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अयोग्य: पुरुषोनास्ति योजकस्तत्र दुर्लभ: ।।   
 
अयोग्य: पुरुषोनास्ति योजकस्तत्र दुर्लभ: ।।   
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अर्थ : ऐसा कोई भी अक्षर नहीं है जिसका मंत्र निर्माण के लिए उपयोग न हो। ऐसी कोई वनस्पति नहीं जिसका कोई औषधि बनाने के लिए उपयोग (वैद्य जीवक की कथा) न होता हो। इसका अर्थ है कि प्रत्येक वनस्पति के अस्तित्व को कुछ न कुछ प्रयोजन तो है ही। भारतीय मान्यता है कि हर अतित्व के निर्माण का कुछ प्रयोजन होता है। इस प्रयोजन को समझकर यदि उस का उपयोग किया जाय तब अधिक से अधिक लाभ मिलता है। इसी तरह से ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है जिसका उपयोग नहीं है। क्षमतावान योजक इन सबका उपयोग क्रमश: अक्षरों का मन्त्रों के लिए, वनस्पति का रोगनिवारण हेतु औषधि बनाने के लिए और प्रत्येक मनुष्य का उपयोग व्यक्ति, समाज या सृष्टी के हित के लिए किसी न किसी काम में आ सके इस ढंग से कर लेता है।  
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अर्थ : ऐसा कोई भी अक्षर नहीं है जिसका मंत्र निर्माण के लिए उपयोग न हो। ऐसी कोई वनस्पति नहीं जिसका कोई औषधि बनाने के लिए उपयोग (वैद्य जीवक की कथा) न होता हो। इसका अर्थ है कि प्रत्येक वनस्पति के अस्तित्व को कुछ न कुछ प्रयोजन तो है ही। भारतीय मान्यता है कि हर अस्तित्व का कुछ प्रयोजन होता है। इस प्रयोजन को समझकर यदि उस का उपयोग किया जाय तब अधिक से अधिक लाभ मिलता है। इसी तरह से ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं है जिसका उपयोग नहीं है। क्षमतावान योजक इन सबका उपयोग क्रमश: अक्षरों का मन्त्रों के लिए, वनस्पति का रोग निवारण हेतु औषधि बनाने के लिए और प्रत्येक मनुष्य का उपयोग व्यक्ति, समाज या सृष्टि के हित के लिए किसी न किसी काम में आ सके इस ढंग से कर लेता है।  
परमात्मा ने सृष्टी के अनगिनत अस्तित्वों का निर्माण किया है। कोई भी वस्तू जब निर्माण की जाती है तब वह अकारण निर्माण नहीं की जाती। किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही उसका निर्माण कोई करता है। इसी तरह से सृष्टी के हर अस्तित्व के याने निर्मिती के निर्माण का कोई प्रयोजन होता है। प्रत्येक वनस्पति के संदर्भ में आयुर्वेद शास्त्र इसकी पुष्टी करता है।
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परमात्मा ने सृष्टि के अनगिनत अस्तित्वों का निर्माण किया है। कोई भी वस्तू जब निर्माण की जाती है तब वह अकारण निर्माण नहीं की जाती। किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही उसका निर्माण कोई करता है। इसी तरह से सृष्टि के हर अस्तित्व के याने निर्मिती के निर्माण का कोई प्रयोजन होता है। प्रत्येक वनस्पति के संदर्भ में आयुर्वेद शास्त्र इसकी पुष्टी करता है।
    
== चराचर में परमात्मा ==
 
== चराचर में परमात्मा ==
भारतीय मान्यता के अनुसार परमात्मा ने अपने में से ही सृष्टी का निर्माण किया है। याने सृष्टी का हर अस्तित्व परमात्मा का ही रूप है। इसे भारत में केवल तत्त्वज्ञान के तौरपर ही नहीं व्यवहार याने आचरण के लिए भी आग्रह का विषय बनाया गया है। इसीलिये वनस्पति से जब औषधि के लिए कुछ छाल, मूल, लकड़ी, फल, फूल या पत्ते लिए जाते हैं तब उस वनस्पति को आदर से पूजा जाता है। वनस्पति की प्रार्थना की जाती है कि,’हे वनस्पति! मैं आपसे मेरे स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि किसी रोगी के दुःख को दूर करने के लिए आपके छाल, मूल, लकड़ी, फल, फूल या पत्ते लेना चाहता हूँ। कृपया हमपर कृपा कर मुझे रोगी का रोग दूर करने में सहायता करें।’  
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भारतीय मान्यता के अनुसार परमात्मा ने अपने में से ही सृष्टि का निर्माण किया है। याने सृष्टि का हर अस्तित्व परमात्मा का ही रूप है। इसे भारत में केवल तत्त्वज्ञान के तौरपर ही नहीं व्यवहार याने आचरण के लिए भी आग्रह का विषय बनाया गया है। इसीलिये वनस्पति से जब औषधि के लिए कुछ छाल, मूल, लकड़ी, फल, फूल या पत्ते लिए जाते हैं तब उस वनस्पति को आदर से पूजा जाता है। वनस्पति की प्रार्थना की जाती है कि,’हे वनस्पति! मैं आपसे मेरे स्वार्थ के लिए नहीं बल्कि किसी रोगी के दुःख को दूर करने के लिए आपके छाल, मूल, लकड़ी, फल, फूल या पत्ते लेना चाहता हूँ। कृपया हमपर कृपा कर मुझे रोगी का रोग दूर करने में सहायता करें।’  
 
