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| == प्रस्तावना == | | == प्रस्तावना == |
− | मोक्ष प्राप्ति या पूर्णत्व की प्राप्ति यह भारतीय समाज का हमेशा लक्ष्य रहा है। इस दृष्टी से कृषि के क्षेत्र में हमारे पूर्वजों ने कृषि प्रक्रिया का पूर्णत्व के स्तरपर अध्ययन और विकास किया था। दसों-हजार वर्षों से खेती होनेपर भी हमारी भूमि बंजर नहीं हुई। वर्तमान के रासायनिक कृषि के काल को छोड़ दें तो अभीतक हमारी भूमि उर्वरा रही है। | + | मोक्ष प्राप्ति या पूर्णत्व की प्राप्ति यह भारतीय समाज का हमेशा लक्ष्य रहा है। इस दृष्टि से कृषि के क्षेत्र में हमारे पूर्वजों ने कृषि प्रक्रिया का पूर्णत्व के स्तर पर अध्ययन और विकास किया था। दसों-हजार वर्षों से खेती होने पर भी हमारी भूमि बंजर नहीं हुई। वर्तमान के रासायनिक कृषि के काल को छोड़ दें तो अभी तक हमारी भूमि उर्वरा रही है। |
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| मोक्ष प्राप्ति के लिए धर्माचरण, धर्माचरण के लिए अच्छा शरीर और अच्छे शरीर के लिए अच्छा अन्न आवश्यक होता है। कहा गया है “शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम्”। इस विचार से भी हमारी कृषि दृष्टि आकार लेती है। | | मोक्ष प्राप्ति के लिए धर्माचरण, धर्माचरण के लिए अच्छा शरीर और अच्छे शरीर के लिए अच्छा अन्न आवश्यक होता है। कहा गया है “शरीरमाद्यं खलुधर्मसाधनम्”। इस विचार से भी हमारी कृषि दृष्टि आकार लेती है। |
− | प्रकृति से प्राप्त जल का ही ठीक से नियोजन करना, आवश्यक तन्त्रज्ञान का विकास करना और कृषि को अदेवमातृका बनाना यह भारतीय कृषि का महत्वपूर्ण अंग था। प्रकृति से ही प्राप्त नेमतों का उपयोग कृषि के उत्पादन में वृद्धि के लिए और उपज के गुण बढाने के लिए किया जाता था। स्थानिक प्रकृति से सुसंगत ऐसे भिन्न भिन्न फसलों की जातियों का विकास किया जाता था। | + | |
| + | प्रकृति से प्राप्त जल का ही ठीक से नियोजन करना, आवश्यक तन्त्रज्ञान का विकास करना और कृषि को अदेवमातृका बनाना यह भारतीय कृषि का महत्वपूर्ण अंग था। प्रकृति से ही प्राप्त नेमतों का उपयोग कृषि के उत्पादन में वृद्धि के लिए और उपज के गुण बढाने के लिए किया जाता था। स्थानिक प्रकृति से सुसंगत ऐसे भिन्न भिन्न फसलों की जातियों का विकास किया जाता था। |
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| भारत में वेद और उपवेदों के पूर्व काल से खेती होती रही है। अथर्ववेद के उपवेद शिल्पशास्त्रपर आधारित भृगु शिल्प संहिता के धातुखंड हिस्से में कृषि की शास्त्रीय जानकारी प्राप्त होती है। उपवेद के इस विभाग में खेती के लिए जो महत्वपूर्ण घटक हैं उन मनुष्य, पशु और वनस्पति ऐसे तीनों हिस्सों का शास्त्रीय वर्णन मिलता है। | | भारत में वेद और उपवेदों के पूर्व काल से खेती होती रही है। अथर्ववेद के उपवेद शिल्पशास्त्रपर आधारित भृगु शिल्प संहिता के धातुखंड हिस्से में कृषि की शास्त्रीय जानकारी प्राप्त होती है। उपवेद के इस विभाग में खेती के लिए जो महत्वपूर्ण घटक हैं उन मनुष्य, पशु और वनस्पति ऐसे तीनों हिस्सों का शास्त्रीय वर्णन मिलता है। |
− | प्रत्यक्ष कृषि से सम्बंधित महत्वपूर्ण हिस्से निम्न हैं। | + | |
− | जल की आवश्यकता | + | प्रत्यक्ष कृषि से सम्बंधित महत्वपूर्ण हिस्से निम्न हैं: |
