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| हिरण्यगर्भमासीनं तस्मिंस्तु परमासने॥ 1-1-65 | | हिरण्यगर्भमासीनं तस्मिंस्तु परमासने॥ 1-1-65 |
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| परिवृत्यासनाभ्याशे वासवेयः स्थितोऽभवत्। | | परिवृत्यासनाभ्याशे वासवेयः स्थितोऽभवत्। |
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| अनुज्ञातोऽथ कृष्णस्तु ब्रह्मणा परमेष्ठिना॥ 1-1-66 | | अनुज्ञातोऽथ कृष्णस्तु ब्रह्मणा परमेष्ठिना॥ 1-1-66 |
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| निषसादासनाभ्याशे प्रीयमाणः सुवि[शुचि]स्मितः। | | निषसादासनाभ्याशे प्रीयमाणः सुवि[शुचि]स्मितः। |
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| उवाच स महातेजा ब्रह्माणं परमेष्ठिनम्॥ 1-1-67 | | उवाच स महातेजा ब्रह्माणं परमेष्ठिनम्॥ 1-1-67 |
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| कृतं मयेदं भगवन्काव्यं परमपूजितम्। | | कृतं मयेदं भगवन्काव्यं परमपूजितम्। |
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| ब्रह्मन्वेदरहस्यं च यच्चाप्यभिहितं[यच्चान्यत्स्थापितं] मया॥ 1-1-68 | | ब्रह्मन्वेदरहस्यं च यच्चाप्यभिहितं[यच्चान्यत्स्थापितं] मया॥ 1-1-68 |
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| साङ्गोपनिषदां चैव वेदानां विस्तरक्रिया। | | साङ्गोपनिषदां चैव वेदानां विस्तरक्रिया। |
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| इतिहासपुराणानामुन्मेषं निर्मितं च यत्॥ 1-1-69 | | इतिहासपुराणानामुन्मेषं निर्मितं च यत्॥ 1-1-69 |
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| भूतं भव्यं भविष्यं च त्रिविधं कालसंज्ञितम्। | | भूतं भव्यं भविष्यं च त्रिविधं कालसंज्ञितम्। |
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| जरामृत्युभयव्याधिभावाभावविनिश्चयः॥ 1-1-70 | | जरामृत्युभयव्याधिभावाभावविनिश्चयः॥ 1-1-70 |
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| विविधस्य च धर्मस्य ह्याश्रमाणां च लक्षणम्। | | विविधस्य च धर्मस्य ह्याश्रमाणां च लक्षणम्। |
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| चातुर्वर्ण्यविधानं च पुराणानां च कृत्स्नशः॥ 1-1-71 | | चातुर्वर्ण्यविधानं च पुराणानां च कृत्स्नशः॥ 1-1-71 |
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| तपसो ब्रह्मचर्यस्य पृथिव्याश्चन्द्रसूर्ययोः। | | तपसो ब्रह्मचर्यस्य पृथिव्याश्चन्द्रसूर्ययोः। |
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| ग्रहनक्षत्रताराणां प्रमाणं च युगैः सह॥ 1-1-72 | | ग्रहनक्षत्रताराणां प्रमाणं च युगैः सह॥ 1-1-72 |
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| ऋचो यजूंषि सामानि वेदाध्यात्मं तथैव च। | | ऋचो यजूंषि सामानि वेदाध्यात्मं तथैव च। |
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| न्यायशिक्षाचिकित्सा च ज्ञा[दा]नं पाशुपतं तथा॥ 1-1-73 | | न्यायशिक्षाचिकित्सा च ज्ञा[दा]नं पाशुपतं तथा॥ 1-1-73 |
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| इत्यनेकाश्रयं[हेतुनैव समं] जन्म दिव्यमानुषसंश्रि[ज्ञि]तम्। | | इत्यनेकाश्रयं[हेतुनैव समं] जन्म दिव्यमानुषसंश्रि[ज्ञि]तम्। |
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| तीर्थानां चैव पुण्यानां देशानां चैव कीर्तनम्॥ 1-1-74 | | तीर्थानां चैव पुण्यानां देशानां चैव कीर्तनम्॥ 1-1-74 |
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| नदीनां पर्वतानां च वनानां सागरस्य च। | | नदीनां पर्वतानां च वनानां सागरस्य च। |
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| पुराणां चैव दिव्यानां कल्पानां युद्धकौशलम्॥ 1-1-75 | | पुराणां चैव दिव्यानां कल्पानां युद्धकौशलम्॥ 1-1-75 |
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| वाक्यजातिविशेषाश्च लोकयात्राक्रमश्च यः। | | वाक्यजातिविशेषाश्च लोकयात्राक्रमश्च यः। |
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| यच्चापि सर्वगं वस्तु तच्चैव प्रतिपादितम्॥ 1-1-76 | | यच्चापि सर्वगं वस्तु तच्चैव प्रतिपादितम्॥ 1-1-76 |
| + | परं न लेखकः कश्चिदेतस्य भुवि विद्यते। |
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− | परं न लेखकः कश्चिदेतस्य भुवि विद्यते।
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| ब्रह्मोवाच तपोविशिष्टादपि वै वशिष्ठान्मु[विशिष्टान्मु]निसंचयात्॥ 1-1-77 | | ब्रह्मोवाच तपोविशिष्टादपि वै वशिष्ठान्मु[विशिष्टान्मु]निसंचयात्॥ 1-1-77 |