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− | |Auttami Manu | + | |Uttama Manu |
| |उत्तमे वशिष्ठसुताः प्रमदादयः । | | |उत्तमे वशिष्ठसुताः प्रमदादयः । |
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| |धर्म्मसावर्णिके अरुणादयः । | | |धर्म्मसावर्णिके अरुणादयः । |
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− | Havishman, Varishta, Rsthti, Aruni, | + | Havishman, Varishta, Rsthti, Aruni, Nischara, Anagha, Mahamuni |
| |Markandeya Purana (94.19-20) यथा मार्कण्डेये ९४ । १९-२० । | | |Markandeya Purana (94.19-20) यथा मार्कण्डेये ९४ । १९-२० । |
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| |Deva Savarni Manu (Rouchya) | | |Deva Savarni Manu (Rouchya) |
| |देवसावर्णिके निर्म्मोहतत्त्वदर्श्याद्याः । मार्कण्डेयपुराणमते अयं त्रयोदशमनुः रौच्याख्ययाभिहितः । | | |देवसावर्णिके निर्म्मोहतत्त्वदर्श्याद्याः । मार्कण्डेयपुराणमते अयं त्रयोदशमनुः रौच्याख्ययाभिहितः । |
| + | Nirmoha, Tatvadersi, Nishprakampa, Nirutmukha, Dhyutiman, Avyaya and Sutapas |
| |Markandeya Purana (94.27-30) यथा, तत्रैव ९४ । २७-३० । | | |Markandeya Purana (94.27-30) यथा, तत्रैव ९४ । २७-३० । |
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| त्रयोदशस्य पर्य्याये रौच्याख्यस्य मनोः सुतान् । | | त्रयोदशस्य पर्य्याये रौच्याख्यस्य मनोः सुतान् । |
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− | सप्तर्षीं श्च नृपांश्चैव गदतो मे निशामय ॥
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− | सुधर्म्माणः सुरास्तत्र सुकर्म्माणस्तथापरे ।
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− | सुशर्म्माणः सुरा ह्येते समस्ता मुनिसत्तम ॥
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− | महाबलो महावीर्य्यस्तेषामिन्द्रो दिवस्पतिः ।
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− | भविष्यानथ सप्तर्षीन् गदतो मे निशामय ॥
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| धृतिमानव्ययश्चैव तत्त्वदर्शी निरुत्मुकः । | | धृतिमानव्ययश्चैव तत्त्वदर्शी निरुत्मुकः । |
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| |इन्द्रसावर्णिके अग्निबाहुशुचिशुद्धमागधाद्याः सप्तर्षयः । मार्कण्डेयपुराणमतेऽयं भौत्याख्ययाभिहितः । | | |इन्द्रसावर्णिके अग्निबाहुशुचिशुद्धमागधाद्याः सप्तर्षयः । मार्कण्डेयपुराणमतेऽयं भौत्याख्ययाभिहितः । |
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− | Agnidhra, Agnibahu, Suchi, Mukta, Madhava, Sukra, Ajita | + | Agnidhra, Agnibahu, Suchi, Yukta, Madhava, Sukra, Ajita |
| |यथा तत्रैव ९९ । १ । | | |यथा तत्रैव ९९ । १ । |
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| == In Astronomy == | | == In Astronomy == |
− | <blockquote>सप्तर्षि मण्डलं नित्यं तस्याधस्तात्प्रकीर्तितम् ।। मरीचिश्च वसिष्ठश्च अङ्गिराश्चात्रिरेव च ।। २२ ।।</blockquote><blockquote>पुलस्त्यः पुलहश्चैव क्रतुस्सप्तर्षयोऽमलाः ।। वशिष्ठमाश्रिता साध्वी तेषाम्मध्यादरुन्धती ।। २३ ।। (Vish. Dhar. 1.106.22-23)<ref>Vishnudharmottara Purana ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%81%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/_%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%83_%E0%A5%A7/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7%E0%A5%A6%E0%A5%AC Kanda 1 Adhyaya 106])</ref></blockquote>Brihat Samhita gives the Seven Rshis' names as: | + | The Ursa Major constellation in the sky is called Saptarshi mandala according to the astronomical terminology. Astronomical texts describe the Saptarshis as the representatives of Brahma serving for a period of Manvantara and merging into the Brahman at the time of Pralaya.<blockquote>सप्तर्षि मण्डलं नित्यं तस्याधस्तात्प्रकीर्तितम् ।। मरीचिश्च वसिष्ठश्च अङ्गिराश्चात्रिरेव च ।। २२ ।।</blockquote><blockquote>पुलस्त्यः पुलहश्चैव क्रतुस्सप्तर्षयोऽमलाः ।। वशिष्ठमाश्रिता साध्वी तेषाम्मध्यादरुन्धती ।। २३ ।। (Vish. Dhar. 1.106.22-23)<ref>Vishnudharmottara Purana ([https://sa.wikisource.org/wiki/%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%81%E0%A4%A7%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A4%AE%E0%A5%8D/_%E0%A4%96%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1%E0%A4%83_%E0%A5%A7/%E0%A4%85%E0%A4%A7%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%83_%E0%A5%A7%E0%A5%A6%E0%A5%AC Kanda 1 Adhyaya 106])</ref></blockquote>Brihat Samhita gives the Seven Rshis' names as: |
| * Marichi | | * Marichi |
| * Vasistha | | * Vasistha |