− | बीजसंस्कार | + | # जल की आवश्यकता |
− | खाद निर्माण | + | # बीजसंस्कार |
− | चिकित्सा पद्धति | + | # खाद निर्माण |
− | उत्पादन संग्रह | + | # चिकित्सा पद्दति |
− | इस के अलावा जलशास्त्र का ज्ञान भी प्राप्त होता है। बरसात के पानी की उपलब्धता के अनुसार जलसंचेतन (बड़े बाँध), जलसंहरण (छोटे छोटे कुंड़ोंका जाल) और जलस्तम्भन (बावड़ियाँ) विद्याओं का वर्णन भी इस में मिलता है। | + | # उत्पादन संग्रह |
− | कृषि के विषय में अन्य भी ग्रन्थ हैं जो निम्न हैं। | + | इस के अलावा जलशास्त्र का ज्ञान भी प्राप्त होता है। बरसात के पानी की उपलब्धता के अनुसार जलसंचेतन (बड़े बाँध), जलसंहरण (छोटे छोटे कुंड़ोंका जाल) और जलस्तम्भन (बावड़ियाँ) विद्याओं का वर्णन भी इस में मिलता है। |
− | कृषि पराशर - पराशर लिखित | + | |
− | काश्यपीय कृषि सूक्त – काश्यप | + | कृषि के विषय में अन्य भी ग्रन्थ हैं जो निम्न हैं: |
− | वृक्षायुर्वेद – सुरपाल | + | # कृषि पराशर - पराशर लिखित |
− | उपवनविनोद – शारंगधर | + | # काश्यपीय कृषि सूक्त – कश्यप |
− | विश्ववल्लभ – चक्रपाणी मिश्र | + | # वृक्षायुर्वेद – सुरपाल |
− | अन्न, वस्त्र और मकान मानव की प्राथमिक अवश्यकताओं में हैं। इन में से अन्न और वस्त्र की पूर्ति तो अधिकांशत: कृषि के माध्यम से ही होती है। परमात्मा ने मानव को बनाया तो उसके जीने के लिए उसकी सभी आवश्यकताओं की व्यवस्था भी की। बढती हुई आबादी के कारण जब प्राकृतिक स्तरपर पाए जानेवाले फल आदि पदार्थों की कमी पड़ने लगी तब मानव ने कृषि की ख़ोज की। भारत में कृषि बहुत प्राचीन काल से होती आई हैiI। किसी भी बात का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की भारत में परंपरा रही है। किसी भी तंत्र का विकास उसके पूर्णत्व तक कर के ही हमारे पूर्वजों ने उस का पीछा छोड़ा है। शून्य से लेकर ९ तक के गणित के अंक, गणित की मूलभूत आठ प्रक्रियाएँ इस पूर्णता के कुछ उदहारण हैं। भारतीयों ने अपने स्वभाव के अनुसार कृषि में भी पूर्णता पाने के प्रयास किये। और ऐसे कृषि तंत्र का विकास किया जो प्रकृति सुसंगत होने के साथ ही चराचर के हित में हो और चिरंजीवी भी हो। प्रकृति सुसंगत होने से यह कृषि तंत्र सदा ही खेती के लिए उपयुक्त रहा। मानव की आवश्यकताओं की सदैव पूर्ति होती रही। | + | # उपवनविनोद – शारंगधर |
− | अंग्रेजों के आने से पूर्व तक भारत में अन्न, औषधि और शिक्षा ये तीनों बातें बिकाऊ नहीं थीं। भारत भूमि में हमेशा विपुल मात्र में अन्न पैदा होता रहा है। अंग्रेजों के दस्तावेज़ बताते हैं कि उनके भारत में आने के समय भारत में कृषि का तंत्र अत्यंत विकसित अवस्था में था। इंग्लैड में जो कृषि तंत्र उस समय था उससे भारतीय कृषि तंत्र बहुत प्रगत था। | + | # विश्ववल्लभ – चक्रपाणी मिश्र |
− | आबादी की दृष्टि से भी भारत हमेशा बहुत घनी आबादी का देश रहा है। भारत में उत्पादन के जो मानक निर्माण किये गए थे वे अत्यंत ऊँचे थे। भारत में स्वाधीनता के बाद हरित क्रांति के काल में पंजाब में प्रति हेक्टर जो धान पैदा होता था वह देश में सबसे अधिक था। अंग्रेजों के दस्तावेज बताते हैं कि उस उत्पादन की तुलना में १३वीं सदी में तमिलनाडु के चेंगलपट्टू में १ हेक्टर में ही वर्तमान के लगभग चार गुना धान पैदा किया जाता था। १६ वीं सदी के