऽश्रूयन्त सर्वशः। |
| | + | तस्मिन्नुपरते शब्दे दिशः सर्वा निनादयन्॥ 1-1-127 |
| | + | अन्तर्हितानां भूतानां निःस्वनस्तुमुलोऽभवत्। |
| | + | पुष्पवृष्टिः शुभा गन्धाः शङ्खदुन्दुभिनिःस्वनाः॥ 1-1-128 |
| | + | आसन्प्रवेशे पार्थानां तदद्भुतमिवाभवत्। |
| | + | तत्प्रीत्या चैव सर्वेषां पौराणां हर्षसम्भवः॥ 1-1-129 |
| | + | शब्द आसीन्महांस्तत्र दिवःस्पृक्कीर्तिवर्धनः। |
| | + | तेऽधीत्य निखिलान्वेदाञ्छास्त्राणि विविधानि च॥ 1-1-130 |
| | + | न्यवसन्पाण्डवास्तत्र पूजिता अकुतोभयाः। |
| | + | युधिष्ठिरस्य शीले[शौचे]न प्रीताः प्रकृतयोऽभवन्॥ 1-1-131 |
| | + | धृत्या च भीमसेनस्य विक्रमेणार्जुनस्य च। |
| | + | गुरुशुश्रूषया कु[क्षा]न्त्या यमयोर्विनयेन च॥ 1-1-132 |
| | [[:Category:Pandavas|''Pandavas'']] [[:Category:welcome|''welcome'']] [[:Category:kurus|''kurus'']] | | [[:Category:Pandavas|''Pandavas'']] [[:Category:welcome|''welcome'']] [[:Category:kurus|''kurus'']] |
| | [[:Category:kurus welcome Pandavas |''kurus welcome Pandavas'']] [[:Category:पांण्डवोंका स्वागत|''पांण्डवोंका स्वागत'']] | | [[:Category:kurus welcome Pandavas |''kurus welcome Pandavas'']] [[:Category:पांण्डवोंका स्वागत|''पांण्डवोंका स्वागत'']] |
| | [[:Category:कुरु|''कुरु'']] [[:Category:प्रजा|''प्रजा'']] | | [[:Category:कुरु|''कुरु'']] [[:Category:प्रजा|''प्रजा'']] |
| | | | |
| − |
| |
| − | पुत्राश्च भ्रातरश्चेमे शिष्याश्च सुहृदश्च वः॥ 1-1-123
| |
| − |
| |
| − | पाण्डवा एत इत्युक्त्वा मुनयोऽन्तर्हितास्ततः।
| |
| − |
| |
| − | तांस्तैर्निवेदितान्दृष्ट्वा पाण्डवान्कौरवास्तदा॥ 1-1-124
| |
| − |
| |
| − | शिष्टाश्च वर्णाः पौरा ये ते हर्षाच्चुक्रुशुर्भृशम्।
| |
| − |
| |
| − | आहुः केचिन्न तस्यैते तस्यैत इति चापरे॥ 1-1-125
| |
| − |
| |
| − | यदा चिरमृतः पाण्डुः कथं तस्येति चापरे।
| |
| − |
| |
| − | स्वागतं सर्वथा दिष्ट्या पाण्डोः पश्याम संततिम्॥ 1-1-126
| |
| − |
| |
| − | उच्यतां स्वागतमिति वाचोऽश्रूयन्त सर्वशः।
| |
| − |
| |
| − | तस्मिन्नुपरते शब्दे दिशः सर्वा निनादयन्॥ 1-1-127
| |
| − |
| |
| − | अन्तर्हितानां भूतानां निःस्वनस्तुमुलोऽभवत्।
| |
| − |
| |
| − | पुष्पवृष्टिः शुभा गन्धाः शङ्खदुन्दुभिनिःस्वनाः॥ 1-1-128
| |
| − |
| |
| − | आसन्प्रवेशे पार्थानां तदद्भुतमिवाभवत्।
| |
| − |
| |
| − | तत्प्रीत्या चैव सर्वेषां पौराणां हर्षसम्भवः॥ 1-1-129
| |
| − |
| |
| − | शब्द आसीन्महांस्तत्र दिवःस्पृक्कीर्तिवर्धनः।
| |
| − |
| |
| − | तेऽधीत्य निखिलान्वेदाञ्छास्त्राणि विविधानि च॥ 1-1-130
| |
| − |
| |
| − | न्यवसन्पाण्डवास्तत्र पूजिता अकुतोभयाः।
| |
| − |
| |
| − | युधिष्ठिरस्य शीले[शौचे]न प्रीताः प्रकृतयोऽभवन्॥ 1-1-131
| |
| − |
| |
| − | धृत्या च भीमसेनस्य विक्रमेणार्जुनस्य च।
| |
| − |
| |
| − | गुरुशुश्रूषया कु[क्षा]न्त्या यमयोर्विनयेन च॥ 1-1-132
| |
| | | | |
| | तुतोष लोकः सकलस्तेषां शौर्यगुणेन च। | | तुतोष लोकः सकलस्तेषां शौर्यगुणेन च। |