# वर्तमान प्रतिमान में प्रकृति का प्रदूषण यह बहुत बड़ी समस्या बन गयी है। लेकिन अभारतीय सोच होने से हम भूमि, जल और वायु के प्रदूषण की ही बात करते रहते हैं। भारतीय दृष्टी से तो प्रकृति अष्टधा होती है। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये तीन महाभूत और मन, बुद्धि और अहंकार ये त्रिगुण मिलकर प्रकृति बनती है। प्रदूषण का विचार इन आठों के सन्दर्भ में होने की आवश्यकता है। विशेषत: मन और बुद्धि का प्रदूषण ही वास्तव में समूची समस्या की जड़ में हैं। इन का प्रदूषण दूर करने से सभी प्रदूषण दूर हो जायंगे। इसके लिए वायू, पृथ्वि, अग्नि, वरूण आदि देवता हैं ऐसे संस्कार करने होंगे। इन के प्रदूषण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन हमारे (तथाकथित सेक्युलर) अभारतीय प्रतिमान में ऐसा कहना असंवैधानिक माना जाएगा। | # वर्तमान प्रतिमान में प्रकृति का प्रदूषण यह बहुत बड़ी समस्या बन गयी है। लेकिन अभारतीय सोच होने से हम भूमि, जल और वायु के प्रदूषण की ही बात करते रहते हैं। भारतीय दृष्टी से तो प्रकृति अष्टधा होती है। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश ये तीन महाभूत और मन, बुद्धि और अहंकार ये त्रिगुण मिलकर प्रकृति बनती है। प्रदूषण का विचार इन आठों के सन्दर्भ में होने की आवश्यकता है। विशेषत: मन और बुद्धि का प्रदूषण ही वास्तव में समूची समस्या की जड़ में हैं। इन का प्रदूषण दूर करने से सभी प्रदूषण दूर हो जायंगे। इसके लिए वायू, पृथ्वि, अग्नि, वरूण आदि देवता हैं ऐसे संस्कार करने होंगे। इन के प्रदूषण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। लेकिन हमारे (तथाकथित सेक्युलर) अभारतीय प्रतिमान में ऐसा कहना असंवैधानिक माना जाएगा। |