आंकड़े भी बताते हैं की प्रति हेक्टर उत्पादन कम हो जाने पर भी वर्तमान के पंजाब के हरित क्रांति के काल के सर्वोत्तम उत्पादन से दुगुना उत्पादन मिलता था। | + | अन्न, वस्त्र और मकान मानव की प्राथमिक अवश्यकताओं में हैं। इन में से अन्न और वस्त्र की पूर्ति तो अधिकांशत: कृषि के माध्यम से ही होती है। परमात्मा ने मानव को बनाया तो उसके जीने के लिए उसकी सभी आवश्यकताओं की व्यवस्था भी की। बढती हुई आबादी के कारण जब प्राकृतिक स्तर पर पाए जानेवाले फल आदि पदार्थों की कमी पड़ने लगी तब मानव ने कृषि की ख़ोज की। भारत में कृषि बहुत प्राचीन काल से होती आई है। किसी भी बात का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने की भारत में परंपरा रही है। किसी भी तंत्र का विकास उसके पूर्णत्व तक कर के ही हमारे पूर्वजों ने उस का पीछा छोड़ा है। शून्य से लेकर ९ तक के गणित के अंक, गणित की मूलभूत आठ प्रक्रियाएँ इस पूर्णता के कुछ उदहारण हैं। भारतीयों ने अपने स्वभाव के अनुसार कृषि में भी पूर्णता पाने के प्रयास किये। और ऐसे कृषि तंत्र का विकास किया जो प्रकृति सुसंगत होने के साथ ही चराचर के हित में हो और चिरंजीवी भी हो। प्रकृति सुसंगत होने से यह कृषि तंत्र सदा ही खेती के लिए उपयुक्त रहा। मानव की आवश्यकताओं की सदैव पूर्ति होती रही। |
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| + | अंग्रेजों के आने से पूर्व तक भारत में अन्न, औषधि और शिक्षा ये तीनों बातें बिकाऊ नहीं थीं। भारत भूमि में हमेशा विपुल मात्र में अन्न पैदा होता रहा है। अंग्रेजों के दस्तावेज़ बताते हैं कि उनके भारत में आने के समय भारत में कृषि का तंत्र अत्यंत विकसित अवस्था में था। इंग्लैड में जो कृषि तंत्र उस समय था उससे भारतीय कृषि तंत्र बहुत प्रगत था। |
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| + | आबादी की दृष्टि से भी भारत हमेशा बहुत घनी आबादी का देश रहा है। भारत में उत्पादन के जो मानक निर्माण किये गए थे वे अत्यंत ऊँचे थे। भारत में स्वाधीनता के बाद हरित क्रांति के काल में पंजाब में प्रति हेक्टर जो धान पैदा होता था वह देश में सबसे अधिक था। अंग्रेजों के दस्तावेज बताते हैं कि उस उत्पादन की तुलना में १३वीं सदी में तमिलनाडु के चेंगलपट्टू में १ हेक्टर में ही वर्तमान के लगभग चार गुना धान पैदा किया जाता था। १६ वीं सदी के आंकड़े भी बताते हैं कि प्रति हेक्टर उत्पादन कम हो जाने पर भी वर्तमान के पंजाब के हरित क्रांति के काल के सर्वोत्तम उत्पादन से दुगुना उत्पादन मिलता था। |
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| उसी भारत में अब लाखों की संख्या में किसानों के लिए आत्महत्याएं करने की परिस्थिति निर्माण हो गई है। लाख प्रयासों के उपरांत अभी भी किसानों की आत्महत्याओं का क्रम रुक नहीं रहा। किसानों की वर्तमान स्थिति ऐसी है कि किसान भी अपनी बेटी को किसान के घर नहीं ब्याहना चाहता। जिलाधिकारी का बेटा किसान बनें ऐसा तो कोई सोच ही नहीं सकता। लेकिन किसान का बेटा अवश्य जिलाधिकारी बनने के सपने देख रहा है। किसान का बेटा और कुछ भी याने शहर में मजदूर बनकर शहर की झुग्गियों में रहने को तैयार है लेकिन वह किसान नहीं बनना चाहता। किसानों के जो बेटे कृषि विद्यालयों में पढ़ते हैं वे पढाई पूरी करने के बाद