Panchamahabhut(पंचमहाभूत)
प्रस्तावना
सृष्टि की उत्पत्ति इन्हीं पञ्चमहाभूतों से हुई है। इस विषय में आप अपने माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी या परिवार के किसी बडे सदस्य से भी बातचीत कर सकतें हैं। पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु तथा आकाश को पञ्चमहाभूत कहते है।
पञ्चमहाभूत : अर्थ तथा प्रकृति
भू सत्तायाम् (भू धातु) में क्त प्रत्यय के योग से भूत शब्द बनता है। भूत का तात्पर्य है जिसकी सत्ता (अस्तित्व) हो या जो विद्यमान रहता हो। भूत किसी अन्य के कार्य नहीं होते अर्थात् इनकी उत्पत्ति का कोई कारण नहीं होता है बल्कि महाभूतों के उपादान कारण के रुप में अन्य सब की विद्यमानता रहती है।
महर्षि चरक के अनुसार ये महाभूत सूक्ष्म तथा इन्द्रियातीत होते है-
अर्थाः शब्दादयो ज्ञेया गोचरा विषमा गुणाः
(चरक शास्त्र 1/32) महान भूतों को महाभूत कहते है-
“महन्ति भूतानि महाभूतानि”
महत्व या स्थूलत्व आने के कारण इनकी महाभूत संज्ञा होती है। तथा ये समस्त जीवों का शरीर और निर्जीव सभी पदार्थ इन्हीं से बने है।
इह हि द्रवयं पञ्चमहाभूतात्मकम
महाभूत संख्या में पाँच हे-
1. आकाश
2. वायु
3. अग्नि
4. जल
5. पृथ्वी
आकाश-
आकाश को नित्य माना गया है। आकाश का एक गुण है-शब्द। जैसे आकाश नित्य है वैसे ही उसका गुण-“शब्द” भी नित्य है ।
वायु-
आकाश से वायु की उत्पत्ति मानी गई हे। “ आकाशद्वायुः” वायु भी नित्य माना गया है। वायु में अपना गुण स्पर्श तथा आकाश का गुण शब्द रहता है। इस तरह वायु के दो गुण - स्पर्श तथा शब्द नित्य होते है।