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| तमाश्रममनुप्राप्तं नैमिशारण्यवासिनाम्। | | तमाश्रममनुप्राप्तं नैमिशारण्यवासिनाम्। |
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− | सुखासीनं ततस्तं ते[तु] विश्रान्तमुपलक्ष्य च। | + | सुखासीनं ततस्तं ते[तु] विश्रान्तमुपलक्ष्य च। |
− | अथापृच्छदृषिस्तत्र काश्चित्प्रस्तावयन्कथाः॥ 1-1-6 | + | अथापृच्छदृषिस्तत्र काश्चित्प्रस्तावयन्कथाः॥ 1-1-6 |
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| कालः कमलपत्राक्ष शंसैतत्पृच्छतो मम॥ 1-1-7 | | कालः कमलपत्राक्ष शंसैतत्पृच्छतो मम॥ 1-1-7 |
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− | एवं पृष्टोऽब्रवीत्सम्यग्यथावद्रौ[ल्लौ]महर्षणिः। | + | एवं पृष्टोऽब्रवीत्सम्यग्यथावद्रौ[ल्लौ]महर्षणिः। |
− | वाक्यं वचनसम्पन्नस्तेषां च चरिताश्रयम्॥ 1-1-8 | + | वाक्यं वचनसम्पन्नस्तेषां च चरिताश्रयम्॥ 1-1-8 |
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− | तस्मिन्सदसि विस्तीर्णे मुनीनां भावितात्मनाम्। | + | तस्मिन्सदसि विस्तीर्णे मुनीनां भावितात्मनाम्। |
− | सौतिरुवाच | + | सौतिरुवाच जनमेजयस्य राजर्षेः सर्पसत्रे महात्मनः॥ 1-1-9 |
− | जनमेजयस्य राजर्षेः सर्पसत्रे महात्मनः॥ 1-1-9 | + | समीपे पार्थिवेन्द्रस्य सम्यक्पारिक्षितस्य च। |
− | समीपे पार्थिवेन्द्रस्य सम्यक्पारिक्षितस्य च। | + | कृष्णद्वैपायनप्रोक्ताः सुपुण्या विविधाः कथाः॥ 1-1-10 |
− | कृष्णद्वैपायनप्रोक्ताः सुपुण्या विविधाः कथाः॥ 1-1-10 | + | कथिताश्चापि विधिवद्या वैशम्पायनेन वै। |
− | कथिताश्चापि विधिवद्या वैशम्पायनेन वै। | + | श्रुत्वाहं ता विचित्रार्था महाभारतसंश्रिताः॥ 1-1-11 |
− | श्रुत्वाहं ता विचित्रार्था महाभारतसंश्रिताः॥ 1-1-11 | |
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| बहूनि सम्परिक्रम्य तीर्थान्यायतनानि च। | | बहूनि सम्परिक्रम्य तीर्थान्यायतनानि च। |
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| इति वृत्तं नरेन्द्राणामृषीणां च महात्मनाम्। | | इति वृत्तं नरेन्द्राणामृषीणां च महात्मनाम्। |
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− | ऋषय ऊचुः | + | ऋषय ऊचुः द्वैपायनेन यत्प्रोक्तं पुराणं परमर्षिणा॥ 1-1-17 |
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− | द्वैपायनेन यत्प्रोक्तं पुराणं परमर्षिणा॥ 1-1-17 | |
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| सुरैर्ब्रह्मर्षिभिश्चैव श्रुत्वा यदभिपूजितम्। | | सुरैर्ब्रह्मर्षिभिश्चैव श्रुत्वा यदभिपूजितम्। |
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| संहितां श्रोतुमिच्छामः पुण्यां पापभयापहाम्। | | संहितां श्रोतुमिच्छामः पुण्यां पापभयापहाम्। |
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− | सौतिरुवाच | + | सौतिरुवाच आद्यं पुरुषमीशानं पुरुहूतं पुरुष्टुतम्॥ 1-1-22 |
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− | आद्यं पुरुषमीशानं पुरुहूतं पुरुष्टुतम्॥ 1-1-22 | |
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| ऋतमेकाक्षरं ब्रह्म व्यक्ताव्यक्तं सनातनम्। | | ऋतमेकाक्षरं ब्रह्म व्यक्ताव्यक्तं सनातनम्। |
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| परं न लेखकः कश्चिदेतस्य भुवि विद्यते। | | परं न लेखकः कश्चिदेतस्य भुवि विद्यते। |
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− | ब्रह्मोवाच | + | ब्रह्मोवाच तपोविशिष्टादपि वै वशिष्ठान्मु[विशिष्टान्मु]निसंचयात्॥ 1-1-77 |
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− | तपोविशिष्टादपि वै वशिष्ठान्मु[विशिष्टान्मु]निसंचयात्॥ 1-1-77 | |
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| मन्ये श्रेष्ठतरं त्वां वै रहस्यज्ञानवेदनात्। | | मन्ये श्रेष्ठतरं त्वां वै रहस्यज्ञानवेदनात्। |
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| काव्यस्य लेखनार्थाय गणेशः स्मर्यतां मुने॥ 1-1-80 | | काव्यस्य लेखनार्थाय गणेशः स्मर्यतां मुने॥ 1-1-80 |
