तन्त्रज्ञान दृष्टि में बदलाव लाना सहज बात नहीं है। लेकिन फिर भी यह करणीय होने से विशेष ध्यान देकर इसे स्थापित करना होगा। यह बदलाव अकेले तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में नहीं आ सकता। इसलिये हम जिस प्रतिमान में जी रहे हैं उस अभारतीय प्रतिमान के प्रत्येक घटक को बदलने की प्रक्रिया समांतर ंतथा साथ साथ चलानी होगी। साथ साथ चलाने से ऐसे परिवर्तन के प्रयास एक दूसरे के पूरक और पोषक होंगे। परिवर्तन की प्रक्रिया को भूमितीय प्रमाण में गति देंगे। वैसे तो दुनियाँ के अन्य समाज भी उनके वर्तमान प्रतिमान के कारण दु:खी ही है। लेकिन उनके पास वर्तमान प्रतिमान से अधिक श्रेष्ठ विकल्प ही नहीं है। हमारे पास जीवन के भारतीय प्रतिमान का कालसिध्द श्रेष्ठ विकल्प भी है और करने की सामर्थ्य भी है। आवश्यकता है इस परिवर्तन के संकल्प की। | तन्त्रज्ञान दृष्टि में बदलाव लाना सहज बात नहीं है। लेकिन फिर भी यह करणीय होने से विशेष ध्यान देकर इसे स्थापित करना होगा। यह बदलाव अकेले तन्त्रज्ञान के क्षेत्र में नहीं आ सकता। इसलिये हम जिस प्रतिमान में जी रहे हैं उस अभारतीय प्रतिमान के प्रत्येक घटक को बदलने की प्रक्रिया समांतर ंतथा साथ साथ चलानी होगी। साथ साथ चलाने से ऐसे परिवर्तन के प्रयास एक दूसरे के पूरक और पोषक होंगे। परिवर्तन की प्रक्रिया को भूमितीय प्रमाण में गति देंगे। वैसे तो दुनियाँ के अन्य समाज भी उनके वर्तमान प्रतिमान के कारण दु:खी ही है। लेकिन उनके पास वर्तमान प्रतिमान से अधिक श्रेष्ठ विकल्प ही नहीं है। हमारे पास जीवन के भारतीय प्रतिमान का कालसिध्द श्रेष्ठ विकल्प भी है और करने की सामर्थ्य भी है। आवश्यकता है इस परिवर्तन के संकल्प की। |