किसी भी सुखी समाज के रथ के संस्कृति और समृद्धि ये दो पहियें होते हैं| बिना संस्कृति के समृद्धि आसुरी मानसिकता निर्माण करती है| और बिना समृद्धि के संस्कृति की रक्षा नहीं की जा सकती| उपर्युक्त तालिका से भी यही बात समझ में आती है| संस्कृति और समृद्धि दोनों को मिलाकर मानव जीवन श्रेष्ठ बनता है| इस विस्तृत दायरे का शास्त्र मानव धर्म शास्त्र या समाजशास्त्र या अर्थशास्त्र है| यह मानव धर्मशास्त्र व्यापक धर्मशास्त्र का अंग है| सामान्यत: सांस्कृतिक शास्त्र का और समृद्धि शास्त्र का अंगांगी सम्बन्ध प्राकृतिक शास्त्र के तीनों पहलुओं से होता है| वनस्पति शास्त्र, प्राणी शास्त्र और भौतिक शास्त्र ये तीनों समृद्धि शास्त्र के लिए अनिवार्य हिस्से हैं| इनके बिना समृद्धि संभव नहीं है| वास्तव में इन तीनों शास्त्रों के ज्ञान के बिना तो मनुष्य का जीना ही कठिन है| इसलिए समृद्धि शास्त्र का विचार करते समय मानव के सांस्कृतिक पक्ष का और तीनों प्राकृतिक शास्त्रों का विचार आवश्यक है| प्राकृतिक शास्त्रों के विचार में मानव के प्राणी (प्राणिक आवेग) पक्ष का भी विचार विशेष रूप से करना जरूरी है| समृद्धि शास्त्र के नियामक धर्मशास्त्र के हिस्से को ही सांस्कृतिक शास्त्र कहते हैं| | किसी भी सुखी समाज के रथ के संस्कृति और समृद्धि ये दो पहियें होते हैं| बिना संस्कृति के समृद्धि आसुरी मानसिकता निर्माण करती है| और बिना समृद्धि के संस्कृति की रक्षा नहीं की जा सकती| उपर्युक्त तालिका से भी यही बात समझ में आती है| संस्कृति और समृद्धि दोनों को मिलाकर मानव जीवन श्रेष्ठ बनता है| इस विस्तृत दायरे का शास्त्र मानव धर्म शास्त्र या समाजशास्त्र या अर्थशास्त्र है| यह मानव धर्मशास्त्र व्यापक धर्मशास्त्र का अंग है| सामान्यत: सांस्कृतिक शास्त्र का और समृद्धि शास्त्र का अंगांगी सम्बन्ध प्राकृतिक शास्त्र के तीनों पहलुओं से होता है| वनस्पति शास्त्र, प्राणी शास्त्र और भौतिक शास्त्र ये तीनों समृद्धि शास्त्र के लिए अनिवार्य हिस्से हैं| इनके बिना समृद्धि संभव नहीं है| वास्तव में इन तीनों शास्त्रों के ज्ञान के बिना तो मनुष्य का जीना ही कठिन है| इसलिए समृद्धि शास्त्र का विचार करते समय मानव के सांस्कृतिक पक्ष का और तीनों प्राकृतिक शास्त्रों का विचार आवश्यक है| प्राकृतिक शास्त्रों के विचार में मानव के प्राणी (प्राणिक आवेग) पक्ष का भी विचार विशेष रूप से करना जरूरी है| समृद्धि शास्त्र के नियामक धर्मशास्त्र के हिस्से को ही सांस्कृतिक शास्त्र कहते हैं| |