किसी कृषि विद्यालय या महाविद्यालय या सरकारी कृषि विभाग में नौकरी पाने के लिए लालायित हैं। वे खेती करना नहीं चाहते। | | उसी भारत में अब लाखों की संख्या में किसानों के लिए आत्महत्याएं करने की परिस्थिति निर्माण हो गई है। लाख प्रयासों के उपरांत अभी भी किसानों की आत्महत्याओं का क्रम रुक नहीं रहा। किसानों की वर्तमान स्थिति ऐसी है कि किसान भी अपनी बेटी को किसान के घर नहीं ब्याहना चाहता। जिलाधिकारी का बेटा किसान बनें ऐसा तो कोई सोच ही नहीं सकता। लेकिन किसान का बेटा अवश्य जिलाधिकारी बनने के सपने देख रहा है। किसान का बेटा और कुछ भी याने शहर में मजदूर बनकर शहर की झुग्गियों में रहने को तैयार है लेकिन वह किसान नहीं बनना चाहता। किसानों के जो बेटे कृषि विद्यालयों में पढ़ते हैं वे पढाई पूरी करने के बाद किसी कृषि विद्यालय या महाविद्यालय या सरकारी कृषि विभाग में नौकरी पाने के लिए लालायित हैं। वे खेती करना नहीं चाहते। |
− | हमारे किसान अब कुछ पिछडे हुए नहीं रहे हैं। अत्याधुनिक जनुकीय तन्त्रज्ञान से निर्माण किये गए संकरित बीज, अत्याधुनिक रासायनिक खरपतवार, महंगी रासायनिक खाद, उत्तम से उत्तम रासायनिक कीटक नाशकों का उपयोग करना अब वे बहुत अच्छी तरह जानते हैं। फिर भी किसानों की यह स्थिति क्यों है? | + | |
− | उपर्युक्त सभी बातें हमें इस विषयपर गहराई से विचार करने को बाध्य करती हैं। ऐसा समझ में आता है कि कुछ मूलमें ही गड़बड़ हुई है। इसलिए हम पुरे समाज के जीवन की जड़ में जाकर इस समस्या का विचार करेंगे। | + | हमारे किसान अब कुछ पिछडे हुए नहीं रहे हैं। अत्याधुनिक जनुकीय तन्त्रज्ञान से निर्माण किये गए संकरित बीज, अत्याधुनिक रासायनिक खरपतवार, महंगी रासायनिक खाद, उत्तम से उत्तम रासायनिक कीटक नाशकों का उपयोग करना अब वे बहुत अच्छी तरह जानते हैं। फिर भी किसानों की यह स्थिति क्यों है? |
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| + | उपर्युक्त सभी बातें हमें इस विषयपर गहराई से विचार करने को बाध्य करती हैं। ऐसा समझ में आता है कि कुछ मूल में ही गड़बड़ हुई है। इसलिए हम पुरे समाज के जीवन की जड़ में जाकर इस समस्या का विचार करेंगे। |
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| == अभारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्थाएँ == | | == अभारतीय जीवनदृष्टि, जीवनशैली और व्यवस्थाएँ == |
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| ३. कितना भी अच्छा वर हो अपनी बेटी को शहर में नहीं ब्याहना। ग्राम का ही किसान पति खोजना। | | ३. कितना भी अच्छा वर हो अपनी बेटी को शहर में नहीं ब्याहना। ग्राम का ही किसान पति खोजना। |
| ४. अपने ग्राम को जो वर्तमान में व्हिलेज या शहर बनने चल पडा है, उसे फिर से ग्राम बनाना। ग्राम को स्वावलंबी बनानेवाली ग्राम कुल की अर्थव्यवस्था कैसी होती थी, आज कैसी होनी चाहिए इसे ठीक से समझकर क्रियान्वयन करना। (अध्याय १७ ग्रामकुल देखें) | | ४. अपने ग्राम को जो वर्तमान में व्हिलेज या शहर बनने चल पडा है, उसे फिर से ग्राम बनाना। ग्राम को स्वावलंबी बनानेवाली ग्राम कुल की अर्थव्यवस्था कैसी होती थी, आज कैसी होनी चाहिए इसे ठीक से समझकर क्रियान्वयन करना। (अध्याय १७ ग्रामकुल देखें) |