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− | सौतिरुवाच | + | सौतिरुवाच एवमाभाष्य तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्। |
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− | एवमाभाष्य तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्। | |
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| ततः सस्मार हेरम्बं व्यासः सत्यवतीसुतः॥ 1-1-81 | | ततः सस्मार हेरम्बं व्यासः सत्यवतीसुतः॥ 1-1-81 |
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| पर्जन्य इव भूतानामाश्र[मक्ष]यो भारतद्रुमः। | | पर्जन्य इव भूतानामाश्र[मक्ष]यो भारतद्रुमः। |
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− | सौतिरुवाच | + | सौतिरुवाच एवमाभाष्यं तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्। |
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− | @एवमाभाष्यं तं ब्रह्मा जगाम स्वं निवेशनम्।
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| भगवान्स जगत्स्रष्टा ऋषिर्देवगणैस्सह॥@ | | भगवान्स जगत्स्रष्टा ऋषिर्देवगणैस्सह॥@ |
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| संज्ञां नोपलभे सूत मनो विह्वलतीव मे॥ 1-1-224 | | संज्ञां नोपलभे सूत मनो विह्वलतीव मे॥ 1-1-224 |
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− | सौतिरुवाच | + | सौतिरुवाच इत्युक्त्वा धृतराष्ट्रोऽथ विलप्य बहुदुःखितः। |
− | | |
− | इत्युक्त्वा धृतराष्ट्रोऽथ विलप्य बहुदुःखितः। | |
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| मूर्च्छितः पुनराश्वस्तः संजयं वाक्यमब्रवीत्॥ 1-1-225 | | मूर्च्छितः पुनराश्वस्तः संजयं वाक्यमब्रवीत्॥ 1-1-225 |
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− | धृतराष्ट्र उवाच | + | धृतराष्ट्र उवाच संजयैवं गते प्राणांस्त्यक्तुमिच्छामि मा चिरम्। |
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− | संजयैवं गते प्राणांस्त्यक्तुमिच्छामि मा चिरम्। | |
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| स्तोकं ह्यपि न पश्यामि फलं जीवितधारणे॥ 1-1-226 | | स्तोकं ह्यपि न पश्यामि फलं जीवितधारणे॥ 1-1-226 |
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− | सौतिरुवाच | + | सौतिरुवाच तं तथावादिनं दीनं विलपन्तं महीपतिम्। |
− | | |
− | तं तथावादिनं दीनं विलपन्तं महीपतिम्। | |
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| निःश्वसन्तं यथा नागं मुह्यमानं पुनः पुनः। | | निःश्वसन्तं यथा नागं मुह्यमानं पुनः पुनः। |
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| गावल्गणिरिदं धीमान्महार्थं वाक्यमब्रवीत्॥ 1-1-227 | | गावल्गणिरिदं धीमान्महार्थं वाक्यमब्रवीत्॥ 1-1-227 |
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− | संजय उवाच | + | संजय उवाच श्रुतवानसि वै राजन्महोत्साहान्महाबलान्। |
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− | श्रुतवानसि वै राजन्महोत्साहान्महाबलान्। | |
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| द्वैपायनस्य वदतो नारदस्य च धीमतः॥ 1-1-228 | | द्वैपायनस्य वदतो नारदस्य च धीमतः॥ 1-1-228 |
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| तान्कालनिर्मितान्बुद्धवा न संज्ञां हातुमर्हसि॥ 1-1-256 | | तान्कालनिर्मितान्बुद्धवा न संज्ञां हातुमर्हसि॥ 1-1-256 |
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− | सौतिरुवाच | + | सौतिरुवाच इत्येवं पुत्रशोकार्तं धृतराष्ट्रं जनेश्वरम्। |
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− | इत्येवं पुत्रशोकार्तं धृतराष्ट्रं जनेश्वरम्। | |
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| आश्वास्य स्वस्थमकरोत्सूतो गावल्गणिस्तदा॥ 1-1-257 | | आश्वास्य स्वस्थमकरोत्सूतो गावल्गणिस्तदा॥ 1-1-257 |