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| + | पुत्राश्च भ्रातरश्चेमे शिष्याश्च सुहृदश्च वः॥ 1-1-123 |
| + | पाण्डवा एत इत्युक्त्वा मुनयोऽन्तर्हितास्ततः। |
| + | तांस्तैर्निवेदितान्दृष्ट्वा पाण्डवान्कौरवास्तदा॥ 1-1-124 |
| + | शिष्टाश्च वर्णाः पौरा ये ते हर्षाच्चुक्रुशुर्भृशम्। |
| + | आहुः केचिन्न तस्यैते तस्यैत इति चापरे॥ 1-1-125 |
| + | यदा चिरमृतः पाण्डुः कथं तस्येति चापरे। |
| + | स्वागतं सर्वथा दिष्ट्या पाण्डोः पश्याम संततिम्॥ 1-1-126 |
| + | उच्यतां स्वागतमिति वाचोऽश्रूयन्त सर्वशः। |
| + | तस्मिन्नुपरते शब्दे दिशः सर्वा निनादयन्॥ 1-1-127 |
| + | अन्तर्हितानां भूतानां निःस्वनस्तुमुलोऽभवत्। |
| + | पुष्पवृष्टिः शुभा गन्धाः शङ्खदुन्दुभिनिःस्वनाः॥ 1-1-128 |
| + | आसन्प्रवेशे पार्थानां तदद्भुतमिवाभवत्। |
| + | तत्प्रीत्या चैव सर्वेषां पौराणां हर्षसम्भवः॥ 1-1-129 |
| + | शब्द आसीन्महांस्तत्र दिवःस्पृक्कीर्तिवर्धनः। |
| + | तेऽधीत्य निखिलान्वेदाञ्छास्त्राणि विविधानि च॥ 1-1-130 |
| + | न्यवसन्पाण्डवास्तत्र पूजिता अकुतोभयाः। |
| + | युधिष्ठिरस्य शीले[शौचे]न प्रीताः प्रकृतयोऽभवन्॥ 1-1-131 |
| + | धृत्या च भीमसेनस्य विक्रमेणार्जुनस्य च। |
| + | गुरुशुश्रूषया कु[क्षा]न्त्या यमयोर्विनयेन च॥ 1-1-132 |
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− | पुत्राश्च भ्रातरश्चेमे शिष्याश्च सुहृदश्च वः॥ 1-1-123
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− | पाण्डवा एत इत्युक्त्वा मुनयोऽन्तर्हितास्ततः।
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− | तांस्तैर्निवेदितान्दृष्ट्वा पाण्डवान्कौरवास्तदा॥ 1-1-124
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− | शिष्टाश्च वर्णाः पौरा ये ते हर्षाच्चुक्रुशुर्भृशम्।
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− | आहुः केचिन्न तस्यैते तस्यैत इति चापरे॥ 1-1-125
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− | यदा चिरमृतः पाण्डुः कथं तस्येति चापरे।
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− | स्वागतं सर्वथा दिष्ट्या पाण्डोः पश्याम संततिम्॥ 1-1-126
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− | उच्यतां स्वागतमिति वाचोऽश्रूयन्त सर्वशः।
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− | तस्मिन्नुपरते शब्दे दिशः सर्वा निनादयन्॥ 1-1-127
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− | अन्तर्हितानां भूतानां निःस्वनस्तुमुलोऽभवत्।
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− | पुष्पवृष्टिः शुभा गन्धाः शङ्खदुन्दुभिनिःस्वनाः॥ 1-1-128
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− | आसन्प्रवेशे पार्थानां तदद्भुतमिवाभवत्।
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− | तत्प्रीत्या चैव सर्वेषां पौराणां हर्षसम्भवः॥ 1-1-129
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− | शब्द आसीन्महांस्तत्र दिवःस्पृक्कीर्तिवर्धनः।
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− | तेऽधीत्य निखिलान्वेदाञ्छास्त्राणि विविधानि च॥ 1-1-130
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− | न्यवसन्पाण्डवास्तत्र पूजिता अकुतोभयाः।
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− | युधिष्ठिरस्य शीले[शौचे]न प्रीताः प्रकृतयोऽभवन्॥ 1-1-131
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− | धृत्या च भीमसेनस्य विक्रमेणार्जुनस्य च।
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− | गुरुशुश्रूषया कु[क्षा]न्त्या यमयोर्विनयेन च॥ 1-1-132
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| तुतोष लोकः सकलस्तेषां शौर्यगुणेन च। | | तुतोष लोकः सकलस्तेषां शौर्यगुणेन च। |