− | ५. इस दृष्टी से पैसे का विनिमय कम कम करते जाना। ग्राम में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करना। | + | ५. इस दृष्टि से पैसे का विनिमय कम कम करते जाना। ग्राम में उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करना। |
| ६. खेती को अदेवमातृका बनाने के लिए ग्राम के लोगों की शक्ति से गाँव के तालाब का निर्माण या पुनर्निर्माण करना और उसका रखरखाव करना। | | ६. खेती को अदेवमातृका बनाने के लिए ग्राम के लोगों की शक्ति से गाँव के तालाब का निर्माण या पुनर्निर्माण करना और उसका रखरखाव करना। |
| ७. खेती को आनुवंशिक बनाने के लिए खेती को कौटुम्बिक उद्योग बनाना। | | ७. खेती को आनुवंशिक बनाने के लिए खेती को कौटुम्बिक उद्योग बनाना। |
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| == उपसंहार == | | == उपसंहार == |
− | वर्तमान में उपर्युक्त बातें किसानों को बतानेपर वे पलटकर पूछेंगे कि यह सब उपदेश हमें ही क्यों दे रहे हैं? इन सब बातों का हम पालन करेंगे तो हम तो गरीब ही रहेंगे। और केवल गरीब ही नहीं रहेंगे तो आज जैसे कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं वैसे हमें भी आत्महत्या करनी पड़ेगी। उन का कहना तो उचित ही है। लेकिन फिर इसका हल कैसे निकलेगा? किसी को तो पहल करनी ही होगी। किसान यदि अन्य समाज के बदलने की राह देखेगा तो न किसान बचेगा और न ही समाज। वह जब भारतीय पद्धति से खेती करेगा तो वह स्वावलंबी बनेगा। जब वह स्वावलंबी बनेगा तो आत्महत्या की नौबत ही नहीं आएगी। | + | वर्तमान में उपर्युक्त बातें किसानों को बतानेपर वे पलटकर पूछेंगे कि यह सब उपदेश हमें ही क्यों दे रहे हैं? इन सब बातों का हम पालन करेंगे तो हम तो गरीब ही रहेंगे। और केवल गरीब ही नहीं रहेंगे तो आज जैसे कई किसान आत्महत्या कर रहे हैं वैसे हमें भी आत्महत्या करनी पड़ेगी। उन का कहना तो उचित ही है। लेकिन फिर इसका हल कैसे निकलेगा? किसी को तो पहल करनी ही होगी। किसान यदि अन्य समाज के बदलने की राह देखेगा तो न किसान बचेगा और न ही समाज। वह जब भारतीय पद्दति से खेती करेगा तो वह स्वावलंबी बनेगा। जब वह स्वावलंबी बनेगा तो आत्महत्या की नौबत ही नहीं आएगी। |
| बचपन में एक कहानी सुनी थी। एक बार किसी गाँव में कई वर्षोंतक बारिश नहीं हुई। हर साल बारिश होगी इसलिए सब किसान तैयारी करते थे। मेंढक टर्राते थे। पक्षी अपने घोसलों का रखरखाव करते थे। मोर नाचते थे। लेकिन सब व्यर्थ हो जाता था। बारिश नहीं आती थी। सब तैयारी व्यर्थ हो जाती थी। सब निराश हो गए थे। अब की बार फिर बारिश के दिन आए। लेकिन किसानों ने ठान लिया था कि अब वे खेती की तैयारी नहीं करेंगे। किसानों ने कोई तैयारी नहीं की। मेंढकों ने टर्राना बंद कर दिया। पक्षियों ने अपने घोसलों का रखरखाव नहीं किया। लेकिन एक मोर ने सोचा यह तो ठीक नहीं है। औरों ने अपना काम बंद किया होगा तो करने दो। मैं क्यों मेरा काम नहीं करूँ? उसने तय किया की बादल आयें या न आयें, बारिश हो या नहीं, वह तो अपना काम करेगा। वह निकला और लगा झूमझूम कर नाचने। उस को नाचते देखकर पक्षियों को लगा की हम क्यों अपना काम छोड़ दें। वे भी लगे अपने घोसलों के रखरखाव में। मेंढकों ने सोचा वे भी क्यों अपना काम छोड़ें। वे भी लगे टर्राने। फिर किसान भी सोचने लगा ये सब अपना काम कर रहे हैं, फिर मैं क्यों अपना काम छोड़ दूँ ? वह भी