सामान्यत: जब किसी अन्य से मदद माँगी जाती है, तब नम्रता से ही माँगी जाती है। जब कोई आपके माँगनेपर प्रसन्नता से मदद करता है तब उस मदद का स्तर श्रेष्ठ होता है। मदद करनेवाला मन:पूर्वक मदद करता है। खुलकर मदद करता है। तब वह मदद आपके काम के लिए अधिक लाभप्रद होती है। भारत में सामान्यत: घर या कोई भी मकान बांधने से पूर्व इसीलिये भूमि-पूजन का कार्यक्रम किया जाता है। यह भूमि को और उस भूमि के सहारे जीनेवाले जीव, सूक्ष्मजीव और वनस्पतियों को प्रसन्न करने के लिए ही किया जाता है। वनस्पति भी जीव होते हैं। इसलिए आयुर्वेद कहता है कि ऐसी आदर से माँगकर ली हुई औषधि अधिक गुणकारी होती है।  
 
सामान्यत: जब किसी अन्य से मदद माँगी जाती है, तब नम्रता से ही माँगी जाती है। जब कोई आपके माँगनेपर प्रसन्नता से मदद करता है तब उस मदद का स्तर श्रेष्ठ होता है। मदद करनेवाला मन:पूर्वक मदद करता है। खुलकर मदद करता है। तब वह मदद आपके काम के लिए अधिक लाभप्रद होती है। भारत में सामान्यत: घर या कोई भी मकान बांधने से पूर्व इसीलिये भूमि-पूजन का कार्यक्रम किया जाता है। यह भूमि को और उस भूमि के सहारे जीनेवाले जीव, सूक्ष्मजीव और वनस्पतियों को प्रसन्न करने के लिए ही किया जाता है। वनस्पति भी जीव होते हैं। इसलिए आयुर्वेद कहता है कि ऐसी आदर से माँगकर ली हुई औषधि अधिक गुणकारी होती है।  
 
आयुर्वेद में स्वास्थ्य का तीन प्रकार से विचार किया जाता है। सत्कार्यवाद, गुणपरिणामवाद और  सहकार्यवाद। सत्कार्यवाद के अनुसार कार्य के गुण सूक्ष्म रूप में कारण में होते ही हैं, ऐसा कहा गया है।  सांख्य दर्शन में यही कार्य कारण सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। गुणपरिणामवाद में कुछ गुण तो दृष्ट याने सहज दिखाई देनेवाले होते हैं। लेकिन कुछ सूक्ष्म होने से अदृष्ट होते हैं। ये अदृष्ट गुण किसी विशेष प्रक्रिया में ही प्रकट होते हैं। इस अदृष्ट गुणों के प्रकट होकर दृष्ट होने की प्रक्रिया को ही गुणपरिणामवाद कहा है। हर द्रव्य के गुणों में त्रिगुणों में से की एक एक की मात्रा का प्रमाण भिन्न होता है। इस भिन्न परिमाण के कारण ही प्रत्येक द्रव्य में विविधता होती है। गुणपरिणामवाद में जिस प्रकार से गुणों की समानता के उपरांत भी विविधता होती है, इसके बराबर विपरीत सहकार्यवाद प्रत्येक द्रव्य की अन्यों से विविधता की ओर से हमें एकत्व की ओर ले जाता है।   
 
आयुर्वेद में स्वास्थ्य का तीन प्रकार से विचार किया जाता है। सत्कार्यवाद, गुणपरिणामवाद और  सहकार्यवाद। सत्कार्यवाद के अनुसार कार्य के गुण सूक्ष्म रूप में कारण में होते ही हैं, ऐसा कहा गया है।  सांख्य दर्शन में यही कार्य कारण सिद्धांत के नाम से जाना जाता है। गुणपरिणामवाद में कुछ गुण तो दृष्ट याने सहज दिखाई देनेवाले होते हैं। लेकिन कुछ सूक्ष्म होने से अदृष्ट होते हैं। ये अदृष्ट गुण किसी विशेष प्रक्रिया में ही प्रकट होते हैं। इस अदृष्ट गुणों के प्रकट होकर दृष्ट होने की प्रक्रिया को ही गुणपरिणामवाद कहा है। हर द्रव्य के गुणों में त्रिगुणों में से की एक एक की मात्रा का प्रमाण भिन्न होता है। इस भिन्न परिमाण के कारण ही प्रत्येक द्रव्य में विविधता होती है। गुणपरिणामवाद में जिस प्रकार से गुणों की समानता के उपरांत भी विविधता होती है, इसके बराबर विपरीत सहकार्यवाद प्रत्येक द्रव्य की अन्यों से विविधता की ओर से हमें एकत्व की ओर ले जाता है।   
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