लगा तैयारी करने। ऐसे सब को अपना काम करते देखकर वरुण देवता जो बारिश लाते हैं, उन को शर्म महसूस हुई। मेंढक, मोर जैसे प्राणी भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। फिर मैंने अपना काम क्यों छोड़ा है ? वह झपटे। बादलों को संगठित किया और लगे पानी बरसाने। किसान खुशहाल हो गया। सारा गाँव खुशहाल हो गया। | | बचपन में एक कहानी सुनी थी। एक बार किसी गाँव में कई वर्षोंतक बारिश नहीं हुई। हर साल बारिश होगी इसलिए सब किसान तैयारी करते थे। मेंढक टर्राते थे। पक्षी अपने घोसलों का रखरखाव करते थे। मोर नाचते थे। लेकिन सब व्यर्थ हो जाता था। बारिश नहीं आती थी। सब तैयारी व्यर्थ हो जाती थी। सब निराश हो गए थे। अब की बार फिर बारिश के दिन आए। लेकिन किसानों ने ठान लिया था कि अब वे खेती की तैयारी नहीं करेंगे। किसानों ने कोई तैयारी नहीं की। मेंढकों ने टर्राना बंद कर दिया। पक्षियों ने अपने घोसलों का रखरखाव नहीं किया। लेकिन एक मोर ने सोचा यह तो ठीक नहीं है। औरों ने अपना काम बंद किया होगा तो करने दो। मैं क्यों मेरा काम नहीं करूँ? उसने तय किया की बादल आयें या न आयें, बारिश हो या नहीं, वह तो अपना काम करेगा। वह निकला और लगा झूमझूम कर नाचने। उस को नाचते देखकर पक्षियों को लगा की हम क्यों अपना काम छोड़ दें। वे भी लगे अपने घोसलों के रखरखाव में। मेंढकों ने सोचा वे भी क्यों अपना काम छोड़ें। वे भी लगे टर्राने। फिर किसान भी सोचने लगा ये सब अपना काम कर रहे हैं, फिर मैं क्यों अपना काम छोड़ दूँ ? वह भी लगा तैयारी करने। ऐसे सब को अपना काम करते देखकर वरुण देवता जो बारिश लाते हैं, उन को शर्म महसूस हुई। मेंढक, मोर जैसे प्राणी भी अपना कर्तव्य निभा रहे हैं। फिर मैंने अपना काम क्यों छोड़ा है ? वह झपटे। बादलों को संगठित किया और लगे पानी बरसाने। किसान खुशहाल हो गया। सारा गाँव खुशहाल हो गया। |
| हम जानते हैं कि यह तो मात्र कथा है। लेकिन इस के सिवाय दूसरा मार्ग भी तो नहीं है। अन्य लोग अपना कर्तव्य निभा रहे हैं या नहीं इस की चिंता किये बगैर ही हम किसानों को और किसानों की पीड़ा समझनेवाले किसानों के समर्थकों को मोर की तरह सोचना होगा। अपने कर्तव्यों का, जातिधर्म का पालन करना हमें अपने से शुरू करना होगा। रास्ता तो यही है। हम कोई ५-६ दिन काम कर थककर छठे सातवें दिन आराम करनेवाले नौकर लोग या गॉड तो नहीं हैं। सूरज की तरह, परोपकारी पेड़ों की तरह प्रकृति माता की तरह अविश्रांत परिश्रम करनेवाले और मालिक की मानसिकतावाले लोग हैं हम। शक्ति भी हम में कुछ कम नहीं है। बस निश्चय करने की आवश्यकता मात्र है। | | हम जानते हैं कि यह तो मात्र कथा है। लेकिन इस के सिवाय दूसरा मार्ग भी तो नहीं है। अन्य लोग अपना कर्तव्य निभा रहे हैं या नहीं इस की चिंता किये बगैर ही हम किसानों को और किसानों की पीड़ा समझनेवाले किसानों के समर्थकों को मोर की तरह सोचना होगा। अपने कर्तव्यों का, जातिधर्म का पालन करना हमें अपने से शुरू करना होगा। रास्ता तो यही है। हम कोई ५-६ दिन काम कर थककर छठे सातवें दिन आराम करनेवाले नौकर लोग या गॉड तो नहीं हैं। सूरज की तरह, परोपकारी पेड़ों की तरह प्रकृति माता की तरह अविश्रांत परिश्रम करनेवाले और मालिक की मानसिकतावाले लोग हैं हम। शक्ति भी हम में कुछ कम नहीं है। बस निश्चय करने की आवश्यकता मात्र है। |